5 राज्यों के चुनाव के आइने में 73 वें गणतंत्र दिवस पर संकल्प!

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मित्रों,!आज 26 जनवरी है: हमारा गणतंत्र दिवस! इसी दिन 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ था इसीलिए हम उस दिन से गणतंत्र दिवस मना रहे हैं. इस बार हम 73वां गणतंत्र एक ऐसे समय में मना रहे हैं, जब देश में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, जिनमें एक राज्य वह उत्तर प्रदेश भी है ,जो देश की राजनीति की दिशा तय करता है. इस बार बार यदि सत्ताधारी पार्टी विजय हासिल कर लेती है, तब वर्षों से विदेशी मूल का जो जन्मजात तबका भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देख रहा है, वह अपना सपना साकार करने की स्थिति में आ जायेगा. उसके बाद देश  डॉ आंबेडकर के संविधान की मनु लॉ के द्वारा परिचालित होना शुरू करेगा , फिर हम गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने की स्थिति में नहीं रहेंगे. अतः आइये हम संविधान निर्माता की उस चेतावनी को याद कर इस चुनाव में अपनी भूमिका तय करें,जो चेतावनी उन्होंने राष्ट्र को संविधान सौपने के पूर्व 25 नवम्बर 1949 को दी थी.

उन्होंने उस दिन संविधान की खूबियों और खामियों पर विस्तार से चर्चा के बाद शेष में चेतावनी देते हुए कहा था ,’ 26 जनवरी 1950 हम विपरीत जीवन में प्रवेश करेंगे. राजनीति के क्षेत्र में मिलेगी समानता: प्रत्येक व्यक्ति को एक वोट देना का अवसर मिला और उस वोट का सामान वैल्यू होगा. किन्तु राजनीति के विपरीत आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में मिलेगी भीषण असमानता . हमें निकट भविष्य के मध्य इस असमानता को खत्म कर लेना होगा, नहीं तो विषमता से पीडीत जनता लोकतंत्र के उस ढाँचे को विस्फोटित कर सकती है जिसे संविधान निर्मात्री सभा ने इतनी मेहनत से बनाया है,’इस चेतावनी के साथ उन्होंने यह भी कहा था कि संविधान जितना भी अच्छा क्यों हो, यदि उसे लागू करने वाले करने वाले बारे लोग होंगे तो यह बुरा साबित होगा.अगर संविधान लागू करने वाले सही होंगे तो  होंगे तो बुरा संविधान भी अच्छा परिणाम दे सकता है.

कहने में कोई संकोच कि नहीं कि भारत संविधान लागू करने वाले अच्छे लोगो में शुमार होने लायक नहीं रहे. अपनी शिराओं में बहते मनुवाद के कारण वे संविधान की उद्देश्यिका में वर्णित तीन न्याय-सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक- सभी को सुलभ कराने की मानसिकता से पुष्ट नहीं रहे, इसलिए जिस आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे लायक नीतियों से आम जन, विशेषकर वर्ण व्यवस्था के जन्मजात वंचितों को तीन न्याय सुलभ कराया जा  सकता था , वे उस विषमता के खात्मे लायक नीतिया ही न बना सके. फलतः बढ़ते आर्थिक और सामाजिक विषमता के साथ-साथ  लोकतंत्र के ध्वंस होने लायक हालात पूंजीभूत होते रहे और तीन न्याय से से वंचित बहुजन समाज  महरूम होता गया. दुर्भाग्य से नयी सदी में  देश की केन्द्रीय सत्ता पर ऐसे लोगों का प्रभाव विस्तार हुआ, जो संविधान के विरोधी और मनु ला के खुले हिमायती रहे. नयी सदी के 21 सालों में 16 सालों में सत्ता पर काबिज ऐसे संविधान विरोधियों की आज केंद्र से लेकर राज्यों में अप्रतिरोध्य सत्ता कायम हो गयी है और आज ये भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करते हुए संविधान की जगह उन हिन्दू कानूनों को लागू करने की स्थिति में पहुँच गए हैं, जिन हिन्दू कानूनों के कारण ही भारत के बहुसंख्य आबादी को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अन्याय का शिकार बनना पड़ा तथा जिससे निजात दिलाने का ही प्रावधान आंबेडकर के संविधान की उद्देश्यिका में घोषित हुआ.

