लोकसभा चुनाव के दो चरणों के बाद तक यह पता नहीं चल सका है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। अब तक हुए लोकसभा सीटों के चुनाव में ज्यादातर सीटें ऐसी है, जिसको लेकर हार-जीत का कयास दिग्गज भी नहीं लगा पा रहे हैं। इस बीच आरक्षण को लेकर मुद्दा गरमा गया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भाजपा को संविधान और आरक्षण का विरोधी बताकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। और चुनावी प्रचार में आक्रामक रवैया अपनाने वाली भाजपा इस मुद्दे पर बैकफुट पर है।
इस बीच दो घटनाएं ऐसी हुई है, जिसका सीधा तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से चुनावी कनेक्शन जरूर है। पहली घटना राष्ट्रपति के अयोध्या दौरे की है। और दूसरी खबर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सनातन धर्म के सबसे बड़े जूना अखाड़े द्वारा दलित समाज से आने वाले महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु बनाने की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू बुधवार एक मई को अयोध्या पहुंची, जहां उन्होंने राम मंदिर में दर्शन किया। वो सरयू तट पर आरती में भी शामिल हुईं। राम मंदिर बनने के बाद यह पहला मौका है जब राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू अयोध्या पहुंची थी। राष्ट्रपति गर्भ गृह में उस जगह तक पहुंची थीं, जहां प्रधानमंत्री के अलावा कुछ खास लोग ही पहुंच सके हैं। तीसरे चरण के चुनाव के पहले इसे मोदी सरकार की एक सोची समझी रणनीति माना जा रहा है। क्योंकि इसी बहाने एक बार फिर राम मंदिर पर चर्चा हुई।
राष्ट्रपति मूर्मू आदिवासी समाज से ताल्लुक रखती हैं। और राम मंदिर के उद्घाटन के दौरान उनको निमंत्रण नहीं मिलने को लेकर विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बनाया था। विपक्ष ने भाजपा पर जातिवाद का आरोप लगाया था।
जूना अखाड़े ने दलित संत को बनाया जगद्गुरु
दूसरी खबर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सनातन धर्म के सबसे बड़े जूना अखाड़े ने दलित समाज से आने वाले महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु बनाया है। इस दौरान उन्हें सम्मानित किया गया और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्हें पदासीन किया गया। इसके पहले जूना अखाड़े ने ही महेंद्रानंद की सनातन के प्रति रुचि और ज्ञान देखकर उन्हें महामंडलेश्वर बनाया था, अब उ्नहें जगदगुरु के पद पर पदासीन किया गया है।
स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती और जूना अखाड़े के संरक्षक हरी गिरी महाराज ने महेंद्रानंद गिरी को सिंहासन पर आसीन करके उन्हें जगद्गुरु का छत्र और चंवर भेंट किया। इसके बाद संतों ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया। महेंद्रानंद गिरी महाराज ने बताया कि उनके साथ 700 सन्यासी हैं, जिनमें से ज्यादातर पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और आदिवासी समाज से हैं।
माना जा रहा है कि इन दोनों घटनाओं के जरिये हिन्दू धर्म के उदारवादी चरित्र को दिखाने की है। क्योंकि चुनाव चाहे जो भी हो जहां भी भाजपा की बात आती है, धर्म आधारित राजनीति एक बड़ा मुद्दा होता है। भाजपा पर आरोप लगता है कि वह सवर्ण परस्त पार्टी है। इसकी एक वजह पार्टी और केंद्र के तमाम शीर्ष पदों पर ऊंची जातियों का दबदबा है। देखना होगा कि इन दोनों घटनाओं का लोकसभा चुनाव पर कितना प्रभाव पड़ता है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।