बिहार के मुजफ्फरपुर में जिस तरह एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार की वजह से अभी तक 108 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं, वह कोई आम खबर नहीं है. जिस देश में चार सैनिकों के मारे जाने पर हर जिले में लोग कैंडल मार्च निकालने लगते हैं, उसी देश में 100 से ज्यादा मां-बाप के आंखों के सामने उनके बच्चों की जान चले जाना और उस पर शासन, सरकार और व्यवस्था की कमान संभाले अधिकारियों और नेताओं-मंत्रियों की चुप्पी गंभीर सवाल उठाती है.
हद तो यह है कि मरने वाले बच्चों की संख्या 100 पार कर जाने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल जानने मुजफ्फरपुर पहुंचे. यह तब है जब मुजफ्फरपुर जिला पटना से महज डेढ़ से दो घंटे की दूरी पर है. नीतीश के पहुंचने पर मृतक के परिवार वालों और इस घटना से भड़के लोगों ने जिस तरह ‘गो बैक’ के नारे लगाएं वह भी अचंभित करने वाला नहीं था. लोग परेशान है. खबर है कि अभी भी अस्पतालों में भर्ती बीमार बच्चों की संख्या 414 हो गई है. चमकी बुखार से पीड़ित ज्यादातर मरीज मुजफ्फरपुर के सरकारी श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल (एसकेएमसीएच) और केजरीवाल अस्पताल में एडमिट हैं.
अब तक एसकेएमसीएच हॉस्पिटल में 89 और केजरीवाल अस्पताल में 19 बच्चों की मौत हो गई है. जिन बच्चों की मौत हुई है, तकरीबन सारे के सारे बच्चे गरीब परिवार के और दलित-पिछड़े समाज के बच्चे हैं. ऐसे में क्या यह सवाल गलत होगा कि इन बच्चों को इसलिए मरने के लिए छोड़ दिया गया क्योंकि ये सब गरीब थे. खुदा न करे कि इस बुखार की चपेट में अब एक भी बच्चा आए. सिर्फ मुजफ्फरपुर ही नहीं, बल्कि देश के हर कोने के बच्चे सुरक्षित रहें. लेकिन क्या इस बुखार की चपेट में सभ्य समाज के लोगों के बच्चों के आने के बाद भी सरकार इसी तरह सोई रहती, जाहिर है नहीं. अफसोस के साथ यह सवाल इसलिए पूछना पर रहा है क्योंकि भारत में हर वक्त ऐसा ही होता है. यहां हर किसी की हैसियत अमीरी और गरीबी के साथ उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि से तय होती है. चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के इलाज को लेकर सरकार और प्रशासन ने जिस तरह से लापरवाही बरती है, उसका प्रायश्चित यही है कि अब इस बुखार से किसी भी बच्चे की जान न जाए, किसी भी मां की गोद सूनी न हो.
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।