पटना। इस साल लगभग पूरे भारत में बाढ़ से जनजीवन त्रस्त रहा. अलग-अलग राज्यों में हजारों लोगों की मौतें भी हुई. इनमें सबसे ज्यादा तबाही बिहार में हुई. जहां करोड़ों लोगों को बाढ़ की वजह से शिविर कैंपों में रहना पड़ा. बाढ़ त्रासदी में फंसे लोगों के लिए सरकार ने बढ़े स्तर पर बचाव और राहत कार्य भी किया. इन बचाव और राहत कार्यों में दलितों के साथ काफी भेदभाव किया गया. इस मुद्दे पर ‘नेशनल कंपेन ऑन दलित ह्यूमैन राइट्स’ ने रिपोर्ट पेश कर खुलासा किया है.
रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार के अधिकांश इलाकों में आई बाढ़ के दौरान कोई भी राहत शिविर का संचालन नहीं हुआ. सरकारी राहत कार्यक्रम पूरी तरह से बड़ी जातियों के द्वारा संचालित किया गया. महादलित, अल्पसंख्यक, वंचित समाज के लोगों की उपेक्षा की गई.
नेशनल कंपेन ऑन दलित ह्यूमैन राइट्स ने रिपोर्ट में बताया कि सरकारी बचाव दल के लोगों ने मुख्य सड़क, मार्ग इत्यादि के किनारे फंसे लोगों को निकाला जबकि अंदर के गांव जहां पर बहुत बड़े स्तर पर गरीब आबादी रहती है उसको छोड़ दिया. गांधी संग्रहालय में आयोजित राज्य स्तरीय बैठक में रिपोर्ट में कहा गया कि जहां भी शिविर चले वहां बिहार सरकार एवं केंद्र सरकार के तय मानकों का पालन नहीं हुआ.
कई राहत शिविरों में बड़ी जाति के लोगों ने दलित, महादलित को खाना, रहने तथा सोने की सुविधा नहीं दी. जातिगत तथा धार्मिक भेदभाव की परख के लिए नेशनल दलित वाच, नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स तथा जन जागरण शक्ति संगठन की ओर से एक जांच दल ने अररिया और किशनगंज जिले के बाढ़ प्रभावित गांवों का दौरा किया. इस टीम ने सरकारी राहत एवं बचाव कार्यक्रम को दलित, वंचित, मुस्लिम समाज के नज़रिए से प्रमुख गड़बड़ियां उजागर की. कार्यक्रम में मुख्य रूप से अररिया, किशनगंज, चंपारण, छपरा जिलों के बाढ़ पीड़ितों नें भाग लिया.
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