15 अगस्त तक टला अयोध्या का मुद्दा

अयोध्या मामले पर मध्यस्थता की प्रक्रिया के आदेश के बाद शुक्रवार को पहली बार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस एफएमआई खलीफुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 15 अगस्त तक का समय मांगा गया. इसके बाद कोर्ट ने मामले की मध्यस्थता का समय 15 अगस्त तक बढ़ा दिया.

इस दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘हम मामले में मध्यस्थता कहां तक पहुंची, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं. इसको गोपनीय रहने दिया जाए. इस दौरान वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा, ‘हम कोर्ट के बाहर बातचीत से समस्या के हल निकालने का समर्थन करते हैं.’ साथ ही मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की ओर से अनुवाद पर सवाल उठाते हुए कहा कि अनुवाद में कई गलतियां हैं. पांच वक्त नमाज और जुमा नमाज को लेकर गलतफहमी है.

इसके बाद कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकार को अपनी आपत्तियों को लिखित में दाखिल करने की इजाजतत दे दी. आपको बता दें कि अयोध्या मामले में अभी 13 हजार 500 पेज का अनुवाद किया जाना बाकी है. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच कर रही है. अब 15 अगस्त के बाद ही पता चलेगा कि मध्यस्थता प्रक्रिया ने क्या हासिल किया, क्योंकि अदालत ने आदेश दिया था कि प्रक्रिया पूरी तरह से गोपनीय होनी चाहिए.

इससे पहले 8 मार्च को अयोध्या की भूमि पर मालिकाना हक केे मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की इजाजत दी थी. मध्यस्थों की कमेटी में जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल हैं. इस कमेटी के चेयरमैन जस्टिस खलीफुल्ला हैं.

इस कमेटी को 8 हफ्तों में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था. कोर्ट ने कहा था कि मध्यस्थता पर कोई मीडिया रिपोर्टिंग नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की प्रक्रिया को फैजाबाद में करने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मध्यस्थता प्रक्रिया पूरी तरह से गोपनीय होनी चाहिए. कोई भी मीडिया, न तो प्रिंट और न ही इलेक्ट्रॉनिक को कार्यवाही की रिपोर्ट करनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने जो 8 हफ्ते की समय सीमा दी थी वो 3 मई को समाप्त हो गई.ऐसे में आज मालूम पड़ सकता है कि 8 हफ्ते की जो मध्यस्थता प्रक्रिया थी उसमें क्या हासिल हुआ. जस्टिस एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नाज़ेर की पीठ ने भी मध्यस्थता पैनल से चार सप्ताह के बाद कार्यवाही की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा था, उनका कहना था कि यह मुद्दा 1,500 वर्ग फुट भूमि का नहीं था, बल्कि धार्मिक भावनाओं का था.

सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या के विवादित स्थल को रामजन्मभूमि करार दिया था.

हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था. इस जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया था. जिसमें ने एक हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया जिसमें राम मंदिर बनना था. दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था. विवादित स्थल का तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया था. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई.

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आतिशी vs गौतम गंभीर: आरोपों पर संग्राम और मानहानि का नोटिस, जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली। दिल्ली में लोकसभा चुनाव की वोटिंग से महज 2 दिन पहले ईस्ट दिल्ली से AAP उम्मीदवार आतिशी ने बीजेपी के अपने प्रतिद्वंद्वी गौतम गंभीर पर अपने खिलाफ ‘अश्लील और अपमानजक पर्चे’ बंटवाने का आरोप लगाया है. BJP उम्मीदवार पर ओछी राजनीति का आरोप लगाते हुए आतिशी गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में भावुक हो गईं. जवाब में गंभीर ने AAP पर चुनाव जीतने के लिए ओछी हरकत का आरोप लगाते हुए आतिशी और अरविंद केजरीवाल को खुद पर लगे आरोपों को साबित करने की चुनौती दी है. देर रात गंभीर ने आतिशी और केजरीवाल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला भी दर्ज कराया है. चुनाव आयोग ने भी आतिशी के खिलाफ कथित तौर पर बांटे गए पर्चे का संज्ञान लिया है, वहीं दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस को नोटिस भेजकर 11 मई तक जवाब मांगा है कि मामले में क्या कार्रवाई हुई है. आइए विस्तार से समझते हैं कि पूरा विवाद क्या है और इसमें अबतक क्या-क्या हुआ है.

पर्चा पढ़ते वक्त भावुक हुईं आतिशी पूर्वी दिल्ली से ‘आप’ उम्मीदवार आतिशी गुरुवार को अपने खिलाफ ‘आपत्तिजनक और अपमानजनक’ टिप्पणियों से भरा एक पर्चा पढ़ते समय रो पड़ीं. प्रेस कॉन्फ्रेंस में आतिशी ने बीजेपी उम्मीदवार गौतम गंभीर पर पर्चे बंटवाने का आरोप लगाया. कहा कि बड़े दुख की बात है कि बीजेपी सत्ता के लालच में इतने निचले स्तर तक जा सकती है. आतिशी ने कहा जब गौतम गंभीर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ने आए थे तो मैंने उनका स्वागत किया था. नामांकन के समय जब वह मुझे मिले थे, तो मैंने कहा था- अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए. लेकिन गौतम गंभीर और उनकी पार्टी ने दिखा दिया है कि वह चुनाव में कितना नीचे गिर सकते हैं. आतिशी ने आरोप लगाया कि गौतम गंभीर और बीजेपी वालों ने पूर्वी दिल्ली के अलग-अलग अपार्टमेंट, विवेक विहार, कृष्णा विहार में ये पर्चे बंटवाए हैं. इस दौरान दिल्ली के डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया भी मौजूद थे.

आतिशी ने दावा किया कि बीजेपी के लोगों ने ये पर्चे अखबार डालनेवालों के जरिए बंटवाए हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने उनके चरित्र पर गंदे-गंदे आरोप लगाए हैं. उनके परिवार के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया है. आतिशी ने बीजेपी उम्मीदवार से सवाल किया कि अगर वह अपने खिलाफ चुनाव लड़नेवाली महिला उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव जीतने के लिए इस प्रकार के पर्चे बंटवा सकते हैं, तो चुनाव जीतने के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या करेंगे? उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है. हम लोग भी राजनीति में हैं. लेकिन इस प्रकार की घटिया राजनीति लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली घटना है. सिसोदिया ने कहा कि हर पार्टी में महिलाएं चुनाव लड़ती हैं. हमारी पार्टी से भी लड़ रही हैं. जब आपको दिखाई दे रहा है कि आप हार रहे हो तो एक महिला के खिलाफ इतने घटिया स्तर की राजनीति करने लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी उम्मीदवार गौतम गंभीर से सवाल पूछते हुए सिसोदिया ने कहा कि इस तरह की घटिया स्तर की राजनीति करके आप चुनाव जीतना चाहते हैं. दिल्ली की जनता 12 मई को बीजेपी को इसका जवाब जरूर देगी. सिसोदिया ने कहा कि जब गौतम गंभीर देश के लिए खेलते थे तो हम उनके लिए तालियां बजाते थे. इस तरह की राजनीति की जाएगी, ऐसी उम्मीद उनसे नहीं थी.

गंभीर ने दी चुनौती, भेजा मानहानि का नोटिस आतिशी की ओर से लगाए गए आरोपों का बीजेपी प्रत्याशी गौतम गंभीर ने जवाब देते हुए पलटवार भी किया है. उन्होंने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चुनौती देते हुए कहा कि अगर मुझ पर लगे आरोप सही साबित हुए, तो मैं चुनाव से तुरंत हट जाऊंगा या इस्तीफा दे दूंगा, लेकिन आरोप साबित नहीं हुए, तो क्या आप हमेशा के लिए राजनीति छोड़ेंगे? गंभीर ने पूछा- क्या उन्हें चुनौती मंजूर है? बीजेपी नेताओं ने आप के आरोपों को ओछी राजनीति का नया उदाहरण बताते हुए आरोप लगाया कि खुद आपवालों ने ही आपत्तिजनक पर्चे छपवाए और बंटवाए हैं. गौतम गंभीर ने इस मामले में आतिशी, मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ देर रात मानहानि का नोटिस भेजा. BJP कैंडिडेट ने लीगल नोटिस भेजकर अपने खिलाफ दिए बयानों को वापस लेने और माफी मांगने या फिर मानहानि केस का सामना करने को कहा है.

गौतम ने ट्वीट कर कहा, ‘अरविंद केजरीवाल, आपने एक महिला को अपमानित करने का बेहद घृणित कृत्य किया है. वह भी उसे, जो आप ही की साथी है. और ये सब किसलिए? सिर्फ चुनाव जीतने के लिए?’ एक अन्य ट्वीट में गंभीर ने लिखा, ‘अरविंद केजरीवाल और आतिशी, आप दोनों को मेरी चुनौती है. मैं घोषित करता हूं कि अगर यह साबित होता है कि ये सब मैंने किया है, तो मैं अभी अपनी उम्मीदवारी वापस ले लूंगा. लेकिन अगर ये साबित नहीं हुआ, तो क्या आप राजनीति छोड़ोगे?’ बाद में गौतम ने एक बयान जारी कर कहा कि आतिशी को लेकर गंदे पर्चे जारी करने का जो खेल खेला गया है, यह उन्हीं लोगों के लिए आत्मघाती साबित होगा. कहा- मेरे परिवार में 5 महिलाएं हैं. कभी ऐसी ओछी राजनीति नहीं करूंगा. आम आदमी पार्टी ऐसे ट्रिक्स खेलने की आदी है, इस बार मैं इनको बचकर नहीं जाने दूंगा. केजरीवाल और उनकी पार्टी को अदालत में जवाब देना होगा.’ ‘जिसके लिए पर्चे छपे, सिर्फ उन्हीं को मिले’ गंभीर ने कहा कि यह बड़ी अजीब बात है कि पर्चे आम आदमी पार्टी को लेकर छपते हैं और केवल उनको ही मिलते हैं और वे ही उन्हें मीडिया को बांटते हैं. बीजेपी नेता राजीव बब्बर ने कहा कि चुनावों से पहले विरोधियों पर ऐसे आरोप लगाने का आम आदमी पार्टी का शुरू से चरित्र रहा है. सवाल यह है कि आप नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले किसी को न तो वे पर्चे मिले और ना सोशल मीडिया पर किसी ने उन्हें शेयर किया.

पर्चे पर चुनाव आयोग ने दिए जांच के आदेश आतिशी से जुड़े विवादित पर्चे पर जिला चुनाव अधिकारी ने संज्ञान लिया है. उन्होंने लक्ष्मी नगर थाने के एसएचओ को निर्देश दिया है कि वह इस मामले की जांच करें और भारतीय चुनाव आयोग के निर्देशों के मुताबिक जरूरी कदम उठाएं. ईस्ट दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट और जिला चुनाव अधिकारी के महेश ने विवादित पर्चे की वॉट्सऐप पर सर्कुलेट की जा रही कॉपी संबंधित पुलिस अधिकारी को भिजवाते हुए यह आदेश जारी किया. हालांकि, चुनाव अधिकारी के आदेश में कहीं भी इस बाबत एफआईआर दर्ज करने का जिक्र नहीं है.

दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस को नोटिस भेज मांगा जवाब ईस्ट दिल्ली से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार आतिशी के खिलाफ छापे गए पम्फैलेट को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस को नोटिस देकर पूछा है कि इस मामले में उसने क्या ऐक्शन लिया गया है. आयोग की चीफ स्वाति जयहिंद ने ईस्ट दिल्ली के डीसीपी को नोटिस देकर पूछा है कि मीडिया से आयोग को पता चला है कि आतिशी के खिलाफ आपत्तिजनक पैम्फलेट बांटे गए हैं, क्या इस मामले में उसने एफआईआर दर्ज की है. स्वाति ने पुलिस से कहा है कि अगर एफआईआर नहीं दर्ज की गई है तो इसकी वजह क्या है? क्या दोषी की पहचान हुई है या वो पकड़ा गया है? आयोग ने पूछा है कि पुलिस ने अब तक क्या कदम उठाए हैं और मामले का स्टेटस अभी क्या है? आयोग ने सभी सवालों का जवाब 11 मई दोपहर 12 बजे तक देने को कहा है.

आयोग ने कहा है कि यह पैम्फलेट शर्मनाक, अपमानजनक और महिला विरोधी है. आतिशी के साथ डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया की मां के खिलाफ भी शर्मनाक और आपत्तिजनक बातें लिखी हैं. उन्होंने कहा कि यह महिला कैंडिडेट की मर्यादा पर हमला है.

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मोदी की सवर्णपरस्ती से पैदा हुये : लोकतंत्र के ढांचे के विस्फोटित होने लायक हालात!

