
साल 2012 में जब “दलित दस्तक” की लॉन्चिंग हो रही थी, एक हमउम्र उत्साही युवा मेरे पास आया। युवक ने अपना परिचय अखिलेश कृष्ण मोहन के रूप में दिया। वो तब दिल्ली के किसी मीडिया संस्थान में काम कर रहे थे। हम दोनों दिल्ली के पांडव नगर (मदर डेयरी) मुहल्ले में रहते थे। हमारा मिलना-जुलना चलता रहा। बाद के दिनों में अखिलेश जी “दलित दस्तक” पत्रिका से भी जुड़े। दिल्ली की मनुवादी मीडिया में जब भाई-भतीजावाद का बोलबाला बढ़ा और बहुजनों का काम करना मुश्किल हो गया तो अखिलेश जी लखनऊ शिफ्ट हो गए। लखनऊ जाने के बाद भी वो लंबे समय तक “दलित दस्तक” के लिए काम करते रहे। संघर्ष के दिनों में जब भी लखनऊ जाना हुआ, ठिकाना उन्ही का घर रहा। वो अपनी बाइक से मुझे हर जगह ले जाते। बाद में उन्होंने “फर्क इंडिया” के नाम से मैगज़ीन निकालनी शुरू की, फिर यूट्यूब भी चलाया। निरंतर सामाजिक न्याय की आवाज़ उठाते रहे। अखिलेश जी OBC (यादव) समाज के उन पत्रकारों में से रहे, जिन्होंने दलितों और पिछड़ों की एकता पर हमेशा विश्वास किया।
पिछले दिनों जब उन्नाव की घटना हुई तो लखनऊ जाना हुआ। उनसे मिलना तय था, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी। कोरोना से संघर्ष के दिनों में जब वो अस्पताल में भर्ती थे, मैंने उनको फोन लगाया। उनका फोन नहीं उठा। फिर उन्होंने मुझे फोन लगाया, तो मैं फोन से दूर था। इस तरह फिर बात नहीं हो पाई। हां, मैंने व्हाट्सएप्प पर मैसेज किया तो उनका जवाब आया कि “अब ठीक हो रहा हूँ सर”। थोड़ी तसल्ली हुई। लेकिन फिर नेशनल जनमत के संपादक और छोटे भाई नीरज पटेल से बात हुई तो उन्होंने स्थिति चिंताजनक बताई। अखिलेश जी के घर कई बार रुका हूँ, तो उनके परिवार से भी संपर्क में रहा। पिछले कुछ दिनों से उनकी पत्नी के संपर्क में था। मन परेशान था, अखिलेश जी की चिंता थी, तो हर रोज एक बार बात कर लेता था। परसो आखिरी बार उनसे हाल-चाल लिया। वो बेतहासा रो रहीं थी, मैंने कोई जरूरत पूछा तो बोलीं.. “भईया, बस उनको ले आइये आपलोग”। मन रो दिया, मैंने फोन रख दिया। कल डर के मारे फोन नहीं किया कि क्या कहूंगा। अखिलेश जी इकलौते ऐसे शख्स रहे जो पहले दिन से लेकर आखिरी वक्त तक मुझे “संपादक जी” कह कर संबोधित करते रहे। उनकी पत्नी ने बताया की उनके फोन में भी मेरा नम्बर इसी नाम से सेव था।
मुझे “संपादक जी” कहने वाला शख्स आज हमेशा के लिए चला गया। कोरोना ने इस उम्र के कई साथियों को लील लिया है। हर खबर परेशान कर रही है।
अखिलेश जी के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। मैंने उनको बड़ा होते हुए देखा है। क्या कहूँ… उनके ऊपर बहुत जिम्मेदारी थी। अखिलेश जी से जुड़े सभी लोगों को इस मुश्किल वक़्त में उनके परिवार के साथ खड़ा होना होगा। उनके परिवार की ओर मदद का हाथ बढ़ाना होगा। उनके नहीं रहने के बाद उनके परिवार-बच्चों को संभालना होगा। यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। व्यक्ति के नहीं रहने पर आर्थिक सहायता उसके परिवार की सबसे बड़ी मदद होती है। मेरी अपील है कि आप अखिलेश कृष्ण मोहन जी के परिवार की आर्थिक मदद जरूर करें। उनकी पत्नी रीता कृष्ण मोहन का अकाउंट नंबर दे रहा हूं-
AC Name- Rita Krishna Mohan
AC No- 55148830004
State Bank of India
IFSC- SBIN0050826
BRANCH- ALIGANJ, LUCKNOW
अलविदा भाई।
कल्पना में भी नहीं सोचा था कि कभी आपके बारे में ऐसे लिखना पड़ेगा। ये आपके साथ अच्छा नहीं हुआ। नमन
Akhilesh Krishna Mohan जी।
अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
very sad news. our writer’s or journalist’s are one drop in osean in India.so it is big loss to whole society of bahujans.as myself as a freelance journalist.i say that making of true journalist is very tough task from weeker/Dalit section. sh ashok das chief-editor has rightly express his grief on his death by covid19.lord Buddha bless his soul rest in peace💐💐💐