जरा सोचिए, हाथों में अपने बच्चों के बेजान शरीर को ढ़ोकर ले जाते मां-बाप के मन में क्या चल रहा होगा. अपने बच्चों के जन्म से लेकर उनके शरीर के बेजान होने तक न जाने कितनी बार उन्होंने उसे आसमान की ओर उछाला होगा, गोद में उठाया होगा, चूमा होगा लेकिन सरकारी और संवेदनहीन तंत्र ने उन दर्जनों बच्चों की सांसे छीन ली. बच्चों के बिलखते मां-बाप और परिवारजनों को देखना, अंदर तक इतना टीस दे गया कि उसका दर्द जाने में वक्त लगेगा.
लेकिन क्या सत्ताधारियों को भी फर्क पड़ा होगा? क्या उन लोगों को फर्क पड़ा होगा जो अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाने के जिम्मेदार थे? अगर फर्क नहीं पड़ा तो एक बार गोरखपुर के उस अस्पताल से घूम आओ जहां बच्चों के बेजान शरीर लिए उनके घरवाले रो-रोकर पागल हो रहे हैं. नहीं जा सकते तो टीवी पर ही देख लो. याद रखो, ये बच्चे मरे नहीं हैं, इन्हें तुमलोगों ने मारा है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।