सत्रहवीं लोकसभा का चुनाव समापन की ओर अग्रसर है. अब इसके सिर्फ दो चरण बाकी रह गए हैं. इस बीच पक्ष-विपक्ष बदजुबानी जंग पर उतारु हो आया है. इनमें मोदी जिस तरह की स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे पूरा देश स्तब्ध है. लेकिन इस मामले में विपक्ष, खासकर कांग्रेस भी दूध की धुली नहीं है, मोदी ने यह प्रमाणित करने का अभियान 8 मई से कुरुक्षेत्र से शुरू कर दिया है . इस सभा में उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद में अपने खिलाफ इस्तेमाल किये गए एक-एक अपशब्दों को गिनाते हुए कहा कि मुझे प्रधानमंत्री बनने के पहले गन्दी नाली का कीड़ा, गंगू तेली, पागल कुत्ता, भष्मासुर, बन्दर, वायरस, दाउद इब्राहीम जैसा, हिटलर, बदतमीज-नालायक, रैबीज पीड़ित, लहू पुरुष, असत्य का सौदागर,रावण, सांप, बिच्छू, मौत का सौदागर तक कहा गया. उन्होंने राहुल गाँधी पर तंज कसते हुए कहा कि वह प्रेम की भाषा बोलने का दावा करते हैं, लेकिन प्रधानमन्त्री बनने के बाद मुझे मोस्ट स्टूपिड पीएम, जवानों के खून का दलाल, गद्दाफी, हिटलर, मुसोलिनी, मानसिक तौर पर बीमार, नीच, मोदी के पिता-दादा का नाम नहीं मालूम, नालायक व नाकारा बेटा, निकम्मा , नशेड़ी और औरंगजेब जैसे नाम दिए गए. मोदी ने कहा कि सार्वजानिक मंचों से इनका उल्लेख करना उचित नहीं था,परन्तु अपने घर हरियाणा में पहुंचकर दर्द भरी दास्तान पहली बार सुना रहे हैं. अंत में उन्होंने जनता से अपील की कि उनपर लगातार जुल्म हो रहा है. इसे सोशल मीडिया के जरिये घर-घर पहुचाएं. बहरहाल मोदी अपने खिलाफ इस्तेमाल किये गए प्रायः हर अपशब्द को ही गिनाया है, पर, यह नहीं बताया कि उन्हें लोग सवर्णपरस्त और लोकतंत्र को संकटग्रस्त करनेवाला पीएम भी बताते रहे हैं. बहरहाल मोदी ने चुनाव का इमोशनल मुद्दा बनाने के लिए अपशब्दों की जो फेहरिश्त जनता के बीच रखी है, हो सकता है उससे सहमत होना कठिन हो. पर, उन्होंने अपनी सवर्णपरस्ती से जिस लोकतंत्र का हम महापर्व मना रहे है तथा जिस लोकतंत्र पर हमारे गर्व का अंत नहीं है,उसे संकटग्रस्त किया है, इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती. इसे समझने के लिए संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर द्वारा लोकतंत्र की सलामती के लिए सुझाये गए मन्त्र को एक बार फिर से समझ लेना होगा.

बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर ने राष्ट्र को संविधान सौंपने के एक दिन पूर्व 25 नवम्बर, 1949 को संसद के सेन्ट्रल हॉल से लोकतंत्र को बचाए रखने की शर्त से अवगत कराते हुए चेतावनी के स्वर में कहा था,’26 जनवरी,1950 से हमलोग एक विपरीत जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं. राजनीति के क्षेत्र में हमलोग समानता का भोग करेंगे, किन्तु आर्थिक और सामाजिक जीवन में हमें मिलेगी भीषण असमानता. राजनीति के क्षेत्र में हमलोग एक वोट एवं प्रत्येक वोट के एक ही मूल्य की स्वीकृति देने जा रहे हैं..हमलोगों को निकटम भविष्य के मध्य अवश्य ही इस विपरीतता को दूर कर लेना होगा. अन्यथा यह असमानता कायम रही तो विषमता से पीड़ित जनता लोकतंत्र के उस ढाँचे को विस्फोटित कर सकती है, जिसे संविधान निर्मात्री सभा ने इतनी मेहनत से बनाया है’. तो क्या संविधान निर्माता की इस चेतावनी से यह स्पष्ट नहीं है कि भारतीय लोकतंत्र के सलामती की सबसे अनिवार्य शर्त थी, आर्थिक और सामाजिक विषमता का खात्मा ! चूँकि सारी दुनिया में ही शासकों द्वारा शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक-शैक्षिक-धार्मिक) का लोगों के विभिन्न तबकों और उनकी महिलाओं के मध्य असमान बंटवारा कराकर ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या, आर्थिक और सामाजिक विषमता की सृष्टि की जाती रही है, इसलिए इसके निवारण के लिए विभिन्न सामाजिक समूहों के मध्य संख्यानुपात में शक्ति के स्रोतों से बंटवारे से भिन्न कोई उपाय नहीं रहा . इस बात को दृष्टिगत रखकर ही लोकतान्त्रिक रूप से परिपक्व अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, और नए-नवेले दक्षिण अफ्रीका इत्यादि ने शक्ति –वितरण में इस सिद्धांत का अनुसरण किया. इसके फलस्वरूप इन देशों में विभिन्न वंचित नस्लीय समूहों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों इत्यादि को शासन-प्रशासन सहित अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में वाजिब हिस्सेदारी मिली. इससे वहां आर्थिक और सामाजिक विषमताजन्य विछिन्नता-विद्वेष, अशिक्षा-गरीबी-कुपोषण इत्यादि का खात्मा और लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण हुआ. लेकिन आजाद भारत के शासकों ने इसकी अनदेखी कर दिया. फलतः कई सौ जिले नक्सलवाद/माओवाद की चपेट में आ गए. इस स्थिति की भयावह घोषणा 6 मार्च ,2010 को माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ़ किशन जी ने इन शब्दों में की–‘हम 2050 के बहुत पहले भारत में तख्ता पलटकर रख देंगे. हमारे पास यह लक्ष्य हासिल करने के लिए पूरी फ़ौज है.’ जाहिर है जिस फ़ौज के बूते उन्होंने लोकतंत्र के मंदिर पर कब्जा जमाने की धमकी दी थी, वह और कोई नहीं शक्ति के स्रोतों से वंचित लोगों की जमात थी. उनकी उस चेतवानी के बाद उम्मीद बंधी थी कि बारूद की ढेर पर खड़े विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सलामती को ध्यान में रखकर देश के हुक्मरान शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगे, ताकि उस आर्थिक और सामाजिक विषमता का खात्मा हो सके , जो लोकतंत्र की सलामती की सबसे अनिवार्य शर्त है. इस लिहाज से जब हम मोदी राज का आंकलन करते हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं.कारण मोदी राज में आर्थिक और सामाजिक विषमता को जिस बिंदु पर पहुंचा दिया गया है, उसका विस्फोटक परिणाम कभी भी सामने आ सकता है.

बहरहाल कल तक देश के प्रधानमंत्री से लेकर गृह-मंत्री और असंख्य बुद्धिजीवी जिस माओंवाद/नक्सलवाद को देश की सबसे बड़ी समस्या बताते रहे,उसके प्रति अज्ञात कारणों से मोदी राज में उतनी चिंता जाहिर नहीं की गयी,जबकि सचाई है कि मोदी राज में धन-दौलत के अत्यंत असमान बंटवारे के कारण विषमता की समस्या पहले से और ज्यादा गंभीर रूप अख्तियार करती गयी. मोदी राज में समय-समय पर माओवादियों द्वारा बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया जाता रहा, पर, सरकार हमेशा इसे हलके में लेते हुए माओवाद का सर कुचल देने की घोषणा करती रही. उधर बीच-बीच में अख़बार यह चेतावनी देते रहे हैं,‘ आर्थिक गैर-बराबरी देश में उथल-पुथल को जन्म देती रही है इसलिए धन-दौलत का न्यायपूर्ण बंटवारा अब प्राथमिक महत्त्व का विषय बन गया.’ किन्तु मोदी सरकार इस सब बातों से आँखे मूंदे अपनी खास अंदाज में अपनी अर्थनीति आगे बढाती रही. जिसका भयावह रूप जनवरी 2018 में दावोस में जारी ऑक्सफाम की रिपोर्ट में सामने आ गई . उस रिपोर्ट से यह तथ्य उभरकर आया कि देश की 73% संपदा देश के केवल 1 प्रतिशत लोगों के हाथ में सिमट गयी है. इन 1 प्रतिशत लोगों की सपत्ति पिछले एक साल में 21 लाख करोड़ बढ़ी है.

1% लोगों के हाथ 73% संपत्ति जाना कितनी बड़ी घटना थी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के मुताबिक टॉप की 1% आबादी के पास 2000 में 37% हुआ करती थी, जो 2005 में बढ़कर 42%, 2010 में 48%, 2012 में 52% तथा 2016 मे 58% हो गयी। इससे जाहिर है कि 2000-2016 अर्थात 16 सालों में 1% वालों की दौलत में कुल इजाफा 21% का हुआ, जबकि 2016 के 58 के मुक़ाबले 2017 मे 73% पहुचने का मतलब हुआ कि एक वर्ष में उनकी दौलत में सीधे 15% की बढ़ोतरी हो गयी। है न यह आश्चर्य! और यह आश्चर्य इसलिए घटित हुआ क्योंकि भाजपा सबसे बड़ी सवर्णपरस्त पार्टी है। इस सवर्णपरस्ती के चलते ही उसने मण्डल के विरुद्ध कमंडल उठाकर देश की हजारों करोड़ की सम्पदा और असंख्य लोगों की प्राणहानि करा दिया. सवर्णपरस्ती के चलते ही स्वयंसेवी प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चरम आंबेडकर विरोधी अरुण शौरी को साथ ले, विनिवेश मंत्रालय खोलकर उन लाभजनक सरकारी उपक्रमों औने-पौने दामों में बेचने का एक तरह से अभियान छेड़ा, जहां आरक्षित वर्ग के लोग जॉब पाते थे. लेकिन मण्डल के बाद सवर्णों के हित में आरक्षण को कागजों तक सिमटाने का जो काम दोनों सवर्णवादी दलों- कांग्रेस और भाजपा- के नरसिंह राव ,वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने दो दशकों में किया, उतना मोदी ने तीन सालों में कर दिया है। मोदी की अतिसवर्णपरस्त नीतियों, जिसे प्रगतिशील बुद्धिजीवी कारपोरेटपरस्त नीतियां बताकर बहुजनों को भ्रमित करते रहते हैं, के कारण ही 1% वालों की दौलत में 1 साल के मध्य ही 15% वृद्धि का त्रासदपूर्ण चमत्कार घटित हो गया है

बहरहाल जनवरी 2018 में आई ऑक्सफाम की रिपोर्ट से टॉप के 1% वालों की दौलत को लेकर तो खूब चर्चा हुई.पर, यदि टॉप की 10% आबादी वालों की दौलत का आंकड़ा मिलता तो पता चलता विषमता की स्थिति और बदतर हुई है । लेकिन तब टॉप के 10% वालों की दौलत का चर्चा न होने का कारण यह रहा कि ऑक्सफाम की उस रिपोर्ट में शायद अलग से टॉप की 10% आबादी की दौलत का आकड़ा सामने नहीं आया था. पर, यदि हम क्रेडिट सुइसे की 2015 वाली रिपोर्ट, जिसमे यह बताया गया था कि भारत के टॉप की 10% आबादी के पास 81% दौलत है तथा नीचे की 50% आबादी सिर्फ 4.1% धन-संपदा पर गुजर-बसर करने के लिए मजबूर है, के आधार पर आंकलन करें तो शर्तिया तौर पर 10 % टॉप वालों की दौलत 90% से ज्यादे का आकड़ा पार कर गयी होगी। भारत के शासक इच्छाकृत रूप से जाति जनगणना इसीलिए नहीं कराते कि सवर्णों की शक्ति के स्रोतों पर 80-90% कब्जे की कलई खुल जाएगी। बहरहाल हमें यह मानकर चलना चाहिए कि 90% देश की दौलत के इन 10% अर्थात 13 करोड़ मालिकों में से 99.9% उस जन्मजात विशेषाधिकारयुक्त तबकों अर्थात सवर्ण समुदायों से होंगे जिनका सदियों से शक्ति के प्रायः समस्त स्रोतों पर 90% से ज्यादा कब्जा रहा है।

इसके भयावह परिणामों से चिंतित ऑक्सफैम इंडिया की सीईओ निशा अग्रवाल ने तब रिपोर्ट पर अपनी टिपण्णी में कहा था,’ अरबपतियों की बढती संख्या अच्छी अर्थव्यवस्था का नहीं, ख़राब होती अर्थव्यवस्था का संकेत है. जो लोग कठिन परिश्रम करके देश के लिए भोजन उगा रहे हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहे हैं, फैक्टरियों में काम कर रहे हैं , उन्हें अपने बच्चों की फीस भरने, दवा खरीदने और दो वक्त का खाना जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. अमीर- गरीब के बीच बढती खाई लोकतंत्र को खोखला कर रही है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है।’ इन्ही कारणों से 2015 में क्रेडिट सुइसे की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद बहुत से अखबारों ने लिखा था -‘गैर – बराबरी अक्सर समाज में उथल-पुथल की वजह बनती है. सरकार और सियासी पार्टियों को इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए.संसाधनों और धन का न्यायपूर्ण बंटवारा कैसे हो , यह सवाल अब प्राथमिक महत्व का हो गया है.’

