कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने कहा है कि वो छूट वाली कंपनियों के कर्मचारियों को पूरी सैलरी पर पेंशन नहीं दे सकेगा. हालांकि ऐसा करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट में एक साल पहले चार अक्टूबर को दिया था. इस मामले पर ईपीएफओ के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की आज होने वाली बैठक में हंगामा होने के आसार हैं.
ईपीएफओ ऐसी कंपनियों को छूट वाली कैटेगिरी में रखता है, जिनके कर्मचारियों के फंड को प्राइवेट ट्रस्ट मैनेज करता है. वो कंपनियां जिनके ट्रस्ट को ईपीएफओ मैनेज करता है उन्हें बगैर छूट वाली कंपनी कहा जाता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश दिए जाने के बाद ईपीएफओ ने सभी कंपनियों के कर्मचारियों को पूरी सैलरी पर पेंशन देने लगा था, लेकिन बाद में इस फैसले से पलट गया है.
अभी ईपीएफओ पेंशन स्कीम सभी कर्मचारियों की सैलरी का 8.33 फीसदी अंश पेंशन में जमा करता है. इसके लिए अधिकतम सैलरी की सीमा 15 हजार रुपये है और पेंशन भी इसी सैलरी पर दी जाती है. इससे पहले अधिकतम सैलरी 6500 रुपये थी. अगर पूरी सैलरी के हिसाब से सैलरी का अंश लिया जाता है, तो कर्मचारियों को रिटायरमेंट के वक्त 10 गुना ज्यादा पेंशन मिलने की संभावना है.
फिलहाल ईपीएफओ ने पूरे वेतन पर योगदान स्वीकार नहीं करने की बात कही है. इसके पीछे ईपीएफओ ने दलील दी है कि कंपनी और कर्मचारियों को तय सीमा से ज्यादा वेतन पर योगदान की जानकारी फैसले के 6 महीने के भीतर देनी चाहिए थी. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ की 6 महीने वाली दलील को मनमाना बताते हुए इसे खत्म करने का निर्देश दिया था. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने वाले 12 लोगों में 2 छूट वाली कंपनियों से आते हैं.
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