नई दिल्ली। सरकार माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए फंड की कमी को दूर करने के लिए एक नया कोष बनाने जा रही है. इस कोष की राशि की समय सीमा वित्त वर्ष के साथ समाप्त नहीं होगी और जरूरत के मुताबिक कभी भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. इस आशय के प्रस्ताव को बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी मिल सकती है.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, इस कोष के लिए राशि आयकर पर लगने वाले एजुकेशन सेस से ली जाएगी. मंत्रालय शुरुआती तौर पर 3000 करोड़ रुपये का कोष तैयार करना चाहता है. इस कोष का इस्तेमाल स्कूलों और स्नातक स्तर के कालेजों में विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किया जा सकेगा. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक, यह फंड नॉन लैप्सेबल होगा. यानी वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद इसमें बची राशि को देश की समेकित निधि में वापस नहीं भेजा जाएगा. बल्कि सतत इस्तेमाल के लिए राशि उपलब्ध रहेगी. अभी तक मंत्रालय के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी जिसके तहत उच्च शिक्षा के विकास के लिए एजुकेशन सेस से मिलने वाली राशि को बचाए रखा जा सके. इसीलिए एक नॉन लैप्सेबल फंड बनाने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी.
इस तरह के कोष के गठन का प्रस्ताव संप्रग सरकार के समय में भी बना था. उस वक्त प्रारंभिक शिक्षा कोष की तर्ज पर इसके लिए माध्यमिक व उच्च शिक्षा कोष का नाम दिया गया था. 2007 में संप्रग सरकार ने देश में उच्च शिक्षा के विकास के लिए धन एकत्र करने के उद्देश्य से एक प्रतिशत का सेस लगाया था. लेकिन तब ऐसा कोई फंड नहीं होने के चलते जितनी राशि का इस्तेमाल नहीं हो पाता था वह समेकित निधि में चली जाती थी. लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद जब यह फंड अस्तित्व में आ जाएगा तो माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए चल रही स्कीमों के लिए यहां से वित्तीय मदद मुहैया कराई जा सकेगी.
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