गोरखपुर। संत कबीर कांशी के लहरतारा तालाब में कमल के पत्ते पर प्रकट हुए थे और बुद्ध विष्णु के अवतार थे. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि संत कबीर और तथागत गौतम बुद्ध के बारे में यह पक्तियां गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर में प्रस्थापित कबीर और बुद्ध की प्रतिमा पर लिखा हुआ है. गोरखनाथ मंदिर के महंत भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ हैं. तथागत बुद्ध को विष्णु का अवतार बताने की बात इसलिए भी हास्यास्पद है क्योंकि तथागत बुद्ध ईश्वर पूजा के खिलाफ थे और स्वयं को भगवान मानने से इंकार करते थे. बावजूद इसके मनगढ़ंत तथ्यों का गठन कर जहां लोगों को भ्रामक जानकारी दी जा रही है तो वहीं संत कबीर और महामानव तथागत बुद्ध की विचारधारा को भी कुंद करने की कोशिश की जा रही है.
ब्राह्मणवादी ताकतों द्वारा बहुजन समाज में जन्में कबीर और दुनिया को शांति, प्रज्ञा, करुणा और शील का संदेश देने वाले तथागत बुद्ध को हिन्दुवादी आवरण में भी लपेटने की कोशिश की जा रही है. इससे बौद्ध धम्म और कबीर पंथ को मानने वाले लोगों में रोष है. बहुजन और बौद्ध साहित्य को लेकर गंभीर शोध करने वाले बौद्ध चिंतक शांति स्वरूप बौद्ध इस पर रोष जताते हुए कहते हैं कि बौद्ध साहित्य में विष्णु का शब्द ही नहीं है. बौद्ध धर्म में अवतारवाद भी नहीं है. यह तो ब्राह्मणवादियों ने बौद्ध धर्म को दबाने के लिए किया है. उनका आरोप है कि ब्राह्मणों ने बौद्ध विरासत पर डाका डाला है.
शांति स्वरूप कहते हैं कि “ब्राह्मणी मान्यता के अनुसार इक्ष्वाकु राजा रामचन्द्र के आदिपुरुष माने गए हैं. जो लोग शाक्यराज ओक्काक को इक्ष्वाकु साबित करते नहीं अघाते, उन्हें यह ध्यान देना चाहिए कि राम के आदिपुरुष इक्ष्वाकु हो सकते हैं, मगर शाक्यराज ओक्काक तथागत बुद्ध (कुमार सिद्धार्थ) के पुरखे तो हैं, पर आदिपुरुष नहीं.” उन्होने आरोप लगाया कि बौद्ध विरासत को हथियाने का प्रयास सरासर ऐतिहासिक बेईमानी है.
संत कबीर का कमल के पत्ते पर प्रकट होने वाली पंक्ति पर शांति स्वरूप बौद्ध ने कहा कि बच्चा कमल पर प्रकट नहीं होता है. यह सब गोरखनाथ वालो का गोरखधंधा है. ऐसा कर वो आम जनता में यह अंधविश्वास फैला रहे हैं. कमल का फूल कीचड़ में खिलता है. इसका संदर्भ इसलिए है कि यह बदबूदार जगह पर खुशबू फैलाता है. ये सब ब्राह्मणवादियों की साजिश रही है. ब्राह्मणवादी बहुजन महापुरुषों को अपना बताकर लोगों को भटका रहे हैं.

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