सत्ता पक्ष की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति होंगी। मुर्मू की जीत इस मायने में भी अहम और ऐतिहासिक है क्योंकि वह भारत की पहली ऐसी राष्ट्रपति बन गई हैं, जो आदिवासी समाज से हैं। मुर्मू 64 फीसदी वोट लेकर जीतीं। द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव में कुल 6,76,803 मतों के साथ जीत दर्ज की, जो कुल वोट का 64.03 फीसदी था। वहीं उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को कुल 3,80,177 वोट मिले। जोकि कुल वोट का 36 फीसदी था। आपको बता दें कि किसी भी उम्मीदवार को जीत दर्ज करने के लिए कुल 5,28,491 वोटों की जरूरत थी, जिसे मुर्मू ने आसानी से पार कर लिया। मुर्मू की इस जीत पर देश भर से उन्हें बधाई मिल रही है। वह 25 जुलाई को शपथ लेंगी।
मुर्मू ने ओडिशा में पार्षद के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन शुरु किया था। वह 1997 में रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद में पार्षद बनीं। साल 2000 से 2004 तक वह ओडिशा की बीजद-बीजेपी गठबंधन सरकार में मंत्री रहीं। वह झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं। 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस पद पर वह 2021 तक रहीं। राष्ट्रपति चुनाव में वह भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार थीं।
राष्ट्रपति पद के लिए 21 जून को राजग उम्मीदवार के रूप में नामित होने के बाद से, उन्होंने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया। उनकी जीत निश्चित लग रही थी और बीजू जनता दल (बीजद), शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, वाईएसआर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) जैसे विपक्षी दलों के समर्थन से उनका पक्ष मजबूत माना जा रहा था। मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए पूरे देश में प्रचार किया। सबको आभास था कि मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति बनने वाली हैं, इसको देखते हुए राज्य की राजधानियों में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया था।
हालांकि द्रौपदी मुर्मू के रुप में एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति के उम्मीदवार को तौर पर आगे करने को विपक्षी दल और कई संगठन एवं बुद्धिजीवि भाजपा की राजनीति बता रहे थे। तमाम लोग इसकी अपने तरीके से व्याख्या कर रहा था। इस पर आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले बुद्धिजीवी एवं हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में असिस्टेंट प्रोफेसर सुनील कुमार ‘सुमन’ ने सटीक टिप्पणी की थी। ”आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के जीवन में कोई अंतर नहीं आएगा!” के तमाम लोगों के बयान पर उन्होंने उल्टा सवाल खड़ा किया कि, “तो क्या गैर-आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के जीवन में उजाला आ जाएगा?”
फिलहाल देश को नया राष्ट्रपति मिल गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि समाज के सबसे आखिरी छोड़ पर खड़े आदिवासी समाज से आने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने कार्यकाल में वंचितों और शोषितों के हितों की रक्षा करेंगी।

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।