सामाजिक चेतना के सिपाही का चले जाना

गत दिवस सहारनपुर में बसपा के वरिष्ठ नेता फूल सिंह का अल्प बीमारी के बाद निधन हो गया. श्री फूल सिंह की आयु लगभग 96 वर्ष थी. स्व.फूल सिंह को यूं तो राजनीतिक रूप से बहुत प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं हुई लेकिन दलित आंदोलन, और बसपा के लोग जब यह लेख पढ़ रहे होंगे तो वे जानकर हैरान हो जाएंगे कि श्री फूल सिंह का निधन वास्तव में वर्तमान दलित राजनीति और बसपा के लिए कितनी बड़ी क्षति है? सामाजिक चेतना जगाने वाले एक ऐसे युग पुरुष का चले जाना है जिन्होंने उस समय दलित चेतना जगाने का कार्य किया जब दलित समाज के लोग अपने हकों के लिए लड़ना भी नहीं जानते थे.

बसपा अध्यक्ष कुमारी मायावती जिस विधान सभा सीट हरौड़ा से भारी मतों से जीतकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी ये वही विधान सभा सीट थी जिस पर मायावती से पहला चुनाव बसपा के टिकट पर फूल सिंह ने ही लड़ा था और मायावती के लिए इस विधान सभा सीट पर ऐसी जमीन तैयार की थी जिस पर रिकॉर्ड मतों से जीतकर मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी. मायावती से पहले जब फूल सिंह ने इस विधानसभा से चुनाव लडा था उस समय कोई भी व्यक्ति बसपा से चुनाव लड़ना ही नहीं चाहता था . लेकिन फूलसिंह ने मायावती द्वारा उन पर जताए गए विश्वास को टूटने नहीं दिया और 1991 में जब पूरे प्रदेश में राम मंदिर की लहर चल रही थी तब भी भाजपा प्रत्याशी को जबर्दस्त टक्कर दी और काफी संख्या में मत प्राप्त किए. विपरीत माहौल में भी अच्छे वोट मिलने के कारण ही मायावती की नजर इस सित पर पड़ी और वे इस सीट से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंची थी. कहीं ना कहीं ये स्व.फूलसिंह की मेहनत ही थी कि संक्षिप्त संसाधनों के बावजूद उन्होंने बसपा का एक वोट बैंक तैयार कर दिया था.

स्व. फूलसिंह का जन्म सहारनपुर के एक छोटे से गांव रूपड़ी जुनारदार में लगभग 96 वर्ष पूर्व हुआ था. उन्होंने लगभग एक सदी पूर्व भी शिक्षा के महत्त्व को जाना था. हालांकि वे मिडिल तक कि पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सके थे लेकिन उनके अंदर कमाल की सामाजिक और राजनीतिक समझ थी. आजादी के पूर्व के महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू , सुभाष चन्द्र बोस की जनसभाओं के किस्से वे अक्सर सुनाया करते थे. आजादी के बाद वे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की सक्रिय राजनीति से जुड़े रहे. वे उस समय इंदिरा गांधी की राजनीति के समर्थक रहे.कांग्रेस के लिए खूब कार्य किया. खूब आंदोलनों में हिस्सा लिया. जेल भी गए, लेकिन अपने विचारों पर कायम रहे और उसे प्रभावित नहीं होने दिया.

स्व.फूलसिंह की सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की सत्तर – अस्सी के दशक में वे मेलों, नुमाइशों में दलित जागरण के कार्यक्रमों के आयोजनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. कई बार दो – तीन दिन तक लगातार जागकर भी वें इन आयोजनों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.

अस्सी के दशक में ही जब मान्यवर कांशीराम ने ‘डी एस फोर’ के बैनर तले आंदोलन शुरू किया तो फूलसिंह उस आंदोलन से जुड़ गए. डी एस फोर के द्वारा किए जाने वाले बहुत से कार्यक्रमों में उन्होंने भाग लिया . बाद में बसपा के गठन के साथ ही उन्होंने पूरी तरह से बसपा के झंडे को थाम लिया. ये वो दौर था जब बसपा के कार्यकर्ताओं को बड़ी ही हीन दृष्टि से देखा जाता था. बसपा का झंडा लेकर चलने वालों का लोग मज़ाक उड़ाते थे. वो देखो हाथी के झंडे वाला जा रहा है बोलकर लोग मज़ाक उड़ाते थे.ऐसे समय में बसपा का झंडा उठाना और अपने अंतिम समय तक नीले झंडे को उठाए रखना फूलसिंह जैसी जीवटता के व्यक्ति के बूते कि ही बात थी. अपनी अंतिम सांस तक वे मान्यवर कांशीराम के गुण गाते रहे. कांशीराम जी में मुझे दूसरे अम्बेडकर की मूर्ति दिखाई देती है ये वो हमेशा बोलते थे.

श्री फूलसिंह जिस दौर में बसपा के लिए कार्य कर रहे थे वो ऐसा समय था जब पार्टी के लोगो के पास पैसा नहीं होता था. लेकिन हौसला कमाल का था. ये वो समय था जब बसपा का टिकट कोई लेने को तैयार नहीं होता था. ऐसे दौर में मज़दूरी के पैसो से और अपने परिवार का पेट काटकर समाज के लिए कुछ करने का हौसला था फूलसिंह के अंदर. दो – दो रूपए इकट्ठे करके ,लोगो से दस – बीस रूपए लेकर समाज के लिए काम करने वालो की कड़ी में अभी अगर कुछ लोग शेष बचे है तो फूलसिंह उनमें एक सबसे महत्त्वपूर्ण नाम था. नामांकन के लिए भी जेब में पैसे ना हो लेकिन मान्यवर कांशीराम के मिशन के लिए चुनाव लडने के लिए तैयार हो जाना फूलसिंह जैसे लोगो के ही बस की बात थी.

आज फूलसिंह इस दुनियां को अलविदा कहकर चले गए.लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाएगा उनके उन विचारों के लिए जो वे बड़ी जोरदार तरीके से लोगो के सामने रखते थे. झूठ, ढोंग, आडंबर का विरोध वे जीवनभर करते रहे. धर्म के नाम पर लोगो को मूर्ख बनाने का विरोध करते रहे. कर्मकांडों के नाम पर समाज का शोषण करने वालों का विरोध करते रहे. धर्म के नाम पर लूटने वालों का हमेशा उन्होंने विरोध किया. कई बार इसके कारण उन्हें आलोचना का शिकार भी होना पड़ा लेकिन उनके विचार कभी कोई प्रभावित नहीं कर सका.

पता नहीं बसपा के लोग या वर्तमान नेतृत्व फूलसिंह को याद रखेगा कि उन्हें भूल जाएगा लेकिन पार्टी के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को शायद ही मिटाया जा सके. फूलसिंह आखिरी समय तक मान्यवर कांशीराम की फोटो को देखकर खुश होते रहे. मायावती में देश के दबे – पिछड़े समाज के लिए कुछ अच्छा करने की संभावना देखते रहे.

आज उनका चले जाना भले ही देश में चर्चा का विषय नहीं बना हो और बसपा सुप्रीमो सहित बसपा के आज के बड़े नेता उन्हें नहीं जानते हो लेकिन स्व.फूलसिंह वास्तव में बसपा के नीव के वे पत्थर है जिनके ऊपर आज बसपा पार्टी का महल खड़ा है. आज भी उनका परिवार सामाजिक आंदोलन में उनकी परम्परा को आगे बढ़ाने में लगे है.                                                                            उन्हें शत शत नमन.

 मुकेश गौतम

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बसपा सुप्रीमो का भाजपा पर बड़ा आरोप : आतंकवाद व नक्सलवाद से निपटने में सरकार फेल

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल के गणबंधन पर भाजपा की सरकार को गिराने का संकल्प लेने वाली बसपा मुखिया मायावती ने मोदी सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है. बसपा सुप्रीमो मायावती का आरोप है कि भाजपा आतंकवाद, नक्सलवाद व अराजकता आदि से निपटने में पूरी तरह से विफल रही है.

मायावती ने कहा कि इसके बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी का उल्टा आरोप है कि हमारी सरकारें आतंकवाद पर नरम रही हैं. अगर ऐसा होता तो हमारी सरकारों के कानून के राज में हिंसक वारदातें कम व भाजपा शासन में ज्यादा क्यों. मायावती ने महाराष्ट्र में हुए नक्सली हमले में शहीद जवानों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए इसे दु:खद बताया.

उन्होंने ट्वीट किया कि ‘महाराष्ट्र के गढ़चिरौली नक्सली हमले में 15 जवानों की शहादत अति-दुख:द. उनके परिवारों के प्रति गहरी संवेदना. किन्तु कड़वा सच यही है कि भाजपा सरकार की गलत नीतियों के कारण देश में अराजकता बढ़ी है तथा सीमा पर व देश के भीतर भी जवानों की मौतें बढ़ी हैं जो बड़ी चिन्ता की बात है.’

उन्होंने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि हर प्रकार के षडय़ंत्रों आदि के बावजूद उनकी निरंकुश सरकार जा रही है. वह गैर-भाजपा शसित राज्यों में अनैतिकता, हिंसा आदि के साथ-साथ सपा-बसपा सहित विपक्ष के शीर्ष नेताओं को भी सीबीआई, ईडी, आईटी आदि सरकारी मशीनरी के जरिए भयभीत करने में लगे हुए हैं. यही नहीं राजनीतिक षडय़ंत्र करने का आरोप भी लगाया और कहा कि अभी हाल में इनका जनविरोधी अहंकार इतना सर चढ़कर बोला कि इन्होंने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक तोड़कर ममता बनर्जी सरकार गिराने की खुलेआम धमकी भी दे डाली जो राजनीतिक षडयंत्र का चरम है, जिसके लिए बंगाल व देश की जनता उन्हें कभी भी माफ करने वाली नहीं है. फिलहाल मायावती पीएम मोदी पर पूरी तरह हमलावर हैं.

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आंध्रप्रदेश में तेज बारिश, ओडिशा में 8 लाख लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाए गए

भुवनेश्वर। फैनी चक्रवात के चलते आंध्रप्रदेश में तेज बारिश हो रही है. तूफान कल ओडिशा के पुरी से टकरा सकता है. इस दौरान हवाओं की गति 175-205 किमी प्रतिघंटे हो सकती है. खतरे के मद्देनजर सुरक्षाबलों को हाईअलर्ट पर रखा गया है. तटीय इलाकों में रहने वाले 8 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया. 880 राहत शिविर बनाए गए हैं. सभी शिक्षण संस्थान बंद रखने के आदेश दिए गए हैं. गंजाम, पुरी, खुर्दा, जगतसिंहपुर और कटक में भारी बारिश हो सकती है.

