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हिन्दू राष्ट्र की पोल खोलने वाली कहानी
आज मैं मित्र अनुज के गांव में गया, जहां मुस्लिम ना के बराबर रहते हैं, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी का तो नामोनिशान तक नही गांव में, मैंने गांव के नुक्कड़ पर ही अनुज के घर के बारे में गांव के बाहर ही खड़े एक व्यक्ति मुकेश से पूछा कि भाईसाहब अनुज जी के घर जाना है।
मुकेश ने कहा की कौन अनुज?
मैंने बोला अनुज जी ,,
उसने फिर बोला भाई अनुज कौन से वाले?
मैंने कहा वही अनुज जी, अब वो आदमी गर्म हो गया, कहने लगा, अनुज-अनुज कर रहे, पूरा नाम बताओ?
मैंने बोला पूरा नाम जरूरी है क्या?
कहने लगा जरूरी है, बिल्कुल जरूरी है।
यहां कई अनुज रहते हैं, एक अनुज जाटों में है, दो अनुज चमारों में हैं, एक अनुज मालियों में हैं, एक त्यागियों में अनुज और एक अनुज तिवारी।
मैंने कहा अनुज हिन्दू,,
अब उस आदमी का पारा सातवें आसमान पर था, कहने लगा हिन्दू-हिन्दू नही , नाम बताओ पूरा नाम क्या है?
मैंने कहा अनुज जबभी मुझसे बहस करता है तो कहता है कि मैं “हिन्दू” हूँ,, हिन्दू राष्ट्र बनाने में अपना अहम योगदान दे रहा हूँ।
तो मुझे लगा कि जो व्यक्ति हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए ततपर हो , प्रयासरत हो, अग्रणी हो, कम से कम उसकी पहचान हिन्दू से तो होगी ही।
अब वो आदमी चिल्लाने भर पर आ गया, कहने लगा जब उसका पूरा नाम पता हो तब उसके बारे में पूछना उससे पहले नही।
मैं तब से यही सोच रहा हूँ कि जो व्यक्ति दिन-रात हिन्दू-राष्ट्र हिन्दू-राष्ट्र का राग अलाप रहा है वो अपने गांव तक को हिन्दू बना नही पाया वो देश को क्या हिन्दू राष्ट्र बनाएगा?
गांवों में आज भी ना केवल मोहल्ले बल्कि शमसान तक जातिओ के हिसाब से बंटे हुए हैं।
ऐसा देश जहां “जन्म से मृत्यु” के बाद भी “जाति नही जाती” वहां हिन्दू राष्ट्र की कल्पना मात्र करना भी हास्यस्पद नही तो क्या हे।
जाति । जाति । जाति ।
Mp Singh जी की पोस्ट से साभार