नई दिल्ली। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को आम बजट पेश करते हुए अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का भी जिक्र किया. जेटली ने इन दोनों समुदाय के लिए धन के आवंटन को बढ़ाकर क्रमश: 56,619 करोड़ रुपये व 39,135 करोड़ रुपये करने की बात कही गई. वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि 2017-18 के लिए निर्धारित आवंटन अनुसूचित जातियों के लिए 52,719 करोड़ रुपये व अनुसूचित जनजातियों के लिए 32,508 करोड़ रुपये था, जिसे बढ़ा दिया गया है.
हालांकि सच्चाई यह है कि बजट में पिछले कई सालों से दलितों और आदिवासियों से छल होता रहा है. नियम के मुताबिक देश की अनुसूचित जाति और जनजाति के हित के लिए कुल बजट का एक हिस्सा इन दोनों समुदायों की जनसंख्या के हिसाब से आवंटित करने का नियम है. इसके मुताबिक अनुसूचित जाति के लिए उनकी जनसंख्या के हिसाब से कुल बजट का 16.6 प्रतिशत जबकि जनजाति के लिए 8.6 प्रतिशत बजट राशि देने का प्रावधान है. यानि कि केंद्र सरकार को केंद्रीय बजट का 25.2 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटित करना चाहिए था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं है.
सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की, पिछले कई सालों से सरकारें ऐसा करने से बचती रही हैं और पिछले बजट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटित राशि से कुछ पैसे ज्यादा देकर दलितों को बजट में ज्यादा आवंटन देने का ढिंढ़ोरा पीटा जाता है. आंकड़ों की इसी बाजीगरी के जरिए सरकार ने पिछले दो वर्षों में एसटी-एसटी के लिए आवंटित धनराशि में 2 लाख 29 हजार 622.86 करोड़ की कटौती की है. इस बजट में भी ऐसा ही हुआ है. सरकार आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर दलितों और आदिवासियों के लिए बजट में पैसे बढ़ाने का ढिंढ़ोरा पीट रही है.
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