मौसम विभाग ने बुधवार को चेतावनी जारी करते हुए कहा कि फैनी बेहद गंभीर चक्रवाती तूफान में बदल गया है. ईस्ट कोस्टर्न रेलवे ने अब तक 103 ट्रेनें रद्द कर दी हैं. ओडिशा 11 जिलों में आचार संहिता हटा दी गई है.

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक- फैनी 6 किमी/घंटे की रफ्तार से ओडिशा की तरफ बढ़ रहा है. ज्वाइंट टाईफून वॉर्निंग सेंटर (जेडब्ल्यूटीसी) के मुताबिक- फैनी तूफान अब तक का सबसे खतरनाक चक्रवात साबित हो सकता है. ओडिशा में 1999 में आए सुपर साइक्लोन से करीब 10 हजार लोग मारे गए थे.

क्षेत्रीय मौसम विभाग के पूर्व निदेशक शरत साहू के मुताबिक- ओडिशा में 1893, 1914, 1917, 1982 और 1989 की गर्मियों में भी तूफान आए थे. लेकिन इस बार का चक्रवात बंगाल की खाड़ी के गर्म होने से बना है. लिहाजा यह ज्यादा खतरनाक हो सकता है.

किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए नेवी, एयरफोर्स और कोस्टगार्ड को हाईअलर्ट पर रखा गया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन (एनडीआरएफ) और ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स (ओडीआरएफ) को खतरे वाले इलाकों में तैनात किया गया है. अकेले भुवनेश्वर में दमकल की 50 टीमें तैनात की गई हैं. एक टीम में 6 सदस्य हैं. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने स्थानीय अधिकारियों से कहा है वे लोगों को मुफ्त खाना देने की व्यवस्था रखें.

स्पेशल रिलीफ कमिश्नर बीपी सेठी ने चेतावनी दी है कि तूफान के टकराने के दौरान उच्च ज्वार (1.5 मीटर तक) आ सकता है. लिहाजा लोग सावधानी बरतें. 15 मई तक डॉक्टरों और स्वास्थ्य अफसरों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. पुलिस प्रमुख आरपी शर्मा ने बताया कि सभी पुलिस अफसरों की भी छुट्टियां निरस्त कर दी गई हैं. जो अधिकारी छुट्टी पर हैं, उन्हें भी तुरंत ड्यूटी पर आने के आदेश दिए गए हैं.

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UN ने अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी करार दिया तो US ने दी प्रतिक्रिया

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व्हाइट हाउस ने कहा है कि आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाना पाकिस्तान से आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने और दक्षिण एशिया में सुरक्षा एवं स्थिरता कायम करने की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है. व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद  के प्रवक्ता गैरेट मार्किस ने अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने को लेकर कहा, ‘अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाना पाकिस्तान से आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने और दक्षिण एशिया में सुरक्षा एवं स्थिरता लाने की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’

मार्किस ने एक बयान में कहा कि अमेरिका मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1267 प्रतिबंध समिति की सराहना करता है. जैश-ए-मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र पहले की वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है. इसी संगठन ने कश्मीर में 14 फरवरी को हुए आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी ली थी जिसमें 40 भारतीय जवान शहीद हो गए थे.

विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने भी इस कदम का स्वागत किया और कहा कि यह आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अमेरिकी कूटनीति की जीत है. पोम्पिओ ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के अमेरिकी कूटनीतिक प्रयासों का नेतृत्व करने को लेकर संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी मिशन को भी ट्वीट करके बधाई दी. उन्होंने कहा, ‘यह कदम आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अमेरिकी कूटनीति की जीत है और दक्षिण एशिया में शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.’

इस बीच, अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मोर्गन ओर्तागस ने कहा कि जैश कई आतंकवादी हमलों का जिम्मेदार रहा है और वह दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता एवं शांति के लिए खतरा है. उन्होंने कहा, ‘जैश संस्थापक और सरगना होने के नाते अजहर भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने की सभी अनिवार्यताओं को पूरा करता है. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश अजहर के खिलाफ संपत्तियां सील करने, यात्रा प्रतिबंध एवं हथियार संबंधी प्रतिबंध लगाने के लिए प्रतिबद्ध है. हम सभी देशों से इन प्रतिबद्धताओं का पालन करने की उम्मीद करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा जताई इस प्रतिबद्धता की सराहना करते हैं कि पाकिस्तान अपने बेतहर भविष्य की खातिर अपनी जमीन से आतंकवादियों एवं आतंकवादी समूहों को काम करने की अनुमति नहीं देगा.’ बता दें, संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अजहर को बुधवार को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित कर दिया. भारत के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है. संरा सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के तहत पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन के सरगना को ‘‘काली सूची” में डालने के एक प्रस्ताव पर चीन द्वारा अपनी रोक हटा लिए जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने यह घोषणा की.

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जानिये कहां-कहां ट्रेन टिकट में आपको छूट देता है भारतीय रेलवे

नई दिल्ली। रेल में सफर तो हम सभी बहुत करते है लेकिन इसके बाद भी हम रेलवे के कई नियमों के बारे में नहीं जानते हैं. क्या आपको पता है रेलवे 53 अलग-अलग श्रेणियों में टिकट पर छूट देता है. ये छूट 10 से 100 प्रतिशत तक होती है. ये छूट वरिष्ठ नागरिकों,विद्यार्थियों, डॉक्टरो को दी जाती है. इसकी जानकारी रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट पर भी उपलब्ध है. बुजुर्गों के अलावा ये रियायत बाकी व्यक्तियों को संबंधित संगठन का प्रमाण पत्र दिखाने के बाद ही दी जाएगी. हालांकि किसी दूसरे देश द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज रियायत के लिए मान्य नहीं होंगे.

यहां समझे किसे कितनी छूट

व्यक्तियों की श्रेणी                                                छूट पुरुष (60 वर्ष या उससे अधिक)          सभी क्लास में 40% (राजधानी,                                                    शताब्दी, दुरंतो ट्रेन सहित) महिलाएं (60 वर्ष या उससे अधिक)       सभी क्लास में 50% (राजधानी,                                                    शताब्दी, दुरंतो ट्रेन सहित) मेडिकल कर्मियों को छूट

व्यक्तियों की श्रेणी                                              छूट का प्रतिशत डॉक्टर-एलोपैथिक (किसी भी उद्देश्य के लिए यात्रा)     राजधानी / शताब्दी /                                     जन शताब्दी ट्रेनों में सभी क्लास में 10% छूट

नर्स और दाइ (छुट्टी या ड्यूटी के लिए यात्रा)        दूसरी श्रेणी में 2 प्रतिशत                                                      और स्लीपर क्लास में 25% छूट

छात्रों को भी दी जाती है छूट

  • सामान्य वर्ग में आने वाले छात्र- छात्राओं को होमटाउन या शैक्षिक टूर पर जा रहे 2nd क्लास और स्लीपर क्लास में 50 प्रतिशत छूट दी जाती है.
  • एससी,एसटी वर्ग में आने वाले विद्यार्थियों को होमटाउन या शैक्षिक टूर पर जाने के लिए 2nd क्लास और स्लीपर क्लास में 75 प्रतिशत छूट दी जाती है.
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों छात्रों को होमटाउन या शैक्षिक टूर (साल में एक बार) जाने के लिए 75 प्रतिशत छूट दी जाती है.
  • राज्य स्तर की प्रवेश परिक्षी में जाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को 2nd क्लास में 75 प्रतिशत छूट दी जाती है.
  • यूपीएससी और केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित मुख्य लिखित परीक्षा में उपस्थित होने वाले छात्रों को 2nd क्लास के लिए 50 प्रतिशत की रियायत मिलती है.
  • शोध कार्य के सिलसिले में यात्रा के लिए 35 वर्ष की आयु तक के शोधकर्ता को भी ट्रेन की स्लीपर क्लास और 2nd क्लास टिकट पर 50 प्रतिशत की छूट मिलती है.
  • वर्क कैंप में भाग लेने वाले छात्र के साथ ही दूसरे लोगों को स्लीपर क्लास और 2nd क्लास टिकट पर 50 प्रतिशत की रियायत मिलती है.

ये है छूट पाने के नियम

सभी रियायती किराए की गणना रेलवे के अनुसार, मेल / एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए ट्रेन के प्रकार के बावजूद किराए के आधार पर की जाती है

रियायतें केवल मूल किराए के संबंध में स्वीकार्य हैं. अन्य शुल्कों के संबंध में कोई रियायत स्वीकार्य नहीं है, जिसमें सुपर फास्ट अधिभार, आरक्षण शुल्क आदि शामिल हैं.

यात्री को एक समय में केवल एक ही प्रकार की रियायत मिलेगी है और किसी भी व्यक्ति को एक साथ दो या अधिक रियायतों की अनुमति नहीं है. रेलवे द्वारा दिए गए रियायत टिकट को यात्री किसी अन्य क्लास के लिए बदल नहीं सकते हैं.

सीजन टिकट, सर्कुलर यात्रा टिकट और कुछ ट्रेनों में रियायत नहीं दी जाएगी.

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व्रत और उपवास

व्रत और उपवास ऐसे दो शब्द हैं , जिनके बारे में लोगों में कई भ्रांतियां हैं. इस संबंध में जो हम समझते हैं या करते हैं. उसका व्रत और उपवास से कोई लेना देना नहीं है.

पाखंडी व्यवस्था (असमानता पर आधारित तथाकथित …धर्म) में व्रत और उपवास का काफी प्रचलन है . पुरुषों की तुलना में महिलाएं इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं . इसे अपने जीवन का एक हिस्सा समझती हैं . प्रत्येक वर्ष के 12 महीनों में लगभग प्रत्येक माह कोई ना कोई व्रत और उपवास का कार्यक्रम अवश्य रहता है. किसी- किसी माह में तीन- चार कार्यक्रम बन जाते हैं. अब तो ये टीनएजर्स में भी काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. वास्तव में व्रत और उपवास क्या है ? आओ इसका पता लगाएं.

व्रत में अक्सर लोग क्या करते हैं , खासकर महिलाएं. यह समझना सबसे ज्यादा जरूरी है . जैसे एकादशी, शिवरात्रि, नवरात्रि या जन्माष्टमी आदि का सीजन आता है या दिन आता है. उस दिन महिलाएं बड़े उत्साह के साथ काम में लग जाती हैं. जल्दी-जल्दी सुबह उठती हैं. नित्य क्रिया करती हैं. स्नानादि करके पूजा पाठ की सामग्री जैसे फल-फूल, अगरबत्ती- दीपबत्ती, माचिस, मिठाई व थाली आदि लेकर अपने अराध्य देवी- देवता की फोटो के सम्मुख व्रत से संबंधित पूजा पाठ में लग जाती हैं . माला – फूल चढ़ाती हैं . मिठाई अर्पित करती हैं. एक हाथ से जलती अगरबत्ती पकड़ कर दूसरे हाथ के सहारे जलती मोमबत्ती वाले हाथ को सहारा देकर घुमा घुमा कर फोटो वाले देवी देवता को सुंघाती हैं . धूप बत्ती भी सुंघाती हैं. घर में बच्चों को भले ही खाने को घी ना मिले, लेकिन दिन के उजाले में भी प्रकाश के लिए घी का दीप जलाती हैं . घर के सारे जरूरी कामकाज छोड़कर व्रत के पूजा पाठ में लगी रहती हैं. घर के मुखिया सास-ससुर या अन्य जब किसी काम के लिए कहते हैं तो फौरन जवाब दे देती हैं कि देख नहीं रहे हो, *आज मेरा व्रत है.* अब प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी फोटो के सामने अगरबत्ती जला देने से, फल- फूल चढ़ा देने से या घी के दिए जला देने से व्रत पूरा हो जाता है . या यूं कहें कि किसी फोटो के सामने हाथ जोड खडे होकर या बैठकर ताली बजा- बजाके, गर्दन हिला- हिलाके स्तुति गान करने को ही व्रत कहते हैं. मेरे विचार से तो शायद नही.

*व्रत* का साधारण सा अर्थ है *संकल्प लेना* या *दृढ़ प्रतिज्ञ होना*. झूठ ना बोलने , चुगली ना करने, चोरी ना करने , जुआ ना खेलने , नशा ना करने, व्यभिचार ना करने , बड़ों का सम्मान करने, गुरुओं का आदर करने, घर परिवार के भरण पोषण के लिए कुशल आजीविका अर्जित करने तथा बच्चों की शिक्षा-दीक्षा आदि के उचित प्रबंध करने के *संकल्प या दृढ़ प्रतिज्ञ होने* को *व्रत कहते हैं*. क्या हम इस प्रकार का संकल्प लेते हैं? यदि ऐसा नहीं करते हैं तो यह व्रत नही एक पाखंड है.

इसी प्रकार व्रत को पाली भाषा में भी समझ सकते हैं. *व्रत पाली भाषा के विरत शब्द से बना हुआ है,* जिसका अर्थ होता है , पाप कर्मों या बुरे कर्मों से विरत रहना या दूर रहना. जैसे हम झूठ नहीं बोलेंगें. चोरी नही करेंगें. चुगली नही करेंगें. नशीले आदि पदार्थों से दूर रहेंगें. बिना सोचे विचारे कोई काम नही करेंगें. इस प्रकार *मनोविकारों से दूर रहकर और चित्त को निर्मल कर सीलों का पालन करना ही व्रत है.* पालीसुत्त में भी कहा गया है कि-

  • *पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि.* मैं प्राणी हिंसा से विरत रहने या दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूं.
  • *अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि.* मैं बिना दिए हुए दान अर्थात चोरी से विरत रहने या दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूं.
  • *कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि.* मैं व्यभिचार से विरत रहने या दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता/ करती हूं.
  • *मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि.* मैं झूठ बोलने से विरत रहने या दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता/ करती हूं.
  • *सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि.* मैं प्रमाद पैदा करने वाले नशीले पदार्थों से विरत रहने या दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता/ करती हूं.

इसी प्रकार *उपवास* का भी मामला है . लोग अक्सर किसी निर्धारित माह की निर्धारित तिथि पर पड़ने वाले विशेष अवसरों पर खासकर महिलाएं बिना भोजन किए निराहार किसी विशेष अनुष्ठान में संलिप्त दिखाई पड़ती हैं. पूछने पर पता चलता है कि उनका उपवास है. उपवास के दिन वे किसी से ठीक से बात नही करती हैं. यहां तक कि सास-ससुर और पति आदि के भोजन – पानी मांगने पर नाक भौंह सिकोडते हुए कहती हैं कि दिखाई नहीं दे रहा कि *आज मेरा उपवास है.* आप लोगों को केवल अपने भोजन पानी की ज्यादा चिंता फिकर है. मेरे उपवास की नही. आज सुबह से कुछ खाया पिया नही है . इसका जरा सा भी ख्याल नही है . शाम को पति के ऊपर और अधिक उखड जाती हैं, जब उनको यह पता चलता है कि पति ने उनके खाने-पीने के लिए कुछ फल फ्रूट नही लाया है.

उपवास के दिन वे घर का कोई विशेष काम धाम नहीं करती हैं. न जानवरों को चारा पानी देती . न खेती-बाड़ी में विशेष सहयोग ही करती हैं. कुल मिलाकर यह उपवास न होकर एक प्रकार से भूख हड़ताल का तांडव सिद्ध होता है. क्या बिना भोजन किए निराहार, निराजल रहने को, अपनों का अनादर करने को, पूजा की थाल सजा के किसी फोटो के सामने बुत बनने को उपवास कहते हैं. मेरे विचार से शायद नही.

उपवास हिंदी के दो शब्दों से मिलकर बना है . *उप* और *वास*. उप का शाब्दिक अर्थ है *समीप या निकट* . वास का शाब्दिक अर्थ है *निवास करना या कहीं जाकर रहना*. अर्थात सज्जनों की संगति करना. सन्मार्ग पर चलना. बुद्धिजीवियों के समीप या निकट रहना . अच्छे और गुणवान लोगों के निकट निवास करना. बुरे लोगों की संगतियों से दूर रहना. पाप कर्मों से दूर रहकर पुण्यकर्मों को करना . सीलों का पालन करना. चित्त को निर्मल और शुद्ध करना ही उपवास है . अर्थात *दुर्जनों से दूर रहकर सज्जनों के समीप रहना ही उपवास है.* क्या हम उपवास में ऐसा करते हैं ? अगर नही करते हैं, तो यह उपवास नही एक पाखंड है.

पालीसुत्त में भी कहा गया है कि- *सब्ब पापस्स अकरणं कुसलस्स उपसंपदा सचित्त परियोदपनं एतं बुद्धान सासनं.* अर्थात सभी पाप कर्मों से दूर रहकर कुशल कर्मों को करना ही बौद्धों का संदेश है. ———————–

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मोदी जी को हराइए…उनकी हार में ही देश की जीत है…

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी. सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा…और ये 5 साल के शासन के बाद हमें पाकिस्तान का भय दिखा कर वोट मांग रहे है. उस पाकिस्तान का भय, जो हमसे 4 युद्ध बुरी तरह हार चुका है. जो एक फेल्ड स्टेट बन चुका है. उस पाकिस्तान का डर ये हमें दिखाते है. सोचिए, अगले 5 साल ये क्या करेंगे? इसलिए, मोदी जी को हराइए.

ये हमें परोक्ष रूप से मुसलमानों का डर दिखाते है. उस मुसलमान से, जिसने 600 साल से अधिक समय तक हिन्दुस्तान पर राज किया, लेकिन हिन्दुस्तान को मुस्लिम राष्ट्र नहीं बना सके. उस मुसलमान का डर दिखा कर हमसे वोट मांग रहे है, जो आज पंक्चर और मुर्गे की दुकान न हो, तो भूखा मर जाए. सोचिए, ऐसे पीएम फिर से सत्ता में आ गए तो अगले 5 साल और क्या करेंगे? इसलिए, मोदी जी को हराइए.

मोदी जी ने जिस नोटबन्दी को आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ सबसे बडा सर्जिकल स्ट्राइक बताया था, वो बुरी तरह फेल हुआ. न आतंकवाद खत्म हुआ न नक्सलवाद. अपनी असफलता का हर ठीकरा कांग्रेस के सिर पर फोडने वाले मोदी जी को हराइए, वर्ना अगले 5 साल में ये देश का क्या हाल करेंगे, इसका अन्दाजा लगाना भी मुश्किल है.

पूंजीवाद के सबसे बडे सेफ्टी वॉल्व, ट्रिकल डाउन थ्योरी, को इन्होंने नोटबन्दी और जीएसटी से बर्बाद कर दिया. अब पूंजीपतियों के घडे से धनरूपी पानी भी नहीं चूं रहा, जिसे चाट कर आम आदमी अपनी प्यास बुझा सके. मैं छोटे और मझोले उद्योगपतियों की बात कर रहा हूं. अकेले नोटबन्दी के कारण लाखों नौकरियां खत्म हुई. लोगों की आमदनी घटी. अर्थशास्त्र के ऐसे जानकार पीएम अगर दुबारा सत्ता में आते है तो सोचिए, देश का क्या होगा? इसलिए भी मोदी जी को हराइए.

7 लाख केन्द्र सरकार की असैन्य नौकरी समेत देश भर में तकरीबन 25 लाख सरकारी नौकरियों (राज्यों के) के पद रिक्त है. ध्यान रहे, अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारे है. और 30 लाख से अधिक पद रिक्त है, लेकिन इस सरकार ने किसी को इन पदों पर नौकरी नहीं दी. प्राइवेट नौकरिओयों में भी श्रम कानूनों को इतना कमजोर बनाय अकि आज कर्मचारी गदहा बन कर रह गया है. न कोई जॉब सिक्योरिटी, न आगे बढने की असीमित संभावना. ऐसे पीएम को क्या आप दुबारा सता में आने देना चाहेंगे? बिल्कुल नहीं. इसलिए भी मोदी जी को हराइए.

जिस गाय के नाम पर ये हमसे वोट मांग रहे है, इन्हीं के शासन में भारत बीफ का सबसे बडा एक्सपोर्टर बन गया. देश में श्वेत क्रांति लाने की जगह इनकी सरकार में मॉब लिंचिंग की क्रांति आ गई. गाय जहां देश के बेरोजगार युवाओं के लिए आजीविका का साधन बन सकती थी, उसकी जगह इनकी सरकार और पार्टी की राजनीति ने युवाओं को गो पालक की जगह फर्जी गो रक्षक या कहे कि गाय के नाम पर गुन्दा और हत्यारा बना दिया. क्या आप चाहेंगे कि आपका बच्चा भी अगले 2-3 सालों में जब युवा हो तब वो एक बेहतर इंजीनियर या डॉक्टर बननेकी जगह गो रक्षक बने. अगर नहीं, तो आप मोदी जी को हराइए.

बीएसएनएल, रेलवे, एचएएल, इंडिया पोस्ट समेत सभी सरकारी विभागों के उन कर्मचारियों से एक सवाल कि आप अपने दिल पर हाथ रख कर बोलिए कि इस सरकार ने पिछले 5 साल में आपके विव्भाग का कबाडा किया या नहीं. आपकी नौकरी खतरे में डाली या नहीं. आपको अपने पेंशन का टेंशन दिया या नहीं. अगर जवाब सकरात्मक है तो आप मोदी जी को हराइए. वर्ना अगले 5 साल में ये आपकी आजीविका के साथ क्या करेंगे, आपको अन्दाजा तक नहीं.

मेक इन इंडिया के तहत आपके बच्चे को नौकरी मिल गई हो, मुद्रा लोन के तहत आपका बच्चा सेट हो गया हो, आपके बच्चे को किसी बेहतर इंजीनियरिंग मेडिकल कॉलेज में मुफ्त शिक्षा मिल रही हो, तो जरूर फिर से मोदी जी को लाइए. अन्यथा उन्हें हराइए. वर्ना, आप क्या आपकी आने वाली पीढी भी स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अपने जीवन भर की कमाई लुटाता रहेगा और सरकारें आपको ठेंगा दिखाती रहेंगी.

देश के करोडों किसान ईमानदारी से बता दे कि साल के 6 हजार मिलने से आपकी आमदनी दोगुनी हो जाएगी या इतने पैसे से आपका जीवन संभल जाएगा. यदि हां तो लाइए फिर मसे मोदी जीको जीता कर. अन्यथा, अगर आपको लगता है कि ये पैसा सीधे-सीधे वोट खरीदने के लिए रिश्वत के तौर पर दी जा रही है और इस पैसे से आपकी कृषि व्यवस्था पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पडने वाला है तो हराइए मोदी जी को. अन्यथा, अभी तो किसान से एक मल्टीनेशनल कंपनीज ने लेज आलू उगाने के लिए करोडों रुपये का हर्जाना मांगा है, ये सरकार फिर से आई तो आपकी अपनी जमीन भी अडानी-अंबानी के हाथों गिरवी रखवा देंगे. इस वजह से भी आपको मोदी जी को हराना चाहिए.

देश के युवाओं को लगता है कि उन्हें मोदी जी के शासनकाल में बेहतर शिक्षा,बेहतर नौकरी मिली है या करियर विकास के लिए संभावनाओं का द्वार खुलता नजर आ रहा है, तो उन्हें फिर से वोट दीजिए. लेकिन, उससे पहले ये जांच लीजिए कि क्या इस सरकार ने युवाओं के लिए यूनिवर्सिटीज की संख्या, सीटों की संख्या बढाई, नौकरियों की संख्या बढाई. अगर जवाब न में है तो निश्चित तौर पर मोदी जी को हराइए.

और हां, वोट करते समय ये बिल्कुल भी न सोचे कि मोदी नहीं तो कौन? ये दुनिया विकल्पहीन नहीं होती. और ये भी कि भारत जैसे देश को कोई अकेला पीएम चला ले, ये अभी तक नहीं हुआ है. ये देश सदिओं से चलता आ रहा है, चल रहा है, चलता रहेगा. हां, बीच-बीच में कुछ लोगों ने अपने अहमकपने में इस देश को थोडा पीछे जरूर धकेल दिया. फिर भी ये देश अपने और अपने लोगों के बूते आगे बढता रहा है और बढता रहेगा.

इस बीच, मोदी और इन्दिरा जैसे कितने पीएम आते-जाते रहेंगे. लेकिन, हमें किसी को ये गुमान नहीं होने देना है कि वो है तो देश है. नहीं. हम है, तो देश है. इस बार, इस गुमान को परास्त करने के लिए भी मोदी जी को हराइए…

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भोपाल से भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा ने बुर्का को बताया राष्ट्रहित में

शिवसेना के बुधवार को श्रीलंका की तर्ज पर देशहित में बुर्का और नकाब पर बैन लगाने की मांग के साथ ही इस विषय पर राजनीति तेज हो गई है. शिवसेना की यह मांग ऐसे समय की है जब देश में लोकसभा चुनाव चल रहा है और 3 चरणों की वोटिंग बाकी है. केंद्र में फिर से सत्ता की वापसी में जुटी बीजेपी ने भारत में बुर्का पर प्रतिबंध को गैरजरुरी बताया, लेकिन भोपाल से बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा ने इस मांग का समर्थन किया है.

बीजेपी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने भारत में बुर्का में बैन की मांग का विरोध किया. उन्होंने कहा कि भारत में बुर्का में बैन की जरुरत नहीं. दूसरी ओर, बीजेपी की ओर से भोपाल प्रत्याशी और हिंदूवादी नेता साध्वी प्रज्ञा ने इस पर देशहित में बैन का समर्थन किया.

साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि किसी कारण से अगर कोई इस माध्यम का लाभ उठाते हैं और इससे देश को नुकसान पहुंचता हो, लोकतंत्र खतरे में हो या फिर सुरक्षा खतरे में हो तो ऐसी परंपराओं में थोड़ी ढील देनी चाहिए. कानून के जरिए बैन लगाया जाए इससे अच्छा है कि वो खुद ही इस पर फैसला लें. अगर कोई इसके लिए जरिए गलत काम करता है तो उनका ही पंथ बदनाम होगा.

नरसिम्हा राव ने कहा कि बुर्के पर फिलहाल पाबंदी लगाने की जरुरत नहीं. हर देश को अपनी सुरक्षा के हिसाब से फैसला लेना होता है. हमारा देश सुरक्षित है.

इससे पहले बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने श्रीलंका में ईस्टर संडे पर आतंकवादी हमलों के बाद वहां की सरकार की ओर से बुर्का पर प्रतिबंध लगाए जाने संबंधी नियम लाने की योजना का हवाला दिया. हमलों में 250 लोगों की मौत हो गई थी.

शिवसेना ने अपने मुखपत्रों ‘सामना’ और ‘दोपहर का सामना’ में आज बुधवार को छपे संपादकीय में कहा, ‘इस प्रतिबंध की अनुशंसा आपातकालीन उपाय के तौर पर की गई है जिससे कि सुरक्षा बलों को किसी को पहचानने में परेशानी ना हो. नकाब या बुर्का पहने हुए लोग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हैं.’ ‘डेली मिरर’ समाचार पत्र ने सूत्रों के हवाले से मंगलवार को कहा था कि श्रीलंकाई सरकार मौलानाओं से विचार-विमर्श कर इसे लागू करने की योजना बना रही है और इस मामले पर कई मंत्रियों ने मैत्रिपाला सिरिसेना से बात की है.

दूसरी ओर, केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी शिवसेना की इस मांग का विरोध किया है. रामदास अठावले ने कहा कि शिवसेना की यह मांग गलत है. हर बुर्का पहनने वाली महिला आतंकवादी नहीं होती. यह उनकी पारंपरिक पोशाक है. उनका हक है कि वे इसे पहन सकती हैं. ऐसा लगता है कि वे आतंकी हैं तो उनका बुर्का हटाया जा सकता है. भारत में बुर्के पर बैन नहीं लगना चाहिए.

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मजदूर दिवस पर मिल प्रबंधन ने मजदूरों पर चलाई गोलियां, जानिए- क्‍या है पूरा मामला

गाजियाबाद। दिल्ली से सटे गाजियाबाद में मेरठ हाइ-वे पर महेंद्रपुरी कट के पास स्थित मोदी कपड़ा मिल में बुधवार सुबह मिल प्रबंधन व मजदूरों के बीच झड़प हो गई. आरोप है कि मजदूर दिवस पर मिल प्रबंधन की ओर से दर्जनों राउंड फायरिंग की गई, जिसमें दो मजदूरों को गोली लगी है. करीब 15 साल से बंद पड़ी मोदी कपड़ा मिल के मजदूरों ने आरोप लगाया कि प्रबंधन चोरी-छिपे मिल में पड़ा स्क्रैप बेचना चाहता है. बुधवार को प्रबंधन स्क्रैप निकालने की कोशिश कर रहा था, तभी सैकड़ों की संख्या में मजदूर पहुंच गए.

बवाल की आशंका को देखते हुए करीब 8-10 थानों की फोर्स भी मौके पर बुला ली गई. ताजा जानकारी के मुताबिक प्रबंधन के लोगों को मिल से निकालकर मोदीनगर थाने भिजवाया गया है. उग्र मजदूरों को पुलिस अधिकारी समझा-बुझाकर शांत कराने का प्रयास कर रहे हैं. पुलिस की ओर से फायरिंग के आरोप में प्रबंधन के लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का आश्वासन दिया जा रहा है.

सूचना के बाद थाना प्रभारी के साथ सीओ मोदीनगर केपी मिश्र, एसपी ग्रामीण नीरज कुमार जादौन मौके पर पहुंचे और आसपास के कई थानों की फोर्स मौके पर बुलाई गई. पुलिस अधिकारी प्रबंधन के लोगों को मिल से बाहर निकालकर और मजदूरों को शांत कराने के प्रयास में जुटे हुए हैं.

गौरतलब है कि मोदी कपड़ा मिल करीब 15 साल पूर्व बंद हो गई थी. उस समय मिल में हजारों की संख्या में कर्मचारी काम कर रहे थे. मिल बंद होते समय मजदूरों को उनका भुगतान नहीं मिला था. उसी समय से मजदूरों और मिल प्रबंधन के बीच भुगतान को लेकर खींचतान चली आ रही है. मजदूरों का आरोप है कि लंबे समय से प्रबंधन चोरी-छिपे मिल में पड़ा स्क्रैप बेचने की फिराक में है. मिल की मशीनरी व अन्य उपकरण रखे हैं, जिनकी कीमत आज भी करोड़ों रुपये में है.

मजदूरों का आरोप है कि बुधवार सुबह 10 बजे उन्हें सूचना मिली की प्रबंधन के कई लोग मिल में घुसे हैं. इसके आधार पर 100-150 मजदूर मिल पहुंचे. आरोप है कि प्रबंधन ने निजी सुरक्षाकर्मियों और बाउंसरों को लगा रखा था. पीछे के रास्ते प्रबंधन स्क्रैप निकालने में जुटा था. सैकड़ों मजदूरों ने विरोध किया तो पहले उनसे मारपीट की गई. इस कारण हंगामा हुआ और जमकर पथराव किया गया. आरोप है कि मिल प्रबंधन के लोगों ने करीब तीन दर्जन राउंड फायरिंग की, जिस कारण मौके पर हड़कंप मच गया.

आरोप है कि फायरिंग में दो मजदूरों को गोली लग गई देखते ही देखते 400-500 मजदूर मिल पर जुट गए और उग्र प्रदर्शन करने लगे. वहीं फायरिंग की सूचना के बाद पुलिस विभाग में भी हड़कंप मच गया और तुरंत स्थानीय थाना पुलिस के साथ आला अधिकारी मौके पर पहुंचे.

मेरठ हाइवे पर स्थित कपड़ा मिल पर बीते करीब दो घंटे से जोरदार हंगामा चल रहा है. करीब 500 मजदूर कपड़ा मिल व हाइवे पर इकट्ठे हैं. हंगामे के कारण हाइवे का यातायात भी बाधित हो गया. मेरठ आने और जाने वाले दोनों मार्गों पर कई किलोमीटर लंबी वाहनों की कतारें लग गईं. एसपी ग्रामीण नीरज कुमार जादौन ने कहा कि दो लोग घायल हुए हैं. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें गोली लगी है या पत्थर की चोट लगी है. दोनों ओर से पथराव किया गया है. मिल प्रबंधन के लोगों को थाने में बिठाया गया है. उनका कहना है कि अपनी सुरक्षा में हवाई फायर किया गया है. फिलहाल लोग शांत हैं. मामले की वीडियोग्राफी कराई जा रही है. इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.

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PM मोदी पर मायावती ने ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ का लगाया आरोप

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. मायावती ने अपने ट्विटर अकाउंट पर तीन ट्वीट किए. इन ट्वीट के जरिए उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा संज्ञान में नहीं लिए जाने पर सवाल उठाया है. मायावती का कहना है कि यूपी सहित देश के जिन राज्यों में भी बीजेपी की सरकारें हैं वहां चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग चरम पर बना हुआ है. इतना ही नहीं, उन्होंने गैर-बीजेपी राज्यों में अनैतिकता, हिंसा आदि के साथ-साथ सपा-बसपा सहित विपक्ष के शीर्ष नेताओं को भी सीबीआई, ईडी, आईटी आदि सरकारी मशीनरी के जरिए भयभीत करके राजनीतिक षडयंत्र करने का आरोप लगाया.

मायावती ने ट्विटर पर लिखा, ”यूपी सहित देश के जिन राज्यों में भी बीजेपी की सरकारें हैं वहां चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग चरम पर बना हुआ है. खासकर वोट वाले दिन तो हर सीमा लांघ दी जाती है. यूपी, महाराष्ट्र, त्रिपुरा आदि इसके खास उदाहरण हैं. फिर भी चुनाव आयोग इसका उचित संज्ञान क्यों नहीं ले रहा है?” वहीं दूसरे ट्वीट में उन्होंने पीएम मोदी का जिक्र करते हुए लिखा, ”पीएम मोदी को पता है कि हर प्रकार के षडयंत्रों आदि के बावजूद उनकी निरंकुश सरकार जा रही है. इसीलिए वे गैर-बीजेपी राज्यों में अनैतिकता, हिंसा आदि के साथ-साथ सपा-बसपा सहित विपक्ष के शीर्ष नेताओं को भी सीबीआई, ईडी, आईटी आदि सरकारी मशीनरी के जरिए भयभीत करने में लगे हुए हैं.”

मायावती ने पीएम मोदी पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार गिराने की खुलेआम धमकी देने पर भी हमला किया. उन्होंने लिखा, ”और अभी हाल में इनका जनविरोधी अहंकार इतना सर चढ़कर बोला कि इन्होंने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक तोड़कर ममता बनर्जी सरकार गिराने की खुलेआम धमकी भी दे डाली जो राजनीतिक षडयंत्र का चरम है, जिसके लिए बंगाल व देश की जनता उन्हें कभी भी माफ करने वाली नहीं है.”

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Fani Cyclone Alert: फेनी तूफान के चलते चुनाव आयोग ने उठाया ये बड़ा कदम

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ओडिशा में तूफान फेनी के मद्देनजर चुनाव आयोग ने 11 जिलों में चुनावी आचार संहिता को हटाने की मंजूरी दे दी है जिससे राहत एवं बचाव कार्यक्रम तेजी से किया जा सके. एक चुनाव अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी. मंगलवार को जारी आदेश में राकेश कुमार ने कहा कि इससे पुरी, जगतसिंहपुर, केंद्रपाड़ा, भद्रक, बालासोर, मयूरभंज, गजपति, गंजम, खोरधा, कटक और जाजपुर में ऐहतियाती कदम उठाने में तेजी आएगी. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आग्रह पर चुनाव आयोग ने मंगलवार शाम यह निर्णय लिया.

पटनायक चुनाव आयोग से तटीय जिलों से आदर्श आचार संहिता हटाने का आग्रह करने के लिए मंगलवार को दिल्ली में थे जिससे वहां तूफान फेनी के आने से पहले ही आपदा प्रबंधन कार्यवाही की जा सके. तूफान फेनी के ओडिशा तट पर शुक्रवार तक आने की संभावना है. पटनायक ने पटकुरा विधानसभा चुनाव की तिथि 19 मई से आगे बढ़ाने का भी आग्रह किया था. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा से मुलाकात कर उन्होंने वहां चुनाव की तिथि को आगे बढ़ाने का आग्रह किया जिससे कि सभी लोग मिल-जुलकर काम कर सकें और प्रशासन लोगों की जान-माल को बचाने पर ध्यान दे पाए.

गृह मंत्रालय ने मंगलवार को चक्रवाती तूफान ‘फेनी’ के मद्देनजर निवारक व राहत उपाय अपनाने के लिए चार राज्यों को 1086 करोड़ रुपये की अग्रिम वित्तीय सहायता जारी की है. गृह मंत्रालय के बयान से यह जानकारी मिली. आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (एनसीएमसी) के निर्णय के आधार पर राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से सहायता प्राप्त करेंगे. चक्रवाती तूफान ‘फेनी’ के दक्षिणपूर्व और इससे सटे दक्षिणपश्चिम बंगाल की खाड़ी में गंभीर चक्रवाती तूफान में तब्दील होने की वजह से चार तटीय राज्यों को हाईअलर्ट पर रखा गया है. कुल 1086 करोड़ रुपये में से, आंध्रप्रदेश को 200.25 करोड़, ओडिशा को 340.875 करोड़, तमिलनाडु को 309.375 करोड़ और पश्चिम बंगाल को 235.50 करोड़ रुपये मिलेंगे.

चक्रवाती तूफान ‘फेनी’ के मंगलवार मध्यरात्रि तक ‘बेहद तीव्र’ होने की आशंका है, जिससे आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में गुरुवार तक भारी वषार् होगी. भारत मौसम विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार शाम इस बारे में आगाह किया. आईएमडी ने चेतावनी दी है कि चक्रवात से घरों, संचार और बिजली नेटवर्क और रेल व सड़क अवसंरचना को नुकसान होने की संभावना है. साथ ही खड़ी फसलों, बागवानी और नारियल व ताड़ के पेड़ों को भी काफी नुकसान होगा. इसके अलावा जहाजों और बड़ी नौकाओं के लंगर टूटने की संभावना है.

आईएमडी ने मछुआरों को बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के गहरे समुद्री क्षेत्रों में नहीं जाने की सलाह दी है. आधिकारिक बयान के अनुसार, कैबिनेट सचिव पी.के. सिन्हा ने स्थिति का जायजा लेने के लिए मंगलवार को फिर से राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (एनसीएमसी) की बैठक की, और प्रभावित राज्यों में तैयारियों की समीक्षा की. सिन्हा ने निर्देश दिया कि जानमाल के नुकसान को रोकने के लिए और भोजन, पीने के पानी और दवाओं समेत सभी तरह की आवश्यक आपूर्ति को बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं.

बयान में कहा गया है, “उन्होंने सभी संबंधित पक्षों को सलाह दी कि वे नुकसान की स्थिति में बिजली और दूरसंचार जैसी आवश्यक सेवाओं के रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए पयार्प्त तैयारी करें.” भारतीय तटरक्षक और नौसेना ने राहत और बचाव कायोर्ं के लिए जहाजों और हेलीकॉप्टरों को तैनात किया है, जबकि इन राज्यों में सेना और वायुसेना की इकाइयों को भी तैयार रखा गया है.

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) ने कुल 41 टीमें तैनात की हैं, जिसमें आंध्र प्रदेश में आठ, ओडिशा में 28 और पश्चिम बंगाल में पांच टीमों को तैनात किया गया है. इसके अलावा, एनडीआरएफ ने पश्चिम बंगाल में 13 और आंध्र प्रदेश में 10 टीमों को तैनात किया है. ‘फेनी’ फिलहाल दक्षिण-पश्चिम में और बंगाल की खाड़ी से सटे दक्षिण-पश्चिम में है. मंगलवार शाम से लगभग 21 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ रहा है.

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मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले जवान तेज बहादुर का नामांकन रद्द

वाराणसी से पीएम नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मैदान में सपा प्रत्याशी का नामांकन खारिज कर दिया है. बता दें कि सपा (समाजवादी पार्टी) के प्रत्याशी के तौर पर नामांकन करने वाले बीएसएफ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर यादव मैदान में उतरे थे.

दरअसल मंगलवार (30 अप्रैल) को प्रेक्षक प्रवीण कुमार की मौजूदगी में नामांकन पत्रों की जांच शुरू हुई. जांच में जिला निर्वाचन अधिकारी सुरेन्द्र सिंह यादव द्वारा बीएसएफ से बर्खास्तगी के संबंध में दो नामांकन पत्रों में अलग-अलग जानकारी देने पर नोटिस देकर 24 घंटे में बीएसएफ से अनापत्ती प्रमाण पत्र लेकर मौजूद होने को कहा था.

जिला निर्वाचन अधिकारी की ओर से तेज बहादुर को कहा था कि वो बीएसएफ की ओर से प्रमाणपत्र लेकर आएं जिसमें यह साफ साफ लिखा हो कि उन्हे नौकरी से किस वजह से बर्खास्त किया गया था। बता दें कि जांच में सामने आया था कि तेज ने पहले नामांकन में ‘भारत सरकार या राज्य सरकार के आधीन पद धारण करने के दौरान भ्रष्टाचार या अभक्ति के कारण पदच्युक्त किया गया’ के सवाल पर हां में जवाब दिया और विवरण में 19 अप्रैल, 2017 लिखा है. वहीं दूसरे शपथ पत्र में लिखा था कि तेज बहादुर यादव को 19 अप्रैल 2017 को बर्खास्त किया गया था लेकिन भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा पद धारण के दौरान भ्रष्टाचार एव अभिक्त के कारण पदच्युत नहीं किया गया.

बता दें कि तेज बहादुर यादव का नामांकन खारिज होने के बाद अब सपा की ओर से शालिनी यादव मैदान में हैं.

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महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सली हमले में 16 जवान शहीद

मुंबई। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में एक बड़े नक्सली हमले की की खबर है. महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सलिओं ने IED ब्लास्ट कर पुलिस की गाड़ी उड़ा दी है. इस नक्सली हमले में 16 जवान शहीद हो गए हैं. इस बात की पुष्टि महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री ने कर दी है. महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित जिले गढ़चिरौली में माओवादियों ने पुलिस की गाड़ी को उस वक्त निशाना बयाना जब पुलिस की टीम उस जगह जा रही थी, जहां सुबह में ही नक्सलियों ने करीब 25 से 30 गाड़ियों को आग के हवाले किया था. बताया जा रहा है कि जिस पुलिस की गाड़ी पर नक्सलियों ने हमला किया है, उसमें 16 सुरक्षा कर्मी मौजूद थे. हालांकि, इस ब्लास्ट के बाद पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ जारी है. दोनों ओर से गोलीबारी हो रही है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि यह जानकर कि गढ़चिरौली सी-60 बल के हमारे 16 पुलिस कर्मी आज नक्सलियों द्वारा कायरतापूर्ण हमले में शहीद हो गए, काफी दुख पहुंचा. मेरे संवेदनाएं और प्रार्थनाएं शहीदों के परिवारों के साथ हैं. मैं DGP और गढ़चिरौली SP के संपर्क में हूं.

महाराष्ट्र के मंत्री सुधीर मुन्गान्तीवर गढ़चिरौली नक्सली हमले पर कहा कि हमें लग रहा है कि इस हमले में 15 पुलिस जवान और एक ड्राइवर ने अपनी जान गंवा दी है.

इससे पहले लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले पहले चरण के मतदान से एक दिन पहले महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में CRPF की पेट्रोलिंग टीम पर नक्सलियों ने हमला किया था. नक्सलियों द्वारा CRPF की पेट्रोलिंग टीम पर किए गए IED ब्लास्ट की चपेट में कई जवान आए थे.

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धर्मयुद्ध के समक्ष दिग्विजय सिंह!

सत्रहवें लोकसभा का चुनाव अपना आधे से ज्यादा का सफ़र पूरा कर चुका है. अबतक चार चरणों के चुनाव पूरे हो चुके हैं और विपक्ष का हौसला बुलंद है. किन्तु हौसला बुलंद होने के बावजूद इन तीन चरणों में इवीएम जिस तरह से काम कर रहा है, उससे विपक्ष कुछ खौफजदा भी चला है. उसके खौफ को प्रधानमंत्री उसकी हार का डर बता रहे हैं. बहरहाल जिन बाकी सीटों पर चुनाव होना है, उनमे भोपाल की सीट पर पूरी दुनिया की निगाहें टिक गयी हैं. इस प्रतिष्ठित सीट पर किसी कांग्रेसी के जीते 35 साल हो गए हैं. कांग्रेस इस बार 35 साल का सूखा दूर करने की रणनीति के तहत एक दशक तक मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री और दो बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे दिग्विजय सिंह को यहाँ से उतारने का मन बनाई. प्रायः सोलह साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहे दिग्विजय सिंह एक ऐसे नेता हैं, जिनकी पकड़ पूरे प्रदेश में है. अतः उनकी सर्वस्वीकार्य छवि का लाभ उठाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें भोपाल से उतारने का मन बनाया. लेकिन इस वरिष्ठ नेता की एक खासियत यह भी है कि वे समय-समय पर विवादों को जन्म देते रहे हैं. खासतौर संघी आतंकवाद और भाजपा को लेकर सोशल मीडिया पर जारी उनके आक्रामक ट्विट संघ परिवार को काफी विचलित करते रहे हैं . इसलिए संघ परिवार उन्हें हिन्दू –विरोधी साबित करने में बराबर प्रयासरत रहा. उसके अनवरत प्रयास को व्यर्थ करने लिए उन्होंने 2017-18 में तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा दूरी की नर्मदा परिक्रमा किया था. बावजूद इसके संघ परिवार उन्हें हिन्दू विरोधी साबित करने की मुहीम से पीछे नहीं हटा. ऐसे में जब लम्बे अन्तराल के बाद दिग्विजय सिंह चुनावी राजनीति में उतरे, तब संघ परिवार ने इसे एक अवसर के रूप में लिया.

प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 15 लाख रूपये जमा कराने, हर साल युवाओं को दो करोड़ नौकरियां देने, किसानों की आय दो गुनी करने इत्यादि जैसे जिन लोकलुभावन वादों के सहारे नरेंद्र मोदी 2014 में जोर-शोर से सत्ता में आये, प्रधानमंत्री के रूप में उन वादों को पूरा करने में बुरी तरह विफल रहे. ऊपर से नोटबंदी और जीएसटी से भी उनके प्रति लोगों का बड़े पैमाने पर मोहभंग हुआ. इससे भी आगे बढ़कर जिस तरह 2019 में उनकी पारी के स्लॉग ओवर में सवर्ण आरक्षण और विभागवार आरक्षण लागू होने के साथ 10 लाख आदिवासी परिवारों को जंगल से दूर धकेलने का आदेश जारू हुआ, उससे बहुसंख्य वंचित वर्गों के मतदाताओं में एक तरह से उनके खिलाफ विद्रोह की भावना पनप उठी. ऐसे में सत्रहवीं लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए अवसर काफी कम हो गए.इस स्थिति में संघ परिवार इन मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाकर चुनाव को हिंदुत्व जैसे भावनात्मक मुद्दे पर केन्द्रित करने की जुगत भिड़ाने लगा. ऐसे में जब भोपाल की प्रतिष्ठित सिट से दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा हुई, उसने इसे पूरे चुनाव को हिंदुत्व पर केन्द्रित करने के एक स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा और इसके लिए उसने ऐसा प्रार्थी उतारने का मन बनाया जिसे सामने देखकर वह संघी आतंकवाद का पुराना राग अलापना शुरू कर दें. कहा जा रहा है कि इसके लिए संघ परिवार ने उमा भारती, नरेंद्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान इत्यादि कई नामों पर विचार-विमर्श करने के बाद मालेगांव ब्लास्ट को लेकर चर्चा में आयीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम आगे बढाया और आनन-फानन में उनको भाजपा ज्वाइन कराकर टिकट दे दिया गया. कथित डिवाइन पॉवर से लैस वही प्रज्ञा ठाकुर 23 अप्रैल को पूरे लाव-लश्कर और शक्ति प्रदर्शन के साथ भोपाल से भाजपा के आधिकारिक प्रार्थी के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दीं. इन पंक्तियों के लिखने के दौरान उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगानेवाली याचिका भी ख़ारिज हो चुकी हैं.

वैसे तो साध्वी प्रज्ञा सिंह 23 अप्रैल को आधिकारिक तौर पर भाजपा की प्रार्थी बनीं, लेकिन पार्टी ने उनके नाम की घोषणा सप्ताह भर पहले ही कर दिया था. और भाजपा की ओर से प्रार्थी घोषित होते ही वह दिग्विजय को उकसाने के मोर्चे पर सक्रिय हो गयीं. उम्मीदवारी की घोषणा होते ही उन्होंने एलान कर दिया कि यह चुनाव दिग्विजय सिंह के खिलाफ नहीं है, यह धर्मयुद्ध है. प्रज्ञा सिंह और उनके सहयोगियों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के मामलों की जांच मुंबई पुलिस के जिस आला अधिकारी हेमंत करकरे ने की थी, उनसे दिग्विजय के निजी और मधुर सम्बन्ध थे. इसलिए प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह को उकसाने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं के मध्य हेमंत करकरे पर एक ऐसा बयान दे दिया जिसे लेकर देश में तूफ़ान खड़ा हो गया. उन्होंने करकरे की भूमिका पर कई सवाल उठाते हुए कहा था ,’मैंने कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा. जिस दिन मैंने कहा था, उस दिन उसको सूतक लग गया था. ठीक सवा महीने बाद आतंकवादियों ने उसे मार दिया. उस दिन सूतक का अंत हो गया.’ शहीद हेमंत करकरे पर साध्वी के उस पागलपन भरे बयान को भाजपा के प्रवक्ताओं ने तो पहले बचाव करने का प्रयास किया. किन्तु उसे लेकर पूरे देश में जो आक्रोश पैदा हुआ उसे देखते हुए भाजपा के लोगों ने उसे साध्वी का निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ लिया. प्रज्ञा सिंह के पागलपन भरे बयान पर देश भर में जो उग्र प्रतिक्रिया हुई, उसे देखते हुए कोई और दल होता तो उनकी उम्मीदवारी वापस ले लेता , किन्तु भाजपा ने वैसा नहीं किया.उलटे उसी दिन बहुत ही दृढ़ता के साथ मोदी ने कह दिया,’मालेगांव विस्फोट में आरोपित साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से भाजपा प्रत्याशी बनाया जाना उन लोगों को सांकेतिक जवाब है, जिन्होंने समृद्ध हिन्दू संस्कृति पर आतंकी का ठप्पा लगाया.यह प्रतीक कांग्रेस पर भारी साबित होगा.’

