राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर सम-विषम योजना शुरू करने की बात कह कर दिल्ली जनता की परेशानियां बढ़ाने का निश्चय किया है. सम-विषम योजना 2016 में दो बार लागू की गई थी. लेकिन उस वक्त भी नतीजों को लेकर ही परस्पर विरोधी रिपोर्टें और खबरें आती रहीं. पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने एवं स्मॉग फॉग यानी धुआं युक्त कोहरा के कारण राजधानी में प्रदूषण के उच्चतम स्तर पर पहुंच के लिये सम-विषम योजना लागू करना कैसे युक्तिसंगत हो सकता है? सम-विषम योजना पर अड़े रहने का आप सरकार का फैसला वायु प्रदूषण के खिलाफ किसी वैज्ञानिक एवं तार्किक उपाय के बजाय उसकी अक्षमता, अपरिपक्वता एवं हठधर्मिता का द्योतक हैं.
दिल्ली में 4 से 15 नवंबर के बीच सम-विषम योजना लागू होगी, इस अवधि में प्रदूषण के चिंताजनक स्तर तक बढ़ने के मद्देनजर आप सरकार की ओर से कई घोषणाएं की गयी हैं. दिल्ली सरकार ने प्रदूषण रोकने के लिए सात बिंदुओं के आधार पर कार्ययोजना बनाई है. इसमें दीपावली पर पटाखे न जलाने की अपील, कूड़ा और पेड़ों की पत्तियां जलाने पर रोक, धूल से बचाव, पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने जैसे कदम भी शामिल हैं. लेकिन हकीकत यह है कि इनमें से एक भी उपाय अब तक कारगर साबित नहीं हुआ है. सड़क पर अगर वाहन कम चलें तो निश्चित रूप से एक सीमा तक वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि दिल्ली के वायु प्रदूषण से होने वाले प्रदूषण की भागीदारी चालीस फीसद है. यह कम नहीं है. ऐसे में अगर दिल्ली सरकार समय रहते एहतियात के तौर पर कदम उठा रही है तो यह उसकी जागरूकता को दर्शाता है. जाहिर है, दिल्ली की जिम्मेदारी संभाल रही सरकार का यह सबसे बड़ा फर्ज भी है कि वह प्रदूषण पर काबू करके इस शहर को रहने लायक बनाए. लेकिन सम-विषम योजना से दिल्ली की जनता को होने वाली परेशानियां पर ध्यान देना भी उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए.
समस्या जब बहुत चिन्तनीय बन जाती है तो उसे बड़ी गंभीरता से नया मोड़ देना होता है. पर यदि उस मोड़ पर पुराने अनुभवों के जीए गये सत्यों की मुहर नहीं होती तो सच्चे सिक्के भी झुठला दिये जाते हैं. इसका दूसरा पक्ष कहता है कि राजनीतिक वाह-वाही की गहरी पकड़ में यदि आम जनता की सुविधाओं को बन्दी बना दिया जाये तो ऐसी योजना की प्रासंगिकता पर प्रश्न खड़े होने स्वाभाविक है. यह कदम कानून का पालन करने वाले नागरिकों का अपमान भी होगा जो प्रदूषण के लिए अपने वाहनों की नियमित जांच कराते हैं क्योंकि उन्हें आने-जाने और अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने में समस्या होगी, अपने कार्यालयों एवं व्यवसाय-स्थलों, मरीजों को अस्पताल पहुंचाने एवं अन्य आपातकालीन स्थितियों में गंतव्य तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. इसीलिये सम-विषम योजना की घोषणा के साथ ही इसे लेकर सवाल भी उठने लगे हैं. सवाल सिर्फ योजना पर नहीं, बल्कि इसे लागू करने के पीछे दिल्ली सरकार की गंभीरता को लेकर ज्यादा है. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी ने यह कह दिया है कि प्रदूषण से निपटने के लिए सम-विषम योजना की कोई जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जो प्रदूषण कम करने में सहायक होंगे. ऐसे में बड़ा सवाल फिर यही खड़ा होता है कि जहरीली हवा में हांफती दिल्ली को आखिर प्रदूषण से मुक्ति दिलाने का उपाय क्या है?
