भारत में करीब 542 मेडिकल कॉलेज हैं जिसमें 64 पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट है जिसमें कि पीजीआई लखनऊ के प्रख्यात न्यूरो सर्जन, साउथ एशिया के सबसे क्वालिफाइड न्यूरोसर्जन, ट्रामा सेंटर SGPGI लखनऊ के संस्थापक, AIIMS ऋषिकेश, उत्तराखंड के फाउंडिंग डायरेक्टर, करीब 54 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त, डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड टेकनोलॉजी, भारत सरकार द्वारा विज्ञान गौरव एवं विज्ञान रत्न से सम्मानित, नेशनल एकेडमी ऑफ़ मेडिकल साइंसेज द्वारा सम्मानित, लगभग दस हज़ार जटिल मस्तिष्क सर्जरी करने वाले बहुआयामी प्रतिभा के धनी, चिकित्सा विज्ञान के अम्बेडकर कहे जाने वाले, वर्तमान में सैफई आयुर्विज्ञान मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति, प्रोफेसर राजकुमार जिनके कार्यकाल में सैफई आयुर्विज्ञान मेडिकल यूनिवर्सिटी ने नए आयाम स्थापित किए।
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रोफ़ेसर राजकुमार, जिनके नाम 500 से अधिक शोध पत्र है जिसमें 34 विशेषतया कोविड पर प्रकाशित हैं, उनको उनके मेडिकल साइंस में अभूतपूर्व योगदान के लिए यूपी रत्न से सम्मानित किया है। पूरे कोविड-19 महामारी के दौर में कोरोना की पहली कामयाब पुस्तक कोविडोलॉजी व कोविड निवारक दवा RNB (राज निर्वाण बटी) देकर प्रो० राजकुमार ने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया। आज जहां लगभग हर मेडिकल संस्थान में ऑक्सीजन की कमी हो रही है, वही रात-रात भर जागकर अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए प्रो० राजकुमार ने ऑक्सीजन की सप्लाई को निरबाधित रखा। सैफई मेडिकल विश्वविद्यालय में अपना कार्यभार संभालते हुए अपने तेज-तर्रार तेवर के लिए जाने जाने वाले प्रो. राजकुमार ने विश्वविद्यालय में सभी प्रकार की अनियमितताओं को दुरुस्त करके, इटावा जैसे गुंडागर्दी व बदमाशी के लिए मशहूर जनपद में स्थापित आयुर्विज्ञान संस्थान में पारदर्शी व्यवस्था को लागू किया, जो कि वहां के स्थानीय माफियाओं को रास नहीं आया। आरोप है कि वे विभिन्न माध्यमों से कुलपति, प्रो. राजकुमार के ऊपर तमाम तरह के रजनैतिक दबाव व अनर्गल आरोप लगाते रहे, किंतु अपनी साफ-सुथरी व कड़क कार्यशैली के आगे प्रो० राजकुमार ने सब कुछ फीका कर दिया।
कोविड-19 की दूसरी लहर में सुचारू रूप से चिकित्सा सेवा दुरुस्त करवाए रखना शायद कुछ माफिया प्रवृत्तियों को रास नहीं आ रहा है और वे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. राजकुमार का आंकलन उनकी जाति को उनकी योग्यता से ऊपर रखकर करते है, हद तो तब हो गई जब कल उन्हें जबरिया अवकाश पर भेज दिया गया।
भारत जैसे देश में जहां प्रत्येक वर्ष जातिगत दुर्भावना का शिकार होकर रोहित वेमुला जैसे हजारों बच्चों की संस्थानिक हत्या कर दी जाती है ऐसे में प्रोफेसर राजकुमार जिनकी योग्यता का डंका विदेशों में भी बजता है उनको अपने ही देश में जातिगत दुर्भावना का शिकार होना पड़ रहा हैं । जबकि प्रो० राजकुमार न केवल शोषित वर्ग बल्कि सर्वसमाज द्वारा निष्ठा एवं योग्यता के लिए जाने जाते है।
ऐसे में शासन-प्रशासन व समस्त अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक एवं सर्वसमाज से अपील है कि राष्ट्र एवं चिकित्सा हित में प्रो. राजकुमार जैसे योग्य सर्जन के साथ खड़े हों और अपने स्तर से सरकार से अपील करें कि जिन लोगों के दबाव में ऐसी दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की गई है उनके उनके खिलाफ उचित कार्यवाही करने का कष्ट कर, प्रो. राजकुमार का जबरिया अवकाश का आदेश निरस्त करें। जिससे कि कोविड महामारी के दौर में चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत चिकत्सक व अन्य कर्मचारियों का मनोबल बना रहे व वे निडर एवं ईमानदारी के साथ अपनी सेवाएं दे सकें।
यह रिपोर्ट जानी-मानी समाजसेवी और बीएचयू में अंग्रेजी विभाग में असि. प्रोफेसर डॉ. इंदू चौधरी द्वारा लिखा गया है।

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