दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश में एक जिला है हापुड़। और हापुड़ में है गांव बनखण्डा। इस गांव में जाटव और वाल्मीकि समाज के घर सबसे ज्यादा है। 200 से ज्यादा घर तो अकेले जाटवों के हैं, और उसी से सटा है वाल्मीकि मुहल्ला। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम गांवों की तरह यह गांव भी शुरुआती तौर पर ठीक-ठाक है। यानी छोटे ही सही, ज्यादातर मकान पक्के हैं। लोग मेहनत कर अपने परिवार का पेट भर लेते हैं। यहां अप्रैल के महीने में दूसरे रविवार को काफी हलचल थी। एक जगह पर सामियाना गिरा हुआ था और सौ से ज्यादा बच्चे वहां इकट्ठा थे। बच्चों के साथ उनके माता-पिता या फिर घर का एक बड़ा मौजूद था।
दरअसल वहां दलित समाज के कुछ अधिकारियों को आना था। ये अधिकारी “मिशन पे बैक टू सासाइटी” नाम से एक संगठन चलाते हैं और इस दिन इस गांव में एक पुस्तकालय (लाइब्रेरी) का उद्घाटन होना था। इसका नाम था ‘भारत रत्न डॉ. बी. आर. अंबेडकर पुस्तकालय’। 9 अप्रैल 2023 को इस पुस्तकालय का उद्घाटन मिशन पे बैक टू सोसाइटी के अध्यक्ष जे. सी आदर्श के हाथों हुआ। जे. सी आदर्श रिटायर्ड पीसीएस अधिकारी हैं।
इस लाइब्रेरी को शुरू हुए लगभग ढाई महीने हो चुके हैं। यहां की दीवारों पर कई समाज सुधारकों के शिक्षा को लेकर कही गई बातें लिखी गई हैं। रविवार का दिन था। बच्चों की चहल-पहल साफ दिख रही थी। इस बीच में इस छोटी सी पहल का गांव के लोगों और पढ़ने वाले बच्चों पर क्या फर्क पड़ा, हमने इसकी पड़ताल की।
हमें यहां ग्रेजुएशन थर्ड ईयर में पढ़ने वाली तनुजा मिली। तनुजा की उम्र की ज्यादातर लड़कियों की शादी हो चुकी है। लेकिन तनुजा पढ़ना चाहती हैं और इसी ललक ने उन्हें इस लाइब्रेरी से जोड़ा है। तनुजा खुद इस लाइब्रेरी में पढ़ने के साथ-साथ छोटे बच्चों को पढ़ाती भी हैं। वह कहती हैं, “यहां लोग अपने बेटों को तो पढ़ाते हैं, लेकिन लड़कियों की शादी जल्दी हो जाती है। मुझे पढ़ना था, मेरे माता-पिता ने मेरी बात मान ली।” डॉ. अंबेडकर पुस्तकालय के शुरू होने से क्या फर्क पड़ा। पूछने पर तनुजा कहती हैं, “पढ़ाई नहीं कर पाने की एक वजह गरीबी भी है। कई किताबें चाहिए होती हैं। घर वाले महंगे किताब खरीद नहीं पाते। लेकिन लाइब्रेरी में हर महीने नई किताबें, रोज न्यूज पेपर आते हैं। इससे हमें तैयारी करने में आसानी होती है।”
यहीं हमें डॉ. जयंत कुमार मिले। डॉ. जयंत का यह पुस्तैनी गांव है, लेकिन फिलहाल जनपद अमरोहा में सरकारी नौकरी में हैं। जयंत इस लाइब्रेरी के लिए इनवर्टर डोनेट कर रहे हैं। जयंत गांव आए तो इस लाइब्रेरी को देखने आएं। जयंत कहते हैं, ‘हमारे परिवार में सभी लोग सरकारी नौकरी में हैं। लेकिन बीते दो दशकों में यहां से सरकारी नौकरी में बस इक्के-दुक्के लोग ही पहुंच पाएं। मैंने लाइब्रेरी में नए बच्चों का उत्साह देखा है। यह बहुत सराहनीय कदम है। मैंने देखा कि बिजली चले जाने से बच्चों के पढ़ाई में दिक्कत आ रही है तो मैंने लाइब्रेरी के लिए इनवर्टर खरीद कर दिया।’
इसके संचालक मोनू सिंह का कहना है कि बच्चे अब पढ़ाई को लेकर ज्यादा सगज हैं। उनके घरवाले भी बच्चों को टाइम से लाइब्रेरी भेजते हैं। ढाई महीने में ही काफी बदलाव दिखा है। यानी साफ है कि मिशन पे बैक टू सोसाइटी की ओर से की गई छोटी सी पहल इस गांव में पढ़ाई के प्रति बच्चों में उत्साह लेकर आया है। बच्चे सुबह-शाम यहां पढ़ने आते हैं। आपस में चर्चा करते हैं। नई जिंदगी के सपने बुनते हैं। कुछ बड़ा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं।
सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं। पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ स्वतंत्र लेखन करते हैं। दिल्ली में विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं।