पांच साल में 52 फीसदी बढ़ गई पीएम मोदी की संपत्ति, पढ़ें पूरा ब्यौरा

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना नामांकन भर दिया. नामांकन से पहले एक बड़े रोड शो का आयोजन किया गया था जहां भारी संख्या में लोग पहुंचे थे. पीएम मोदी ने नामांकन के साथ अपनी संपत्तियों और कर्ज का ब्योरा भी चुनाव आयोग को सौंप दिया. हलफनामे के अनुसार पीएम मोदी की चल संपत्ति 1 करोड़ 41 लाख 36 हजार 119 रुपये है. जबकि अचल संपत्ति के रूप में उनके पास गुजरात के गांधी नगर में एक करोड़ दस लाख रुपये की जमीन है. पीएम मोदी की चल और अचल संपत्ति का योग 2 करोड़ 51 लाख रुपये है. 2014 के आम चुनावों से पहले दायर नामांकन में पीएम मोदी ने अपनी संपत्ति 1 करोड़ 65 लाख बताई थी. लिहाजा इन पांच सालों में उनकी संपत्ति में 52 फीसदी का इजाफा हुआ है.

साल 2014 में पीएम मोदी ने अपनी आय 9 लाख 69 हजार 711 रुपये बताई थी. पांच साल बाद उन्होंने अपनी आय करीब 20 लाख रुपये बताई है. साल 2014 में पीएम मोदी के पास नगदी 29 हजार रुपये थी. 31 मार्च 2019 को खत्म हुए फायनेंशल ईयर को पीएम नरेंद्र मोदी के पास नगदी के रूप में 38 हजार 750 रुपये हैं. हलफनामे के अनुसार पीएम मोदी के पास 1 करोड़ 27 लाख 81 हजार रुपये की फिक्स डिपॉजिट है. साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास 44 लाख 23 हजार 383 रुपये फिक्स डिपॉजिट के तौर पर हैं. 2014 में नरेंद्र मोदी के पास एल एंड टी इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड (टैक्स सेविंग) डिपॉजिट 20 हजार रुपये थी. इस राशि में कोई इजाफा नहीं हुआ है. आज भी ये रकम 20 हजार रुपये ही है.

साल 2014 में पीएम मोदी के पास 1 लाख 35 हजार रुपये की कीमत के सोने के आभूषम थे. हलफनामे के अनुसार पीएम के पास मौजूदा दौर में सोने की चार अंगूठियां हैं. जिनका वजन 45 ग्राम है. 31 मार्च 2018 के वित्तिय वर्ष में इनकी कीमत 1 लाख 13 हजार 800 रुपये थी.

पीएम मोदी ने नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट में 7 लाख 61 हजार 466 रुपये जमा कराए हैं. इसके अलावा उनके पास 1 लाख 90 हजार रुपये की जीवन बीमा भी है. पीएम मोदी को आयकर विभाग से 85 हजार 145 रुपये लेने हैं. पीएमओ पर भी उनके 1 लाख 40 हजार 895 रुपये बकाया हैं. पीएम मोदी के हलफनामे के अनुसार, उनके पास न तो कोई दोपहिया वाहन है और न ही चार पहिया. कमाई का जरिया सरकार से मिलने वाली तनख्वाह और बैंकों से मिलने वाला ब्याज है.

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बसपा सुप्रीमो मायावती आज बुंदेलखंड में करेंगी चुनावी रैली

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती शुक्रवार को बुंदेलखंड में चुनावी रैली करेंगी. हमीरपुर व जालौन लोकसभा की यह संयुक्त जनसभा जालौन में होगी. हमीरपुर व जालौन दोनों ही सीटें गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी के हिस्से में हैं.

वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने गुरुवार को भाजपा पर नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का पीएम उम्मीदवार पूछकर जनता का बार – बार अपमान करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि देश की जनता इस सवाल का माकूल जवाब देगी. उन्होंने चुनाव आयोग पर पीएम पर मेहरबानी का आरोप लगाया है.

मायावती ने ट्वीट कर भाजपा व चुनाव आयोग पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि बीजेपी एंड कंपनी के लोग यह कह कर कि मोदी के मुकाबले विपक्ष का पीएम पद का उम्मीदवार कौन है, देश की 130 करोड़ जनता का बार-बार अपमान कर रहे हैं. ऐसा ही अहंकारी सवाल पहले उठाया गया था कि नेहरू के बाद कौन? देश ने इसका तगड़ा व माकूल जवाब दिया था. आगे भी जनता जरूर माकूल जवाब देगी.

मायावती ने चुनाव आयोग पर पीएम मोदी के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि मोदी पर आचार संहिता उल्लंघन के अनेक गंभीर आरोप हैं लेकिन वह पूरी तरह से आजाद व बेपरवाह घूम रहे हैं. इसीलिए मोदी ने महिला सम्मान व मर्यादाओं की सीमा भी लांघनी शुरू कर दी है. वाकई बीजेपी व आरएसएस ने लाजवाब नेता पांच वर्ष तक देश पर थोपा.

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महागठबंधन की रैली में कन्नौज पहुंचीं मायावती तो डिंपल यादव ने पैर छूकर लिया आशीर्वाद

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच सियासी गठबंधन रिश्तों को भी मजबूत करता हुआ नजर आ रहा है. कन्नौज में समाजवादी-बहुजन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल महागठबंधन की रैली के दौरान अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने मायावती के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया. पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से सांसद हैं और एक बार फिर यहां से चुनावी समर में हैं. बीएसपी सुप्रीमों मायावती यहां आयोजित रैली में उनके लिए वोट मांगने पहुंची थीं.

यह पहला मौका नहीं था. इससे पहले भी 19 अप्रैल को मैनपुरी में आयोजित रैली में भी दोनों दलों के नेताओं के बीच गर्मजोशी देखने को मिली थी. वह ऐसा मौका था, जब मायावती और एसपी नेता मुलायम सिंह यादव 24 साल बाद एक साथ दिखे थे. यही नहीं इस दौरान मुलायम सिंह यादव के पौत्र और मैनपुरी से मौजूदा सांसद तेजप्रताप यादव ने भी मायावती के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था.

वहीं, मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने भी जब मुलायम सिंह यादव का अभिवादन किया तो उन्होंने उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया. यही नहीं मैनपुरी और कन्नौज में आयोजित रैलियों में मंच के पीछे लगा बैनर भी बीएसपी के नीले कलर का था. इससे पता चलता है कि समाजवाजी पार्टी किस तरह से बीएसपी चीफ को सीटों के बंटवारे से लेकर रैलियों के आयोजन तक में कितना सम्मान दे रही है.

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नक्सल हिंसा से पीड़ित आंध्र गए 29 आदिवासी परिवार 15 साल बाद आज लौटेंगे सुकमा

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छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा के खिलाफ शुरू किए गए सलवा जुडूम के दौरान बस्तर छोड़कर आंध्र प्रदेश में जा बसे आदिवासी परिवारों के अब वापस बस्तर आने की कवायद शुरू हुई है. घोर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के 29 परिवार गुरुवार को वापस अपनी जमीन पर लौट रहे हैं. दावा किया जाता है कि सलाव जुडूम के दौरान नक्सलियों ने इनके घर जला दिए थे. इसके बाद वे दहशत में अपनी जमीन छोड़ पड़ोसी प्रांत आंध्र में निर्वासितों की तरह दिन गुजार रहे थे.

15 साल बाद गुरुवार को वे अपने गांव, अपने घर लौट रहे हैं. सुकमा जिले के एर्राबोर से 7 किमी दूर बसे गांव मरईगुड़ा से इन परिवारों के वापसी की शुरुआत हो रही है. बताया जा रहा है कि अपने गांव से करीब 75 किलोमीटर दूर आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के कन्नापुरम गांव में इन्होंने ठिकाना ढूंढ़ा और मिर्ची के खेतों में मजदूरी कर गुजर-बसर करने लगे. इन परिवारों को 15 साल तक आंध्र प्रदेश में न तो वोटर आईडी मिली, न वनभूमि का पट्‌टा.

इन परिवारों को वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी मीडिया से चर्चा में कहा कि जिन लोगों ने गांव छोड़ा उनके नाम कभी सैकड़ों एकड़ जमीन थी. सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक जिनके खेतों में पहले मजदूर काम करते थे वो मजबूरी में दूसरे के खेतों में दिहाड़ी पर काम करने को मजबूर थे. अभी जो 29 परिवार लौट रहे है उनमें से 24 परिवार के नाम पर जमीन यहां मिल चुकी है.

साभार : न्यूज़ 18 हिंदी

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पीएम मोदी कर रहे आचार संहिता का उल्‍लंघन, थैंक्स टू चुनाव आयोग: मायावती

लखनऊ। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चुनाव आचार संहिता के गंभीर उल्‍लंघन का आरोप लगाया है. मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री पर चुनाव आचार संहिता के गंभीर आरोप होने के बाद भी चुनाव आयोग कोई ऐक्‍शन नहीं ले रहा है. बीएसपी अध्‍यक्ष मायावती ने कहा कि पीएम मोदी ने महिला सम्‍मान और मर्यादाओं का उल्‍लंघन करना शुरू कर दिया है.

गुरुवार को मायावती ने ट्वीट कर कहा, ‘पीएम मोदी चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के अनेकों गंभीर आरोपों के बावजूद थैंक्स टू चुनाव आयोग अब तक पूरी तरह से आजाद और बेपरवाह घूम रहे हैं और इसीलिए अब इन्होंने महिला सम्मान और मर्यादाओं की सीमा भी लांघनी शुरू कर दी है. वाकई बीजेपी/आरएसएस ने लाजवाब नेता 5 वर्ष तक देश पर थोपा.’

मायावती ने कहा, बीजेपी ऐंड कंपनी के लोग यह कहकर कि मोदी के मुकाबले विपक्ष का पीएम पद का उम्मीदवार कौन है, देश की 130 करोड़ जनता का बार-बार अपमान क्यों करते रहते हैं? ऐसा ही अहंकारी सवाल पहले उठाया गया था कि नेहरू के बाद कौन? लेकिन देश ने इसका तगड़ा और माकूल जवाब तब भी दिया था और आगे भी जरूर देगा.’

इससे पहले मायावती ने ट्वीट करके आरक्षण मुद्दे पर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा था. मायावती ने कहा कि आरक्षण मामले में पीएम नरेंद्र मोदी देश को गुमराह कर रहे हैं. कांग्रेस की तरह इनके शासनकाल में भी एससी/एसटी और ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को पूरी तरह से निष्क्रिय और निष्प्रभावी बना दिया गया है. इसके लिए मोदी सरकार को जवाब देना होगा.

मायावती ने कहा कि सरकार आरक्षण मसले पर अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती. दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षित लाखों पदों को नहीं भरा जा रहा है. इस वजह से इस वर्ग के लोग अभी तक बेरोजगार हैं. सरकार ऐसा करके इन लोगों का हक मार रही है. मायावती ने इस मसले पर भी केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा. जरूरतमंद को नौकरी देने की बजाय सरकारें उनका हक मार रही हैं. मोदी और बीजेपी जनता को इसका पहले हिसाब दें.

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कन्नौज में डिंपल यादव के लिए वोट मांगेंगी मायावती

नई दिल्ली। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, सांसद धर्मेंद्र और अक्षय के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती गुरुवार को कन्नौज से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी सांसद डिंपल यादव के लिए वोट देने की जनता से अपील करेंगी. मायावती की सपा के समर्थन में यह चौथी जनसभा होगी. बसपा सुप्रीमो का गुरुवार को कन्नौज व शाहजहांपुर में चुनावी जनसभा को संबोधित करने का कार्यक्रम है.

बसपा सुप्रीमो पहले शाहजहांपुर (सुरक्षित) सीट से गठबंधन के बसपा प्रत्याशी अमर चंद्र जौहर के समर्थन में बरेली मोड़ ग्राम नवादा इंदेपुर में जनसभा करेंगी. इसके बाद कन्नौज के डीएन इंटर कॉलेज मैदान व मेला मैदान में सपा प्रत्याशी डिंपल यादव के पक्ष में दूसरी जनसभा को संबोधित करेंगी.

डिंपल की मुश्किल बढ़ाने के लिए पिछले चुनाव में बसपा प्रत्याशी के रूप में 1.27 लाख वोट पाने वाले निर्मल तिवारी को भाजपा में शामिल कर लिया है. ऐसे में डिंपल के लिए मायावती की जनसभा का महत्व बढ़ गया है. इस बार भाजपा ने डिंपल के सामने पिछला चुनाव लड़े सुब्रत पाठक को ही मैदान में उतारा है.

मायावती इसके पहले बदायूं, मैनपुरी और फिरोजाबाद में भी अखिलेश यादव के साथ साझा रैली कर चुकी हैं. बदायूं से धर्मेंद्र यादव, मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव सपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.

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तीसरे चरण का चुनाव सपा- बसपा के मेल का सही परीक्षण

मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के चुनाव प्रचार का दृश्य, 24 साल बाद दोनों नेता एक साथ थे (फाइल फोटो)

17 वीं लोकसभा के तीसरे चरण में गुजरात की सभी 26, केरल की सभी 20, गोवा कि दो, दादर और नगर हवेली की एक दमन दीव कि एक सीट, असम की चार, बिहार की 5, छत्तीसगढ़ की 7, जम्मू-कश्मीर की एक, कर्णाटक की 14, महाराष्ट्र की 14, ओडिशा की 6, बंगाल की 5 और उत्तर प्रदेश की 10 सीटों सहित कुल 116 संसदीय सीटों पर वोट पर चुका है. इनमें बहुजन नजरिये से यूपी की मुरादाबाद, रामपुर, संभल, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, बदायूं, आंवला, बरेली और पीलीभीत की दस सीटों का बहुत महत्त्व हैं. तीसरे चरण के इन दस सीटों की सफलता पर न सिर्फ सपा प्रमुख अखिलेश यादव का, बल्कि दलित-पिछड़ों के मेल से जुडी बहुजन राजनीति का भविष्य भी टिका हुआ है. तीसरे चरण में यूपी की जिन संसदीय क्षेत्रों में चुनाव हुआ है, वह समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाते हैं. यही कारण है सपा-बसपा में जो समझौता हुआ, उसमें इस इलाके की दस में से नौ सीटें ही सपा के हिस्से में आयीं, महज एक सीट बसपा को मिली. इस क्षेत्र को सपा का गढ़ कहने का प्रमुख कारण यह है कि 2014 में सपा ने भाजपा की सुनामी में जो कुल 5 सीटें जीती, उनमें तीन सीटों पर मतदान इसी चरण में होना है. 2014 में मैनपुरी से सपा प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव और बदायूं से धर्मेन्द्र यादव सांसद चुने गए थे.

मुलायम सिंह यादव से सपा की कमान अपने हाथ में लेने के बाद अखिलेश यादव का यह पहला चुनाव है. 2017 में भाजपा के हाथों सत्ता गवाने के बाद अखिलेश ने परिवार के वरिष्ठ सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध जाकर एक बहुत ही अप्रत्याशित और बड़ा कदम उठाते हुए बरसों की घोर दुश्मन रही बसपा से चुनावी गठजोड़ किया. यह उनका एक बहुत जोखिम भरा कदम था जो उन्होंने अपनी पार्टी का वजूद बचाने और भाजपा को शिकस्त देने के इरादे से उठाया. काबिले गौर है कि मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को शादी के कुछ ही दिन बाद राजनीति में उतारते हुए कन्नौज लोकसभा का उपचुनाव लड़वा दिया और वे सांसद बने. सांसद बनने के बाद टीपू (अखिलेश यादव का घर नाम) ने सडकों पर उतरकर संघर्ष करना शुरू किया. उनके ऐसा करने से पार्टी को बहुत लाभ मिला, जिसके फलस्वरूप सपा 2012 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई. सत्ता में आकर अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में यूपी में मेट्रो परियोजनाएं संचालन करने, लखनऊ–आगरा एक्सप्रेस वे जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर आधारित परियोजनाओं के साथ युवाओं को लैपटॉप व गरीब महिलाओं को पेंशन देने की योजनायें भी शुरू करने के साथ विकासाधारित अन्य कई काम किये. किन्तु उनके ये काम भाजपा का सामना करने के लिए पर्याप्त साबित नहीं हुए. लिहाजा 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी में उड़ने के साथ 2017 में योगी के हाथों यूपी की सत्ता भी गंवा बैठे.

2017 में विधानसभा का चुनाव परिणाम आने के पहले ही शायद उन्हें यूपी में भाजपा के अप्रतिरोध्य रूप में उभरने का आभास हो गया था, इसलिए उन्होंने भाजपा को रोकने के लिए कुछ करने का संकेत कर दिया. इसमें भविष्य में बसपा के साथ तालमेल बनाने के संकेत भी शामिल था. बहरहाल यूपी की सत्ता भाजपा के हाथ में जाने के बाद उनकी मंशा का अनुमान लगाते हुए कुछ बहुजन बुद्धिजीवी उनपर बसपा के साथ गठबंधन करने व सामाजिक न्याय की राजनीति पर लौटने का निरंतर दबाव बनाने लगे. इसका उनपर असर पड़ा और उन्होंने एक अन्तराल के बाद बसपा से गठबंधन करने की घोषणा भी कर दिया. अब लोगों को इंतजार इस बात का था कि सपा-बसपा मेल की औपचारिक घोषणा कब होती है. और लोग जिसका इन्तजार कर रहे थे वह घड़ी 2019 के जनवरी 7-9 के मध्य मोदी द्वारा संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए सवर्ण आरक्षण का बिल पास करवाने के बाद निकट आ गयी.

8-14 जनवरी, 2019: ये सात दिन भारत के बहुसंख्य वंचित आबादी के लिहाज से जितने घटना बहुल रहे, उसकी मिसाल नयी सदी में दुर्लभ है. सबसे पहले जिस तरह मोदी सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के अपने प्रस्ताव को, संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए दो दिनों के अंदर ही संसद में पारित कर लिया, उससे आरक्षण पर संघर्ष बिलकुल सतह पर आ गया. हालाँकि जिस तरह मंडलवादी आरक्षण की घोषणा के साथ विशेषाधिकारयुक्त तबका आत्म-दाह से लेकर राष्ट्र की संपदा-दाह इत्यादि जैसी गतिविधियों में संलिप्त होकर अपना रोष प्रकट किया था, उस तरह की कोई उग्र प्रतिक्रिया वाचित वर्गों की ओर से नहीं हुई. किन्तु जिस वर्ग का राज-सत्ता, धर्म-सता, ज्ञान-सत्ता के साथ-साथ अर्थ-सत्ता पर प्रायः 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा है, उस वर्ग के लोगों की गरीबी का बिना कोई ठोस अध्ययन किये जिस तरह संविधान में संशोधन कर 48 घंटों में आरक्षण सुलभ कराया गया, उससे असंख्य जातियों में बंटा वंचित वर्ग रातो-रात एक दूसरे के निकट आकर संख्यानुपात में सर्वव्यापी आरक्षण की मांग बुलंद करने लगा. इन दो दिनों में वंचना के कॉमन अहसास से इनमें ऐसा भावांतरण हुआ कि परस्पर शत्रुता से लबरेज हजारों जातियां भ्रातृ-भाव लिए एक दूसरे के निकट आने लगीं. और जिस दिन राष्ट्रपति कोविंद ने सवर्ण आरक्षण पर समर्थन की मोहर लगायी उसी 12 जनवरी को पिछले 25 सालों को कटुता भुलाकर सपा-बसपा एक दूसरे के निकट आयीं. उनके निकट आते ही देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले उत्तर-प्रदेश के हजारों जातियों में बंटे वंचितों में होली-दीवाली जैसा जश्न का माहौल पैदा हो गया. कहीं लोग आँखों में ख़ुशी के आंसू लिए एक दूसरे के गले मिले तो कहीं मिठाई बांटकर एक दूसरे का मुंह मीठा किये. इस घटना के दो ही दिन बाद 14 जनवरी को जब बिहार के तेजस्वी यादव मायावती जी का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने के बाद खुद वह तस्वीर अपने ट्विटर पर डाले, बहुजनों को प्रायः दो दशक पुराना आना सपना पूरा होता नजर आया.

12 जनवरी को सपा-बसपा के मेल के बाद के इतिहास का एक-एक पल बहुजन राजनीति में रूचि रखने वाले हर किसी के जेहन में दर्ज हो चुका है, जिसका जिक्र करना समय का दुरुपयोग कलायेगा. बहरहाल 12 जनवरी के बाद दुबारा अविस्मरणीय क्षण 19 अप्रैल, 2019 को आया जब मायावती और मुलायम मैनपुरी में एकसाथ मंच पर आये.निश्चय ही मैनपुरी में मायावती जी और मुलायम सिंह यादव का एक साथ मंच पर आना नयी सदी में न सिर्फ बहुजन, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय राजनीति के बेहद यादगार दिनों में एक रहा. इसदिन 24 सालों की कटुता भुलाकर जिस तरह मायावती और मुलायम ने एक दूसरे के प्रति आदर व्यक्त किया, वह बहुजन एकता के आकांक्षी लोगों की पलके बार-बार भिंगो गया. मायावती ने उस ऐतिहासिक अवसर पर कहा, ’मुलायम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह फर्जी पिछड़े वर्ग के नहीं हैं. मुलायम सिंह असली पिछड़े वर्ग के हैं, वह मोदी की तरह फर्जी पिछड़े वर्ग के नहीं हैं. आप मुझसे जानना चाहेंगे कि 2 जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद भी सपा-बसपा गठबंधन कर चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? इस गठबंधन के तहत मैं मैनपुरी में खुद श्री मुलायम सिंह यादव के समर्थन में वोट मांगने आई हूं. जनहित तथा पार्टी के मूवमेंट के लिए कभी-कभी हमें कुछ कठिन फैसले लेने पड़ते हैं. देश के वर्तमान हालात को देखते हुए यह फैसला लिया गया है. मेरी अपील है कि पिछड़ों के वास्तविक नेता मुलायम सिंह यादव को चुनकर आप संसद भेजें. उनके उत्तराधिकारी अखिलेश यादव अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं.’’ मायावती के बाद संबोधित करने की अपनी बारी आने पर मुलायम सिंह यादव सपा को जिताने तथा कार्यकर्ताओं से मायावती का हमेशा सम्मान करने की अपील करते हुए कहा ‘‘आज महिलाओं का शोषण हो रहा है. इसके लिए हमने लोकसभा में सवाल उठाया. संकल्प लिया गया कि महिलाओं का शोषण नहीं होने दिया जाएगा. आज हमारी आदरणीय मायावती जी आई हैं. हम उनका स्वागत करते हैं. मैं आपके इस अहसान को कभी नहीं भूलूंगा. मायावती जी का हमेशा बहुत सम्मान करना. समय-समय पर उन्होंने हमारा साथ दिया है.’’

नयी सदी में देश के बहुजन बुद्धिजीवियों-एक्टिविस्टों ने जिस नारों के मूर्त रूप रूप लेने की सर्वाधिक कामना की है, उनमें अन्यतम एक रहा है, ‘मिले मुलायम–कांशीराम हवा में उड़ गए जय सियाराम’. अर्थात अगर मायावती और मुलायम मिल जाएँ तो भाजपा का अंत तथा भारतीय राजनीति में विराट बदलाव आ जायेगा. वर्षों से बहुजनवादी जो सपना देख रहे थे, उस पर 12 जनवरी, 2019 के बाद 19 अप्रैल, 2019 को अंतिम मोहर लग गयी. अब वर्षों से सपा-बसपा के मेल से लोग जिस परिणाम की आशा पाले हुए थे, उसका परिक्षण तीसरे चरण का चुनाव परिणाम से सामने आने के बाद हो जायेगा. अगर इस चरण में गठबंधन प्रत्याशित परिणाम देने में सफल हो जाता है तो उसका असर बाकी चार चरणों के चुनाव पर पड़ना तय है.

– लेखक एच.एल. दुसाध बहुजन डायवर्सिटी मिशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं।

भाजपा ने एक और दलित सांसद-मंत्री का टिकट काटा, तो यूं छलका दर्द

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ विजय सांपला (फाइल फोटो)

नई दिल्ली। उदित राज के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने एक और नेता और केंद्रीय राज्यमंत्री विजय सांपला का टिकट काट दिया है. पार्टी के इस फैसले से आहत सांपला ने इसे ‘गौहत्या’ करार दिया है. पंजाब के होशियारपुर से सांसद सांपला सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय में राज्यमंत्री हैं. 2014 में पहली बार सांसद बनें विजय सांपला ने टिकट कटने के बाद ट्विट किया-

कोई दोष तो बता देते ? मेरी ग़लती क्या है कि :- 1. मुझ पर भ्रष्टाचार का कोई इल्ज़ाम नहीं है। 2.आचरण पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता । 3. क्षेत्र में एयरपोर्ट बनवाया । रेल गाड़ियाँ चलाई । सड़के बनवाई । अगर यही दोष है तो मैं अपनी आने वाली पीडीयों को समझा दुंगा कि वह ऐसी ग़लतियाँ न करें।

गौरतलब है कि भाजपा ने अपने तमाम वर्तमान सांसदों का टिकट काटा है, इसमें कई दलित सांसद भी हैं.

कांग्रेस पहुंचे उदित राज की नई राजनीति क्या होगी?

 उदित राज ने अपने गले से कमल छाप गमछा उतार दिया है. अब उन्होंने तीरंगा छाप नया गमछा डाल लिया है जिस पर हाथ का निशान बना हुआ है. उनके ट्विटर का कवर इमेज भी बदल चुका है. अब उसमें नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की तस्वीर के बदले राहुल गांधी की तस्वीर चस्पा हो गई है. उदित राज ने चौकीदारी से भी इस्तीफा दे दिया है, अब वो पहले की तरह पढ़े लिखे डॉ. उदित राज बन गए हैं. जी हां, उदित राज कांग्रेस पार्टी में पहुंच गए हैं. कल तक मोदी के चौकीदार ग्रुप के सक्रिय सदस्य रहे उदित राज अब राहुल गांधी के राफेल ग्रुप में शामिल हो गए हैं.

23 अप्रैल को काफी ऊहापोह में रहने और पल-पल अपना फैसला बदलने के बाद उदित राज ने 24 अप्रैल को कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया. अब बड़ा सवाल यह है कि उदित राज कांग्रेस में कौन सी जिम्मेदारी निभाएंगे. यह सवाल इसलिए क्योंकि भाजपा ने फिलहाल उदित राज को कहीं न नहीं छोड़ा है. उसने ऐसे वक्त में उदित राज का टिकट काटा कि उनके पास निर्दलीय लड़ने का भी रास्ता नहीं बचा रह गया. 23 अप्रैल को दिल्ली में नामांकन के लिए आखिरी तारीख थी.

उदित राज ने अपने बयान में इसका जिक्र भी किया. उन्होंने कहा कि अब अगर निर्दलिय लड़ भी जाऊंगा तो इतने कम समय में लाखों लोगों तक अपना नया चुनाव चिन्ह कैसे पहुंचाऊंगा. यानि कि भाजपा को यह डर था कि वह अगर उदित राज का टिकट काट देती है तो वह निर्दलीय ताल ठोक सकते हैं. शायद इसीलिए उन्होंने उदित राज की सीट को आखिर तक फंसाए रखा.

अब बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस पहुंचे उदित राज की अगली रणनीति क्या होगी? क्योंकि दिल्ली में तो फिलहाल लोकसभा चुनावों में बाजी उनके हाथ से निकल चुकी है. ऐसे में क्या कांग्रेस उदित राज को किसी अन्य राज्य से मौका देगी? अगर ऐसा होता है तो संभव है कि उदित राज कांग्रेस से अपनी नई राजनीति की शुरुआत उत्तर प्रदेश में कर सकते हैं. कांग्रेस पार्टी को भी उत्तर प्रदेश में एक बड़े दलित चेहरे की जरुरत है. फिलहाल कांग्रेस के भीतर उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा कद्दावर नेता नहीं है तो राजनीतिक तौर पर आधार वाला नेता हो. पी.एल. पुनिया उत्तर प्रदेश से हैं भी तो सालों तक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर रहने के कारण उनकी छवि खांटी परंपरागत राजनीतिज्ञ वाली नहीं बन पाई है.

तो क्या यह माना जाए कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में उदित राज को मायावती के बरक्स मजबूत करने की रणनीति पर काम कर सकती है? भाजपा ज्वाइन करते वक्त भी उदित राज ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और यूपी में बसपा और मायावती के बरक्स काम करने की इच्छा जताई थी, लेकिन भाजपा ने न तो उन्हें दिल्ली में कोई महत्वपूर्ण रोल दिया और न ही उत्तर प्रदेश में. ऐसे में उदित राज कांग्रेस से भी इस तरह की भूमिका की उम्मीद लगाए बैठे होंगे. फिलहाल इससे इंकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि वर्तमान लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के राजनैतिक मैदान में उतार कर यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर के लिए लड़ रही हो, विधानसभा चुनाव में वह पहले नंबर के लिए लड़ेगी. संभव है कि ऐसे में उदित राज उसके लिए कारगर हो सकते हैं.

तमाम बहस से इतर उदित राज की घटना ने राजनीति के सबसे गहरे रंग को दिखाया है. जिसमें न विचारधारा प्रमुख है और न पार्टी, महत्वपूर्ण है तो पद और पावर में बने रहना. पूरे राजनैतिक जगत की यही कहानी है. इस हमाम में किसी को किसी से ऐतराज नहीं.

बदलती पत्रकारिता के दौर में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की चुनाव रिपोर्टिंग की यादें

Indian political parties

आजकल का पत्रकारीय माहौल देखकर ‘चुनाव में पत्रकार की अपनी हिस्सेदारी’ विषय पर लिखने का मन हुआ. मेरा मानना है, किसी लेखक, बुद्धिजीवी, एकेडेमिक, सामाजिक या राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह एक सक्रिय पत्रकार, खासतौर पर रिपोर्टर या एंकर को चुनाव में किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में मतदान की सार्वजनिक अपील करने का नैतिक अधिकार नहीं है. मेरे हिसाब से ऐसा करना पत्रकारिता के मानदंडों पर उचित नहीं.

मैंने अपने निजी जीवन में इसे अक्षरशः लागू किया. पत्रकारिता में आने के बाद मैंने कभी किसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान के लिए लोगों से सार्वजनिक तौर पर अपील नहीं की. अपनी रिपोर्टिंग या विश्लेषण में भी किसी एक उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया. हां, गुण दोष जरुर बताए. संविधान-पक्षी वैचारिकता और मेहनतकश अवाम का पक्षधर होने के नाते किसी राजनीतिक धारा के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष जमकर गिनाए. पर वह लेखन किसी खास व्यक्ति के इर्द-गिर्द केंद्रित नहीं रह. उसके केंद्र में धारा और विचार रहे.

अगर कोई बहुत खास परिचित या निजी तौर पर नजदीकी उम्मीदवार हुआ तो उसके क्षेत्र का जायजा लेने भले चला गया पर रिपोर्टिंग स्वयं नहीं की. यह सोचकर कि शायद चुनाव रिपोर्टिंग में मैं आब्जेक्टिव नहीं हो पाऊंगा. मैं नहीं जानता, पत्रकारिता के मानदंडों पर इसे सही माना जायेगा या ग़लत. पर हम जैसे लोगों के अंदर ऐसा नैतिक-बोध या प्रोफेशनल-बोध संभवतः ‘नवभारत टाइम्स’ के तत्कालीन प्रधान संपादक राजेंद्र माथुर ने पैदा किया. जिन दिनों हमने ‘नवभारत टाइम्स’, पटना के नये-नये संस्करण के लिए रिपोर्टिंग शुरु की, माथुर साहब किसी कार्यशाला या अन्य कार्यक्रमों के बहाने पटना आया करते थे. दिल्ली से भी सर्कुलर या नोट भेजकर हम जैसे नये पत्रकारों को शिक्षित करते रहते थे. मुझे याद आ रहा है, एक बार उन्होंने एक नोट भेजा, जिसमें ‘नवभारत टाइम्स’ दिल्ली में छपी एक लंबी रिपोर्ट नत्थी थी. उसके रपटकार थे: सुप्रसिद्ध कवि और पत्रकार विष्णु खरे. उन दिनों खरे साहब ‘नवभारत टाइम्स’ में ही काम करते थे. माथुर साहब ने नोट में बताया कि ऐसी रिपोर्ट क्यों नहीं लिखी जानी चाहिए.

mediaबहुत पुरानी बात है. आजकल के विवादास्पद भाजपा नेता एम जे अकबर उन दिनों यशस्वी युवा संपादक हुआ करते थे. बहुत कम उम्र में ही आनंद बाजार ग्रुप के अंग्रेजी अखबार ‘टेलीग्राफ’ के संपादक बन गये थे. बिहार के किशनगंज से कांग्रेस टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए. अचरज भी हुआ. एक सक्रिय संपादक किसी पार्टी का सदस्य और उम्मीदवार बनकर चुनाव क्यों और कैसे लड़ रहा है? चुनाव के दौरान किशनगंज में मैंने उनसे यह सवाल भी किया: ‘चुनाव जीतने या हारने के बाद क्या आप फिर से संपादक बनकर काम करेंगे और करेंगें तो आप आब्जेक्टिव कैसे रह सकेंगे?’ उन्होंने मुझे घूरा और बगल में खड़े मशहूर फोटोग्राफर कृष्ण मुरारी किशन को इंगित कर कहा: ‘इससे पूछिए कि मैं कितना आब्जेक्टिव रहता हूं.’ बहरहाल, पत्रकारीय नैतिकता की सबकी अपनी-अपनी परिभाषा और बोध है. उनकी जगह अगर हम होते तो चुनावी-राजनीति में उतरने के बाद कालम या किताबें भले लिखते रहते पर संपादक या रिपोर्टर का दायित्व हरगिज नहीं संभालते. अगर पत्रकारिता में वापसी करते तो चुनावी-राजनीति को पूरी तरह बाय-बाय करके. अपने देश की पत्रकारिता में ऐसे अपवाद भी हैं कि किसी पत्रकार ने चुनाव लड़ा और हारने या जीतने के कुछ समय बाद उसने राजनीति से खुद को अलग कर लिया. फिर पत्रकारिता में दाखिल हुआ और अच्छा काम किया। आज भी कुछ ऐसे उदाहरण हैं. पर ऐसे पत्रकारों ने एम जे अकबर से अलग रास्ता अपनाया. राजनीति छोडकर वे फिर पूरी तरह पत्रकार बनकर लौटे. उत्तर से दक्षिण के राज्यों में ऐसे कई पत्रकार मिल जायेंगे. ऐसा एक उदाहरण अभी आशुतोष (‘सत्य हिन्दी’) हैं.

लगभग साढ़े तीन दशक के पत्रकारिता जीवन में चुनाव के आकलन या रिपोर्टिंग में मुझसे भी गलतियां हुई हैं. रिपोर्टर के तौर पर कई बार किसी क्षेत्र के बारे में मेरा आकलन गलत भी हुआ. हर गलती से सबक लेता रहा. लेकिन आजकल देश की मुख्यधारा पत्रकारिता का रंग-ढंग बिल्कुल अलग है. पूर्वाग्रह से भरी तथ्यहीन या एकपक्षीय रिपोर्टिंग या लेखन आज की पत्रकारिता के लिए आम बात है.

संभवतः अपने पत्रकारिता जीवन की पहली चुनाव रिपोर्टिंग मैंने सन् 1984 में की थी. लेकिन विधिवत और नियमित चुनाव रिपोर्टिंग करने का सिलसिला सन् 1986 में बिहार के बांका उपचुनाव से शुरू हुआ, जहां तब के फायरब्रांड समाजवादी दिग्गज जार्ज फर्नांडीज मैदान में उतरे थे. उनके मुकाबले कांग्रेस की मनोरमा सिंह उतरी थीं. वह पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह की धर्मपत्नी थीं. जहां तक याद आ रहा है, उन्होंने उस विवादास्पद चुनाव में जार्ज को हराया था. जार्ज ने बड़े स्तर पर चुनाव धांधली का आरोप लगाया.

फाइल फोटो

सन् 1986 से सन् 2009 तक, हर आम चुनाव को कवर किया. वैसे तो बाद के दिनों में भी जम्मू-कश्मीर आदि के चुनाव की रिपोर्टिंग की. लेकिन अब नियमित और राज्यव्यापी चुनाव रिपोर्टिंग के लिए नहीं जाता. हां, अवसर मिलने पर जायजा लेने कुछेक चुनिंदा क्षेत्रों में जरुर जाता हूं. अपने सक्रिय पत्रकारीय(रिपोर्टर के तौर पर) जीवन में दिल्ली, बिहार(झारखंड सहित), जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित), केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान और यूपी(उत्तराखंड सहित) आदि जैसे राज्यों में चुनाव की रिपोर्टिंग की. लेकिन सबसे सघन चुनाव रिपोर्टिंग का मेरा अनुभव बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर का रहा.

दुखद है कि हिन्दी में इन दिनों कुछेक अपवादों को छोड़कर अच्छी चुनाव रिपोर्टिंग नहीं हो रही है. पर अंग्रेजी में अब भी कुछ लोग बहुत अच्छी रिपोर्टिंग कर रहे हैं. नाम लेने का जोखिम ये है कि जिन कुछ अच्छे पत्रकारों का नाम गलती से छूट जायेगा, वे मेरी इस टिप्पणी को पढ़ें या न पढ़ें, पर मुझे अपनी गलती से तकलीफ होगी. लगेगा, कुछ लोगों का नामोल्लेख न करके मुझसे अनजाने में अन्याय हुआ है. इसलिए यहां किसी का नाम नहीं ले रहा हूं। पर ये बताना जरुरी है कि इस वक्त सबसे अच्छी चुनाव रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों में कुछ महिला पत्रकार सबसे आगे दिख रही हैं. इनमें कुछ अखबार में हैं और कुछ न्यूज पोर्टल में. इक्का-दुक्का रिपोर्टर टेलीविजन में भी अच्छी रिपोर्टिंग कर रहे हैं. इन सबको बधाई और शुभकामनाएं.

  • वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से

एक सांसदी टिकट के लिए उदित राज का इतना छटपटाना खल गया

2014 में भाजपा ज्वाइन करने के दौरान उदित राज (फाइल फोटो) Photo Credit: Indian Express

24 फरवरी 2014 को मैं भाजपा के दफ्तर में मौजूद था, जब उदित राज भाजपा ज्वाइन करने वाले थे. बतौर पत्रकार मैं भाजपा कवर कर रहा था. मैं भी हैरान था कि उदित राज को ऐसा क्या सूझा कि उन्होंने भाजपा ज्वाइन करने का मन बना लिया. खैर, उदित राज मंच पर आएं, वही अफसरों वाला रुवाब था उनका… जिसे कई अम्बेडकरवादियों ने उनसे मिलने के वक्त महसूस किया होगा. राजनाथ सिंह के सामने उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली. केजरीवाल से लेकर मायावती तक को रोकने की बात कही. वहां मंच के बाईं ओर एक कोने में उदित राज के समर्थकों ने जगह घेर रखी थी, जहां से वो ‘जय भीम’ और ‘उदित राज जिन्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे. उदित राज के हाव भाव को देख कर लग रहा था कि वो भाजपा में अपनी शर्तों के साथ आ रहे हैं. लेकिन 2019 आते-आते स्थिति बदल गई.

 भाजपा ने उत्तर पश्चिम दिल्ली से अपने वर्तमान सांसद उदित राज का टिकट काट दिया है. भाजपा ने उनकी जगह गायक हंस राज ‘हंस’ को टिकट दिया है. उदित राज का टिकट कटने की संभावना तभी से जताई जा रही थी, जब से भाजपा ने उनकी सीट को छोड़कर बाकी के छह लोकसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवार तय कर दिए थे. उदित राज ने 2014 लोकसभा चुनाव के पहले 24 फरवरी 2014 को भाजपा ज्वाइन किया था.

उदित राज को भी इसका अंदेशा हो गया था. यही वजह थी कि वह सोमवार को एक के बाद एक ट्विट करते रहे और भाजपा नेताओं से तकरीबन सार्वजनिक गुहार लगाते दिखे. उन्होंने यह कह कर भी भाजपा को डराने की कोशिश किया कि उनके पास कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से ऑफर है, लेकिन वह अपनी पार्टी के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. उदित राज के इस बयान ने टिकट मिलने और संसद में दुबारा पहुंचने की उनकी बेचैनी को भी दिखाया. वह काफी असहाय से दिख रहे थे. उदित राज को जानने वालों के लिए यह एक झटका था. एक दौर में जिस उदित राज के आमंत्रण पर दर्जनों सांसद पहुंच जाया करते थे, उसका महज एक सांसद बनने को लेकर छटपटाना निराश करने वाला था.

अपने आखिरी दांव को चलते हुए उदित राज ने आज 23 अप्रैल को यह अल्टिमेटम भी दे दिया कि टिकट नहीं मिलने पर वह भाजपा छोड़ देंगे, लेकिन इसके बावजूद भाजपा के नेताओं ने न तो उदित राज से बात करनी जरूरी समझी और न ही उन्हें मनाने की कोशिश की. और जिस तरह से अचानक उनका टिकट कटने की खबर आई उससे साफ है कि भाजपा को उनके पार्टी में रहने या नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

उदित राज के लिए मुश्किल यह है कि उन्होंने भाजपा के साथ समझौता नहीं किया था, बल्कि अपनी पार्टी इंडियन जस्टिस पार्टी का विलय ही भाजपा में कर दिया था. इसलिए उनके पास अब घरवापसी का भी कोई रास्ता नहीं है. एक बड़ी सोच वाले व्यक्ति का यूं एक छोटे से पद के लिए इतने बड़े समझौते कर लेना भी निराश करता है. उदित राज की आगे की राह क्या होगी, यह देखना होगा. लेकिन महज एक सांसदी के लिए उनका छटपटाना काफी खल गया.

रामपुर में 300 से ज्यादा EVM खराब होने पर भड़के अखिलेश यादव

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(फाइल फोटो)

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान हो रहा है. इसके बाद दो चरणों का मतदान और बाकी है. तीसरे चरण के बीच में ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव में जोर देकर ईवीएम का मुद्दा उठाया है. दरअसल समाजवादी पार्टी के बड़े चेहरे आजम खान रामपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. वहां उनके सामने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही जया प्रदा हैं. आजमगढ़ में आज ही वोटिंग हो रही है. मतदान के दौरान रामपुर में 300 से अधिक ईवीएम मशीन खराब होने की शिकायत मिलने से बलाव मच गया, जिसके बाद मामले को उठाते हुए अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को लेकर ट्विट कर दिया.

ट्विटर पर अखिलेश यादव ने कहा, ‘पूरे भारत में ईवीएम में खराबी या बीजेपी के लिए मतदान. डीएम का कहना है कि ईवीएम के संचालन के लिए मतदान अधिकारी अप्रशिक्षित हैं. 350 से अधिक ईवीएम को बदला जा चुका है. यह आपराधिक लापरवाही है. क्या हमें डीएम पर विश्वास करना चाहिए, या कुछ और अधिक भयावह है?’

इससे पहले आजम खान के विधायक बेटे अब्दुल्ला आजम ने कहा कि 300 से अधिक ईवीएम काम नहीं कर रहे हैं. मतदाताओं के घर में घुसकर पुलिस उन्हें डरा रही है. यह सब मतदाताओं को डराने के लिए किया जा रहा है, जहां हम आसानी से जीत सकते हैं. हालांकि, रामपुर के डीएम ने अब्दुल्ला के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.

देहरादून में 13-22 अप्रैल तक धूमधाम से मनाया गया ‘भीम महोत्सव’

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देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के अम्बेडकरवादियों द्वारा लगातार दूसरे साल भीम महोत्सव का आयोजन किया गया। पिछले साल की भांति ही यह महोत्सव शहर के परेड ग्राउंड में हो रहा है। यह भव्य मेला 13 अप्रैल से शुरू है जो 22 अप्रैल तक चलेगा। इसका आयोजन भीम महोत्सव आयोजन समिति, देहरादून द्वारा किया गया है।

देहरादून में आयोजित भीम महोत्सव का दृश्य

आयोजकों के मुताबिक इस आयोजन का उद्देश्य समानता, स्वतंत्रता और न्याय की विचारधारा को संपूर्ण भारतवर्ष में फैलाने वाले आधुनिक भारत एवं भारत के संविधान निर्माता को और उनके सिद्धांतों को याद करना है। दरअसल यह आयोजन अम्बेडकर जयंती के मौके पर किया जाता है। साल 2018 में दून बुद्धिस्ट सोसाइटी द्वारा इस आयोजन की शुरूआत की गई थी। इस वर्ष के कार्यक्रमों की बात करें तो लगातार 10 दिनों तक अलग-अलग कार्यक्रम का आयोजन होता रहा है। इसमें बहुजन संस्कृति और नायकों से जुड़े नाटक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है।

देहरादून में आयोजित भीम महोत्सव का दृश्य
इस आयोजन में पूरे शहर के लोग इकट्ठा होते हैं। आयोजकों का कहना है कि बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने हर समाज की भलाई के लिए काम किया है, ऐसे में पूरे समाज के बीच उनके द्वारा किए गए काम को ले जाना ही हमारा उद्देश्य है। यह आयोजन उसी का हिस्सा है।

इस तस्वीर को देखकर वाजपेयी के दिल पर क्या गुजरती?

मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के चुनाव प्रचार का दृश्य, ढाई दशक बाद दोनों नेता एक साथ थे

अटल बिहारी वाजपेयी ने सपा-बसपा के बारे में कहा था कि “एक काँटे से दूसरे काँटें को निकाला और फिर दोनों काटों को फेंक दिया.” आज दोनों “काँटे” फिर से इकट्ठा हैं. बताइए कि आज जिस तरह दोनों तरफ मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव बैठे थे और बीच में बहनजी बैठी थीं, उस तस्वीर को देखकर वाजपेयी के दिल पर क्या गुज़रती.

यूपी में 24 साल बाद बहनजी और नेताजी के एक साथ आने के बाद अब प्रदेश में राजनीति की तस्वीर साफ हो गई है. यह बहुत बड़ा सामाजिक समीकरण हैं, जिसमें दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी के बाद इसे रोक पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा. बाकी जनता मालिक है लोकतंत्र में. जिसे चाहे जिता दे, जिसे चाहे हरा दे.

सपा और बसपा ने अपनी पिछली कड़वाहट भुलाई है, यह महत्वपूर्ण है. इस कड़वाहट का बुरा असर दलितों और पिछड़ों दोनों ने झेला है. सपा राज में दलितों और बसपा राज में पिछड़ों का काफी अहित हुआ है. इसके अलावा दोनों दलों को जीतने के लिए सवर्णों की शरण में जाना पड़ा था क्योंकि दोनों दलों का अपना वोट बैंक इन्हें जिताने के लिए काफी साबित नहीं हो पा रहा था. इस वजह से दोनों दलों की राजनीति में काफी विकृतियां आ गईं थी, जिससे देश भर के आंबेडकरवादी और लोहियावादी निराश हो रहे थे. अब उनकी कई शिकायतें दूर हो सकती हैं.

अब बसपा और सपा के साथ आने के बाद सवर्णों की लल्लो -चप्पो करने की दोनों की मजबूरी खत्म हो गई है. इस सभा में मायावती और अखिलेश यादव दोनों ने नरेंद्र मोदी को नकली ओबीसी कहा है. ये लोकसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा बन सकता है. इसके अलावा इस रैली में बहनजी ने घोषणा की है कि निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी आरक्षण लागू करेंगी.

  • वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के फेसबुक वॉल से साभार।

साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ कोर्ट पहुंचे मालेगांव धमाके में पीड़ित के पिता

साध्वी प्रज्ञा (फाइल फोटो)

मालेगांव धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल सीट से बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया है. इस ऐलान के बाद से ही साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ने से रोकने की कवायद शुरू हो गई है. सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला के बाद अब मालेगांव धमाके के पीड़ित के पिता ने महाराष्ट्र के एनआईए कोर्ट में याचिका दायर करके साध्वी की जमानत पर सवाल उठाए हैं.

एनआईए कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि साध्वी प्रज्ञा को कोर्ट ने स्वास्थ्य कारणों के चलते जमानत दी थी, तो ऐसे में वह भोपाल से लोकसभा का चुनाव कैसे लड़ सकती हैं. पीड़ित के पिता ने मांग की कि कोर्ट साध्वी प्रज्ञा को 2019 का चुनाव लड़ने से रोकने के साथ ही इस मामले हाईकोर्ट के आदेशानुसार उन्हें (साध्वी प्रज्ञा) सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने प्रस्तुत होने का आदेश दिया जाए.

पीड़ित के पिता ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर को जमानत इस शर्त पर दी गई थी कि वह सुनवाई में हिस्सा लेंगी, लेकिन वह अपने आपको अस्वस्थ और स्तन कैंसर से पीड़ित बताकर सुनवाई में हिस्सा नहीं ले रही हैं. जबकि साध्वी विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा ले रही हैं और आपत्तिजनक भाषण दे रही हैं.

तहसीन पूनावाला ने भी की थी शिकायत, चुनाव आयोग ने किया सिरे से खारिज

इससे पहले गुरुवार को ही सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने चुनाव आयोग में साध्वी प्रज्ञा के चुनाव लड़ने के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. शिकायत में तहसीन पूनावाला ने प्रज्ञा को चुनाव लड़ने से रोकने की मांग की है. हालांकि, चुनाव आयोग ने पूनावाला की शिकायत को खारिज कर दिया था. चुनाव आयोग ने कहा था कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर किसी भी मामले में दोषी नहीं हैं. उनपर कोई भी दोष साबित नहीं हुआ है.

साध्वी ने कहा था, मुझे स्वास्थ्य के आधार पर बेल नहीं मिली

गुरुवार को आजतक से बातचीत में साध्वी प्रज्ञा ने अपने जमानत को हो रही बयानबाजी पर कहा था, ‘उनकी जानकारी गलत है. मुझे लगता है उन्होंने यह क्यों नहीं कहा कि मुझे तत्काल फांसी पर लटका देना चाहिए. इनका षड्यंत्र तो यही था. मुझे स्वास्थ्य के आधार पर बेल नहीं मिली है.’

आतंकवाद के आरोपों पर साध्वी प्रज्ञा ने कहा था, ‘आरोप भी इनके कहने पर लगाया है. और उन्होंने षड्यंत्र के तौर पर यह काम किया है. कि जिससे कोई भी देशभक्त हो वह खड़ा न हो सके. और यह इनका छल है. मैं जमानत पर हूं. मुझे एनआईए ने क्लीन चिट दी है. क्योंकि मेरे विरुद्ध कभी कुछ नहीं था और न ही है.’

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क्यों हुआ जेट कर्मचारियों का यह हाल

जेट एयरवेज में लगभग 20 हजार कर्मचारी काम करते थे। आज से जेट एयरवेज बन्द हो गया। ये पूछ रहे है कि “who will give us jobs now? (अब इन्हें नौकरी कौन देगा)। यदि हर परिवार में औसतन 5 लोग हो तो इस फैसले से एक लाख लोगों की जिंदगी दांव पर लग गयी। जिसमें किसी कर्मचारी की माँ का कैंसर की बीमारी का इलाज चल रहा है तो कुछ लोग अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

कई सरकारी कंपनियाँ बंद हो गयी और कई बंद होने के कागार पर हैं। और ऐसा इसलिए है क्योंकि जब सरकार से सवाल करना था तब आप ‘आधी रोटी खाएंगे लेकिन मंदिर वही बनायेंगे’ का नारा दे रहे थे। गाय के नाम पे तो लड़ रहे थे लेकिन तमाम नौकरियों के खत्म होने से आपको कोई दिक्कत नहीं थी। जरा सोचिए, अब खुद क्या खाइएगा और अपनी ‘राजनीतिक गाय’ को क्या खिलायेगा? शिक्षा के निजीकरण और दिन पर दिन महंगी होती शिक्षा पर आप तालियां बजा रहे थे। अब अपने बच्चों की स्कूल फीस कैसे चुकायेंगे? आपका ताली बजाना सिर्फ आपकी नहीं आपके बच्चों के भविष्य को भी अंधेरे में डाल गया।

जेट एयरवेज बंद होने के बाद बिलखते कर्मचारी

अपनी नौकरियां गंवाने और इस फैसले के विरोध में आज से ये सभी कर्मचारी दिल्ली में धरना देने जा रहे हैं। हम आपके दुःख और संघर्ष में साथ हैं, लेकिन काश! आप उनलोगों के साथ होते जब लाखों लोग अपनी नौकरियों के जाने, जमीन के छिने जाने, शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं को बर्बाद करने के खिलाफ सड़कों पर थे। काश! आप मंदिर-मस्जिद, अली-बजरंगबली, औरंगजेब, गाय और शमशान आदि पर तालियां न बजा रहे होते। काश! आप यह समझते कि ये क्यों किया जा रहा है? आपके इन्ही मुद्दों को भटकाया जा रहा था। काश! जब किसान, नौजवान और छात्र अपनी समस्याओं को लेकर, महिलाएं अपनी समस्याओं को लेकर जब सड़क पर थी तब उनके दर्द को समझते हुए आप भी उनके समर्थन में सडकों पर आए होते। शायद आज ये समस्या आपतक नही पहुंचती।

ऐसा थोड़े न संभव है कि बस्ती में आग लगे और आपके घर तक न पहुंचे। आपको मालूम था कि बस्ती में आग लगी है लेकिन आप इसलिए तालियां बजा रहे थे कि घर किसी और का जल रहा था। तो लीजिये आग आपके घर तक पहुंच ही गयी। किसी भी देश में नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को निभाना बन्द कर देगा तो उसका यही परिणाम होता रहा है। देश सिर्फ सरकार भरोसे नहीं चलती, नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है। लोकतंत्र को पूंजीतंत्र से बचाइए। लोकतंत्र जब कुछ लोगों की मुट्ठी में कैद हो जाएगा तो यही परिणाम होगा। हम आपके इस दुख की घड़ी में साथ हैं, लेकिन याद रखें कि सबको मिलकर अपने नागरिक होने की जिम्मेवारी को निभाना पड़ेगा तभी सभी नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकता है। लोकतंत्र लोगों के लिए तभी होगा जब लोग इसे पूंजीतंत्र के कैद से आजाद कराएंगे।

  • राकेश रंजन के फेसबुक वॉल से

भाजपा को रोकने के लिए 24 साल बाद एक मंच पर होंगे मायावती और मुलायम

नई दिल्ली। सपा-बीएसपी-रालोद महागठबंधन की चौथी रैली शुक्रवार को मैनपुरी में होगी. इस दौरान बसपा अध्यक्ष मायावती भी अपने दशकों पुराने प्रतिद्वंद्वी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के लिये वोट मांगेंगी. मैनपुरी की क्रिश्चियन फील्ड में होने वाली इस रैली में मायावती और मुलायम के मंच साझा करेंगे. इसके जरिये महागठबंधन प्रतिद्वंद्वियों को यह संदेश देने की कोशिश करेगा कि सभी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट हैं. सपा के जिलाध्यक्ष खुमान सिंह वर्मा ने बताया कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा मुखिया मायावती और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह रैली को सम्बोधित करेंगे. इस मौके पर सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी मौजूद रहेंगे. रैली की तैयारियों में जुटे मैनपुरी सदर से सपा विधायक राज कुमार उर्फ राजू यादव ने बताया कि मुलायम ने कल रैली में हिस्सा लेने की पुष्टि की है.

शुरू में ऐसी खबरें थीं कि मुलायम रैली में शामिल नहीं होंगे. वर्मा ने बताया कि रैली स्थल पर 40 लाख लोगों को जुटाने की तैयारी की गयी है. इस बीच, बीएसपी जिलाध्यक्ष शिवम सिंह ने बताया कि मायावती शुक्रवार को सैफई के रास्ते मैनपुरी पहुंचेंगी. मालूम हो कि साल 1993 में गठबंधन कर सरकार बनाने वाली सपा और बसपा के बीच पांच जून 1995 को लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस काण्ड के बाद जबर्दस्त खाई पैदा हो गयी थी. हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले सपा से हाथ मिलाने के बाद मायावती स्पष्ट कर चुकी हैं कि दोनों पार्टियों ने बीजेपी को हराने के लिये आपसी गिले—शिकवे भुला दिये हैं. अब सबकी निगाहें कल मायावती के सम्बोधन पर होंगी.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया है. इस समझौते के तहत 38-38 सीटों पर बीएसपी और सपा चुनाव लड़ रही हैं और दो सीटें शुरू में आरएलडी के लिए छोड़ी गई थी बाद में एक सीट और आरएलडी की दी गई है. वहीं इस गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली में अपने प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है.

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BSP की जगह गलती से दबा BJP का बटन, पछतावा होने पर काटी उंगली

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उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक युवक ने अपने हाथ की उंगली इसलिए काट डाली क्योंकि मतदान के दौरान गलती से उसने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को वोट दे दिया. दरअसर, वोट डालते वक्त उसे चुनाव चिह्न हाथी का बटन दबाना था, लेकिन उसने गलती से कमल का बटन दबा दिया. जब उसने इसका अहसास हुआ तो वो बेहद दुखी हुआ और घर आकर उसने वो उंगली ही काट दी जिससे वोट डाला था.

यह हैरान करने वाली घटना बुलंदशहर के शिकारपुर इलाके की है. बताया जा रहा है कि मतदाता दलित समुदाय का है, ऐसे में बसपा का समर्थक है. मतदान के वक्त उसे जब अपनी गलती का अहसास हुआ तब तक बटन दब चुका था. बता दें कि यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन है, ऐसे में एक दलित होने के नाते वो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को वोट देना चाहता था.

बता दें कि लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में गुरुवार को उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर मतदान हुआ. जिसमें नगीना, अमरोहा, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा और फतेहपुर में वोट डाले गए. मतदान के दौरान कई स्थानों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में गड़बड़ी की वजह से मतदान प्रभावित होने की खबरें भी सामने आईं.

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मध्यप्रदेश : मुरैना में बसपा ने बदला प्रत्याशी, अब करतार सिंह भडाना लड़ेंगे चुनाव

मध्यप्रदेश की मुरैना लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने प्रत्याशी बदल दिया है. पहले इस सीट से डॉ. रामलखन कुशवाहा चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन अब यह जिम्मेदारी करतार सिंह भडाना को दे दी गई है. पार्टी द्वारा यह फैसला लेने पर बसपा कार्यकर्ताओं में रोष व्याप्त है. पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना था कि जब बाहर का ही प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारना है तो रामलखन कुशवाहा को ही यह जिम्मेदारी मिलनी चाहिए क्योंकि वह पिछले दो महीने से यहां काम कर रहे हैं.

कार्यकर्ताओं की इस बात पर बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामडी गौतम ने कहा कि यह पार्टी प्रमुख मायावती का निर्णय है. रामजी गौतम व पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डीपी चौधरी ने बुधवार को गांधी बाल निकेतन में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में हरियाणा के पूर्व विधायक करतार सिंह भड़ाना को मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रत्याशी घोषित किया था. उन्होंने कहा था कि भडाना का चुनाव लड़ना तय है, उनके नाम की सूची भी जल्द जारी हो जाएगी.

इससे पहले शनिवार को कुशवाहा दिल्ली के लिए रवाना हुए थे. बताया जाता है कि बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने उन्हें बुलाया था. तभी से इस बात की अटकलें तेज हो गईं थीं कि यहां से प्रत्याशी बदला जा सकता है. बुधवार शाम को बसपा ने सूची जारी करते हुए इस अटकल को सही साबित कर दिया.

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दलित दूल्हा दर्शन न करे, इसलिए मंदिर के दरवाजे बंद किए; जान से मारने की भी कोशिश

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इंदौर (मध्यप्रदेश)। शहर के मांगलिया के पास टोड़ी गांव में एक दलित दूल्हे को मंदिर में दर्शन नहीं करने दिया. दरअसल, शादी की रस्म के दौरान वह मंदिर में पूजन के लिए जाना चाहता था. कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए. तलवार से हमले की कोशिश भी की गई. बैंड बंद करा दिया गया. बाद में पुलिस और समाज के लोगों ने पहुंचकर दूल्हे को मंदिर के दर्शन कराए. इस मामले में पुलिस ने दो भाइयों के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया है.

मांगलिया पुलिस के अनुसार, मंगलवार रात 10 बजे ग्राम टोड़ी में रहने वाले बीकॉम के छात्र और दूल्हा शुभम परमार मंदिर में जाना चाहते थे. उसकी बारात सोनकच्छ जाने वाली थी, तभी किसी ने गांव के राम मंदिर का कपाट बंद कर दिया. इस पर बारातियों ने आपत्ति जताई.

परिवार ने कहा- लोगों ने जानबूझकर ऐसा किया दूल्हे के परिवार का आरोप था कि दलित की बारात होने के कारण कुछ लोगों ने जानबूझकर ऐसा किया. वहां विवाद होने लगा, तभी गांव के दो युवक राहुल और दिलीप पंवार पहुंचे. उन्होंने तलवार लहराई. शुभम को भी मारने का प्रयास किया. बारातियों ने बीच-बचाव कर आरोपियों को हटाया. कुछ लोगों ने पुलिस को सूचना दी.

दूल्हे का आरोप- पुलिस चौकी प्रभारी बोले, दूर से कर लो दर्शन मांगलिया चौकी प्रभारी विश्वनाथ सिंह तोमर ने पहुंचकर विवाद सुलझाया तो आरोपी वहां से भाग गए. दूल्हे का कहना है कि प्रभारी तोमर ने दूर से मंदिर दर्शन करने को कहा. इस पर बारातियों ने इंदौर में रहने वाले समाज के कुछ वरिष्ठों को बुलाया. उन्होंने प्रभारी के सामने मंदिर के पट खुलवाए और दर्शन करवाए. दूल्हे पक्ष का आरोप है कि जब शिकायत की तो पुलिस ने आरोपी की तलवार जब्त करने के बजाय आचार संहिता का हवाला देकर ढोलक बंद करा दी. हमने एसडीएम की परमिशन दिखाई तो ढोलक वाले को छोड़ा गया. देर रात दूल्हे ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कराया है.

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