EWS यानी सीधे तौर पर सवर्ण समाज के गरीबों को दस फीसदी आरक्षण के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। 13 सितंबर से इस पर चल रही बहस को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने अगले पांच दिनों में पूरा करने की बात कही है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में ईडब्ल्यूएस कोटे पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने इसकी धज्जियां उड़ा कर रख दी है। याचिकाकर्ताओं की दलील इतनी मजबूत है कि इसपर सुप्रीम कोर्ट में हलचल मच गई है।
जाने-माने शिक्षाविद् डॉ. मोहन गोपाल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलीलों के बाद उसकी खूब चर्चा हो रही है। डॉ. गोपाल ने इस मामले पर सुनवाई कर रहे पीठ के सामने जो दलीलें दी हैं आइए उस पर नजर डालते हैं-
- आरक्षण को वंचित समूह को प्रतिनिधित्व देने का साधन माना जाता रहा है, लेकिन EWS कोटा ने इस कांसेप्ट को पूरी तरह से उलट दिया है।
- ईडब्लूएस कोटे का लाभ अगड़े वर्ग को मिलता है, लेकिन इससे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग बाहर हो जाते हैं।
- ऐसा होने से संविधान की मूल भावना का उल्लंघन होता है, जिसके तहत समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांत की बात की गई है।
- डॉ. मोहन गोपाल ने 103वें संशोधन पर भी सवाल उठाया, जिसके तहत यह आरक्षण दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन संविधान पर हमले के रूप में देखा जाना चाहिए।
- अगर ईडब्लूएस वास्तव में आर्थिक आरक्षण होता, तो यह जाति के बावजूद गरीब लोगों को दिया जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
- ईडब्ल्यूएस कोटा लागू होने से पहले जो आरक्षण मौजूद थे, वे जाति-पहचान पर आधारित नहीं थे बल्कि सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व की कमी पर आधारित थे।
- 103वें संशोधन में कहा गया है कि पिछड़े वर्ग ईडब्ल्यूएस कोटा के हकदार नहीं हैं। यह केवल अगड़े वर्गों में गरीबों के लिए उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि कुमारी बनाम केरल राज्य में यह कहा गया था कि सभी वर्ग सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में शामिल होने के हकदार हैं।
अपनी दलील पेश करते हुए डॉ. गोपाल ने कहा कि हमें आरक्षण में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम प्रतिनिधित्व में रुचि रखते हैं। अगर कोई आरक्षण से बेहतर प्रतिनिधित्व का तरीका लाता है, तो हम आरक्षण को अरब सागर में फेंक देंगे। उन्होंने अपनी दलील देते हुए कहा कि किसी की भी फाइनेंशियल कंडीशन एक क्षणिक स्थिति है। यह लॉटरी जीतने या जुआ हारने जैसी किसी एक घटना से बदल सकती है।
इससे पहले शिक्षाविद मोहन गोपाल ने दलीलों की शुरुआत करते हुए EWS कोटे की जमकर आलोचना की। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ‘ईडब्ल्यूएस कोटा अगड़े वर्ग को आरक्षण देकर, छलपूर्ण और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास है।’
बताते चलें कि, चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस कोटा संबंधी 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है। इसके बाद से EWS कोटा, जिसे बहुजन समाज के बुद्धिजीवी सुदामा कोटा कहते हैं, को लेकर बहस शुरू हो गई है।
आरक्षण की लगातार समाजशास्त्रीय व्याख्या करने वाले जेएनयू के प्रोफेसर और प्रख्यात समाजशास्त्री प्रो. विवेक कुमार ने इस बहस के बीच ट्विटर पर एक पोस्ट साझा कर आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध किया है। उनका कहना है कि-
– आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है।
– गरीबी के कारण पिछड़ापन दूर करने के अन्य उपाय भी मौजूद हैं।
– सवर्णों के पास सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक पूंजी का हजारों वर्षों का बैंक है
– आरक्षण हजारों वर्षों से समाज के अनेक आयामों में वंचना झेल रहे समाजों को प्रतिनिधित्व देना है।
– आरक्षण में क्रीमी लेयर पिछड़ी जातियों के साथ अन्याय है।
– हजारों वर्षों की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक विपन्नता मानव सधिकारों की क्षति एवं आर्थिक विपन्नता में कोई समानता नहीं हो सकती हैं।
बता दें कि एससी/एसटी/ओबीसी समाज EWS कोटे का लगातार विरोध कर रहा है। यहां तक की राजनैतिक मोर्चे पर डीएमके ने भी इसके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। देखना यह है कि पांच दिनों की बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट EWS यानी आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर क्या फैसला सुनाता है।
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