न्यायपालिका में जातिवाद पर ब्राह्मण जज का बड़ा बयान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय

 नई दिल्ली। न्यायपालिका एक ऐसा क्षेत्र है, जहां दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को मौका नहीं मिल पाया है. लोअर कोर्ट में वंचित समुदाय के जज दिख भी जाते हैं तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में एससी/एसटी और ओबीसी जजों का नहीं होना हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. वंचित समाज के तमाम वकील और एक्टिविस्ट इसका कारण उच्च न्यायालयों में फैले जातिवाद और परिवारवाद बताते हैं. यही आरोप इस बार इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने लगाया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रंगनाथ पांडे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र लिख कर यह मामला उठाया है. उन्होंने पत्र में लिखा है कि ‘न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं और जजों के परिवार से होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है. जस्टिस रंगनाथ पांडे ने अपने खत में लिखा है, ‘भारतीय संविधान भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित करता है तथा इसमें सबसे अहम न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं. यहां न्यायधीशों के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है.’

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज द्वारा पीएम मोदी को लिखी गई चिट्ठी

उन्होंने उस बहस को भी हवा दी है जिसमें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने के लिए प्रतियोगी परीक्षा को अनिवार्य करने की बात की जाती है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा है, ‘राजनीतिक-कार्यकर्ता का मूल्यांकन अपने कार्य के आधार पर ही चुनाव में जनता द्वारा किया जाता है. प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओँ की कसौटी पर उतरना होता है. अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीशों को भी प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्यता सिद्ध करके ही चयनित होने का अवसर मिलता है. लेकिन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति के लिए हमारे पास कोई निश्चित मापदंड नहीं है. प्रचलित कसैटी है तो केवल परिवारवाद और जातिवाद.’

एक जुलाई को लिखे अपने पत्र में जस्टिस पांडेय ने लिखा है कि उन्हें 34 वर्ष के सेवाकाल में बड़ी संख्या में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को देखने का अवसर मिला है जिनमें कई न्यायाधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान तक नहीं था. कई अधिवक्ताओं के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं है. कोलेजियम सदस्यों का पसंदीदा होने के आधार पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं. यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. अयोग्य न्यायाधीश होने के कारण किस प्रकार निष्पक्ष न्यायिक कार्य का निष्पादन होता होगा, यह स्वयं में विचारणीय प्रश्न है. अपने इस पत्र में न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री से राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग स्थापित करने का प्रयास करने की मांग की है.

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