किन्तु भीषण आर्थिक विषमता पर आई ढेरों चेतावनियों से मोदी की सेहत पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. कोई और शासक होता तो कम से कम चुनावी वर्ष में दुनिया की विशालतम वंचित आबादी के रोष से बचने के लिए उनके पक्ष में कुछ बड़े कदम जरुर उठाता .पर, चूँकि संघ प्रशिक्षित मोदी का एक ही लक्ष्य रहा है सवर्णों को और शक्तिसंपन्न बनाना, लिहाजा प्रधानमंत्री के रूप उनकी पारी के स्लॉग ओवर में सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने, 13 प्वाइंट रोस्टर के जरिये विश्वविद्यालयों में शिक्षक भर्ती सहित तमाम क्षेत्रों में सवर्णों को पहला अवसर प्रदान करने सहित 10 लाख आदिवासी परिवारों को जंगल से खदेड़ने जैसा अमानवीय निर्णय ले लिया गया. इससे विषमता का नयी ऊंचाई छूना तय है. बहरहाल जिस तरह मोदी के स्लॉग ओवर में सवर्ण आरक्षण और 13 प्वाइंट रोस्टर के साथ दस लाख आदिवासी परिवारों को जंगल से खदेड़ने का दु:साहसिक फैसला लिया गया है, उससे तय है कि यदि सत्ता में उनकी दुबारा वापसी होती है, तो वे सवर्णपरस्ती के हाथों मजबूर होकर इस देश के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में ऐसे-ऐसे फैसले लेना शुरू करेंगे, जिसके फलस्वरूप आर्थिक और सामाजिक विषमता उस बिंदु पर पंहुच जाएगी, जहाँ से लोकतंत्र के ढांचे का विस्फोटित होना महज कुछ अन्तराल का विषय रह जायेगा.

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क्या सोनभद्र के दलित-आदिवासी सपा-बसपा और भाजपा को वोट देंगे?

सोनभद्र उत्तर प्रदेश का क्षेत्रफल में सबसे बड़ा जिला है. यह एक आदिवासी-दलित बाहुल्य जिला है. इस जिले की कुल आबादी 18.62 लाख है जिस में से 4.21 लाख दलित और 3.85 लाख आदिवासी हैं जोकि कुल आबादी का लगभग 44% है. यह जिला कैमूर की पहाड़ियों में बसा है. इसका 3.26 हेक्टेयर भाग जंगल और पहाड़ से आच्छादित है. इसकी सीमा बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से लगती है.

यद्यपि सोनभद्र वन उपज और खनिज संपदा से भरपूर है और यह जिला उत्तर प्रदेश को सब से अधिक राजस्व देता है परन्तु विकास की दृष्टि से यह जिला नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसारर देश के 15 अति पिछड़े तथा उत्तर प्रदेश के 4 अति पिछड़े जिलों में शामिल है. यहाँ पर अधितर दलित आदिवासी भूमिहीन हैं और उनके जीवन का स्तर बहुत निम्न है. अधिकतर महिलाएं और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. लोगों के लिए पीने का सुरक्षित उपलब्ध नहीं है और गर्मियों में पानी की अति कमी हो जाती है. विद्यालयों की कमी के कारण सामान्य जातियों, दलितों और आदिवासियों का शिक्षा दर उत्तर प्रदेश की दर से काफी कम है. जिले में स्वास्थ्य सुविधायों की बहुत कमी एवं खस्ता हालत है. सिचाई के साधनों की अत्यंत कमी के कारण कृषि अति पिछड़ी है. स्थानीय मार्किट उपलब्ध न होने के कारण किसानों को अरहर, चना तथा टमाटर आदि को अति कम दर पर बेचना पड़ता है. इन कारणों से सामान्य जातियों के साथ साथ दलित एवं आदिवासी जातियां सामाजिक तथा आर्थिक तौर पर बहुत पिछड़ी हुयी हैं.

जैसा कि सर्वविदित है कि ग्रामीण परिवेश में भूमि का बहुत महत्त्व होता है. सोनभद्र जिले की कुल आबादी (18.62 लाख) का तीन चौथाई भाग (15.48 लाख) ग्रामीण क्षेत्र में रहता है. अतःइन सबके लिए भूमि का स्वामित्व अति महत्वपूर्ण है. ग्रामीण लोगों में बहुत कम परिवारों के पास पुश्तैनी ज़मीन है. अधिकतर लोग जंगल की ज़मीन पर बसे हैं परन्तु उस पर उनका मालिकाना हक़ नहीं है. इसी लिए जंगल की ज़मीन पर बसे लोगों को स्थायित्व प्रदान करने के उद्देश से 2006 में वनाधिकार अधिनयम बनाया गया था जिसके अनुसार जंगल में रहने वाले आदिवासियों एवं वनवासियों को उनके कब्ज़े वाली ज़मीन का मालिकाना हक़ अधिकार के रूप में दिया जाना था. इस हेतु निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार प्रत्येक परिवार का ज़मीन का दावा तैयार करके ग्राम वनाधिकार समिति की जाँच एवं संस्तुति के बाद राजस्व विभाग को भेजा जाना था जहाँ उसका सत्यापन कर दावे को स्वीकृत किया जाना था जिससे उन्हें उक्त भूमि पर मालिकाना हक़ प्राप्त हो जाना था.

वनाधिकार अधिनयम 2008 में लागू हुआ, उस समय उत्तर प्रदेश में मायावती की बहुत मज़बूत सरकार थी. उसी वर्ष इस कानून के अंतर्गत सोनभद्र जिले में वनाधिकार के 65,000 दावे तैयार हुए परन्तु 2009 में इनमे से 53,000 अर्थात 81% दावे ख़ारिज कर दिए गये. मायावती सरकार की इस कारवाही के खिलाफ आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने अपने संगठन आदिवासी-वनवासी महासभा के माध्यम से आवाज़ उठाई परन्तु मायावती सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. अंतत मजबूर हो कर हमे इलाहाबाद हाई कोर्ट की शरण में जाना पड़ा. हाई कोर्ट ने हमारे अनुरोध को स्वीकार करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को सभी दावों की पुनः सुनवाई करने का आदेश अगस्त 2013 को दिया परन्तु तब तक मायवती की सरकार जा चुकी थी और उस का स्थान अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने ले लिया था. हम लोगों ने 5 साल तक अखिलेश सरकार से इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्रवाही करने का अनुरोध किया परन्तु उन्होंने हमारी एक भी नहीं सुनी और एक भी दावेका निस्तारण नहीं किया. इससे स्पष्ट है कि किस प्रकार मायावती और अखिलेश की सरकार ने सोनभद्र के दलितों और आदिवासियों को बेरहमी से भूमि के अधिकार से वंचित रखा.

आइये वनाधिकार कानून को लागू करने के बारे में अब ज़रा भाजपा की योगी सरकार की भूमिका को भी देख लिया जाए. यह सर्विदित है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश के 2017 विधान सभा चुनाव में अपने संकल्प पत्र में लिखा था कि यदि उसकी सरकार बनेगी तो ज़मीन के सभी अवैध कब्जे (ग्राम सभा तथा वनभूमि ) खाली कराए जायेंगे. मार्च 2017 में सरकार बनने पर जोगी ने इस पर तुरंत कार्रवाही शुरू कर दी और इसके अनुपालन में ग्राम समाज की भूमि तथा जंगल की ज़मीन से उन लोगों को बेदखल किया जाने लगा जिन का ज़मीन पर कब्ज़ा तो था परन्तु उनका पट्टा उनके नाम नहीं था. इस आदेश के अनुसार वनाधिकार के ख़ारिज हुए 53,000 दावेदारों को भी बेदखल किया जाना था. जोगी सरकार की बेदखली की इस कार्रवाही के खिलाफ हम लोगों को फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट की शरण में जाना पड़ा. हम लोगों ने बेदखली की कार्रवाही को रोकने तथा सभी दावों के पुनर परीक्षण का अनुरोध किया. इलाहबाद हाई कोर्ट ने हमारे अनुरोध पर बेदखली की कार्रवाही पर रोक लगाने, सभी दावेदारों को छुटा हुआ दावा दाखिल करने तथा पुराने दावों पर अपील करने के लिए एक महीने का समय दिया तथा सरकार को तीन महीने में सभी दावों पुनः सुनवाई करके निस्तारण करने का आदेश दिया. अब उक्त अवधि पूर्ण हो चुकी है परन्तु सरकार द्वारा इस संबंध में कोई भी कार्रवाही नहीं की गयी है.

इसी बीच माह फरवरी में आरएसएस की एक संस्था वाईल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया द्वारा सुप्रीम कोर्ट में वनाधिकार कानून की वैधता को चुनौती दी गयी तथा वनाधिकार के अंतर्गत निरस्त किये गये दावों से जुडी ज़मीन को खाली करवाने हेतु सभी राज्य सरकारों को आदेशित करने का अनुरोध किया गया. मोदी सरकार ने इसमें आदिवासियों/वनवासियों का पक्ष नहीं रखा. परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई तक ख़ारिज हुए सभी दावों की ज़मीन खाली कराने का आदेश पारित कर दिया. इससे प्रभावित होने वाले परिवारों की संख्या 20 लाख है जिसमे सोनभद्र जिले के 65,000 परिवार हैं. इस आदेश के विरुद्ध हम लोगों ने आदिवासी वनवासी महासभा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट फिर गुहार लगाई जिसमें हम लोगों ने बेदखली पर अपने आदेश पर रोक तथा सभी राज्यों को सभी दावों का पुनर्परीक्षण करने का अनुरोध किया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हमारे अनुरोध को स्वीकार करते हुए 10 जुलाई तक बेदखली पर रोक तथा सभी राज्यों को सभी दावों की पुन: सुनवाई का आदेश दिया है जिस पर चुनाव उपरान्त कारवाही की जानी है.

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि किस तह पहले मायावती और फिर अखिलेश यादव की सरकार ने दलितों, आदिवासियों और वनवासियों को वनाधिकार कानून के अंतर्गत भूमि के अधिकार से वन्चित किया है और भाजपा सरकार में उन पर बेदखली की तलवार लटकी हुयी है. यह विचारणीय है कि यदि मायावती और अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में इन लोगों के दावों का विचरण कर उन्हें भूमि का अधिकार दे दिया होता तो आज उनकी स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती. इसी प्रकार यदि मायावती ने अपने शासन काल में भूमिहीनों को ग्रामसभा की ज़मीन जो आज भी दबंगों के कब्जे में है, के पट्टे कर दिए होते तो उनकी आर्थिक हालत कितनी बदल चुकी होती. अतः यह विचारणीय है कि क्या मायावती, अखिलेश और भाजपा सरकार द्वारा दलितों,आदिवासियों और वनवासियों को भूमि के अधिकार से वंचित करने की इस कार्रवाही के सम्मुख वे लोग इस चुनाव में उन्हें वोट देंगे?

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भारत को मिल सकता है दूसरा दलित जज

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने मोदी सरकार को जजों की प्रोन्नति के लिए दो जजों के नाम भेजे हैं जिसमें एक जिसमें एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल हैं जो 2025 में भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त कर सकते हैं. इनमें दो अन्य नामों को दोहराया गया है.

कॉलेजियम ने बॉंबे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्णा गवई और हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश सूर्या कांत का नाम बुधवार को पदोन्नति के लिए आगे बढ़ाया है. और सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की है. अगर मोदी सरकार इस प्रस्तावना को स्वीकार कर लेती है तो दोनों जज देश के मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं.

दिप्रिंट ने इन दोनों जजों के नामांकन किए जाने की बात जनवरी में प्रकाशित की थी.अगर केंद्र न्यायाधीश गवई की नियुक्ति को हरी झंडी दे देता है तो वह 11 मई 2010 के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पहले दलित जज होंगे. बता दें कि मुख्य न्यायधीश बालाकृष्णन 11 मई 2010 को सेवानिवृत्त हुए ते उसके बाद अभी तक भारत के टॉप कोर्ट में कोई दलित जज नहीं हुआ है. बालाकृष्णन के बाद गवई ही सीजेआई के रूप में 13 मई 2025 को शपथ लेंगे.

गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद कांत मुख्य न्यायाधीश की कतार में अग्रणी होंगे.

नरेंद्र मोदी सरकार ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से गुजारिश की है कि हाशिए पर मौजूद तबके को उच्चस्तरीय न्यायाधीशों की श्रृंखला में शामिल किए जाएं. बता दें पिछली सरकारें भी इसपर बात करती रहीं हैं.

गुरुवार को कोलेजियम ने एकबार फिर से झारखंड हाई कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और उनके गुवाहटी उच्च न्यायालय के सहयोगी ए.एस बोपन्ना के लिए भी सिफारिश की है. केंद्र ने इन दोनों का नाम पिछले महीने कॉलेजियम को इनदोनों जजों की सिफारिश की थी.

वरिष्ठता और हाशिए पर पड़े लोगों का प्रतिनिधित्व गवई की सिफारिश करने वाला कॉलेजियम जिसमें शीर्ष अदालत के पांच सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल हैं. उन्होंने यह स्वीकार किया कि उनकी वरिष्ठता भारत के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच क्रम संख्या 8 पर हैं. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की शीर्ष अदालत ने एक दशक से दलित न्यायाधीश नहीं था.

कॉलेजियम का प्रस्ताव जो सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध है उसमें लिखा है कि उनकी सिफारिश का किसी भी तरह से गलत अर्थ निकाला जाना चाहिए कि बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश (जिनमें से दो मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा कर रहे हैं) न्यायमूर्ति गवई की तुलना में कम उपयुक्त हैं.

कॉलेजियम के प्रस्ताव में कहा गया है कि उनकी नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच में लगभग एक दशक के बाद अनुसूचित जाति वर्ग से ताल्लुख रखने वाले जज होंगे.

सूर्यकांत, जो वरीयता की क्रम संख्या 11 पर हैं वो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व करेंगे यह उनका मूल न्यायालय है, जो अभी सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के लिए जिम्मेदार हैं

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 27 न्यायाधीश हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृत संख्या 31 है. यदि सभी चार सिफारिशों को मंजूरी दे दी जाती है. तो न्यायालय के पदों कि संख्या पूर्ण होगी.

दो न्यायाधीश गवई ने 2017 में तब सुर्खियां बटोरीं. जब वह सीबीआई जज बीएच लोया के परिवार द्वारा किए गए बेईमानी के आरोपों का खंडन किया था. लोया, जिनकी कथित तौर पर 2014 में नागपुर में एक शादी में शामिल होने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी. उस समय, न्यायाधीश लोया सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ सीबीआई के मामले की सुनवाई कर रहे थे.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इस मामले में मुक्त कर दिया गया है.

कारवां पत्रिका को दिए साक्षात्कार में जब जज लोया के परिवार ने उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर सवाल उठाया तब शादी में मौजूद जज गवई ने भी आरोपों को खारिज कर दिया है.

परिवार ने कहा था कि लोया को एक ऑटोरिक्शा में अस्पताल ले जाया गया था और उनके कपड़े पर खून थे इन दोनों दावों को जज गवई द्वारा इनकार कर दिया गया.

सूर्यकांत को सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने के लिए कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी देने में बहुत समय लिया था.

सूत्रों के अनुसार इन बातों के अलावा सरकार परामर्शदाता न्यायाधीशों में से एक वर्तमान राष्ट्रीय हरित अधिकरण अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल द्वारा भेजी गई नोट और शिकायत पर गौर करना चाहती थी.

एक सरकारी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, जब से एक विस्तृत जांच हुई तब से सरकार कोई मौका नहीं लेना चाहती थी. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जस्टिस गोयल ने खुद एक स्वतंत्र जांच के लिए कहा था.

सूत्र ने कहा, ‘न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्यों के कुछ संपत्ति सौदों का विवरण था, जिसके बारे में न्यायमूर्ति गोयल ने शिकायत दर्ज की थी.

सूत्र ने यह भी कहा कि ‘शिकायत में किए गए दावे निराधार पाए गए और यह तभी हुआ जब हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई’.

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अलवर गैंगरेप केसः दलितों का गुस्सा बढ़ा, चंद्रशेखर भी पहुंचे

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राजस्थान के अलवर जिले में दलित युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले ने तूल पकड़ लिया है. इसको लेकर दलित समुदाय का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर ने दलित युवती के साथ गैंगरेप करने वाले आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार करने की मांग की है. उन्होंने मामले की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की भी मांग भी उठाई है. वहीं, इस मामले में पुलिस ने अब तक पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.

इस मामले में गिरफ्तार चौथे आरोपी की पहचान महेश गुर्जर और पांचवें आरोपी की पहचान हंसराज गुर्जर के रूप में हुई है. इससे पहले पुलिस ने मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया था. इन आरोपियों के नाम इन्द्राज गुर्जर, अशोक गुर्जर और मुकेश गुर्जर हैं. इसके अलावा मामले में आरोपी छोटे लाल गुर्जर और हंसराज गुर्जर की तलाश जारी है. पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग ने बताया कि अलवर गैंग रेप मामले में सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की कोशिश की जा रही है.

आपको बता दें कि अलवर जिले के थानागाजी थाने में 2 मई को दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज किया गया था. उधर, अलवर पहुंचे भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद का कहना है कि अलवर जिले के थानागाजी में घटित एक दलित युवती के साथ गैंगरेप का मामला बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है. आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर दोषियों को कड़ी सजा दी जाए.

चंद्रशेखर ने कहा कि राजस्थान के अलवर जिले में ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं, लेकिन अधिकारी लापरवाह नजर आते हैं. उन्होंने अधिकारियों के रवैये पर आक्रोश जताते हुए कहा कि जो काम पुलिस अधिकारियों को करना चाहिए वह काम पीड़ितों ने किया है. आरोपियों के नाम पते मोबाइल सब पीड़ित पक्ष की ओर से पुलिस को दिया गया है.

चंद्रशेखर ने अलवर के पुलिस अधीक्षक का जिक्र करते हुए कहा कि आरोपी पक्ष के लोग पुलिस अधीक्षक अलवर को फोन करते हैं और धमकाते हैं. और पुलिस अधीक्षक अपने आप को असहाय बताते हैं. ऐसे पुलिस अधीक्षक का स्थान जेल में है और उन्हें जेल मिलनी चाहिए. रावण ने आरोप लगाया कि पैसे के लालच में ऐसे पुलिस अफसरों ने अपना जमीर बेच दिया है. रावण ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार शीघ्र आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करेगी तो वे राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को उठाकर आंदोलन करेंगे.

दूसरी ओर महिला विकास एवं समाज अधिकारिता मंत्री ममता भूपेश ने थानागाजी के पीड़ित परिवार से मुलाकात की. संपूर्ण घटना की जानकारी भी ली. बाद में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि उनकी प्राथमिकता सबसे पहले पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना है और सरकार पीड़ित परिवार के साथ है. उन्होंने बताया कि सरकार ने इस मामले में तुरंत एक्शन लिया और एसपी को एपीओ कर दिया जबकि थानेदार को सस्पेंड कर दिया गया है.

राज्य की मंत्री ममता भूपेश ने कहा कि यह राजनीति करने का समय नहीं है और जो लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें धरना प्रदर्शन नहीं करना चाहिए. सरकार की भी मंशा साफ है, जो भी इस मामले में दोषी हैं. उन्हें बख्शा नहीं जाएगा. 3 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं. शेष 2 लोगों की गिरफ्तारी बाकी है.

श्रम मंत्री टीकाराम जूली ने कहा कि इस मामले में पुलिस की लापरवाही और मिली भगत सामने आई है. जांच की जा रही है. उनकी कॉल डिटेल निकलवाकर इन के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि वे इस मामले में मुख्यमंत्री से बात करेंगे और दोषियों के खिलाफ जो भी सख्त से सख्त कार्रवाई होगी, वह की जाएगी. राजस्थान सरकार ने पीड़ित परिवार को फौरन आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई है. मंत्री ने बताया कि दो-तीन दिन में बाकी दो तीन आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

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विपक्ष ने शुरू की नतीजों के बाद की तैयारियां, होगा महाजुटान

नई दिल्ली। 17वीं लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण तक पहुंचने के साथ ही तमाम दल चुनावी नतीजों के बाद की रणनीति बनाने में जुट गए हैं. खासकर विपक्षी दल चुनाव बाद पैदा होने वाली स्थिति को लेकर ज्यादा सजग है. इसको देखते हुए किस स्थिति में क्या हो, यह तय करने के लिए विपक्षी दलों का महाजुटान होने जा रहा है. वोटों की गिनती के दो दिन पहले पहले 21 मई को ऐसी बैठक होने की खबर आ रही है. बैठक राजधानी दिल्ली में होगी.

बैठक में सभी विपक्षी दलों के प्रतिनिधि बैठकर चुनाव के बाद की परिस्थितियों पर चर्चा करेंगे. इस बैठक के संबंध में विपक्षी दलों के बीच से ही प्रस्ताव आना शुरू हो गया है. सीपीआई के सांसद डी राजा के मुताबिक विपक्षी दल चुनाव खत्म होने के बाद अनौपचारिक रूप से बैठकर चुनाव के बाद की संभावित परिस्थितियों को लेकर चर्चा करेंगे जो कि एक सामान्य बात है. यह कोई औपचारिक बैठक नहीं है.

माना जा रहा है कि चुनाव खत्म होने के बाद सभी विपक्षी दल अपनी सीटों के आंकलन के साथ मिलेंगे, जिसमें यह तकरीबन तय हो जाएगा कि विपक्ष मिलकर कितनी सीटें जीत रहा है और किस राज्य में भाजपा को कितनी सीटें मिल रही हैं. दरअसल चुनाव बाद पार्टी को यह अहसास हो जाता है कि वह कितनी सीटें जीत रही है. यह अनुमान 80 फीसदी तक सही ही होता है. इसी के बूते विपक्षी दल चुनाव बाद अपनी रणनीति पर बात करेंगे. इस बैठक में प्रधानमंत्री पद को लेकर कोई चर्चा नहीं होगी. हालांकि इस बैठक में हुई किसी चर्चा के तभी मायने हैं जब एनडीए को बहुमत नहीं मिलता है.

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11 को बक्सर व भभुआ में होगी मायावती की जनसभा

पटना। बिहार में छठे व सातवें चरण के चुनाव में बीएसपी त्रिकोणीय लड़ाई का दृष्य पैदा करने की कोशिश में है. बसपा वाल्मीकि नगर, आरा, काराकाट, सासाराम, गोपालगंज व शिवहर में खुद को काफी हद तक मजबूत मान रही है. यहां चुनाव में जीत-हार से अधिक ध्यान पार्टी नेताओं को बीएसपी के बढ़ते जनाधार को वोट में बदलने पर है. इसको लेकर बूथ व सेक्टर स्तर पर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी गयी है. यहां कार्यकर्ता पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने के लिए रात-दिन मेहनत कर रहे हैं. बसपा प्रमुख मायावती 11 मई को बक्सर और भभुआ में चुनाव सभाओं को संबाेधित करेंगी. पार्टी ने वाल्मीकि नगर से दीपक यादव, शिवहर मुकेश कुमार झा, आरा मनोज यादव, बक्सर सुशील कुशवाहा, सासाराम मनोज राम, काराकाट राज नारायण तिवारी, जहानाबाद नित्यानंद यादव को जीत दिलाने के लिए जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. बीएसपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की टीम इन क्षेत्रों में घूम रही है. पार्टी ने भी कार्यकर्ताओं को कहा है कि वह पूरी निष्ठा से काम करें, ताकि बीएसपी अपने त्रिकोणीय लड़ाई में सफल हो सके.

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लोकसभा चुनाव के छठें चरण में गठबंधन का ‘गणित’ मजबूत,

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में 12 मई को होने वाले अगले चरण के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को महागठबंधन की सबसे कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि चुनावी गणित इस चरण की लगभग सभी 14 सीटों पर समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन के पक्ष में बैठता है.भाजपा ने 2014 में इन सीटों में से आजमगढ़ को छोड़कर सभी पर कब्जा जमाया था. लेकिन, इस बार इन सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे को असर दिखाना होगा क्योंकि महागठबंधन यहां मजबूत विकेट पर खेल रहा है, कम से कम कागजों पर तो यही प्रतीत होता है.

फूलपूर में, जहां से गठबंधन ने अपने प्रयोग की शुरुआत की थी, भाजपा को यहां पहले ही गठबंधन की मजबूती का एहसास हो चुका है. 2018 उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.अगर सपा व बसपा उम्मीदवारों को 2014 में मिले वोट को देखें और अगर दोनों पार्टियों के पारंपरिक मतदाताओं ने उनका साथ नहीं छोड़ा तो भाजपा संभवत: प्रतापगढ़ को छोड़कर सभी 14 सीटों पर हारने की स्थिति में है.भाजपा इन सीटों पर काफी हद तक प्रधानमंत्री मोदी के वोट को अपने पक्ष में करने की शक्ति पर निर्भर है, क्योंकि उनका धुआंधार चुनाव प्रचार पारंपरिक वोट बैंक की सीमाओं को तोड़ने वाला साबित हो सकता है.पांच चरण के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की 80 में से 53 सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है.

आजमगढ़ से अखिलेश यादव का सामना प्रसिद्ध भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव निरहुआ से है। इस सीट पर 2014 में मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी.इस चरण में भाजपा नेता मेनका गांधी के भी भाग्य का फैसला होगा.वह इस बार सुलतानपुर से चुनाव लड़ रही हैं जहां से उनके बेटे वरुण गांधी मौजूदा सांसद हैं.

छठे चरण के चुनाव के अंतर्गत सीटों का विश्लेषण इस प्रकार है.

श्रावस्ती (2014)

विजेता                     :    ददन मिश्रा : भाजपा : वोट प्राप्त 3,45,964 अतीक अहमद             :    सपा : 2,60,051 लालजी वर्मा               :    बसपा : 1,94,890 सपा और बसपा मिलाकर :    4,54,890 फायदा                     :    महागठबंधन को

2019 में प्रत्याशी ददन मिश्रा : भाजपा धीरेंद्र प्रताप सिंह : संप्रग राम शिरोमणी वर्मा : महागठबंधन

डुमरियागंज(2014)

विजेता                  :    जगदंबिका पाल : भाजपा : 2,98,845 माता प्रसाद पांडे        :    सपा : 1,74,778 मुहम्मद मुकीम         :    बसपा : 1,95,257 फायदा                   :    महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी जगदंबिका पाल : भाजपा आफताब आलम : महागठबंधन

                               सुलतानपुर (2014) विजेता                       :     फिरोज वरुण गांधी : भाजपा : 4,10,348 पवन पांडे                    :     बसपा  2,31,446 शकील अहमद               :     सपा 2,28,114 सपा और बसपा मिलाकर   :     4,59,590 फायदा                       :     महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी मेनका गांधी : भाजपा संजय सिंह : संप्रग चंद्रभद्र सिंह : महागठबंधन कमला यादव : पीडीए

                               प्रतापगढ़ (2014) विजेता                          :     कुंवर हरिवंश सिंह : भाजपा : 3,75,789 आसिफ निजामुद्दीन            :     बसपा : 2,07,567 प्रमोद कुमार सिंह पटेल        :     सपा : 1,20,107 सपा और बसपा को मिलाकर  :     3,27,674 फायदा                          :     भाजपा

                                लालगंज (2014) विजेता                          :      नीलम सोनकर : भाजपा : 3,24,016 डॉ. बलिराम                    :       बसपा 2,33,971 बेचाई सरोज                    :      सपा2,60,930 सपा और बसपा को मिलाकर  :      4,94,901 फायदा                          :      महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी  नीलम सोनकर : भाजपा पंकज मोहन सरकार : संप्रग संगीता : महागठबंधन हेमराज पासवान : पीडीए

                                 आजमगढ़ (2014) विजेता                          :    मुलायम सिंह यादव : सपा : 3,40,306 रामाकांत यादव                 :    भाजपा : 2,77,102 शाह आलम                     :    बसपा : 2,66,528 सपा और बसपा को मिलाकर  :    6,06,834 फायदा                          :    महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ : भाजपा अखिलेश यादव : महागठबंधन

                                  जौनपुर (2014) विजेता                             :   कृष्ण प्रताप : भाजपा-3,67,149 पारसनाथ यादव                   :   सपा-1,80,003 सुभाष पांडेय                       :   बसपा-2,22,0839 सपा और बसपा को मिलाकर     :   4,00,842 फायदा                             :   महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी के.पी. सिंह : भाजपा देवव्रत मिश्रा : संप्रग श्याम सिंह यादव : महागठबंधन संगीता यादव : पीडीए

                                मछलीशहर (2014) विजेता                           :    राम चरित्र निषाद – भाजपा : 4,38,210 तूफानी                           :    सपा-1,91,387 भोलानाथ                        :    बसपा – 2,66,055 सपा और बसपा को मिलाकर   :    4,57,442                                फायदा                           :   महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी वीपी सरोज : भाजपा त्रिवेणी राम : महागठबंधन

                                 भदोही (2014) विजेता वीरेंद्र सिंह              :       भाजपा-4,03,695 सीमा मिश्रा                     :       सपा-2,38,712 राकेश धर त्रिपाठी              :       बसपा- 2,45,554 फायदा                          :       महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी रमेश बिंद-भाजपा रमाकांत यादव- संप्रग रंगनाथ मिश्रा-महागठबंधन

                                   बस्ती (2014) विजेता हरीश द्विवेदी                  :   भाजपा- 3,57,680 बृजकिशोर सिंह                         :   सपा-3,24,118 रामप्रसाद चौधरी                       :   बसपा – 2,83,747 सपा और बसपा को मिलाकर          :   6,07,865 फायदा                                  :   महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी हरीश द्विवेदी : भाजपा राजकिशोर सिंह : संप्रग रामप्रसाद चौधरी : महागठबंधन रामकेवल यादव : पीडीए

                               संतकबीर नगर (2014) विजेता                               :   शरद त्रिपाठी : भाजपा-3,48,892 भीष्म शंकर उर्फ कौशल तिवारी    :   बसपा-2,50,914 भालचद्र यादव                       :   सपा – 2,40,169 फायदा                               :   महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी प्रवीण कुमार निषाद : भाजपा परवेज खान : संप्रग भीष्म शंकर उर्फ कौशल तिवारी : महागठबंधन

                                  इलाहाबाद (2014) विजेता श्याम चरण गुप्ता             :   भाजपा- 3,13,772 केशरी देवी                              :   बसपा – 1,62,073 कुंवर रेवती रमण सिंह                 :   सपा – 2,51,763 सपा और बसपा को मिलाकर         :   4,13,836                            फायदा                                 :   महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी रीता बहुगुणा : भाजपा राजेंद्र सिंह पटेल : महागठबंधन योगेश शुक्ला : संप्रग

                                 अंबेडकर नगर (2014) विजेता                           :    हरि ओम पांडेय : भाजपा-4,32,104 राकेश पांडेय                     :    बसपा-2,92,675 राममूर्ति वर्मा                    :    सपा-2,34,467 सपा और बसपा को मिलाकर   :    5,22,142 फायदा                           :    महागठबंधन

2019 में प्रत्याशी मुकुट बिहारी वर्मा : भाजपा उम्मेद सिंह निषाद : संप्रग रितेश पांडेय : महागठबंधन प्रेम निषाद : पीडीए

                                फूलपुर (2014) विजेता                           :   केशव प्रसाद मौर्या : भाजपा : 5,03,564 कपिल मुनी करवारिया          :   बसपा : 1,63,710 धर्म राज सिंह पटेल             :   1,95,082 सपा बसपा को मिलाकर        :   3,58,792                                    फायदा                           :    भाजपा

2019 में प्रत्याशी केशरी पटेल : भाजपा पंकज निरंजन : संप्रग पंधेरी यादव : महागठबंधन प्रिया सिंह : पीडीए

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गठबंधन की रैली में बोलीं मायावती, भाजपाई बौखलाहट में अपना रहे हर तरह के हथकंडे

बसपा सुप्रीमो मायावती आजमगढ़ की संयुक्त रैली में भाजपा पर जमकर बरसीं. उन्होंने कहा कि भाजपा ने षडयंत्र के तहत ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलते हुए अखिलेश के खिलाफ प्रत्याशी उतारा है. इसलिए इन्हें ऐसा सबक सिखाना जरूरी है कि फिर कभी कोई चुनाव लड़ने की हिम्मत न कर सके. अब तक हुए पांच चरणों के मतदान में महागठबंधन को जनता का अपार जनसमर्थन मिला है. अगले चरण में परिणाम और भी ज्यादा बेहतर रहने वाले हैं. यह गठबंधन सामाजिक महापरिवर्तन लाने का रिश्ता है जो टिकाऊ और लम्बे समय तक चलेगा.

रैली को संबोधित करते हुए मायावती ने आजमगढ़ की जनता से सपा प्रत्याशी अखिलेश यादव को ऐतिहासिक मतों से जीत दर्ज कराने की अपील की. उन्होंने कहा कि यहां से अखिलेश यादव नहीं, मैं ही चुनाव लड़ रही हूं. जनसभा में लालगंज से महागठबंधन की प्रत्याशी संगीता आजाद को भी जिताने की अपील की गई.

‘भाजपा के लोग अपना रहे हर तरह के हथकंडे’

भाजपा पर हमलावर होते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस के लोग जाति, धर्म, आतंकवाद और देशभक्ति के नाम पर कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. भाजपाई बौखलाहट में हैं और हमारी संस्कृति सभ्यता के हिसाब से संस्कारी रिश्तों पर तंज करते हैं. यह रिश्ता सभ्यता संस्कृति के हिसाब से बना है, जिसका सम्मान करना चाहिए. बहुजन समाज पार्टी-समाजवादी पार्टी का गठबंधन आगे बढ़कर सदियों से उपेक्षा के शिकार लोगों की जिंदगी में परिवर्तन लाने का रिश्ता बना है. बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का समाज के कमजोर और वंचित लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करने में विशेष योगदान रहा है.

‘प्रधानमंत्री नहीं प्रचारमंत्री’

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री ने इतना प्रचार किया कि जनता उन्हें प्रचारमंत्री समझ रही है. पांच साल में यह भारत के एक प्रतिशत लोगों के हीआ प्रधानमंत्री हैं. प्रधानमंत्री पुराने मुद्दे भूल गये हैं. बनारस में भाजपा के लोग सेना के एक जवान से डर गए. प्रधानमंत्री आतंकवाद हटाने की बात करते हैं, लेकिन पांच साल के कार्यकाल में आतंकवाद रोकने के लिए कोई काम नहीं किया.

उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग एक-दूसरे से झगड़ा लगाते हैं. महागठबंधन एक दूसरे के बीच जो दूरी है उसे खत्म करना चाहता है. हमारी सोच है कि आबादी के हिसाब से सबको हिस्सेदारी मिलनी चाहिए. जबकि भाजपा सरकार आरक्षण छिनने की साजिश कर रही है. संविधान से मिले अधिकारों पर हमला हो रहा है. इनसे सावधान रहने की जरूरत है. आज पूरे देश में भाजपा को महागठबंधन ही रोक रहा है.

‘जनता के नहीं भाजपा नेताओं के आए अच्छे दिन’

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने कहा कि जनता के अच्छे दिन तो आए नहीं, भाजपा नेताओं के अच्छे दिन आ गए हैं. नौजवानों को दो करोड़ नौकरियां नहीं मिलीं. प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं. वे खुद को चौकीदार कहते हैं, पर वह उन बड़े लोगों के चौकीदार हैं जो बैंकों से धन लूटकर विदेश भाग गए. उनके भाषण के दौरान चौकीदार चोर है, के नारे भी लगे. उन्होंने महागठबंधन के प्रत्याशियों की जीत की अपील की.

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जानिए, आईएनएस विराट से जोड़कर राजीव गांधी की किस छुट्टी की बात कर रहे हैं मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को दिल्ली के रामलीला मैदान से एक बार फिर गांधी परिवार पर निशाना साधा. पीएम मोदी ने गांधी परिवार पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि 1987 में राजीव गांधी जिस समय प्रधानमंत्री थे, उस समय वे 10 दिन की छुट्टी मनाने के लिए एक खास द्वीप पर गए थे. पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि गांधी परिवार ने छुट्टी मनाने के लिए युद्धपोत आईएनएस विराट का इस्तेमाल किया था. पीएम मोदी ने उस द्वीप का नाम नहीं बताया, लेकिन इंडिया टुडे ने 31 जनवरी 1988 को गांधी परिवार की उस ‘छुट्टी’ का पूरा ब्यौरा बता दिया था. अनीता प्रताप ने अपनी रिपोर्ट में सिलसिलेवार तरीके से उस पिकनिक की कई बातें लिखी थीं.

कैसा है वो द्वीप, जहां गांधी फैमिली ने बिताई छुट्टी

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1987 में नए साल का जश्न मनाने के लिए अपने पूरे परिवार और खास मित्रों के साथ एक बेहद खूबसूरत द्वीप गए थे. राजीव गांधी के मित्रों में अमिताभ बच्चन और उनका परिवार भी शामिल था.पहले इस द्वीप के बारे में जान लीजिए. दक्षिण भारत में कोचीन से 465 किलोमीटर पश्चिम की ओर लक्षद्वीप के पास स्थित एक बेहद खूबसूरत आईलैंड है, जिसका नाम बंगाराम है. यह पूरा द्वीप निर्जन है. 0.5 स्क्वायर किलोमीटर एरिया में फैले इस द्वीप का चयन भी सोच-समझकर किया गया था. यहां विदेशी नागरिकों के आने पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है. लक्षद्वीप के तत्कालीन पुलिस चीफ पीएन अग्रवाल का कहना था कि ये बंगाराम द्वीप बेहद सुरक्षित और दुनिया से एक तरह से कटा हुआ इलाका है. इस इलाके की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह बेहद सुरक्षित है.

मीडिया से छिपाने की भरसक कोशिश, फिर भी भनक लग गई

गांधी परिवार के इस नितांत गोपनीय दौरे को मीडिया से छिपाने की भरसक कोशिश की गई थी. फिर भी मीडिया को 26 को ही इसकी भनक लग गई, जब राहुल गांधी ने अपने चार दोस्तों के साथ लक्षद्वीप प्रशासन के नारंगी और सफेद रंग के एक हेलिकॉप्टर से उड़ान भरी थी. छुट्टी पर अलग-अलग कई समूहों में लोग इस द्वीप पर पहुंचे थे, जिनमें राहुल गांधी का ग्रुप पहला था. सरकार ने उस समय राजीव गांधी के इस दौरे को पूरी तरह छिपाने की कोशिश की थी. मीडिया को इससे दूर रखने की नाकाम कोशिश की गई थी. सरकार ने इस राजीव गांधी की छुट्टी की प्राइवेसी को पूरी तरह बनाए रखने के लिए समुद्री और हवाई दोनों ही मार्गों से निगरानी की थी.

बच्चन फैमिली समेत कौन-कौन था आलीशान पार्टी में शामिल

लेकिन इस छुट्टी में जो लोग शामिल थे, वे सभी खुद इतने हाईप्रोफाइल थे कि यह खबर दब न सकी. राहुल और प्रियंका के चार दोस्त, सोनिया गांधी की बहन, बहनोई और उनकी बेटी, सोनिया की मां आर माइनो, उनके भाई और मामा शामिल थे. ये तो थे गांधी परिवार के रिश्तेदार. इस दौरे में राजीव गांधी के बेहद खास दोस्त अमिताभ बच्चन, उनकी पत्नी जया बच्चन और 3 बच्चे शामिल थे. तीन बच्चों में अमिताभ के भाई अजिताभ की बेटी भी शामिल थीं, अजिताभ खुद फॉरेन एक्सचेंज रेग्यूलेशन एक्ट (FERA) का उल्लंघन करने के मामले में फंसे थे. इसके अलावा एक और परिवार इस टूर में शामिल था, जिनका नाम बिजेंद्र सिंह था. बिजेंद्र सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण सिंह के भाई थे. इसके अलावा दो विदेशी मेहमान भी इस आलीशान पार्टी में शामिल थे.

30 दिसंबर को पहुंचे थे राजीव और सोनिया गांधी

राजीव और सोनिया 30 दिसंबर की दोपहर में ही इस खूबसूरत द्वीप पर छुट्टी मनाने पहुंच गए थे, जबकि अमिताभ बच्चन एक दिन के बाद यहां कोचीन-कावारत्ती हेलिकॉप्टर से पहुंचे थे. जया बच्चन चार दिन पहले प्रियंका और अपने बच्चों के साथ पहुंची थीं.

ईंधन भराने के लिए दूसरे द्वीप पर उतरा था अमिताभ का हेलिकॉप्टर

बंगाराम द्वीप पर अमिताभ बच्चन के आने की खबर को भी छिपाने की कोशिश की गई थी. लेकिन 31 दिसंबर को बंगाराम से कुछ दूरी पर स्थित एक अन्य आईलैंड कावारत्ती पर अमिताभ के हेलिकॉप्टर को ईंधन भराने के लिए उतरना पड़ा. इसमें 50 मिनट लगे. इसके बाद ये बात जगजाहिर हो गई. छुट्टियां मनाकर वापस लौटते वक्त अमिताभ बच्चन को इंडियन एक्सप्रेस के फोटोग्राफर ने कैप्चर कर लिया. इस पर अमिताभ नाराज हो गए. उन्होंने फोटोग्राफर को चेतावनी भी दी, लेकिन फोटोग्राफर तब तक अपना काम कर चुका था.

अमिताभ के भाई की चल रही थी FERA में जांच

राजीव गांधी का यह टूर अपने इटली के रिश्तेदारों और बच्चन परिवार की मौजूदगी के चलते खासी सुर्खियों में रहा था. राजीव की मुश्किलें इसलिए और बढ़ गई थीं क्योंकि FERA की जांच के दायरे में आए अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ की बेटी भी इस छुट्टी में घुमने गई. उस समय विपक्ष का सवाल था कि ऐसा करके राजीव गांधी उन अधिकारियों को क्या संदेश देना चाह रहे थे जो अमिताभ के भाई अजिताभ बच्चन की स्विट्जरलैंड की संपत्ति की जांच कर रहे थे.

स्वीमिंग, सनबाथ से लेकर फिशिंग तक, हर सुविधा मौजूद

लेकिन इस पूरे आलीशान सप्ताह के दौरान आलोचनाओं को अनसुना कर दिया गया. छुट्टी मना रहे सभी लोग इसे पूरी तरह एंजॉय कर रहे थे. स्वीमिंग, सनबाथ से लेकर फिशिंग तक, सभी इस शानदार द्वीप पर अपना पूरा समय बेहद इत्मिनान के साथ और लुत्फ उठाते हुए बिता रहे थे. पिकनिक मनाने के लिए पास ही मौजूद दो और द्वीप थिन्नकारा और पारिल में भी ये लोग गए थे. राजीव, राहुल और प्रियंका जहां बेहद साफ नीले पानी का आनंद उठा रहे थे, वहीं सोनिया गांधी अस्थमा के डर से अपनी मां और जया बच्चन के साथ नारियल के पेड़ की छांव में बातें करती थीं.

1985 में भी आए थे राजीव गांधी

राजीव गांधी इस द्वीप से पहले से वाकिफ थे. उन्होंने यहां एक डाल्फिन को बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी थी. नवंबर 1985 में राजीव गांधी यहां एक दिन के लिए रुके थे. तभी उन्हें ये बेहद पसंद आ गया था.

बच्चों की पार्टी का बिल 18 हजार राजीव ने चुकाया था

लक्षद्वीप के प्रशासक वजाहत हबीबुल्लाह जो कि उस समय राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री सचिवालय में थे, उन्होंने बताया कि राजीव गांधी को यहां बहुत अच्छा लगा था. पिछले सितंबर में भी राहुल और प्रियंका अपने चार दोस्तों के साथ लक्षद्वीप में छुट्टियां बिताईं थीं. राजीव गांधी ने बाद में उनके 18 हजार रुपये के बिल का भुगतान किया था.

गांधी फैमिली का कुक गया था

लक्षद्वीप प्रशासन की ओर से सभी के लिए खाने का इंतजाम किया गया था. बंगाराम द्वीप पर दो रसोइयों समेत पांच लोग रुके थे. गांधी परिवार के खाने की पसंद का ख्याल रखने के लिए दिल्ली से उनका पर्सनल कुक भी गया था, जो दिशा-निर्देश दे रहा था.

दिल्ली से गई थी शराब, पास के द्वीप से आया था चिकन

इतना ही नहीं, नई दिल्ली से शराब भी ले जाई गई थी. पास में मौजूद एक अन्य द्वीप में 100 चिकन की भी व्यवस्था की गई थी. इसके अलावा लक्षद्वीप से ताजे फल जिनमें पपीता, सपोता, केले और अमरूद भेजे गए थे. कावारत्ती से 100 ब्रेड और बटर मंगाए गए थे. इसके अलावा कोचीन से कैडबरी की चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक्स की 40 क्रेट, मिनरल वाटर की 300 बोतल, अमूल चीज, काजू, 20 किलो आटा, 105 किलो चावल और कुछ ताजी सब्जियां मंगाई गई थीं. इन सामानों की पहली खेप 23 दिसंबर को, दूसरी खेप तीन दिन के बाद और फिर 1 जनवरी को कुछ सामान भेजा गया.

खेल अधिकारियों के मुताबिक प्रशासन को सभी बिलों का भुगतान करने को कह दिया गया था, ताकि बाद में राजीव गांधी पैसा दे सकें. लक्षद्वीप के कलेक्टर केके शर्मा के मुताबिक उन्होंने वीआईपी हॉलीडे के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किया था. वहीं हबीबुल्लाह भी कह चुके थे कि उनकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को बंगाराम द्वीप तक पहुंचाने भर की थी. उसके बाद वे वहां स्वच्छंद रहना चाहते थे.

10 दिन अरब सागर में खड़ा रहा INS विराट

इस दौरान भारत के प्रमुख युद्धपोत INS विराट के गांधी परिवार को ले जाने के लिए इस्तेमाल किए जाने की खबरें रहीं, जिस पर सवाल उठे. INS विराट को पूरे 10 दिनों के लिए अरब सागर में तैनात किया गया. कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने राजीव गांधी की छुट्टियों में नौसेना के इस्तेमाल करने पर सवाल भी उठाया था. बताया जाता है कि पूरी छुट्टियों के दौरान अगत्ती में स्पेशल सेटेलाइट का सेटअप भी लगाया गया था.

लक्षद्वीप के पर्यटन को मिला फायदा

लक्षद्वीप के सांसद पीएम सईद ने तब कहा था कि इस हॉलीडे का लक्षद्वीप को बहुत फायदा होगा, जो कि पूरे भारत में संदरतम स्थानों में से एक है. गांधी परिवार की छुट्टी के बाद फौरन इसका असर भी दिखाई दिया. 8 जनवरी को इस पर्यटन स्थल के बारे में आमदिनों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा पूछताछ की गई.

सबसे पहले प्रियंका और आखिरी में गईं थीं सोनिया

6 जनवरी को गांधी परिवार की यह आलीशान छुट्टी खत्म हुई थी. वहां से रवाना होने वाली मेहमानों की पहली खेप में प्रियंका थीं, जो अपने दोस्तों के साथ गोवा चली गईं. उसके बाद विदेशी मेहमान रवाना हुए और फिर अमिताभ बच्चन और उनका परिवार रवाना हुआ. उसी दिन राजीव गांधी राहुल के साथ नेवी के हेलिकॉप्टर से एमिनी आइलैंड गए, जहां उनका नए साल 1988 में पहला आधिकारिक कार्यक्रम होने वाला था. राहुल गांधी को INS विराट में ही छोड़ दिया गया था, ताकि वे बाद में राजीव के साथ मंगलौर जा सकें. बंगाराम द्वीप से सबसे अंत में निकलने वालों में सोनिया गांधी और उनके रिश्तेदार थे.

साभार- आजतक राहुल विश्वकर्मा इसे भी पढ़ें-चौथे चरण में भाजपा की साख दांव पर

बहनजी को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता हूं- अखिलेश यादव

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नई दिल्ली। 2019 चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव बहनजी को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं. अखिलेश यादव ने अपनी यह मंशा अंग्रेजी अखबार मुंबई मिरर से बात करते हुए जाहिर की. हालांकि साथ ही अखिलेश ने यह भी जोड़ा की बहनजी उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने में मदद करेंगी.

बसपा प्रमुख मायावती ने हाल ही में एक जनसभा में संकेत दिए थे कि अगर सब कुछ अच्छा रहा तो वह लोकसभा चुनाव लड़ेंगी और प्रधानमंत्री भी बन सकती हैं. मायावती के बयान के दो दिन बाद ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस पर मुहर लगा दी है और उन्होंने कहा है कि मैं भी उन्हें प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहता हूं.

अंग्रेजी अखबार मुंबई मिरर से बात करते हुए अखिलेश ने कहा, ‘गठबंधन होने के बाद मुझे उनके बारे में जानने का काफी मौका मिला है, मैंने उनमें काफी अच्छाईयां भी देखी हैं. वह काफी अनुशासित हैं और मुझसे अनुभवी भी हैं.’

सपा प्रमुख ने कहा, ‘उनके और हमारे बीच में एक जेनरेशन गैप है, उन्हें प्रधानमंत्री बनता देख मुझे खुशी होगी, इसके लिए मैं पूरी मेहनत करने के लिए भी तैयार हूं. वहीं, वह भी मुझे उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री देखने के लिए तैयार हैं.’

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी भारतीय जनता पार्टी विपक्ष पर इसी बात का तंज कसते हैं कि मोदी नहीं तो कौन? और विपक्ष इसी बात पर हर बार पिछड़ता नज़र आ रहा था, लेकिन अब पांच चरण पूरे होने के बाद मायावती ने खुले तौर पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है. और उनका साथ अखिलेश यादव ने भी दे दिया है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, जहां 80 लोकसभा सीटें हैं. सपा-बसपा और रालोद मिलकर इन सीटों पर लड़ रहे हैं. यूपी में जिस तरह से मुकाबला है उसमें यह दिख रहा है कि यहां गठबंधन को बड़ा फायदा हो सकता है. ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव बाद परिस्थियां बनती हैं तो बसपा प्रमुख मायावती को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल सकता हैं. विपक्ष के तमाम नेताओं के बीच उनके ज्यादा अनुभवी होने के कारण उनके नाम पर सहमति बन सकती है.

