नई दिल्ली। 11 जुलाई 2016 को गुजरात के उना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों पर किए गए हमले का प्रकरण विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर जीवित हो उठा है. इस मामले को लेकर आंदोलन करने वाले दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला करके इस कांड को फिर से जनता के जेहन में ताजा कर दिया है. वैसे उना के लोग आज भी उस घटना को भूले नहीं हैं.
उना कांड के बाद चर्चा में आए दलित विचार मंच के जिग्नेश मेवाणी को उना के ये दलित अपना हीरो मान रहे हैं. पूरे गुजरात में दलित समुदाय का वोटिंग प्रतिशत महज सात फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत से करीब आधी है. देश भर में दलितों का वोटिंग प्रतिशत 16 फीसदी है. मेवाणी को कांग्रेस और आप ने समर्थन दकर ऐलान कर ही दिया है.
नहीं मिला है अब तक न्याय
वसराम सरवैया कहते हैं कि हमें अब तक न्याय नहीं मिला. इनकी नाराजगी उन राजनेताओं से भी है जो घटना के बाद इनके यहां आए. इनके दुख-दर्द को बांटने का भरोसा भी दिया लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. वसराम सरवैया का कहना है ‘उस घटना के बाद हमारे घर राहुल गांधी भी आए, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी आए और जब विपक्ष की तरफ से दबाव बढ़ा तो तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल भी आईं. वसराम की शिकायत है कि आनंदीबेन ने उस वक्त जमीन और रोजगार के साधन मुहैया करने का वादा किया था. अब तो एक साल से भी ज्यादा हो गए उन्हें कुछ नहीं मिला.
क्या हुआ था उस दिन
उना के मोटा समढियाला गांव के वसराम सरवैया के लिए 11 जुलाई 2016 की सुबह जिंदगी की सबसे काली सुबह साबित हुई. दलित वसराम के पास सुबह सात बजे ही बगल के गांव से फोन आया कि उनकी गाय को शेर ने मार दिया है. पुश्तैनी काम करने वाले वसराम सरवैया अपने तीन भाइयों के साथ उस जगह पहुंच गए और फिर मरी हुई गाय का चमड़ा निकालने का काम करने लगे. तभी 40 से 50 की तादाद में गौरक्षकों की एक टोली पहुंची और इन सबकी पिटाई शुरू कर दी. हालत इतनी खराब थी कि इन्हें उना सिविल अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और फिर राजकोट ले जाया गया.
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