आम आदमी अपनी सही और गलत की समझ मीडिया को सुन, पढ़ या देख कर बनाता है. एक समय था जब टेलीविजन पर रातको 9:20 पर खबर आती थी. सुबह अखबार आता था. देश-विदेश या किसी जगह हुई घटना की जानकारी का माध्यम सिर्फ ये ही था. यहाँ से मिली जानकारी को एकदम सच माना जाता था. लेकिन आज के दौर का मीडिया 24 घण्टे हमको खबरे दिखाता है. खबरे न हो तो भी खबरें बनाई जाती है. घण्टो-घण्टो झूठी खबरों पर रिपोर्टिंग होती रहती है. पल-पल हमको झूठ दिखाकर हमारे दिमाक में वो सब भरा जारहा है जो पूंजीवादी सत्ता के फायदे के लिए जरूरी है. बहुमत आवाम आज भी अखबार, टेलीविजन या इंटरनेटपर आई खबर को सच मानता है. गांव में तो कहावत है कि “ये खबर अखबार में आ गयी इसलिए झूठ हो ही नही सकती.”
अब जहां अखबार या न्यूज चैनल पर इतना ज्यादा विश्वास हो. वहाँ आसानी से मीडिया अपने मालिक पूंजी औरसत्ता के फायदे के लिए हमको झूठ परोस सकता है. सत्ता की नीति “फुट डालो और राज करो”पर काम करते हुए मीडिया 24घण्टे मुश्लिमो, दलितों, आदिवासियों, किसानों, मजदूरों, कश्मीरियोंऔर महिलाओं के खिलाफ झूठ उगलता रहता है. हम उस झूठ पर आंखे बन्दकर विश्वास कर लेते है. इस झूठ के कारण ही हम आज भीड़ का हिस्सा बन एक दूसरे का गला काट रहे है.
मीडिया जिसको हम सिर्फ न्यूज चैनलों और न्यूज पेपरों तक सीमित करके देखते है. जबकि मीडिया का दायरा बहुत ही व्यापक है. वर्तमान में फ़िल्म, सीरियल, गानेसब पूंजी औरसत्ता के फायदे को ध्यान में रख कर बनाये जाते है.
मीडिया जिस पर कार्पोरेट पूंजी का कब्जा है और इसी पूंजी का सत्ता परभी कब्जा है. जो हमारी पकड़ औरजद से मीलोंदूर है. लेकिन जब शोशल मीडिया आया तो बहुतों को लगा कि अब आम आदमी को अपनी आवाजव अपने शब्दो को एक-दूसरे के पास ले जाने का प्लेटफार्म मिल गया. एक ऐसा हथियार मिल गया जो कार्पोरेट मीडिया को ध्वस्त कर देगा. बहुतों को तो यहाँ तक लगने लगा और आज तक भी लगता है कि शोशल मीडिया के प्लेटफार्म को इस्तेमाल करके क्रांति की जा सकती है. लेकिन वो भूल गए थे कि शोशल मीडिया को किसने और क्यो पैदा किया. शोशल मीडिया किसका औजार है.
आज शोशल मीडिया पर दिन-रात झूठी और नफरत भरी पोस्ट घूमती रहती है. इन्ही झूठी पोस्टो के कारण ही कितनी ही जगह दलितों-मुश्लिमो पर हमले हुए है. कितनो को मौत के घाट उतार दिया गया. सत्ता की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ने वालों के खिलाफ झूठा प्रचार तो आम बात है. सभी पार्टियों ने अपने-अपने आई टी सेल स्थापित किये हुए है जिनका काम ही दिन रात झूठ फैलाना है.
ये आई टी सेल इतिहास की घटनाओं को इतिहासिक पात्रों को अपनी पार्टी व उसकी विचारधारा के अनुसार तोड़-मरोड़ कर, झूठ का लेप लगा कर आपके सामने पेश करते हैं. हम भी उस झूठ की चमकदार परत को ही सच मान लेते है.
अक्सर आपके सामने ऐसी झूठी पोस्ट आती है कि –
एक गायों से भरा ट्रक फैलानी जगह से चलकर फैलानी जगह के लिए निकला है इसका ये नम्बर है. इस ट्रक ने इतने गऊ भक्तों कोकुचल दिया या इतनो को गोली मार दी.
फैलानी जगह मुश्लिमो ने हिन्दू लड़की से बलात्कार कर दिया.
मुस्लिम झंडे को पाकिस्तान का झंडा बताना तो आम बात है. इसी अफवाह के कारण पिछले दिनों हरियाणा के गुड़गांव में एक बस को रोक कर सवारियों और ड्राइवर से मारपीट की गईक्योकिबस पर मुस्लिम झंडा लगा थाजो मुस्लिम धर्म स्थल पर श्रदालुओं को लेकर जा रही थी.
शहीद भगत सिंह आजादी की लड़ाई में वीर सावरकर से राय लेता था. भगत सिंह वीर सावरकर को अपना आदर्श मानता था.
भगत सिंह के खिलाफ फैलाने ने गवाही दी. किसी का भी नाम डालकर परोस देते है.
गांधी और नेहरू ने भगत सिंह को फांसी दिलाई.