बहरहाल जिस आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे से हिन्दू कानूनों द्वारा सभी प्रकार के अन्याय के शिकार लोगों को संविधान में वर्णित तीन न्याय सुलभ कराया जा सकता था, वह आर्थिक और सामाजिक विषमता हिंदूवादी सत्ता में नयी नयी छलांगे लगाती जा रही. 2014 से हिंदूवादी सत्ता कयाम होने के बाद 2015 वैश्विक धन- बंटवारे पर काम करने वाली क्रेडिट सुइए की रिपोर्ट हो या हर वर्ष जनवरी में प्रकाशित होने वाली ऑक्सफाम इंडिया या जेंडर गैप की रिपोर्ट : हर रिपोर्ट इस बात की गवाही देगी कि नयी सदी में हिंदूराज राज में आर्थिक और सामाजिक विषमता नयी- नयी ऊँचाई छूती जा रही है. इसके साथ ही बहुजनों के लिए सपना बनता गया है :  सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय !

कुछेक माह पूर्व लुकास चांसल द्वारा लिखित और चर्चित अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटि, इमैनुएल सेज और गैब्रियल जुकमैन द्वारा समन्वित जो ‘विश्व असमानता रिपोर्ट-2022’ प्रकाशित हुई है, उसमे फिर भारत में वह भयावह असमानता सामने आई है, जिससे वर्षों से उबरने की चेतावनी बड़े- बड़े अर्थशास्त्री देते रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक, जहाँ एक ओर गरीबी बढ़ रही है तो दूसरी ओर एक समृद्ध अभिजात वर्ग और ऊपर हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शीर्ष 10 फीसदी अमीर लोगों की आय 57 फीसदी है, जबकि शीर्ष 1 प्रतिशत अमीर देश की कुल कमाई में 22 फीसदी हिस्सा रखते हैं. इसके विपरीत नीचे के 50 फीसदी लोगों की कुल आय का योगदान घटकर महज 13 फ़ीसदी पर रह गया है. रिपोर्ट के मुताबिक शीर्ष 10 फीसदी व्यस्क औसतन 11,66, 520 रूपये कमाते हैं. यह आंकड़ा नीचे की 50 फीसदी वार्षिक आय से 20 गुणा अधिक है.

इसी बात को आगे बढ़ाते वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम 2022 के पहले दिन अर्थात 17 जनवरी को प्रकाशित ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के टॉप-10 फीसदी अमीर लोगों, जिनके पास देश की 45 प्रतिशत दौलत है, पर अगर 1 फीसदी एडिशनल टैक्स लगाया जाए तो उस पैसे से देश को 17.7 लाख एक्स्ट्रा ऑक्सीजन सिलिंडर मिल जाएंगे. टॉप के दस दौलतमंद भारतीयों के पास इतनी दौलत हो गयी है कि वे आगामी 25 सालों तक देश के सभी स्कूल – कॉलेजों के लिए फंडिंग कर सकते हैं. सबका साथ – सबका विकास के शोर के मध्य पिछले एक साल में अरबपतियों की संख्या 39 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ अब 142 तक पहुँच गयी है. इनमे टॉप 10 के लोगों के पास इतनी दौलत जमा हो गयी है कि यदि वे रोजाना आधार पर 1 मिलियन डॉलर अर्थात 7 करोड़ रोजाना खर्च करें, तब जाकर उनकी दौलत 84 सालों में ख़त्म होगी. सबसे अमीर 98 लोगों के पास उतनी दौलत है, जितनी 55. 5 करोड़ गरीब लोगों के पास है.ऑक्सफाम 2022 की रिपोर्ट  में यह तथ्य उभर कर आया है कि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास गुजर-बसर करने के लिए सिर्फ 6 प्रतिशत  दौलत है.

2006 से हर वर्ष ग्लोबल जेंडर गैप की जो रिपोर्ट पर प्रकाशित हो रही उसकी 2021 के  रिपोर्ट में जो तस्वीर उभरी है, उसमे पाया गया है की दक्षिण एशियाई देशों में भारत का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है. यह देश लैंगिक समानता के मोर्चे अपने सबसे पिछड़े प्रतिवेशी मुल्कों में भी पीछे हो गया है. भारत रैंकिंग में 156 देशों में 140वें स्थान पर रहा, जबकि  बांग्लादेश 65वें, नेपाल 106वें, पाकिस्तान 153वें, अफगानिस्तान 156वें, भूटान 130वें और श्रीलंका 116वें स्थान पर।इससे पहले 2020 में भारत 153 देशों में 112वें स्थान पर था।इस रिपोर्ट ने यह संकेत दे दिया है की भारत को लैंगिक समानता पाने में 150 साल से ज्यादे लग जायेगा ! ग्लोबल जेंडर गैप में 2020 के 112  के मुकाबले 2021 में 140 वें स्थान पर पहुंचना मेरे उपरोक्त दावे की  पुष्टि करता है कि नयी सदी में हिंदूराज राज में आर्थिक और सामाजिक विषमता नयी- नयी ऊँचाई छूती जा रही है. इसके साथ ही बहुजनों के लिए सपना बनता गया है : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय!

