कांफ्रेंस दरअसल होता क्या है; इसकी शाब्दिक समझ तो थी, लेकिन कांफ्रेंस के दौरान दरअसल क्या होता है, और उसका मकसद क्या होता है, यह पहले कनाडा तो अब स्वीडन आकर पता चला। स्वीडन में इसको लेकर समझ ज्यादा बढ़ी। यह कांफ्रेंस एतिहासिकता लिए था। यह उस स्वीडन देश में था जहां से दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार शुरू हुआ। तो जिस गोथनबर्ग शहर को इसके लिए चुना गया वहां से शानदार गाड़ियां बनाने वाली दुनिया की प्रतिष्ठित कंपनी Volvo की शुरूआत हुई। ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क (GIJN) द्वारा आयोजित ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कांफ्रेंस 2023 (GIJC23) मेरे लिए इस मायने में खास रहा क्योंकि इसने मेरी पत्रकारिता की समझ के भी कई दरवाजे खोले।
विदेशी पत्रकारों से मिलना और बातचीत करना कुछ मौकों पर हुआ है, लेकिन अपने 17 साल की पत्रकारिता में यह मेरा पहला मौका था, जब मैं दुनिया भर के पत्रकारों के बीच था। उनसे बात कर पा रहा था, उनके यहां की पत्रकारिता समझ रहा था। इस कांफ्रेंस में सिर्फ पत्रकार नहीं, बल्कि अमेरिका से लेकर यूके सहित दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से तमाम बड़े अखबारों के संपादकों के साथ-साथ पत्रकारिता पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स भी मौजूद थे, तो पत्रकारों को कानूनी सपोर्ट करने वाले संगठन मीडिया डिफेंस के Carlos Gaio से भी मुलाकात हुई।
अमेरिका और यूरोप जैसे शहरों के पत्रकार तो कई मौकों पर टकराते रहे हैं, लेकिन पहली बार नाइजीरिया, फिजी, सिंगापुर, पड़ोसी नेपाल और बांग्लादेश के पत्रकारों से मिला। वहीं पर अमन अभिषेक भी मिल गए। अमन पत्रकारिता में तो नहीं हैं, लेकिन वह युनाईटेड स्टेट के University of Wisconsin Madison से पीएच.डी कर रहे हैं। मैं फिजी से प्रकाशित होने वाले फिजी टाइम्स अखबार के एडिटर Fred Wesley, ताईवान के Yian Lee से और बांग्लादेश के पत्रकार Jewel Gomes से मिला। मैं उन देशों का जिक्र कर रहा हूं, जो लगातार विकसित हो रहे हैं, वहां पत्रकारिता की चुनौतियां भी बहुत हैं। इन तमाम देशों के पत्रकारों को ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क जिस तरह एक मंच पर लेकर आया था, वह बेहद महत्वपूर्ण था।
इन सबसे बात करना, उनके देश में पत्रकारिता की स्थिति के बारे में सुनना और समझना शानदार था। और बातचीत से एक बात तो समझ में आ गई कि किसी भी देश की मीडिया फ्री नहीं है। हां, भारत के कई मीडिया संस्थानों जैसे सत्ता के पैरों में लोटने का काम भी वो नहीं करते। उन्होंने बीच का एक रास्ता निकाल रखा है, और पत्रकारिता की मर्यादा को बचाए हुए हैं।
इस कांफ्रेंस में 125 देशों के करीब 2000 से ज्यादा मीडिया के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हुए। इसके लिए दुनिया भर से 300 पत्रकारों को फेलोशिप दी गई थी। यह कांफ्रेंस खासतौर पर इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म यानी खोजी पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने के लिए, उन्हें ग्लोबल वर्ल्ड से जोड़ने और खोजी पत्रकारिता करने वाले लोगों को संरक्षण देने के लिए और उन्हें तमाम अन्य जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए था, ताकि वो अपना काम बेहतर कर सकें। 19 से लेकर 22 सितंबर, 2023 तक चार दिनों तक लगातार कई सेशन हुए। सुबह नौ बजे से शाम को 7.30 तक सेशन चले। एक समय में कई अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग एक्सपर्ट अपनी बात रख रहे थे। पत्रकारिता की नई तकनीक AI पर बात हुई तो वॉच डॉग जर्नलिज्म पर भी बात हुई। इलेक्शन, क्लाइमेट चेंज, अनकवर्ड इंवेस्टिगेशन, हेल्थ केयर इंवेस्टिगेशन, डिजिटल सिक्योरिटी जैसे विषयों पर इसके एक्सपर्ट ने बेहतर काम करने का रास्ता दिखाया। दक्षिण एशिया में पत्रकारिता की चुनौतियों पर बात हुई। ऑन लाइन हरासमेंट से कैसे डिल किया जाए।
खास बात यह रही कि सिर्फ पत्रकारिता के विषयों को ही नहीं समझाया गया, बल्कि एक संस्थान कैसे मजबूत किया जा सकता है, किसी छोटे संस्थान को बढ़ाने की बिजनेस स्ट्रेटजी क्या होती है, फंड रेजिंग कैसे होती है और मोबाइल जर्नलिज्म को बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है, यह भी बताया गया।
विदेशी संस्थानों की एक खासियत है। वो सीखाने के साथ-साथ संपर्क बनाने और फिर दिन का सेशन खत्म होने के बाद
शाम को म्यूजिक और मस्ती के जरिये दुनिया भर के लोगों को पास आने का मौका मुहैया करवाते हैं। वहां यह भी हुआ। अवार्ड नाइट जो ऐतिहासिक था। दुनिया भर में बेहतरीन इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाले पत्रकारों को यहां सम्मानित किया गया।
गाला रिसेप्शन के दौरान एक ही हाल में दुनिया भर के हजारों पत्रकारों की मौजूदगी एक अलग नजारा पेश कर रही थी। सभी बेहतर पत्रकारिता के लिए इकट्ठा हुए थे। सभी बेहतर पत्रकारिता करना चाहते थे। जो सबसे शानदार रहा वह डायरेक्टर डेविड कपल्न की बात रही, जिन्होंने साफ कर दिया कि दुनिया के किसी भी हिस्से में इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाला पत्रकार अकेला नहीं है, बल्कि GIJN उसके साथ है।
इस दौरान जीआईजेएन को अपना नया एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर भी मिल गया। पिछले दस सालों से एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर रहने वाले डेविड कपल्न (Devid Kaplan) ने अपना पद छोड़ दिया, जिसके बाद अवार्ड विनिंग जर्नलिस्ट Emilia Diaz Struck ने नई एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर का पद संभाला। कहा जा सकता है कि दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता (इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म) को बढ़ाने के लिए ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क शानदार काम कर रहा है। स्वीडन के गोथनबर्ग शहर में हुए इस कांफ्रेंस से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म को और धार ही मिलेगी।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।