अब प्रधानमन्त्री के उपरोक्त बयान को पकड़कर कहा जा सकता है कि भाजपा ने भोपाल संसदीय क्षेत्र से हिन्दू संस्कृति के एक उग्र प्रतीक को चुनाव में उतारकर दिग्विजय सिंह को धर्मयुद्ध के समुख खड़ा कर दिया है.और अपना कर्तव्य निर्वहन के लिए साध्वी प्रज्ञा ने अपने आग उगलते बयानों से भोपाल को धर्मयुद्ध के एक समर क्षेत्र में परिणत कर दिया. जिस तरह कोई खौफनाक फ़ास्ट बॉलर हरियल पिच पर अपने बाउंसर और बीमर से किसी बैट्समैन पर हमला बोल देता है, वही काम प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने किया है. किन्तु चतुर सुजान दिग्विजय सिंह ने एक कुशल बैट्समैन की भांति प्रज्ञा के बीमर- बाउंसरों को डक करते या छोड़ते गए हैं. उत्तेजना में आकर कोई ऐसा शॉट नहीं खेला है, जिसे भाजपा लपक कर शेष बचे चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम पर केन्द्रित कर सके. लगातार बाउंसर और बीमर फेंककर खिलाडी को आउट नहीं कर पाने से जिस तरह फ़ास्ट बॉलर थक जाते हैं, कुछ वही हाल साध्वी प्रज्ञा का हो गया है. अब वह नपा-तुला भाषण देने लगी हैं, समझ गयी हैं दिग्विजय सिंह उकसावे में नहीं आने वाले हैं. साध्वी को थकाने के बाद अब दिग्गी राजा धर्मयुद्ध की पिच पर स्कोर करना शुरू कर दिए हैं. इस क्रम में उन्होंने भोपाल विजन डाक्यूमेंट जारी कर कर एक जबरदस्त शॉट लगाया है.

इसमें कोई शक नहीं कि दिग्विजय सिंह ने गत 21 अप्रैल,2019 को जो ‘भोपाल विजन’ जारी किया है, वह एक शब्द में असाधारण है. उसमे भोपाल को टूरिस्ट हब बनाने, त्वरित हवाई सेवा शुरू करने, उत्कृष्ट शिक्षा, उत्तम रोजगार इत्यादि के साथ ज्ञान, विज्ञानं, अनुसन्धान केंद्र विकसित करने सहित अन्य कई जो बाते शामिल की गयी हैं, वह सामान्य स्थिति में चुनाव जीतने के लिए काफी कारगर हो सकती हैं. लेकिन मोदी राज में जिस तरह लोगों को हिन्दू धर्म के नशे में मतवाला बनाने का बलिष्ठ प्रयास हुआ है, उसे देखते हुए ‘भोपाल विजन’ साध्वी प्रज्ञा द्वारा छेड़े गए ‘धर्मयुद्ध’ का सामना करने में पर्याप्त रूप से कारगर होगा, इसमें संदेह है. संघ परिवार द्वारा फैलाये गए राष्ट्रवाद और धर्मोन्माद की गिरफ्त में लोग इस कदर फंस गए हैं कि भूख, बेरोजगारी, विकास की बात भूलकर मोदी-मोदी किये जा रहे हैं. ऐसे में यदि दिग्विजय सिंह धर्मयुद्ध से पार पाना चाहते हैं तो उन्हें 2002 की 13 जनवरी को जारी डाइवर्सिटी केन्द्रित ऐतिहासिक भोपाल घोषणापत्र को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पड़ेगा.

दिग्विजय सिंह भूले नहीं होंगे कि नयी सदी में जब नवउदारवादी अर्थनीति से बहुजन समाज त्रस्त था, उसी दौर में 12-13 जनवरी, 2002 को खुद उन्होंने ही मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दलितों का ऐतिहासिक ‘भोपाल सम्मलेन’ आयोजित किया था, जहां से डाइवर्सिटी केन्द्रित 21 सूत्रीय दलित एजेंडा जारी हुआ,जिसे ऐतिहासिक भोपाल घोषणापत्र कहते हैं. उसी भोपाल घोषणापत्र से दलित, आदिवासियों के साथ परवर्तीकाल में पिछड़ों में नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, फिल्म-टीवी इत्यादि अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में अमेरिका के तर्ज पर सर्वव्यापी आरक्षण की चाह पनपी. आज दलित-आदिवासी और पिछड़े समूह के तमाम जागरूक लोग अपने-अपने तरीके से सभी क्षेत्रों में आरक्षण की अगर मांग बुलंद कर रहे हैं, तो उसके पीछे भोपाल घोषणापत्र का ही बड़ा योगदान है. दिग्विजय सिंह ने भोपाल घोषणापत्र के जरिये न सिर्फ सर्वव्यापी आरक्षण वाली डाइवर्सिटी की आइडिया को सिर्फ विस्तार दिया, बल्कि 27 अगस्त ,2002 को समाज कल्याण विभाग में एससी/एसटी के लोगों को 30% आरक्षण लागू कर रास्ता दिखाया कि सरकारें यदि चाह दें तो बहुजनों को नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग-व्यापार में आरक्षण दिलाया जा सकता है. हालांकि 2004 में भाजपा की उमा भारती सरकार ने विजय सिंह के उस आरक्षण को ख़त्म कर दिया. लेकिन उसके कारण ही यूपी-बिहार सहित अन्य कई राज्यों में नौकरियों से आगे बढ़कर ठेकों,आउट सोर्सिंग जॉब इत्यादि में आरक्षण मिला. सत्रहवें लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही कांग्रेस पार्टी ने सामाजिक न्याय केन्द्रित जैसा घोषणापत्र जारी किया है, वैसा आजाद भरात में इससे पहले कभी नहीं हुआ. राजद-कांग्रेस ने निजी क्षेत्र में आरक्षण, प्रमोशन में आरक्षण, निजीक्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों, सप्लाई, ठेकों इत्यादि में संख्यानुपात में आरक्षण देने की बात अपने घोषणापत्र में शामिल किया है, तो उसकी जड़ें भोपाल घोषणापत्र में ही निहित है.जब भोपाल घोषणापत्र का यह असर है, तब बेहतर होगा दिग्विजय सिंह ‘भोपाल विजन’ के साथ ‘भोपाल घोषणापत्र’ की सर्वव्यापी आरक्षण वाली बात को जोर-शोर उठाते हुए मतदाताओं को आश्वस्त करें कि जीतने पर हमारी पार्टी संख्यानुपात्त में सभी सामाजिक समूहों को सभी क्षेत्रों में हिस्सेदारी देगी. हाँ, इसके लिए सवर्णों के रोष को नजरअंदाज करने का मन बनाना पड़ेगा. वैसे यह अप्रिय सच्चाई है कि सवर्णों ने अपना भविष्य भाजपा के साथ जोड़ लिया है. ऐसे में कांग्रेस को सत्ता पाने के लिए अब पूरी तरह वंचित वर्गों पर निर्भर रहना पड़ेगा और वंचित वर्गों का वोट पाने के लिए उन्हें संख्यानुपात में हर क्षेत्र में आरक्षण अर्थात शेयर सुनिश्चित कराने का उपक्रम चलाना होगा. इसके लिए भोपाल घोषणापत्र को विस्तार देने से श्रेयस्कर कुछ हो ही नहीं सकता.

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मध्यप्रदेश में मायावती को बड़ा झटका

ग्वालियर। मध्यप्रदेश के गुना-शिवपुरी से ज्योतिरादित्य सिंधिया के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में खड़े बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह राजपूत कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. यह दलबदल तब हुआ है जब आने वाले शनिवार को मायावती गुना में रैली करने वाली हैं. बहुजन समाज पार्टी और मायावती के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है. अब बसपा को इस सीट से नया प्रत्याशी ढूंढने की चुनौती होगी.
कांग्रेस ज्वाइन करने के दौरान बसपा के बागी लोकेंद्र सिंह राजपूत

लोकेंद्र सिंह राजपूत ने सिंधिया की मौजूदगी में कांग्रेस की सदस्यता ली. ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से 4 बार चुनाव जीत चुके हैं. उनका मुकाबला बीजेपी के केपी यादव से हैं, केपी यादव भी पहले सिंधिया के क़रीबी हुआ करते थे. आपको बता दें कि बीएसपी नेता को कांग्रेस में शामिल करने के फैसले पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस के बीच खटास और बढ़ सकती है क्योंकि एक तो मायावती मध्य प्रदेश में गठबंधन को लेकर कांग्रेस के रवैये से खासे नाराज हैं. दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच प्रियंका गांधी के पैठ बनाने की कोशिशों के चलते उन्होंने महागठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं होने दिया. रैलियों में भी मायावती बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पर जमकर प्रहार कर रही हैं.

कांग्रेस में शामिल होने से पहले लोकेंद्र सिंह राजपूत बसपा उम्मीदवार के तौर पर सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय थे

गौरतलब है कि गुना-शिवपुरी संसदीय सीट सिंधिया परिवार का गढ़ मानी जाती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया पांचवीं बार गुना संसदीय क्षेत्र से मैदान में हैं. बीते चार चुनाव उन्होंने लगातार जीते हैं. इस बार उनका मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवार केपी यादव से है. गुना-शिवपुरी सीट पर 12 मई को वोट डाले जाएंगे.

जहां तक लोकेंद्र सिंह राजपूत की बात है तो वो हाल तक बसपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव प्रचार कर रहे थे. वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी सीधे चुनौती देते हुए चुनाव मैदान में थे. चुनाव प्रचार के दौरान उनका निशाना सिंधिया पर ही ज्यादा था. ऐसे में बसपा के लिए यह बड़ा सवाल बना हुआ है कि आखिर एकाएक ऐसा क्या हुआ कि वो मायावती  की रैली के ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए.

सीतापुर में रहस्यमयी बुखार से 60 से ज्यादा लोग बीमार

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सांकेतिक फोटो

सीतापुर। उत्‍तर प्रदेश के सीतापुर से बड़ी खबर सामने आ रही है. सीतापुर में किसी रहस्‍यमयी बुखार के प्रकोप के चलते 60 से ज्‍यादा लोग बीमार हैं. गोंदलामऊ ब्लॉक के नटवलग्रंट गांव में बीमारों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा बताई जा रही है. जानकारी के मुताबिक करीब 10 लोगों में मलेरिया की पुष्टि हुई है. जिसके चलते 4 लोगों को बाहर अस्‍पतालों में रेफर किया गया है. हालांकि लोगों में स्‍वास्‍थ्य विभाग की लापरवाही को लेकर काफी नाराजगी है.

