अहमदाबाद। थानगढ़ और ऊना में दलित उत्पीड़न की घटना के बाद पाटण में दलित सामाजिक कार्यकर्ता के आत्मदाह ने गुजरात सरकार को मुश्किल में डाल दिया है. दलितों को जमीनों के पट्टे व कब्जे दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भानुभाई वणकर ने 15 फरवरी को जिला कलेक्ट्रेट के सामने आत्महत्या कर लिया था. इसके बाद शुरू हुए आंदोलन के बाद आखिरकार गुजरात सरकार को दलितों के सामने झुकना पड़ा. रविवार को जिग्नेश मेवाणी और तमाम अन्य दलित संगठनों द्वारा बुलाए बंद और देर शाम तक चले ड्रामे के बाद आखिरकार सरकार और प्रशासन ने दलितों के विद्रोह के आगे सरेंडर कर दिया और उनकी सारी मांगे मान ली.
इससे पहले मामला तब बिगड़ गया जब भानुभाई के घर वालों ने उनके द्वारा की जा रही मांगे नहीं माने जाने तक उनका शव लेने से मना कर दिया था. तो घटना के बाद दलित संगठनों और जिग्नेश मेवाणी ने 18 फरवरी को अहमदाबाद व गांधीनगर बंद का आवाह्न किया था, जिससे दलित समाज के लोग सड़क पर आ गए. पति की मौत के बाद से ही उपवास पर बैठी भानुभाई वणकर की पत्नी इंदूबेन की भी रविवार को हालत बिगड़ गई.
गुजरात सरकार के लिए मामला इसलिए भी पेंचिदा हो गया था कि 19 फरवरी से गुजरात विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ गुजरात यात्रा पर आ रहे थे. ऐसे में दलित आंदोलन के चलते सरकार व प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. जिग्नेश मेवाणी द्वारा भी एक के बाद एक ट्विट से सारी जानकारियां सामने आती रही. मेवाणी की टीम ने जब उनकी गिरफ्तारी का वीडियो शेयर किया तो देश भर में गुजरात पुलिस की ज्यादती पर बहस होने लगी, इससे भी प्रशासन दबाव में आ गया.
मेवाणी का कहना है कि गुजरात के 50 लाख दलितों का भरोसा अब गुजरात सरकार पर नहीं रह गया है. यह सरकार दलित विरोधी है. उन्होंने गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की.
भानूभाई के आत्मदाह के बाद मामला शांत करने के लिए गुजरात सरकार ने फिलहाल तो सारी शर्ते मान ली है, लेकिन मेवाणी के तेवर देखते हुए और विधानसभा सत्र के कारण यह मामला अभी और जोर पकड़ सकता है.

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