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”न्यायपालिका में हमेशा न्याय नहीं होता. कभी-कभी सिर्फ जजमेंट होता है”- पूर्व न्यायाधीश

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बाम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी जी कोलसे पाटिल कहते हैं: ”न्यायपालिका में हमेशा न्याय नहीं होता. कभी-कभी सिर्फ जजमेंट होता है.’ विख्यात न्यायविद पाटिल ने यह टिप्पणी ‘सत्ता की सूली’ शीर्षक पुस्तक की भूमिका में दर्ज की है. पुस्तक के लेखक हैं: महेंद्र मिश्र, प्रदीप सिंह और उपेंद्र चौधरी. इसे ‘शब्दलोक प्रकाशन’ दिल्ली ने छापा है.

हमारी न्यायिक व्यवस्था कैसे अनेक सनसनीखेज और अपराध के भयानक षड्यंत्रों को बेपर्दा नहीं कर पाती और न्यायालयों में सिर्फ फैसला(जजमेंट) हो जाता है, न्याय नहीं हो पाता; यह पुस्तक ऐसे कई बड़े मामलों को ठोस साक्ष्यों के साथ सामने लाती है. लेकिन पुस्तक का केंद्रीय विषय है: मुंबई स्थित विशेष सीबीआई कोर्ट के जज बी एच लोया की कथित संदिग्ध मौत.

जज लोया की कथित संदिग्ध मौत के बारे में दो कहानी सामने आई: नागपुर के एक गेस्ट हाउस में वह अचानक अस्वस्थ हुए और उनकी मौत हो गई. दूसरी बात सामने आई कि उनकी बड़े षड्यंत्रपूर्वक हत्या कर दी गई. वह एक बहुत बड़े मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे. यह मामला था: गुजरात से जुड़ी कुछ रहस्यमय मुठभेड़ हत्याओं का. बहुचर्चित सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड इसमें सबसे अहम था. सोहराबुद्दीन, उसकी बीवी कौसर बी और उस केस के एक गवाह तुलसीराम प्रजापति मार डाले गए थे . पहले इन्हें मुठभेड़ माना गया. बाद में सवाल उठे कि यह तो योजनाबद्ध हत्या के मामले थे. इस मामले की सीबीआई जांच हुई, इसमें तकरीबन एक हजार पेज की चार्जशीट दाखिल हुई. इसमें पुलिस अफसर डी जी वंजारा और उसकी टीम के सदस्यों के अलावा राजनीतिक-प्रशासनिक पदों पर आसीन रहे लोगों के भी नाम अलग-अलग संदर्भ में दर्ज हुए. इनमें एक नाम था: गुजरात के तत्कालीन मंत्री अमित शाह का. सीबीआई ने 25 जुलाई, 2010 को इस मामले में षड्यंत्रकर्ता होने के कथित आरोप में उन्हें गिरफ्तार भी किया था. बाद में उन्हें सशर्त जमानत मिली. कुछ वर्ष बाद बाद यह केस भी खत्म .

सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्या कांड के तार एक दूसरे हाई प्रोफाइल मर्डर से जुड़े बताए गए. यह मर्डर था: भाजपा नेता और गुजरात के गृह राज्यमंत्री रहे हरेन पंड्या का. ठोस तथ्यों के साथ पुस्तक में बताया गया है कि जिस वक्त जज लोया की संदिग्ध मौत हुई, वह सीबीआई स्पेशल कोर्ट, मुंबई में सोहराबुद्दीन और अन्य के एनकाउंटर कांड का मामला चल रहा था. जज लोया ने इस मामले में भाजपा नेता अमित शाह को भी समन किया था. उसी दौर में एक दिन जज लोया नागपुर जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है. काफी वक्त बाद जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच का मामला एक याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में आता है. पर कोर्ट केस में मेरिट नहीं देखता और इस तरह मामला खत्म हो जाता है. लेकिन कोर्ट के स्तर पर खत्म समझे जाने वाले उसी मामले से जुड़ी पूरी कथा को ‘सत्ता की सूली’ में दस्तावेजों के साथ सामने लाया गया है. सभी जानते हैं कि जज लोया की संदिग्ध मौत पर पहली खोज-पड़ताल अंग्रेजी की मशहूर पत्रिका ‘द कैरवान’ ने छापी थी.

इस किताब के बारे में विख्यात न्यायविद प्रशांत भूषण और इंदिरा जयसिंह ने भी आमुख लिखे हैं. इंदिरा जयसिंह की यह टिप्पणी इस किताब की महत्ता और भूमिका रेखांकित करती है: भारत में अनेक अनसुलझी हत्याओं के दृष्टांत मिल जाते हैं. अनेक बार ‘अपराध न्याय प्रणाली’ विफल हुई है और यह किताब उस श्रेणी की है, जो अन्याय की कड़वी यादों को हमारे जेहन में जीवित रखती है.’

– उर्मिलेश Read it also-पहाड़ के दलितों को इस परंपरा पर फिर से सोचना होगा

दलित पर अत्याचार, जबरदस्ती पिलाया मल-मूत्र, 2 गिरफ्तार

तमिलनाडु के  तिरुवरूर जिले के मन्नारगुडी इलाके में एक दलित व्यक्ति को कुछ गैर दलित लोगों द्वारा जबरन मलमूत्र खाने पर विवश करने के आरोप में दो गैर दलित व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है. पीड़ित का आरोप है कि कुछ गैर-दलित युवकों ने न केवल उसे जबरन मल-मूत्र खाने पर विवश किया बल्कि शरीर पर पेशाब भी किया. कोर्ट ने दो आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. एक आरोपी अभी भी फरार चल रहा है.

पीड़ित पी कोल्लिमलाई ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके साथ मारपीट की गई और जबरन मल-मूत्र खाने के लिए मजबूर किया गया. इस नामजद एफआईआर में आरोपियों के नाम शक्तिवेल, राजेश और राजकुमार का जिक्र किया गया है. तीनों आरोपी कल्लार समुदाय से संबंध रखते हैं.

पीड़ित व्यक्ति ने शिकायत की तीन साल पहले हुए एक कार्यक्रम के दौरान एक मंदिर के पास दो पक्षों में हुए विवाद में हस्तक्षेप करने के बाद उसे निशाना बनाया गया. गांव वालों का कहना है तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल पहुंचाने की जगह एक आरोपी आसानी से भागने में कामयाब हो गया और पुलिस स्टेशन के बाहर जाकर धरना प्रदर्शन करने लगा.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी व्यक्तियों पर एससी/एसटी प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट 2015 के तहत मुकदमा नहीं दर्ज किया गया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस घटना के बाद पीड़ित व्यक्ति आत्महत्या करना चाहता था और बेहद शर्मिंदगी महसूस कर रहा था.

क्या है मामला?

इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब तीन साल पहले अय्यनार मंदिर में एक कार्यक्रम के दौरान आरोपियों ने पीड़ित व्यक्ति के परिवार और दलित समुदाय  के अन्य लोगों के साथ मारपीट की. इस झड़प में उनके वाहनों को तोड़ दिया गया. इसी घटना को आधार बनाकर पीड़ित पर हमला किया गया.

साभार- आजतक इसे भी पढ़ें-IPL में कोहली की RCB के खराब प्रदर्शन पर माल्या का तंज, बताया- कागजी शेर

दलित युवक से प्रेम करने वाली मराठा लड़की पहुंची कोर्ट

दलित युवक से प्रेम करने वाली मराठा लड़की पहुंची कोर्ट

क़ानून की पढ़ाई करने वाली महाराष्ट्र के पुणे ज़िले की एक छात्रा अपने माता-पिता के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट चली गई है.

छात्रा का आरोप है कि वो किसी दूसरी जाति के युवक से प्रेम करती है और उसे अपने परिवार से ही जान को ख़तरा है.

अंतरजातीय प्रेम विवाह का विरोध कोई नई बात नहीं है.

मशहूर मराठी फ़िल्म सैराट में भी इसी तरह की एक प्रेम कहानी दिखाई गई थी, जिसमें दलित युवक से प्रेम करने वाली युवती की उसके पति के साथ हत्या कर दी जाती है.

मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाली लड़की ने कहा है कि वो मराठा जाति से है और मातंग जाति के युवक से प्यार करती है. उसका हश्र सैराट जैसा न हो इसलिए उसे सुरक्षा दी जाए.

19 साल की इस छात्रा ने अपने और प्रेमी के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग भी की है. मुंबई हाई कोर्ट में इस याचिका पर आज सुनवाई हुई.

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को लड़की को सुरक्षा देने के निर्देश दिए हैं और उससे पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा है.

सुनवाई के दौरान पुलिस की ओर से कहा गया की लड़की ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है. वहीं लड़की के अधिवक्ता नितिन सतपुते ने दावा किया है कि लड़की ने लिखित शिकायत पुलिस को दी थी लेकिन पुलिस ने शिकायत लेने से इनकार कर दिया था.

लड़की ने ईमेल के ज़रिए भी अपनी शिकायत पुलिस को भेजी थी जिसे स्वीकार नहीं किया गया था.

उनका कहना है कि अगली सुनवाई के दौरान पुलिस की ओर दायर किए गए झूठे बयान के बारे वो अपना हलफ़नामा पेश करेंगे. अब इस मामले में अगली सुनवाई 21 मई को होनी है.

अपने माता-पिता के ख़िलाफ़ अदालत पहुंची इस लड़की का मामला महाराष्ट्र में सुर्ख़ियों में है.

अपनी याचिका में युवती ने कहा है कि कॉलेज में पढ़ाई के दौरान तीन साल पहले उसे मातंग समुदाय के युवक से प्रेम हुआ था. तीन महीने पहले इस बारे में परिवार को पता चला गया और तब से ही उसके लिए हालात मुश्किल होते चले गए.

छात्रा ने बीबीसी से कहा, “हमें जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं. मुझे कहा गया कि अगर तुमने इस लड़के से शादी करने के बारे में सोचा तो तुम्हें मार डालेंगे. मेरा मोबाइल फ़ोन छीन लिया गया. मेरा कॉलेज जाना बंद कर दिया. उन्हें दूसरी जाति का लड़का मेरे लिए नहीं चाहिए था.”

छात्रा ने कहा, ”जात के भेदभाव को मैं नहीं मानती. मैंने अपने माता-पिता को समझाने की कोशिश की कि आज के ज़माने में जाति का कोई महत्व नहीं है. लेकिन उन्होंने मेरी कोई बात नहीं सुनी. उल्टे मेरी आज़ादी ही पूरी तरह से छीन ली.”

लड़की ने अपनी याचिका में कहा है कि उसका उत्पीड़न इस क़दर बढ़ गया कि उसने 26 फ़रवरी को आत्महत्या करने का प्रयास भी किया.

इसके बाद वो कुछ समय के लिए अस्पताल में भी भर्ती रही. घर आने के बाद भी उस पर दबाव बनाया जाता रहा.

याचिका के मुताबिक़ 22 मार्च को इस लड़की के चाचा ने सिर पर पिस्तौल रख गोली मारने की धमकी दी और कहा कि उसने ये रिश्ता नहीं तोड़ा तो उसके प्रेमी को भी मार देंगे. लड़की के चाचा पेशे से वकील हैं.

लड़की का आरोप है कि उसकी पिटाई भी की गई. वो घर से बाहर निकलने का मौक़ा तलाश रही थी.

27 मार्च को परिवार के साथ तिरुपति जाते हुए उसे मौक़ा मिल गया और वो फ़रार हो गई. तब से वो अपने घर वापस नहीं लौटी.

उसका कहना है कि उन दोनों ने बालिग़ होते ही तुरंत शादी करने का फ़ैसला किया है पर तब तक उनकी जान को घरवालों से ख़तरा है.

इसलिए उन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग की है.

लड़की के घरवालों ने इन सभी आरोपों को नकारा है. इस लड़की के चचेरे भाई ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उसने मीडिया से जो बातें कही हैं, जो भी उसने अपनी याचिका में कहा है वो सब ग़लत है.

लड़की के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा, “उसका किसी ने भी उत्पीड़न नहीं किया है या उसे पिस्तौल दिखाकर डराया नहीं गया है. उसके माता-पिता ने उसे अच्छे से पढ़ाया लिखाया है और उनका कहना था कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद शादी के बारे में सोचेंगे. ये सब होने के बाद उसके माता-पिता भी बहुत दुखी हैं. पर उनका कहना है कि आगे जो होगा ये अब अदालत ही तय करेगी.”

लड़की की ओर से अधिवक्ता नितिन सातपुते हाई कोर्ट में मुक़दमा लड़ रहे हैं.

सातपुते का कहना है, “भारत के संविधान ने भारत के हर नागरिक को अपनी मर्ज़ी से विवाह करने का अधिकार दिया है और इस लड़की की जान को ख़तरा है इसलिए हमने ये याचिका दायर की है. हमारा कहना है कि इस लड़की के माता-पिता और रिश्तेदारों से कोई अपराध न हो इसलिए सरकार से कार्रवाई करने की मांग की है.”