 बताया जा रहा है कि पिछले साल भी किसी बुखार या संक्रमण के चलते 50 से ज्‍यादा लोगों की मौत हुई थी. इतनी बड़ी संख्‍या में हुई मौतों के बाद भी स्‍वास्‍थ्‍य विभाग और प्रशासन ने कोई सीख नही ली. हाथ पर हाथ धरे बैठे स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन भी किए थे. इसके बावजूद सीतापुर के गांवों में कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

सनी देओल के चुनाव लड़ने पर धर्मेंद्र ने दिया यह बयान

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सनी देओल ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन किया है

मुंबई। धर्मेंद्र का अपने दोनों बेटों सनी देओल और बॉबी देओल के साथ बांडिंग मशहूर है. पिता-पुत्र दोनों एक-दूसरे के काफी करीब रहे हैं. उनके बीच का यह नजदीकी रिश्ता कई बार देखने को मिलता है. हाल ही में अभिनेता सनी देओल ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन किया है और वह गुरदासपुर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. सनी देओल के राजनीति में आने पर उनके पिता धर्मेंद्र ने बयान दिया है.

 सनी देओल के भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन करने के एक सप्ताह बाद उनके पिता धर्मेंद्र ने कहा कि उनके परिवार को राजनीति नहीं आती, लेकिन उनके खून में देशभक्ति दौड़ती है. 83 साल के अपने जमाने के शानदार अभिनेता धर्मेंद्र ने कहा, ‘हम राजनीति की एबीसी भी नहीं जानते, लेकिन देशभक्ति हमारे खून में है. हम देश की सेवा करेंगे.’ गौरतलब है कि धर्मेंद्र ने साल 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर बीकानेर से चुनाव लड़ा था और जीत भी हासिल की थी. सोमवार को गुरदासपुर में नामांकन भरने के बाद सनी देओल ने भी पिता धर्मेंद्र जैसा ही बयान देते हुए कहा था कि ‘देखिए, मैं राजनीति के बारे में ज्यादा नहीं जानता लेकिन मैं देशभक्त हूं.’ सनी देओल के नामांकन के दौरान उनके छोटे भाई बॉबी देओल भी उनके साथ थे.

बताते चलें कि सनी देओल अपने परिवार के तीसरे सदस्य हैं, जिन्होंने राजनीति में एंट्री मारी है. धर्मेंद्र के अलावा उनकी सौलेती मां हेमा मालिनी भी मथुरा से भाजपा सांसद हैं और अभी मथुरा से ही दोबारा लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं.

चौथे चरण में भाजपा की साख दांव पर

लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में नौ राज्यों की 71 सीटों के लिए वोटिंग जारी है. इस चरण में यूपी और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. यूपी में जहां सपा और बसपा मिलकर चुनाव मैदान में है तो महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन और भाजपा शिवसेना गठबंधन साथ हैं. जिन सीटों पर वोटिंग हो रही है उनमें सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के लिए है, क्योंकि सबसे ज्यादा सीटें उसी के पास थी.

साल 2014 के चुनाव में इन 71 सीटों में से 45 पर बीजेपी, 9 पर शिवसेना, 2 पर एलजेपी, 6-6 पर टीएमसी, बीजेडी 2 पर कांग्रेस और एक पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की थी.

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चौथे चरण के मतदान में हंगामा, बिहार-यूपी में EVM की शिकायत

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फाइल फोटो

नई दिल्ली। चौथे चरण के मतदान के दौरान कई जगहों से ईवीएम खराब होने की शिकायतें आ रही हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कई बूथों पर ईवीएम में खराबी के कारण मतदान नहीं शुरू हो पाया है. इसके कारण वोट डालने पहुंचे मतदाता हंगामा कर रहे हैं. सपा ने इसकी शिकायत भी की है.

झारखंड के पलामू सीट के कई बूथों पर EVM खराब होने की शिकायत आई है. चैनपुर के बूथ नंबर 132 पर ईवीएम का बटन नहीं काम कर रहा. वहीं, डालटनगंज के बूथ नंबर 181 और हैदरनगर के बूथ नंबर 101 पर ईवीएम खराब है. बिहार के समस्तीपुर सीट के केवस निजामत बूथ नंबर 223 ,221 पर भी ईवीएम खराब है.

इसके अलावा समस्तीपुर के धुरलख में बूथ संख्या 88 पर ईवीएम खराब होने के कारण मतदान बाधित है. मतदान केंद्र पर लंबी लाइन लगी है और मतदाता हंगामा कर रहे है. समस्तीपुर के भागिरथपुर पंचायत में 7 हजार से अधिक मतदाताओं ने मतदान का बहिष्कार किया है. दो सालों से जूट मिल बंद होने के कारण मजदूर मतदान नहीं करेंगे.

पश्चिम बंगाल के बर्दवान पूर्व के भेदिया हाई स्कूल और गलसि के बाहिर घण्या में बूथ नंबर 267 पर ईवीएम मशीन खराब होने के कारण वोटिंग शुरू नहीं हो पाई. बीरभूम से भी ईवीएम खराब होने की शिकायत आ रही है. वीरभूम में तो उपद्रवी ईवीएम लेकर ही भाग गए. बंगाल से चुनाव में हिंसा की सबसे ज्यादा खबरें आ रही हैं.

उत्तर प्रदेश के कन्नौज में भी ईवीएम खराब होने की शिकायत है. कन्नौज के मिरगावां में बूथ नंबर 86, 87 और 88 पर मतदान शुरू नहीं हो पाया है. सपा का आरोप है कि कन्नौज लोकसभा की छिबरामऊ विधानसभा में बूथ संख्या- 189 में तीन बार ईवीएम बदलने के बाद भी अभी तक मतदान बाधित है. इसके अलावा झांसी के भट्टागांव के मतदान स्थल 415 में अब तक मतदान प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है.

समाजवादी पार्टी ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत भी की है. इस पर उन्नाव सीट से बीजेपी प्रत्याशी साक्षी महाराज ने कहा कि गठबंधन के प्रत्याशी जमानत नहीं बचा पा रहे हैं, इसलिए ये EVM का मुद्दा उठा रहे हैं.

उन्नाव सीट से ही कांग्रेस प्रत्याशी अनु टंडन ने कहा कि शुरुआत में ईवीएम में गड़बड़ी की खबर आ रही थी, बाद में हमने डीएमऔर इलेक्शन कमीशन के अधिकारियों से बात की तो कुछ ठीक हुआ है. अभी भी कुछ खराब है.

  • साभारः आजतक

बीबीएयू छात्रा ने शिक्षक के जातीय भेदभाव के खिलाफ की कुलपति से शिकायत, मांगा न्याय

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लखनऊ। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर युनिवर्सिटी, लखनऊ (BBAU) की एक पिछड़े वर्ग की छात्रा ने कुलपति से इतिहास विभाग के दो शिक्षकों पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है. शिकायत करने वाली छात्रा कुमकुम लता एम.ए इतिहास के दूसरे सेमेस्टर की छात्रा हैं. छात्रा ने इतिहास विभाग के ही असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनू पांडे और डॉ. एस.एस. राय (सिद्धार्थ शंकर राय) पर आरोप लगाया है. इसके बाद छात्रा ने 23 अप्रैल को बीबीएयू के कुलपति को आवेदन देकर इंसाफ की गुहार लगाई है.

पीड़ित छात्रा कुमकुम लता द्वारा कुलपति को लिखा गया आवेदन

कुलपति के लिखे अपने आवेदन में छात्रा ने आरोप लगाया है कि पहले सेमेस्टर के परिणाम में उसके साथ जातीय भेदभाव किया गया है. छात्रा ने इतिहास विभाग के ही असि. प्रोफेसर डॉ. रेनू पांडे और डॉ. एस.एस राय पर भेदभाव के तहत कम नंबर देने का आरोप लगाया है. कुलपति को लिखे आवेदन में छात्रा ने पेपर DH-102, DH-103 और DH-104 में भेदभाव के तहत नंबर देने का आरोप लगाया है. साथ ही अपने रिजल्ट को फिर से जांच (Re Analysed) करने की मांग की है.

पीड़ित छात्र कुमकुम लता द्वारा न्याय के लिए कुलपति को लिखा गया आवेदन

दलित दस्तक से बातचीत करते हुए कुमकुम लता ने आरोपी शिक्षकों पर आरोप लगाया कि उन्हें शिक्षकों द्वारा कॉपी में कुछ और मार्क्स दिखाकर उनसे साइन करवा लिया, लेकिन जब कंप्यूटर के जरिए फाइनल मार्क्स सामने आया तो उसमें छात्रा के 8 नंबर कम थे. छात्रा का आरोप है कि उसे जो नंबर दिखाया गया उसके मुताबिक उन्हें 70 नंबर में 51 नंबर मिले थे, जिसे बाद में 42 नंबर कर दिया गया. छात्रा का कहना है कि वो हमेशा सिक्किम में रही हैं जहां उन्होंने इस तरह का कोई भेदभाव नहीं देखा है. अब ऐसा जातीय भेदभाव देखकर वह काफी आहत हैं. कुमकुम लता का कहना है कि ओबीसी वर्ग से होने के कारण न तो दलित स्टूडेंट उनकी मदद कर रहे हैं और जनरल स्टूडेंट का मदद करने का तो सवाल ही नहीं उठता.

इस बारे में दलित दस्तक ने इतिहास विभाग के ही असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनू पांडे और डॉ. एस.एस. राय (सिद्धार्थ शंकर राय) से बात करने की कोशिश की. डॉ. रेनू पांडे ने क्लास में होने की बात कह कर बात नहीं की. शिकायतकर्ता छात्रा को DH-103 और DH-104 पढ़ाने वाले डॉ. एस.एस. राय ने अपना पक्ष रखते हुए इस मामले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि ग्रेड ए  या बी प्लस भी बड़ा ग्रेड है. जहां तक छात्रा का कॉपी दिखाकर साइन करवाने का आरोप है तो पहली चीज की कॉपी दिखाकर साइन नहीं करवाया जाता है. हम विद्यार्थियों को सिर्फ इसलिए कॉपी दिखाते हैं कि बच्चे सुधार कर सकें. नंबर कम कर देने की बात है तो हो सकता है कि उनको दूसरे का नंबर याद हो. उनका आरोप दुर्भाग्य पूर्ण है.