देश के महान समाजवादी विचारक और राजनीतिज्ञ डॉ. राममनोहर लोहिया के जीवन में विचार ही नहीं बल्कि चरित्र और प्रजातांत्रिक मूल्यों का सर्वाधिक महत्व था. वे राजनीति में शुद्ध आचरण के सबसे बड़े पैरोकार थे. उनके विचारों में अवसरवादिता को कोई जगह नहीं थी. लेकिन उनके नाम पर राजनीति करने वालों ने अवसरवादिता को अपनाकर सत्ता के लिए ‘समाजवाद’ को ही कलंकित कर दिया है.
डॉ. लोहिया संपूर्ण समाज को एक परिवार के रूप में देखते थे, वहीं आज के कथित समाजवादी एक परिवार में ही पूरा ‘समाजवाद’ देखते हैं. उत्तर प्रदेश में यादव परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव, पुत्र अखिलेश यादव, भाई शिवपाल सिंह, चचेरे भाई रामगोपाल यादव, उनके पुत्र, बहुएं, नाती-पोते ही ‘समाजवादी’ परिवार हैं. और उनकी पार्टी ही समाजवादी पार्टी है. यह पार्टी लोहिया के नाम पर वोट तो मांगती है लेकिन वह वास्तविकता में डॉ. लोहिया के विचारों की पार्टी नहीं है. उसका नाम तो ‘समाजवादी’ है पर असल में वह पार्टी ‘परिवारवादी’ है. उत्तर प्रदेश में विगत साढ़े चार वर्षों से जो चल रहा है और इन दिनों जो घटित हो रहा है, वह किसी पार्टी का संकट नहीं बल्कि केवल एक ‘परिवार’ का अंदरूनी संकट है. यह डॉ. लोहिया के सच्चे विचारों से मुंह मोड़कर परिवारवाद को ‘समाजवाद’ समझने का ही नतीजा है. मुलायम सिंह यादव जिस तरह अपने परिवार को धुरी बनाकर उत्तर प्रदेश में शासन करना चाहते थे उससे कभी न कभी तो ऐसा होना ही था.
वैसे भी मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी कभी लोहिया के विचारों के प्रति दिल से प्रतिबद्ध रही ही नहीं. डॉ. लोहिया राजनीति में शुद्ध आचरण के पक्षधर और सभी प्रकार के आडंबरों के सख्त खिलाफ थे. सरकारी पैसों के निजी उपयोग और फिजूलखर्जी के विरोधी थे. यहां तक की सरकारी काम और निजी काम को अलग रखने की सीख देते थे और अपने सहयोगियों से भी यही अपेक्षा रखते थे.
उत्तर प्रदेश में संयुक्त विधायक दल की सरकार के वक्त समाजवादी पार्टी के एक नेता, जो की उस समय मंत्री थे, डॉ. लोहिया को मिलने कानपुर गेस्ट हाऊस गये थे. डॉ. लोहिया से भेट और चर्चा करने के उपरांत मंत्री को छोड़ने डॉ. लोहिया गेस्ट हाऊस के बाहर तक आये. तब उन्होंने देखा कि बाहर एक बड़ी गाड़ी खड़ी है. तब मंत्रियों के पास बड़ी कार हुआ करती थी. गाड़ी देखकर डॉ. लोहिया ने पुछा ‘‘यह गाड़ी किसकी है? ’’ तब मंत्री ने कहा कि इसे मैं लेकर आया हूं. उसपर डॉ. लोहिया ने खिन्न होते हुए कहा था कि कल तक हमारे समाजवादी नेता चप्पल घिसते हुए चलते थे, आज उन्हें बड़ी गाड़ियां चाहिए. उन्होंने पूछा कि तुम मुझसे निजी तौर पर मिलने आए हो या सरकारी काम से आए हो? निजी काम से आए हो तो यह गाड़ी वापस भेजो और रिक्शे से जाओ. डॉ. लोहिया का यह आदेश मानकर मंत्री ने कार वापस कर दी और खुद रिक्शे से लौट गए. यह थे डॉ. लोहिया और उस समय के समाजवादी नेता. आज खुद को उनका शिष्य बताने वाले मुलायम सिंह और उनके परिवार के लोग सरकारी धन को लुटाने में कोई परहेज नहीं करते हैं.
‘समाजवादी’ परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव का सैफई में मनाये जाने वाला जन्मदिन इसकी बानगी है, जहां पानी की तरह पैसा बहाया जाता है और सरकारी मशीनरी का धड़ल्ले से दुरुपयोग किया जाता है. मुलायम सिंह का यह चरित्र कत्तई लोहिया के समाजवाद से मेल नहीं खाता है. मुलायम सिंह का समाजवाद अब परिवार तक सीमित रह गया है.
डॉ. राममनोहर लोहिया पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को बहुत महत्व देते थे. वो प्रजातांत्रिक तरीके से पार्टी चलाने में विश्वास रखते थे, वहीं मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी में लोकतंत्र नदारत है. पार्टी के तमाम पद सिर्फ उनके परिवार तक ही सीमित हैं. यह लोहिया की परंपरा नहीं है.
लोहिया का समाजवाद समानता और बराबरी की बात करता था. उन्होंने जो किया वह सत्ता से दूर रहकर किया था. लोहिया ने खुद को सभी प्रकार की सुविधाओं और सत्ता- संपत्ति के मोह से दूर रखा, लेकिन उनके नामपर पार्टी चलाने वाले मुलायम सिंह यादव और उनका समाजवादी परिवार सत्ता के लिए मर मिट रहे हैं और ‘समाजवाद’ की धज्जियां उड़ा रहे हैं. बसपा प्रमुख मायावती ने अपने जन्मदिन 15 जनवरी 2016 को लखनऊ में सच ही कहा था कि ‘डॉ. राममनोहर लोहिया आज होते तो मुलायम सिंह को समाजवादी पार्टी से बाहर कर देते.’
– लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और नागपुर विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान (एम.ए.) में गोल्ड मेडलिस्ट हैं.
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