गांधी महिलाओं के साथ नंगे सोते थे. नेहरू अय्यास थे. नेहरू को एड्स थी. जिसके कारण उसकी मौत हुई. फोटोशॉप से दोनो के हजारो फोटो बनाये हुए है.
सोनिया बार डांसर थी, वेटर थी.
भगत सिंह ने कहा था कि अगर जिंदा रहूंगा तो पूरी उम्र डॉ अम्बेडकर के मिशन केलिए काम करूंगा.
डॉ अम्बेडकर ने अपने जीवन मे 2 लाख बुक्सपढ़ी.
साइमन कमीशन का विरोध करने वाले दलित विरोधी और डॉ अम्बेडकर विरोधी थे.
वेद के फैलाने पेज पर लिखा है कि हिन्दू गाय खाते थेया कुरान के उस जगह लिखा है कि ये होता था.
पोस्ट इस प्रकार बनाई जाती है कि उस पर शक न किया जा सके. ये बड़े ही प्रोफेसनल तरीके से किया जाता है. इसके पीछे सिर्फ एक ही मकसद है वो है पूंजी की रक्षा, जिसमें वो कामयाब होते भी जा रहे है.
झूठ को अगर हजारो मुँह से बोला जाए तो वो सच लगने लगता है. यहाँ तो लाखों मुँह से बोला जा रहा है.
राहुल गांधी पप्पूहै?, जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज मुस्लिम थे?या प्रशांत भूषण, रवीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, स्वामी अग्निवेश, योगेंद्र यादव या दूसरे बुद्विजीवी देश द्रोही है?
बहुमत लोगो से बात करोगे तो बोलेगें हा है. क्यों बोल रहे है ऐसा लोग
क्योकि इनके खिलाफ व्यापक झूठा प्रचार बार-बार किया गया है.
इन झूठ फैलाने वाले आई टी सेल के हजारो फेंक अकाउंट होते है. जिनकी कोई जवाबदेही भी नही होती.
उन झूठी पोस्ट्सके खिलाफ प्रगतिशिल बुद्धिजीवी लड़ रहे है. इन झूठी पोस्ट्स से कितना नुकशान होरहा है ये जनता के सामने ला रहे है. इनके पीछे कौनसी ताकत काम कर रही है ये सामने ला रहे है.
लेकिन पीड़ित आवाम कीहक की बात करने वाले तबके भी ऐसी झूठी पोस्ट्स बना रहे है ये बहुत ज्यादा खतरनाक है.
झूठ का सामना झूठ पेश करके कभी नही किया जा सकता है.
पिछले कुछ दिनों से एक पोस्ट शोशल मीडिया पर घूम रही है.
पोस्ट के अनुसार इंडिया गेट पर 95300 नाम स्वतंत्त्रा सेनानियों के लिखे हुए है जिनमे 61395 नाम मुश्लिमो के हैऔर अच्छी बात ये है की एक नाम भी संघियो का नही है.
अब जो संघ विरोधी है. संघ के खिलाफ और उसकी झूठ की फैक्टरी के खिलाफ लड़ने की बात करते है. उनको ऐसी पोस्ट दिखते ही वो उसकी सत्यता जांचे बिना उसको शेयर, फारवर्ड या लाइक कर देते है. ऐसा करना बहुत ही खतरनाक है क्योंकि इसके पीछे भी पूंजी और उसकी विचारधारा काम कर रही होती है.
अब इस पोस्ट की सच्चाई क्या है इसको भी जान लेना चाहिए. इंडिया गेट का निर्माण अंग्रेज सरकार ने अपने उन हजारों भारतीय सैनिकों के लिए करवाया था जिन सैनिकों ने अंग्रेज सरकार के लिए पहले विश्व युद्धव अफगान युद्ध में जान दी.
यूनाइटेड किंगडम के कुछ सैनिकों और अधिकारियों सहित 13300 सैनिकों के नाम, गेट पर लिखे हुए है.
ये झूठी पोस्ट अंग्रेजो के लिए लड़ने वाले उन हजारो लोगो को जिन्होंने अंग्रेज सरकार का भारत परकब्जा बनाये रखने में मजबूती से साथ दिया. उन सैनिकों को क्रांतिकारी साबित कर रही है. क्या वो क्रांतिकारी थे?
लेकिन ऐसे ही धीरे-धीरे झूठे इतिहास को सच बनाकर लोगो के दिमाक में बैठाया जाता है.
इनझूठी पोस्ट्स को देख कर लग रहा है कि झूठ की फैक्टरी सिर्फ संघी ही नही लगाए हुए है. झूठ की फैक्टरी का निर्माण संघ के खिलाफ लड़ने की बात करने वाले भी लगाए हुए है. जैसे संघ या मोदी के अंधभक्त झूठी पोस्ट्स को आगे से आगे बिना सच्चाई सरकाते रहते है वैसे ही दूसरे प्रगतिशील, कलाकार, वामपंथी, अम्बेडकरवादी भी झूठी पोस्ट्स को आगे से आगे सरका रहे है. बस पोस्ट उनके मतलब की होनी चाहिए, वो चाहे झूठी ही क्यो न हो.
लेकिन क्या ये सही होगा. क्या पीड़ितों की लड़ाई झूठ के सहारे लड़ी जाएगी. क्या आप इतने कमजोर हो कि झूठ का सहारा ले रहे हो.
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