दलित एवं पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का मूलभूत कारक है. यह उनके सामाजिक मुक्ति एवं आर्थिक विकास के लिये एक मात्र कारक है. दलित, जनजातीय एवं घुमंतू समुदायों में साक्षरता या आधुनिक शिक्षा जैसी व्यवस्थित सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती है. जब हम शिक्षा के बारे में डा. अंबेडकर के विचारों एवं उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए उनके संर्घर्षों पर नजर डालते हैं तो हमारे मन में सहज ही उनके प्रति सम्मान का भाव जागता है. जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्से के विचार को आगे बढ़ाते हुए फूको ने अपनी सभी कृतियों में ज्ञान, शक्ति एवं व्यक्ति के बीच स्थित त्रिकोणीय संबंधों का विश्लेषण किया है. इसी त्रिकोण के आधार डॉ. अंबेडकर के शिक्षा के लिये किए संघर्ष एवं ज्ञान प्रप्ति के उपरान्त व्यक्तित्व एवं कृतित्व के माध्यम से भारतीय समाज में उनके द्वारा लाये गए परिवर्तनों का विश्लेषण करने पर इसकी महत्ता साफ दिखती है.
लगभग 100 वर्ष पूर्व 4 जून 1913 को डॉ. अंबेडकर और बड़ौदा नरेश के बीच के हुए करार के बाद उन्हें अमेरिका में अध्ययन करने के लिये छात्रवृत्ति मिली. यह एक ऐतिहासिक घटना थी. जुलाई 1913 के तीसरे सप्ताह में वह न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में उच्च अध्ययन के लिये पहुंचे. इस दौरान उन्हें पहली बार बराबरी का अनुभव हुआ. वह वहां के विद्यार्थियों के साथ बराबरी के साथ वार्तालाप करते, भोजन करते और घूमते थे. सभी जगह समता का वातावरण था. उस नये जगत ने उनके मन का क्षितिज विशाल किया. इसके बाद से डॉ. अंबेडकर ने गंभीरता पूर्वक सोचना शुरू किया कि पददलित समाज में शिक्षा के प्रसार से ही सकारात्मक परिवर्तन लाये जा सकते हैं. डॉ. अंबेडकर ने प्राप्त अवसर का पूरा लाभ उठाया. विश्वविद्यालय में उपाधि हासिल करने के उद्देश्य के साथ ही अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीति शास़्त्र और मानव शास्त्र अदि विषयों में प्रवीणता प्राप्त करने की उनकी प्रबल महात्वाकाक्षा थी, जिसे उन्होंने पूरा किया.
अपने गुरू सेंलिगमैन के निर्देशन में दो साल की कड़ी मेहनत से प्राचीन भारत में व्यापार (Ancient Indian Commerce) विषय पर प्रबंध (THESIS) लिखकर 1915 में एमए की उपाधि हासिल की. एक और प्रबंध भारत के राष्ट्रीय मुनाफे का बंटवाराः एक ऐतिहासिक और विवेवचात्मक अध्ययन (National Dividend of India A History and Analytical Study) जून 1916 में पूरा किया. उनकी इस उपलब्धि पर उनके सहपाठियों ने पार्टी देकर उनका सम्मान किया. सन् 1924 में उनका यह प्रबंध पुस्तक के रूप में लंदन से (The Evolution of Provincial Finance in British India) के शीर्षक से प्रकाशित हुआ. तदुपरान्त कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उन्हें विधिवत रूप से पी.ए.चडी (डाक्टरेट) की उपाधि प्रदान की. आज कोलंबिया विश्वविद्यालय में डॉ. अंबेडकर की विशाल मूर्ति एवं अध्ययन पीठ स्थापित है और वहां उनके विचारों पर आधारित पाठयक्रम की शिक्षा दी जाती है एवं शोध किया जाता है. सन 2012 के ग्रीष्मकालीन सेमेस्टर में जेएनयू के समाजशास्त्र विभाग के प्रध्यापक एवं प्रसिद्व समाजशास्त्री डॉ. विवेक कुमार ने विजटिंग प्रोफेसर के रूप में कोलबिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया था.
कोलंबिया विश्वविद्यालय के साथ-साथ डॉ. अंबेडकर ने लंदन विश्वविद्यालय से एमएससी की परीक्षा 1921 में उतीर्ण की तथा (The Problem of Rupees) पर प्रबंध लिखकर लंदन विश्वविद्यालय डॉ. ऑफ सांइस की उपाधि प्राप्ति की. वहीं पर बैरिस्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की. सर्वथा विपरीत परिस्थतियों में संघर्ष करते हुए चुनौतियों का अदम्य साहस से सामना करते हुए डा. अंबेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त की और एक बुद्विमान एवं शक्तिशाली व्यक्ति बने और विषमता मूलक भारतीय समाज में दलितों-शोषितों के उत्थान के लिये प्रवृत्त हुए.
उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त डॉ. अंबेडकर ने स्वदेश लौटकर अर्जित ज्ञान का उपयोग असमानता पर आधारित भारतीय समाज एवं सदियों से शोषित, पीड़ित दलित समाज के उद्वार के प्रयासों में किया. इसके कारण उन्हें दलित चेतना के प्रतीक पुरूष के रूप में जाना जाता है. अपने गहन अध्ययन एवं प्रखर बुद्वि के बल पर उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पक्षों पर महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत किये. मसलन, उनका कहना था कि जब तक जाति के दानव से नहीं लड़ा जायेगा तब तक न इस देश में समाजवाद आयेगा और न ही लोकतन्त्र स्थपित होगा. अपनी पुस्तक (Annihilations of Caste) में डॉ. अंबेडकर ने जातियों की समाप्ति की बात कही है. उनका मत था कि जाति को समाप्त करने के लिए जाति से संबंधित धार्मिक धारणाओ को समाप्त करना होगा जो शास्त्रों में वर्णित है. उनका मानना था कि अन्तरजातिय विवाहों के द्वारा लोगों में मौलिक साझा एकता का विकास कर जाति व्यवस्था को समाप्त किया जा सकता है. शान्तिपूर्ण साधनों से जब तक सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक सुधार संभव न हो तो कानूनों का निर्माण कर परिवर्तन लाया जा सकता है. यही वजह रही कि उन्होंने संसद एवं विधान मण्डलों, संविधान में पिछड़े दलित वर्गों की शिक्षा एवं नौकरियों में उनकी जनसंख्या के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व दिलाने के आवश्यक प्रावधान किये.
यह डॉ. अंबेडकर की विद्वता ही थी कि उन्होंने कम समय में विभिन्न विषयों पर ढेर सारा लेखन कार्य किया. आज उनकी कृतियों पर बहुत सारा साहित्य लिखा जा रहा है. उनकी कृतियां सामाजिक परिवर्तन का हथियार बन चुकी है. अत्यंत सशक्त भाषा में अपने स्पष्ट लेखन से डॉ. अंबेडकर ने प्रतिक्रिया वादी ताकतों पर करारा प्रहार किया है. उनकी कृतियां एवं विचार बहुजन समाज की अमूल्य धरोहर है. डॉ. अंबेडकर के योगदानो पर विस्तृत शोध करने वाली शोधकर्ता इलिनौर जिलेट ने लिखा है डॉ. अंबेडकर एक मात्र ऐसे भारतीय व्यक्तित्व हैं, जिनकी मृत्यु के बाद उनका महत्व और भी वढ़ता गया और उनकी स्वीकार्यता एवं अनुकरण करने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
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