नई दिल्ली। गुजरात के दलितों को यहां की सरकार इसके सपने देखने की भी इजाजत नहीं देती. तभी तो यहां के दलित अपने पारंपरिक कामों को चाहकर भी नहीं छोड़ पा रहे हैं.
दरअसल, पिछले साल उना में दलितों के साथ जिस तरह से गोरक्षकों ने मारपीट की थी. उसके बाद दलित समाज लोगों ने कसम खाई थी कि वो आज के बाद मरी हुई गायों को हटाने और गाय की खाल को निकालने का काम नहीं करेंगे. लेकिन कईयों को अपनी कसम तोड़ देनी पड़ी.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया कि नई जिंदगी की उम्मीद पाले यहां के दलित युवाओं ने कई जगहों पर रोजगार की तालाश की. उसमें से एक वढवाण तालुका का मुन्ना राठौड़ भी है, जिसे कहीं पर भी नौकरी नहीं मिली. रोजगार मिलने की जगह उन्हें जाति विशेष को लेकर जलालत मिलती थी. यानि युवाओं की ऊंची उड़ान के सपनों को सरकार पंख लगाने में नाकाम रही. अब अपनी कसमों पर लोगों के पेट की भूख भारी पड़ती दिख रही थी.
एक तो पेट की आग, उस पर समाज के ठेकेदारों की तरफ से गांव से निकाल देने की धमकी. ऐसे में अपने पुराने कामों पर लौटने के आलावा इन लोगों के पास और कोई चारा दिख नहीं रहा था. कई लोग ऐसे भी थे जो अपनी कसम की लाज बचाने के लिए गांव से निकल गए. उनमें से एक 55 साल के कनु चावड़ा थे, जो वढवाण तालुका को छोड़कर अहमदाबाद आ गए. और अब जूते बनाने का काम करते हैं. लेकिन जो लोग अपने पुराने कामों में लग गए. वो एक सवाल छोड़ गए कि ये वही गुजरात है जहां पर विकास के झूठे परचम लहराते सरकार नहीं थकती है.

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