श्रीनगर स्थित शालीमार गार्डन जो डल झील के किनारे पर बनी हुई है, वहां से तीन किलोमीटर की दूरी पर दाहिने तरफ पहाड़ी की तलहटी में हरवन स्तूप और चैत्य स्थित है। यहीं पर सम्राट कनिष्क के शासनकाल में 78 ईस्वी में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था। इस संगीति में संपूर्ण बुद्ध वाणी का संगायन और अनुमोदन किया गया था। इस संगीति के दौरान संपूर्ण बुद्ध वाणी को तांबे की प्लेटों पर खुदवा दिया गया था और उन प्लेटों को एक सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया गया था जिससे बुद्ध वाणी दीर्घकाल तक सुरक्षित रहे। इन प्लेटों को अभी तक ढूंढने में सफलता नहीं मिली है। हाल ही में बौद्ध धम्म पर काम करने वाले स्कॉलर आनंद ने यहां का दौरा भी किया था। उन्होंने दलित दस्तक से यहां की तस्वीरें साझा की है।
हरवन बौद्ध विहार में श्रीनगर मंडल के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से जो जानकारी का बोर्ड लगाया गया है, उसके मुताबिक,
हरवन का कल्हण की राजतरंगिणी में वर्णित षड् र्हदवन के साथ तादात्म्य किया गया है। ऐसा अनुमान है क कनिष्क के शासन काल में चतुर्थ बौद्ध परिषद का आयोजन इसी स्थान पर हुआ था। यह भी माना जाता है कि कनिष्क (78 ईसवी) के समकालीन प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागार्जुन यहीं निवास करते थे।
पहाड़ी के ऊपर की ओर बिखरे पुरावशेषों के अतिरिक्त अन्य उत्खनित भग्नावशेष ऊपरी और निचली दो स्तरों पर अवस्थित हैं। निचले स्तर के भग्नावशेषों में सम्मिलित हैं- अगढ़ित पत्थरों से बने चार कक्ष जो कि एक गलियारे द्वारा अलग किये गये हैं, जिनके पूर्व नें सीढ़ियां हैं, अगढ़ित पत्थरों से बने एक आयताकार प्रांगण में उत्तराभिमुख स्तूप का त्रयात्मक आधार और रोड़ी से बनी चारदीवारी है जो कि संभवतः एक मठ का भाग रहा होगा।
ऊपरी स्तर में एक प्रांगण है, जिसके मध्य अगढ़ित पत्थरों से निर्मित एक अर्धवृत्तकक्षीय संरचना है। इस कक्ष का प्रांगण ढली हुई तथा सादी टाइलो्ं से बना है जो कि अब मिट्टी से ढक दिया गया है। टाइलों पर टेढ़ी नक्काशी, वनस्पति, जीव जन्तु, मेष युद्ध, दूध पिलाती गाय, हिरण का पीछा कर तीर छोड़ता धनुर्धारी घुड़सवार, नृत्यांगना, छज्जे में बैठे वार्तालाप करते स्त्री-पुरुष इत्यादि अंकित हैं जो कश्मीर एवं मध्य एशिया की असाधारण कला को दर्शाते हैं। ऐसा अनुमान है कि इन वस्तुओं का निर्माण ईसवी सन् की प्रारंभिक शताब्दियों में किया गया था।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।