2019 का लोकसभा चुनाव याद है न। भाजपा सत्ता में वापसी के लिए जोर लगा रही थी, कांग्रेस पार्टी भाजपा को रोकने के लिए जोर लगा रही थी। तमाम गठबंधन किये जा रहे थे। भाजपा के मुकाबले में कांग्रेस पार्टी टक्कर देती हुई दिख रही थी कि तभी पुलवामा का अटैक हो गया। और अचानक सारे समीकरण अचानक से भाजपा के पक्ष में हो गए। हालांकि बाद में पुलवामा का पोस्टमार्टम होने के बाद कई दूसरी सच्चाईयां सामने आई और मोदी सरकार पर आरोप लगा कि यह सब चुनाव जीतने के लिए की गई साजिश थी।
2024 का चुनाव सामने है। और इस बार युनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठा है। खबर है कि युनिफॉर्म सिविल कोड पर संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार द्वारा बिल लाया जाएगा। यानी एक बार फिर से भाजपा इशारे में हिन्दु तुष्टिकरण कर सत्ता में वापसी की तैयारी में है। क्योंकि युनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठने पर सबसे ज्यादा विरोध मुसलमानों की ओर से होगा, और देश में जिस तरह का माहौल बना दिया गया है, उसमें मुसलमान परेशान यानी हिन्दुओं का बड़ा हिस्सा खुश।
यानी सत्ता पक्ष महंगाई, बेरोजगारी, देश में फैली अव्यवस्था, धर्मों के बीच आपसी दुश्मनी जैसे मुद्दों को फिर से किनारे रखकर युनिफॉर्म सिविल कोड जैसे भावनात्मक मुद्दों को हवा देने में जुट गई है।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने भोपाल में भाजपा के कार्यक्रम में इसकी शुरुआत कर दी है। पीएम मोदी का कहना है कि भारत में रहने वाले 80 प्रतिशत मुसलमान ‘पसमांदा, पिछड़े, शोषित’ हैं। यानी एक तीर से भाजपा दो शिकार करने की रणनीति पर काम कर रही है। सवाल है क्या कल तक मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने वाली और उनको टिकट बंटवारे से लेकर मंत्रिमंडल तक से दूर रखने वाली भाजपा अब मुसलमानों के एक बड़े समूह को दलित और पिछड़ा पहचान के साथ खुद से जोड़ना चाहती है?
हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस बयान पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने तुरंत पीएम मोदी को चुनौती देते हुए पसमांदा मुसलमानों के लिए आरक्षण मांग लिया। बसपा प्रमुख ने पीएम मोदी के बयान का हवाला देते हुए कहा कि पीएम मोदी का बयान यह उस कड़वी जमीनी हकीकत को स्वीकार करना है जिससे उन मुस्लिमों के जीवन सुधार हेतु आरक्षण की जरूरत को समर्थन मिलता है।
अतः अब ऐसे हालात में बीजेपी को पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण मिलने का विरोध भी बंद कर देने के साथ ही इनकी सभी सरकारों को भी अपने यहाँ आरक्षण को ईमानदारी से लागू करके तथा बैकलॉग की भर्ती को पूरी करके यह साबित करना चाहिए कि वे इन मामलों में अन्य पार्टियों से अलग हैं।
दरअसल बीते दिनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस तेज हो गई है।
जहां तक यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात है तो इसका मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून। अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे।
समान नागरिक कानून का जिक्र पहली बार 1835 में ब्रिटिश काल में किया गया था। उस समय ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है। संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। लेकिन फिर भी भारत में अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका। भारत में आबादी के आधार पर हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन फिर भी अलग-अलग राज्यों में उनके रीति रिवाजों में काफी अंतर मिल जाएगा। सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और मुसलमान आदि तमाम धर्म के लोगों के अपने अलग कानून हैं। ऐसे में अगर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के कानून अपने आप खत्म हो जाएंगे।
इसको लागू करने की चर्चा लंबे समय से चल रही है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह इस पर बयान देकर इस मुद्दे को हवा दी है, उससे लग रहा है कि विपक्षी एकता और राहुल गांधी के बढ़ते प्रभाव से परेशान भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक चाल चल सकती है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।