पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मगहर दौरा काफी चर्चा में रहा. मगहर वह स्थान है, जहां संत कबीर ने अपने शरीर का त्याग किया था. प्रधानमंत्री का 2014 लोकसभा चुनाव से पहले बनारस जाने और वहां से चुनाव लड़ने और फिर 2019 चुनाव के पहले मगहर जाना उनकी राजनीति का एक हिस्सा है. लेकिन इस बीच एक सवाल अयोध्या को लेकर उठने लगा है. अयोध्या के लोग और हिन्दुत्व के समर्थक यह सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर बनारस और मगहर तक चले जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या क्यों नहीं आते?
यह सवाल जायज भी है, क्योंकि मोदी जी बनारस से लेकर मगहर तक चले गए. अब तक की अपनी चार सालों की सरकार में दुनिया भर में घूम-घूम कर मंदिर, मस्जिद और मज़ार पर जा रहे हैं लेकिन अयोध्या से उनकी बेरुखी रामभक्तों के समझ से परे है.
दरअसल, अयोध्या और भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक संबंध भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक पहचान दिलाने में अयोध्या और राम मंदिर की कितनी भूमिका का सच किसी से छिपा नहीं है. 1991 में जब कल्याण सिंह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की पहली बार सरकार बनी थी तो पूरा मंत्रिमंडल शपथ लेने के बाद अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए पहुंच गया था. लेकिन दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी बहुमत से केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों में सरकार बनाने और केंद्र में चार साल पूरा कर लेने के बावजूद अयोध्या से दूरी बनाए हुए हैं.
राम भक्तों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब प्रधानमंत्री अयोध्या के ठीक बगल में फैजाबाद तक पहुंच गए लेकिन 10 किलोमीटर दूर अयोध्या जाने से परहेज किया. इस बीच एक और वाकया हुआ, जब प्रधानमंत्री अयोध्या आ सकते थे, लेकिन उन्होंने अयोध्या से किनारा कर लिया. असल में जब अयोध्या से जनकपुर तक के लिए बस सेवा की शुरुआत होनी थी तो इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हरी झंडी दिखाना था. तब रामभक्तों और हिन्दुत्व समर्थकों को पूरी उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री का वनवास पूरा होगा और वो अयोध्या आएंगे, लेकिन तब भी मोदी अयोध्या नहीं आए बल्कि नेपाल चले गए. सवाल है कि आख़िर मोदी हरी झंडी तो अयोध्या से भी दिखा सकते थे.
प्रधानमंत्री के मगहर दौरे ने एक और सवाल खड़ा कर दिया है. कबीर घोर ईश्वर विरोधी थे. धर्म और उससे जुड़े कर्मकांडों के कबीर इतने विरोधी थे कि उन्होंने मोक्ष की धरती कहे जाने वाले वाराणसी को अंतिम वक्त में त्याग कर मगहर की उस धरती को चुना, जिसके बारे में कहा जाता था कि वहां मरने वाला इंसान अगले जन्म में जानवर पैदा होता है. तो वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि हिन्दुत्व और ईश्वर समर्थक की है. ऐसे में विपरीत विचारधारा वाले और राम को नकारने वाले संत के मजार पर जाने की बात मोदी समर्थकों को हजम नहीं हो रही है.
बीबीसी में इसी मुद्दे पर प्रकाशित एक लेख में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी 2019 के चुनाव के पहले अयोध्या जरूर जाएंगे. संभावना जताई जा रही है कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी हाई कोर्ट की तर्ज पर हो सकता है, जिसमें हाई कोर्ट दो तिहाई जमीन हिन्दू पक्ष को सौंप चुका है. अगर ऐसा होता है तो मोदी एक विजेता के तौर पर अयोध्या आ सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो यह 2019 चुनाव से पहले भाजपा का तुरुप का पत्ता होगा. क्योंकि तब मोदी की हिन्दू ह्रदय सम्राट की छवि मजबूत होकर उभरेगी. और तब यह भी संभव है कि वह वाराणसी की बजाय अयोध्या से चुनाव लड़ जाएं और यूपी में दरकती अपनी राजनीतिक संभावनाओं को थाम लें.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।