एक फिल्म के विरोध को लेकर करणी सेना को आतंक मचाने की खुली छूट के बाद भाजपा शासित केंद्र और राज्य सरकारों पर सवाल उठने लगे हैं। सड़कों पर तलवार लहराते एक जाति विशेष के कुछ लोगों की तस्वीरें सामने आने के बाद बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि आखिर भाजपा की सरकार उनके आतंक की अनदेखी क्यों कर रही है और सरकार के साथ उस संगठन का क्या संबंध है.
असल में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से केंद्र और भाजपा शासित राज्य सरकार ने कुछ ख़ास तरह के गुटों और उनकी गतिविधियों को संरक्षण दिया है, जबकि दूसरे संगठनों के विरोध को कुचलने पर अमादा है. अपने विरोधी विचारधारा के लोगों के साथ भाजपा का रवैया जितना कठोर बना हुआ है, सहयोगी विचारधारा वालों को उतनी ही छूट हासिल है. करणी सेना के लोगों ने सिनेमाघरों पर हमले किए, गाड़ियों में आग लगाई, तोड़-फोड़ किया. संजय लीला भंसाली और दीपिका पादुकोण को लेकर आपत्तिजनक बयान दिए गए, लेकिन उनमें से किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. किसी पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.
इसके उलट चंद्रशेखर रावण, जिग्नेश मेवाणी, कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल जैसे युवाओं को कभी न कभी जेल की हवा खानी पड़ी है. चंद्रशेखर रावण पर तो रासुका तक लगा कर उनके करियर को बर्बाद करने की कोशिश की गई है. चंद्रशेखर आज़ाद रावण की भीम आर्मी ने दलितों के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ ज़रूर आवाज़ उठाई थी, आज वे कोर्ट से ज़मानत मिलने के बावजूद रासुका के कारण जेल में पड़े हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने यही कदम उन सवर्णों के ख़िलाफ़ नहीं उठाया, जिनकी वजह से चंद्रेशेखर रावण उर्फ शेखर कुमार को भीम आर्मी जैसे संगठन का गठन करना पड़ा. तमाम बातों के बीच सबसे निराशाजनक बात यह है कि देश के बुद्धिजीवियों के लगातार सवाल उठाए जाने के बाद भाजपा सरकार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।