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मोदी के विरोध में दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने जारी किया सार्वजनिक बयान, जानिए क्या है मामला

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जिस तरह चुनाव के बीच राजीव गांधी को घसीटा गया है, उसने प्रबुद्ध वर्ग के बीच पीएम मोदी की छवि को धूमिल कर दिया है. देश भर में प्रबुद्ध समाज द्वारा मोदी के बयानों की आलोचना हो रही है. इसी क्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने तो मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. दिल्ली विश्वविद्यालय के 207 प्रोफेसर्स ने पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गांधी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की निंदा करते हुए एक सार्वजनिक बयान जारी किया है. इन प्रोफेसर्स ने अपने बयान में मोदी के बयान को ‘अपमानजनक और झूठा’ करार दिया है.

गत शनिवार को उत्तर प्रदेश के बस्ती में एक रैली के दौरान पीएम मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर राफेल मुद्दे को लेकर निशाना साधा. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था- ‘देश आपके पिता को बेशक ‘मिस्टर क्लीन’ के नाम से जानता है, लेकिन मिस्टर क्लीन का जीवनकाल ‘भ्रष्टाचारी नंबर 1′ के रूप में खत्म हुआ था.’

मोदी के इसी बयान को लेकर तमाम लोगों ने उनकी आलोचना की थी. इसमें कई पूर्व नौकरशाह से लेकर पत्रकार और शिक्षक शामिल हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स ने अपने सार्वजनिक बयान में कहा है कि, ‘देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले दिवंगत राजीव जी के बारे में नरेंद्र मोदी ने अपमानजनक और झूठा बयान जारी कर प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रतिष्ठा कम की है. कोई भी प्रधानमंत्री इस पर स्तर तक ‘नीचे’ नहीं आया.’

सार्वजनिक बयान में साल 1999 के कारगिल युद्ध और टेलिकम्यूनिकेशन रिवॉल्यूशन का भी जिक्र है. बयान में कहा गया है- ‘जब कारगिल से हमारे जवानों ने घुसपैठियों को खदेड़ा तो वह बोफोर्स गन के लिए राजीव गांधी की प्रशंसा करते हुए नारे लगा रहे थे.’ बयान में कहा गया है कि आज अगर रेल की यात्रा ज्यादा आसान है तो वह पूरी तरह से राजीव गांधी की वजह से है क्योंकि उन्होंने रेल रिजर्वेशन को कंप्यूटराइज्ड किया था. इस बयान पर दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स असोसिएशन के आदित्य नारायण मिश्रा, DU के दो एग्जीक्यूटिव काउंसिल मेंबर, तीन एकडमिक काउंसिल मेंबर्स, डूटा के वाइस प्रेसिडेंट और ज्वाइंट सेक्रेटरी का नाम शामिल है.

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3 पेपर में पाए 98% लेकिन, चौथा पेपर देने से पहले लाइलाज बीमारी से हुई विनायक की मौत!

नोएडा। 16 वर्षीय विनायक श्रीधर के भी आसमान में उड़ने के सपने थे. वे अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनकर दुनिया को देखना चाहते थे. उनका 26 मार्च को ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की बीमारी से निधन हो गया. वह सेक्टर-44 स्थित एमिटी इंटरनेशनल स्कूल में दसवीं के छात्र थे. उन्होंने हाल ही में हुए सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में हिस्सा लिया था. तीन विषयों के पेपर भी दिए. चौथे पेपर से पहले उनका देहांत हो गया. सोमवार को जारी परिणामों में उनको अंग्रेजी में 100, विज्ञान में 96 और संस्कृत में 97 अंक मिले. बाकि, कंप्यूटर साइंस और सोशल स्टडीज की परीक्षा नहीं दे पाए. वह वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग को आदर्श मानते थे.

विनायक का परिवार सेक्टर-45 में रहता है. पिता श्रीधर जीएमआर कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत हैं. मां ममता गृहणी हैं. बड़ी बहन वैष्णवी यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया से पीएचडी की पढ़ाई कर रही हैं. विनायक जब दो वर्ष के थे, तब से उनको ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी की समस्या थी. दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्त होता है. यह लाइलाज बीमारी है.

श्रीधर बताते हैं कि इसमें बच्चा जैसे बड़ा होता जाता है, बीमारी बढ़ने लगती है. विनायक जब सात वर्ष का हुआ, उसने चलना छोड़ दिया था. व्हील चेयर के जरिये ही वह सारा काम करते थे. हाथ भी बहुत धीरे-धीरे काम करते थे. वह बताते हैं कि विनायक को पढ़ाई का बहुत शौक था. वह बड़े होकर अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनना चाहते थे. हाईस्कूल की परीक्षा के लिए उन्होंने काफी तैयारी की थी.

उन्होंने परीक्षा में सामान्य श्रेणी के चिल्ड्रन विद स्पेशल नीड (सीडब्ल्यूएसएन) वर्ग में हिस्सा लिया था. लिखने में हाथ की गति काफी धीमी थी लेकिन दिमाग बहुत तेज था. संस्कृत उनका पसंदीदा विषय था. इसे उन्होंने खुद अपने हाथों से लिखा. जबकि, बाकि के अंग्रेजी और विज्ञान के लिए सहायक का सहारा लिया. पिता ने बताया कि विनायक काफी धार्मिक थे. वह परीक्षा खत्म होने के बाद कन्याकुमारी स्थित रामेश्वरम मंदिर दर्शन को जाना चाहते थे. वह अक्सर कहते थे जब स्टीफन हॉकिंग दिव्यांग होकर ऑक्सफोर्ड जा सकते हैं और विज्ञान की दुनिया में इतिहास रच सकते हैं तो वह भी अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनेंगे. वह आश्वस्त थे कि परिणाम आने पर वह टॉपरों में अपनी जगह बनाएंगे. श्रीधर ने बताया कि वह विनायक की इच्छा को पूरा करने के लिए हाईस्कूल के परिणाम के दिन रामेश्वरम पहुंच गए थे.

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IPL में कोहली की RCB के खराब प्रदर्शन पर माल्या का तंज, बताया- कागजी शेर

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आईपीएल के मौजूदा सीजन में खराब प्रदर्शन के बाद रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु टूर्नामेंट (आरसीबी) से बाहर हो चुकी है. हार के बाद विराट कोहली की टीम की दिग्गजों ने आलोचना भी की है. इसी कड़ी में आईपीएल बेंगलुरु टीम के पूर्व मालिक विजय माल्या ने भी आरसीबी पर तंज कसा है.

माल्या ने कहा कि विराट कोहली की कप्तानी वाली टीम हमेशा कागजों पर अच्छी रही है. विराट कोहली, एबी डिविलियर्स, मार्कस स्टोइनिस और शिमरॉन हेटमेयर व टिम साउदी जैसे स्टार खिलाड़ियों से सजी बेंगलुरु का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा.

माल्या ने ट्वीट कर कहा, ‘इस टीम के पास अच्छी लाइन-अप थी, लेकिन यह केवल पेपर पर ही नजर आई.’ बता दें कि बेंगलुरु को आईपीएल के 12वें सीजन में शुरुआती 6 मैचों में हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि टीम ने इसके बाद 5 मैच जीते थे.

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु भले ही आईपीएल के 12वें सीजन में 7वें पायदान पर रही हो, लेकिन कप्तान विराट कोहली मानते हैं कि उनकी टीम ने प्रतियोगिता के दूसरे हाफ में अच्छा प्रदर्शन किया, जिसके कारण यह सीजन ज्यादा खराब नहीं रहा.

बेंगलुरु के कप्तान कोहली ने अपने फैंस के लिए एक भावुक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘आपके समर्थन और प्यार के लिए सबको धन्यवाद. फैंस, ग्राउंड स्टाफ और सपोर्ट स्टाफ वादा करें कि अगले साल मजबूती के साथ वापसी करेंगे.’

कोहली ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ टूर्नामेंट का अंतिम मैच जीतने के बाद कहा, ‘अगर हम दूसरे हाफ को देखें तो हम पहले हाफ में ऐसा प्रदर्शन करना चाहते थे. छह मैच हारने के बाद आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में वापसी करना मुश्किल होता है.’

कोहली ने कहा, ‘हम उस स्थान पर नहीं रहे जहां हम रहना चाहते थे, लेकिन दूसरा हाफ बेहतरीन रहा और ऐसा महसूस नहीं हुआ कि यह सीजन खराब गया. हमने आखिरी के सात में से पांच मैचों में जीत दर्ज की और एक मैच में कोई नतीजा नहीं निकला. हमें इस पर गर्व है.’ बेंगलोर की टीम ने इस सीजन 14 मैचों में कुल 11 अंक अर्जित किए.

कोहली भले ही टीम प्रदर्शन के समर्थन में हों लेकिन माल्या ने टीम के प्रदर्शन को लेकर सवाल उठा दिया है. अब देखने वाली बात होगी कि विराट कोहली की बेंगलुरु की तरफ से कोई जवाब आता है या नहीं.

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नामांकन रद्द मामला: तेज बहादुर की अपील पर आज सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

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वाराणसी। सुप्रीम कोर्ट आज पूर्व बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव की याचिका पर सुनवाई करेगा. तेज बहादुर ने वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन रद्द करने के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी.

बता दें कि नामांकन पत्रों की जांच के बाद तेज बहादुर यादव द्वारा दाखिल दो नामांकन पत्रों में बीएसएफ से बर्खास्तगी की दो अलग-अलग जानकारी सामने आई थी. इसके बाद उन्हें 24 घंटे के अंदर बीएसएफ से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेकर जवाब देने को कहा गया था. तेज बहादुर से नोटिस में कहा गया था कि वह बीएसएफ से एनओसी लेकर आएं, जिसमें यह साफ किया गया हो कि उन्हें किस वजह से नौकरी से बर्खास्त किया गया था.

तेज बहादुर की मुश्किलें इस समय बढ़ी हुई हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर ऐसा विडियो वायरल हुआ था जिसमें कथित तौर पर तेज बहादुर ने पैसा लेकर पीएम मोदी को मारने की बात कही थी. इस पर एडवोकेट कमलेश चंद्र त्रिपाठी ने तेज बहादुर के खिलाफ कार्रवाई के लिए मंगलवार को एसएसपी आनंद कुलकर्णी को प्रार्थना पत्र दिया था.

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यूपी के 68,500 शिक्षकों की भर्ती का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, यूपी सरकार को नोटिस

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उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति में धांधली का मामला उच्चतम न्यायालय पहुंच चुका है. मंगलवार को मामले की जांच सीबीआई से कराने वाली अर्जी पर न्यायालय ने यूपी सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है. न्यायालय में यह याचिका मामले की सीबीआई जांच पर रोक लगाने के आदेश के खिलाफ लगाई गई है. पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था.

फरवरी में उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर उच्च न्यायालय की डिविजन बेंच ने सीबीआई जांच पर रोक लगाई थी. परीक्षा में असफल रहे अभ्यर्थियों ने अदालत में याचिका दायर करके सीबीआई जांच को बरकरार रखने की मांग की है. यूपी में 68,500 पदों पर नियुक्तियां हुई थीं.

परीक्षा में मिली धांधलियों की जांच के लिए राज्य सरकार ने तीन सदस्यीय समिति बनाई थी. लेकिन इसमें दो सदस्य परीक्षा प्रक्रिया तय करने वाले बेसिक शिक्षा विभाग से होने के तर्क पर इलाहबाद उच्च न्यायालय की एकल जज ने एक नवंबर 2018 को मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के आदेश दिए थे. इसे खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि केवल इस आधार पर कि जांच कर रहे अधिकारी दागी पाए जा रहे विभाग से हैं. मामले की जांच सीबीआई को नहीं दी जानी चाहिए. एक नजर में मामला इस परीक्षा में शामिल सोनिका देवी ने याचिका दायर कर परीक्षा प्रक्रिया पर आपत्तियां जताई गईं. सुनवाई के दौरान परीक्षा नियामक प्राधिकरण इलाहाबाद से मंगवाए गए दस्तावेजों की जांच हुई. इसमें सामने आया कि अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं को बदला गया है.

सरकार ने जांच के लिए समिति बनाई, जिसमें प्रमुख सचिव चीनी उद्योग संजय आर भूसरेड्डी को अध्यक्ष और सर्व शिक्षा अभियान निदेशक वेदपति मिश्रा व बेसिक शिक्षा के डायरेक्टर सर्वेंद्र विक्रम सिंह को सदस्य बनाया गया. प्राधिकरण सचिव सुतता सिंह को निलंबित किया गया. समिति ने बताया कि 12 अभ्यर्थियों की कॉपियां में गड़बड़ियां सामने आई.

23 अभ्यर्थियों को परीक्षा परिणाम की दूसरी लिस्ट में योग्य घोषित किया गया, वे पहली लिस्ट में फेल थे. वहीं 24 अभ्यर्थियों को योग्य होते हुए भी आयोग्य घोषित किया गया. इस याचिका पर एक नवंबर को दिए निर्णय में हाईकोर्ट ने पूरे मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.

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