आंबेडकर ने कबीर को अपना गुरु क्यों माना

667
बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने तीन लोगों को अपना गुरु माना था। ये थे, गौतम बुद्ध, कबीर और जोतिराव फुले को अपना गुरु माना। ये तीनों भारत के तीन युगों की सबसे क्रांतिकारी और प्रगतिशील वैचारिकी का प्रतिनिधित्व करते हैं और उसके मूर्त रूप हैं। जिसे बहुजन-श्रमण वैचारिकी कहते हैं। गौतम बुद्ध प्राचीन भारत, कबीर मध्यकालीन भारत और जोतिराव फुले आधुनिक भारत की सबसे मानवीय और उन्नत वैचारिकी के प्रतिनिधि हैं।
इन तीनों की संवेदना और वैचारिकी में वेदों और ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के लिए कोई जगह नहीं। कबीर और जोतीराव फुले ने वेदों- ब्राह्मणों की श्रेष्ठता खुली चुनौती दी है और वर्ण-व्यवस्था को खारिज किया। इनमें कोई ब्राह्मण या द्विज नहीं था। जहां कबीर और जोतिराव फुले वर्ण-व्यवस्था के क्रम में कहे जाने वाले शूद्र समुदाय में जन्म लिए हैं। वहीं गौतम बुद्ध शाक्य कबीले में पैदा हुए थे। जिसमें वर्ण-व्यवस्था नहीं थी। वे न क्षत्रिय थे, न ब्राह्मण और न ही शूद्र।
ये तीनों उत्पादक-श्रमशील समाज में पैदा हुए थे। गौतम बुद्ध, कबीर और जोतीराव फुले को तीनों युगों के प्रतिनिधि के रूप में रेखांकित करके आंबेडकर ने भारत की क्रांतिकारी-प्रगतिशील परंपरा की निरंतरता को रेखांकित किया। इन तीनों को गुरु मानकर आंबेडकर ने पुरजोर तरीके यह रेखांकित किया कि इन तीनों के विचारों और व्यक्तित्व को केंद्र में रखकर ही आधुनिक भारत का निर्माण किया जा सकता है। ऐसा भारत जिसके केंद्र में समता, स्वतंत्रता, बंधुता और सबके लिए न्याय हो।
आधुनिक भारत में एक मात्र आंबेडकर थे, जिन्होंने भारत की देशज क्रांतिकारी-प्रगतिशील परंपरा की पूरी यात्रा को इन तीनों के माध्यम से रेखांकित किया। भारत का कोई दूसरा नायक या विचारक इसको ठोस और मुकम्मल रूप में रेखांकित नहीं कर पाया और न समझ पाया। भारत में पैदा हुए इतिहासकार प्रोफेशन के अर्थों में भले इतिहासकार रहें हों, लेकिन प्राचीन भारत से आधुनिक भारत की तक की यात्रा को समझने की उनके पास इतिहास दृष्टि नहीं थी।
यह इतिहास दृष्टि सिर्फ और सिर्फ आंबेडकर के पास थी। गौतम बुद्ध, कबीर और फुले को भारत के तीन युगों के प्रतिनिधि के रूप में रेखांकित करना इसी इतिहास दृष्टि का परिणाम था। जैसे मार्क्स के पहले बहुतेरे इतिहासकार दुनिया में हुए थे, लेकिन उनके पास मानव जाति की यात्रा को समझने के लिए मुकम्मल इतिहास दृष्टि नहीं थी। दुनिया को मुकम्मल इतिहास दृष्टि मार्क्स ने दी। उसी तरह आंबेडकर से पहले भारत की ऐतिहासिक यात्रा को समझने की मुकम्मल इतिहास दृष्टि से सिर्फ और सिर्फ आंबेडकर पास थी। जिसकी सबसे सूत्रवत अभिव्यक्ति उन्होंने अपनी किताब ‘ प्राचीन भारत में क्रांति औ प्रतिक्रांति’ में की है।
मार्क्स की शब्दावली का इस्तेमाल करें तो,अब तक का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है। भारत का इतिहास भी वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है। यहां वर्ग ने खुद वर्ण-जाति के रूप में अभिव्यक्त किया। वर्ग-संघर्ष में हमेशा एक प्रगतिशील और प्रतिक्रियावादी वर्ग होता है। परजीवी और शोषक वर्ग प्रतिक्रियावादी वर्ग होता है। उत्पादक और मेहनकश वर्ग प्रगतिशील वर्ग होता है। भारत में ब्राह्मण, श्रत्रिय और वैश्य (द्विज) परजीवी और शोषक वर्ण (वर्ग) रहे हैं। जिन्हें शूद्र और अतिशूद्र कहा जाता है, वे उत्पादक और प्रगतिशील वर्ग रहे हैं।
गौतम बुद्ध, कबीर और जोतिराव फुले भारत के वर्ग-संघर्ष (वर्ण संघर्ष) के क्रांतिकारी विरासत के मूर्त रूप हैं। आंबेडकर ने इन्हें अपना गुरु मानकर इसे पुरजोर तरीके से रेखांकित किया। कबीर भारत के मध्यकाल के सबसे क्रांतिकारी-प्रगतिशील और महान व्यक्तित्व हैं। उन्हें सादर स्मरण करते हुए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.