2015 में 26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस ‘ के रूप मनाने की घोषणा करने वाले मोदी और उनकी पार्टी दिन ब दिन व्यर्थ होते जा संविधान के उद्देश्यों की पूर्ति को लेकर इतनी गंभीर है कि उपरोक्त रिपोर्टों में उभरी आर्थिक और सामाजिक तथा लैंगिक को लेकर भूलकर भी कभी चिंता जाहिर नहीं किया है. लेकिन निजीकरण, विनिवेशीकरण, लैटरल इंट्री के जरिये सारा कुछ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे सवर्णों के हाथों में देने पर आमादा देश बेचवा मोदी एंड क. के लिए उपरोक्त रिपोर्टों पर चिंता जाहिर करना मुमकिन ही नहीं. क्योंकि यह सब कुछ उनके प्लान के हिसाब से हो रहा है.इसलिए यह  कोई उनके लिए राष्ट्रीय समस्या नहीं है. उनके लिए जो समस्या है उसे मोदी-योगी-अमित शाह से लेकर तमाम हिंदूवादी लेखक जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, वे मुद्दे है: हिन्दू बनाम मुस्लिम, राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद; अयोध्या- काशी के बाद मथुरा-वृदावन में भव्य मदिर निर्माण, गोहत्या, मतान्तरण, लव जिहाद, जनसँख्या असंतुलन इत्यादि. इसलिए आंबेडकर के संविधान की जगह मनु का विधान लागू करने के सपने में विभोर :  टॉप से लेकर बॉटम तक हर भाजपाई के लिए ऑक्सफाम और ग्लोबल जेंडरगैप रिपोर्ट में उभरी भीषण आर्थिक और सामाजिक कोई मुद्दा ही नहीं!

तो मित्रों , ऑक्सफाम और ग्लोबल जेंडर गैप में उभरी तस्वीर इया बात का संकेतक है कि गणतंत्र दिवस का जश्न लम्बा खीचने वाला नहीं है. इसके लिए हर हाल में हिन्दूवादी सरकार को सत्ता से आउट कर करना पड़ेगा. इसकी शुरुआत आप 2022 के विधानसभा चुनावों से करें. अब सवाल आपके सामने यह खड़ा होता है कि हिन्दूवादियों की जगह कैसी सरकार सत्ता में लायें, जिससे गणतंत्र दिवस का जश्न सोल्लास मनाने का सिलसिला जारी रहे!  इसके लिए जिस आर्थिक और सामाजिक विषमता के कारण भारत संविधान व्यर्थ होने जा रहा है, उसकी उत्पत्ति के कारणों को ठीक से समझते हुए ,उसके खात्मे की नीतियाँ बनाने लायक सरकार को सत्ता में लाना पड़ेगा.

गौतम बुद्ध ने कहा है अगर कोईसमस्या है तो उसका कारण है और कारण की खोज कर लिया तो उसका निवारण हो सकता है.अब जहाँ तक आर्थिक और सामाजिक गैर -बराबरी का सवाल है, इसके खात्मे में की दिशा में ऐतिहासिक योगदान देने वाले तमाम महापुरुषों के अध्ययन के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि इसकी उत्पत्ति शक्ति के स्रोतों का विभिन्न तबकों और उनकी महिलाओं के मध्य असमान बंटवारे से होती है .दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है शक्ति के स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक- में सामाजिक और लैंगिक विविधता का असमान प्रतिबिम्बन ही आर्थिक और सामाजिक विषमता का कारण रहा है. अगर शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता का असमान प्रतिबिम्बन ही संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ करने वाली को आर्थिक और सामाजिक विषमता की उत्तपति का मूल कारण है तो संविधान प्रेमी लोगों को हिन्दूवादियों की जगह ऐसी सरकार को सत्ता में लाने का उपक्रम चलाना होगा जो हर क्षेत्र में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागूकरवाने अर्थातभारत के चार प्रमुख सामाजिक समूहों-सवर्ण,ओबीसी,एससी/एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों—के स्त्री-पुरुषों के संख्यानुपात में शक्ति के स्रोतों के बंटवारे की बात करती हो. फिलहाल इस कसौटी पर उस सपा के अखिलेश यादव कुछ उम्मीद बधाते नजर आ रहे हैं, जिन्होंने शक्ति के समस्त स्रोतों का तो जिक्र नहीं किया है, पर यह कहा है कि समाजवादी सरकार बनने के तीन महीने में जाति जनगणना शुरू करवाकर सभी समाजों के लिए समानुपाती भागीदारी अर्थात जिसकी जितनी सख्या भारी- उसकी उतनी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे!

(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. संपर्क – 9654816191)

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