अपनी तलख टिप्पणियों और बेबाकी के लिए फेमस दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने हिजाब प्रकरण को लेकर अपना पक्ष रखा है। उन्होंने इसे लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। वे लिखते हैं–
“मेरे सामने दो चीज़ें हैं ! एक है उन लड़कियों की शिक्षा का अधिकार और दूसरी तरफ है कुछ लोगों की यूनिफार्म की समझ ! तो जो ये ऑथोरिटीज हैं, उनकी यूनिफार्म की समझ को तरजीह दूंगा या उन लड़कियों की शिक्षा के अधिकार को?
मैं ऐसा फैसला नहीं कर सकता, जिस फैसले से स्कूल – एक ऐसी जगह बन जाए, जिससे हिजाब पहनकर आने वाली लड़कियां – वो हो सकता है मुझे पिछड़ी हुई दिखाई पड़ें, कुंद ज़ेहन मालूम पड़ें, हो सकता है उन पे मौलवियों का फंदा हो, लेकिन वो स्कूल आ रही हैं, हिजाब पहन कर, वही सिलेबस पढ़ रही – उसमे से कोई फोटोग्राफर बनना चाहती थीं, कोई पायलट बनना चाहती थीं या कुछ और बनना चाहती थीं ! आपने क्या किया? आपने कहा की नहीं साहब, यूनिफार्म की मेरी समझ है! तुम इसको करोगी, तभी तुम पायलट बन सकती हो, वर्ना नहीं — ये किसी सभ्य समाज का तरीक़ा नहीं है!
असल सवाल क्या है? कि अगर मैं हिजाब पहन रही हूँ, तो उससे क्या जो तालीम का मक़सद है या स्कूल में बराबरी का सिद्धांत है, वो बराबरी का उसूल कहीं बाधित होता है? या किसी संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन होता है? — यूनिफार्म बराबरी स्थापित करने के लिए होती है, विविधता को समाप्त करने के लिए नहीं! तो क्या हिजाब ऐसी चीज़ है जिसे एकोमोडेट नहीं किया जा सकता?
लड़कियां क्या कह रही थीं? वो कह रही थीं कि आपका यूनिफार्म जिस रंग का है, उसी रंग का दुपट्टा होगा, उसी से हम अपने सर को ढांक लेंगे, उसी से अपनी गर्दन ढांक लेंगे, वो तो चेहरा ढांकने के लिए भी नहीं कह रही थीं.. अगर हम इतना भी एकोमोडेट नहीं कर सकते हैं, तो हम किस तरह के एकोमोडेटिव मुल्क हैं, उसके बारे में भी सोचना चाहिए !”
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