जून का अंक ‘दलित दस्तक’ का पांचवे वर्ष का पहला अंक है. सुनने में कितना शानदार लगता है ना. आंखों के सामने 27 जून, 2012 की वह तारीख घूम जाती है जिस दिन आधी-अधूरी समझ के साथ हमने यह मैगजीन शुरू की थी. पारिवारिक और पत्रकारिता के कई मित्रों की उपस्थिति में और बहुजन समाज के दर्जन भर बुद्धीजीवियों के बीच हमने नीले कागज में लिपटी पत्रिका को सबके सामने पेश किया था. तब से सबसे बड़ी चुनौती पत्रिका की निरंतरता को बनाए रखना था और कई उतार चढ़ाव के बीच हमने इसे बनाए रखा. आज जब बीते 48 महीनों को सोचता हूं तो रोमांच सा होता है. दलित दस्तक ने व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत कुछ दिया है. सम्मान, पहचान और संघर्ष करने का जज्बा मुझे इसी पत्रिका से मिला. इसने मुझे हर शहर में मित्र दिया है. यह पांच वर्षों की उपलब्धि है कि कम ही सही लेकिन दलित दस्तक हर शहर में पहुंची है. हमने इसे देश के दर्जनों विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरी में पहुंचाया है. इसे देश के संसद में पहुंचाया है. पत्रिका जहां गई है उसकी चर्चा हुई है.
इस दौरान तमाम शहरों में तमाम लोग पत्रिका को सहयोग के लिए सामने आए हैं. जयपुर, देहरादून, नागपुर, नासिक, पटना, लखनऊ, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, जौनपुर, चंडीगढ़ समेत उत्तर प्रदेश और देश के तमाम शहरों में रहने वाले लोगों ने बहुत सहारा और सराहना दी है. सबका नाम लेना संभव नहीं है लेकिन इसी बहाने मैं आपलोगों का सार्वजनिक धन्यवाद करता चलूं यह भी जरूरी है. आपकी सराहना हमारा हौंसला है. आपका साथ ही हमारी ताकत है.
दलित दस्तक को शुरुआत में भी आर्थिक दिक्कत थी जो अब भी कमोबेश बनी हुई है. विचारधारा से समझौता किए बिना दलित मुद्दों पर मैगजीन निकालना आसान नहीं है. क्योंकि तब ना तो विज्ञापन ही मिलता है और न ही आर्थिक मदद. पत्रिका को हम पैसों से नहीं बल्कि हौंसलों से चला रहे है. जिद्द और जुनून से चला रहे हैं. जिस दिन हमने पत्रिका शुरू की थी, उस दिन भी हमारे पास जिद्द और जुनून ही था. हमने आज भी वो जिद्द और जुनून बरकरार रखा है. बल्कि जिद्द तो बढ़ गई है. हां, कुछ अम्बेडकरवादी साथी इस दौरान जरुर साथ चले जिन्होंने काफी सहयोग किया. एक धन्यवाद उनको भी.
हिन्दी पट्टी में तो पत्रिका ने अपने कदम जमा लिए हैं, अब जरूरत इसे अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित करने की है. अगर कोई साथ आता है तो पत्रिका को गुजराती, मराठी और पंजाबी भाषा में प्रकाशित करने की भी योजना है. दलित दस्तक के प्रचारकों की भी इस सफर में अहम भूमिका रही है. अगर पत्रिका समय पर पाठकों तक पहुंच पाती है तो इसमें आपकी भी बहुत बड़ी भूमिका है. आखिर में एक धन्यवाद प्रो. विवेक सर को. अब तक के सफर में कई लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से साथ चलें लेकिन विवेक कुमार सर इकलौते ऐसे व्यक्ति हैं, जो तमाम व्यस्तताओं के बावजूद पहले दिन से लेकर आज तक पत्रिका के साथ खड़े हैं. पांचवे वर्ष के आगाज पर सभी पाठकों, प्रचारकों, शुभचिंतकों और साथियों को बहुत-बहुत बधाई. आगे का रास्ता कठिन है लेकिन जैसे अब तक चले हैं, आगे भी चलते जाना है.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।