दिल्ली का प्रदूषण विश्वव्यापी चिंता का विषय बन चला है. कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ यहां तक कह चुके हैं कि दिल्ली रहने लायक शहर नहीं रह गया है. दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से जुड़ी कुछ मूलभूत समस्याएँ मसलन आवास, यातायात, पानी, बिजली इत्यादि भी उत्पन्न हुई. नगर में वाणिज्य, उद्योग, गैर-कानूनी बस्तियों, अनियोजित आवास आदि का प्रबंध मुश्किल हो गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली का प्रदूषण के मामले में विश्व में चैथा स्थान है. दिल्ली में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण औद्योगिक इकाइयों के कारण है, जबकि 70 प्रतिशत वाहनों के कारण है. खुले स्थान और हरे क्षेत्र की कमी के कारण यहाँ की हवा साँस और फेफड़े से संबंधित बीमारियों को बढ़ाती है. प्रदूषण का स्तर दिल्ली में अधिक होने के कारण इससे होने वाले मौतें और बीमारियां स्वास्थ्य पर गंभीर संकट को दर्शाती है. इस समस्या से छुटकारा पाना सरल नहीं है. हमें दिल्ली को अप्रदूषित करना है तो एक-एक व्यक्ति को उसके लिए सजग होना होगा, सरकार को भी ईमानदार प्रयत्न करने होंगे.
पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली में वाहनों की तादाद में सत्तानवें फीसद बढ़ोतरी हो गई. इनमें अकेले डीजल से चलने वाली गाड़ियों की तादाद तीस प्रतिशत बढ़ी. कभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद डीजल से चलने वाली नई गाड़ियों का पंजीकरण रोक दिया गया था, लेकिन सवाल है कि पहले से जितने वाहन हैं और फिर नई खरीदी जाने वाली गाड़ियां आबोहवा में क्या कोई असर नहीं डालेंगी? इस गंभीर समस्या के निदान के लिये दिल्ली सरकार को अराजनैतिक तरीके से जागरूक रहने की जरूरत है. दिल्ली में प्रदूषण और इससे पैदा मुश्किलों से निपटने के उपायों पर लगातार बातें होती रही हैं और विभिन्न संगठन अनेक सुझाव दे चुके हैं. लेकिन उन्हें लेकर दिल्ली सरकार की कोई ठोस पहल अभी तक सामने नहीं आई है. हर बार पानी सिर से ऊपर चले जाने के बाद कोई तात्कालिक घोषणा होती है और फिर कुछ समय बाद सब पहले जैसा चलने लगता है.
हर साल दिल्ली में नवंबर-दिसंबर में प्रदूषण की मात्रा बेहद खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाती है. इसके दो बड़े कारण है. एक पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाए जाने से निकलने वाला धुआं दिल्ली की ओर आना और दूसरा कारण दिल्ली में वाहनों से निकलने वाला धुआं. राजधानी दिल्ली में अब भी लाखों ऐसे वाहन हैं जिनकी पंद्रह साल की अवधि समाप्त हो चुकी है, लेकिन सड़क पर बेधड़क दौड़ रहे हैं. पिछले चार साल में दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने ऐसे वाहन मालिकों के खिलाफ शायद ही कोई कार्रवाई की होगी. जहां तक दिपावली पर पटाखे फोड़ने का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट पहले ही पाबंदी लगा चुका है. लेकिन लोगों पर इसका कोई असर नहीं दिखा. दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में कूड़ा जलता देखा जा सकता है. राजधानी में कूड़े के जो पहाड़ खड़े हैं, उनको हटवाने के लिए पिछले चार साल में क्या कोई बड़ा फैसला हुआ?
सवाल यह भी है कि क्या कुछ तात्कालिक कदम उठा कर दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से पार पाया जा सकता है? लेकिन यहां मुख्य प्रश्न बढ़ते प्रदूषण के मूल कारणों की पहचान और उनकी रोकथाम संबंधी नीतियों पर अमल से जुड़े हैं. दिल्ली में वाहन के प्रदूषण की ही समस्या नहीं है, हर साल ठंड के मौसम में जब हवा में घुले प्रदूषक तत्वों की वजह से जन-जीवन पर गहरा असर पड़ने लगता है, स्मॉग फॉग यानी धुआं युक्त कोहरा जानलेवा बनने लगता है, तब सरकारी हलचल शुरू होती है. विडंबना यह है कि जब तक कोई समस्या बेलगाम नहीं हो जाती, तब तक समाज से लेकर सरकारों तक को इस पर गौर करना जरूरी नहीं लगता.
सम-विषम योजना 2016 में दो बार लागू की गई थी. जिस पर दिल्ली सरकार का दावा था कि सम-विषम लागू करने से प्रदूषण दस से बारह फीसद की कमी आई थी. जबकि कुछ अध्ययनों में यह सामने आया कि इससे हवा में मौजूद घातक कण पीएम 2.5 और कार्बन की मात्रा बढ़ गई थी. योजना लागू करनी है तो सख्ती से की जानी चाहिए, सिर्फ वाहवाही बटोरने के लिए नहीं. हमें हमेशा ऊपर से नियमों को लादने के बजाय जनता को जागरूक करने पर जोर देना चाहिए. और उनकी भागीदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. तभी नीतियां असर दिखाएंगी और तभी आम-जनता का शासन के प्रति विश्वास कायम रहेगा, तभी समस्या का हल होगा. प्रेषकः
ललित गर्ग
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