महागठबंधन की पहली हुंकार रैली

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नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती जी देश में 17वीं लोकसभा के हो रहे आमचुनाव में अपनी चुनावी अभियान की शुरुआत दिनांक 2 अप्रैल 2019, को ओडिसा राज्य से की थी. और आज दिनांक 06 अप्रैल 2019 को उत्तराखण्ड की दो रैलियों के बाद कल महागठबंधन की पहली संयुक्त रैली को सहारनपुर जिले के देवबन्द में सम्बोधित करेगी, इसमें तीनों दलों के प्रमुख मौजूद होगें. देवबन्द की यह रैली जामिया तिब्बिया मेडिकल कालेज के पास आयोजित की गई है, और 8 अप्रैल 2019, दिन सोमवार को ग्रेटर नोएडा में उत्तर प्रदेश के महागठबंधन के तीनो प्रमुख जनता को सम्बोधित करेंगे.

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों पर हो रहे आमचुनाव में बी.एस.पी.-समाजवादी पार्टी व आर.एल.डी. पहली बार गठबन्धन के आधार पर काफी मजबूती के साथ यह चुनाव लड़ रही है.

सुश्री मायावती जी अपने चुनावी अभियान के तहत अब तक उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना व महाराष्ट्र राज्य में चुनावी कार्यक्रम कर चुकी हैं.

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पुस्तक विमोचन के मौके पर दिलीप मंडल ने उठाया अरुंधति राय पर सवाल, मिला यह जवाब

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5 अप्रैल को दिल्ली के मावलंकर हॉल में अरुंधति राय की पुस्तक एक था डॉक्टर एक था संत का विमोचन हुआ

नई दिल्ली। दिल्ली के मावलंकर हाल में लेखिका अरुंधति राय और वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के बीच खूब जुबानी जंग हुआ। मौका था। बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका अरुणधति राय की पुस्तक “एक था गांधी- एक था संत” के हिन्दी अनुवाद का विमोचन कार्यक्रम का। कार्यक्रम 5 अप्रैल को दिल्ली के मावलंकर हॉल में हुआ। इस दौरान बतौर अतिथि पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने अरुणधति राय की इस बात को लेकर आलोचना किया कि एनीहिलेशन ऑफ कॉस्ट की भूमिका में अरुणधति ने इस किताब को लोगों के बीच ले जाने का काम किया।

दरअसल पुस्तक का हिन्दी अनुवाद दिल्ली विवि के हिन्दू कॉलेज में पढ़ाने वाले इतिहासकार और एक्टिविस्ट और विद्वान अनिल यादव ‘जयहिंद’ ने किया है। पुस्तक का हिन्दी अनुवाद राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। विमोचन कार्यक्रम में बतौर अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, दिलीप मंडल, लेखिका एवं एक्टिविस्ट अनिता भारती, डॉ. मनीषा बांगर और सुनील सरदार मौजूद थे। इस मौके पर सबने अपनी बात रखी। पुस्तक के अनुवादक अनिल जयहिंद ने इस किताब के हिन्दी में अनुवाद की कहानी बताई। अनिता भारती ने कहा कि उन्होंने इस किताब को पूरा पढ़ा है और इस किताब ने गांधी की पोल खोल कर रख दी है। उर्मिलेश जी और डॉ. मनीषा बांगर ने इस प्रयास के लिए अरुणधति राय और अनुवादकों का धन्यवाद किया।

5 अप्रैल को दिल्ली के मावलंकर हॉल में अरुंधति राय की पुस्तक एक था डॉक्टर एक था संत का विमोचन हुआ

हालांकि कार्यक्रम में तब अजीब स्थिति पैदा हो गई जब बोलने आए दिलीप मंडल ने अरुंधति राय की मंच से ही आलोचना करनी शुरू कर दी। हालांकि उन्होंने तर्कों के आधार पर आलोचना की लेकिन एक समय सबके लिए असहज स्थिति पैदा हो गई। दिलीप मंडल ने कहा कि वो अरुंधति राय को इस बात की इजाजत नहीं देते हैं कि वो ‘एनीहीलेशन ऑफ कॉस्ट’ को अपनी किताब बताएं। उन्होंने इस सवाल को भी उठाया कि आज गूगल पर इस किताब को सर्च करने पर लेखकों में अरुंधति राय का नाम आता है। हालांकि अरुंधति राय ने कहा कि उन्होंने ऐसा कभी क्लेम नहीं किया है और इस किताब की सिर्फ भूमिका लिखी है।

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UPSC: जानें- कौन हैं वो 20 कैंडिडेट, जो बने सिविल सर्विसेज के टॉपर

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने सिविल सर्विसेज परीक्षा के नतीजे जारी किए हैं, जिसमें 759 परीक्षार्थियों ने सफलता हासिल की है. वहीं जयपुर के रहने वाले कनिष्क कटारिया ने इस परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया और महिलाओं में सृष्टि देशमुख सबसे आगे है. ऐसे में जानते हैं उन उम्मीदवारों के बारे में, जिनका नाम टॉप-20 में शामिल है.

ये हैं परीक्षा के टॉपर्स की लिस्ट

1. कनिष्क कटारिया

2. अक्षत जैन

3. जूनैद अहमद

4. श्रेयांश

5. सृष्टि जयंत देशमुख

6. शुभम् गुप्ता

7. कर्णति वरुण रेड्डी

8. वैशाली सिंह

9. गुंजन द्विवेदी

10. तन्मय वशिष्ठ शर्मा

11. पूज्य प्रियदर्शनी

12. नम्रता जैन

13. वर्णित नेगी

14. अंकिता चौधरी

15. अतिराग चापलोत

16. DHODMISE तृप्ति अंकुश

17. राहुल शरनप्पा संकनूर

18. ऋषिता गुप्ता

19. हरप्रीत सिंह

20. चित्रा मिश्रा

इस बार फाइनल रिजल्ट में 759 परीक्षार्थी परीक्षा पास करने में कामयाब हुए. इनमें जनरल कैटेगरी के 361, ओबीसी के 209, एससी के 128 और एसटी के 61 परीक्षार्थी शामिल हैं. इस बार शीर्ष 25 में 15 पुरुष परीक्षार्थी और 10 महिला परीक्षार्थी का नाम शामिल है.

बता दें, यह परीक्षा देश में में नौकरशाही के सर्वोच्च पदों के लिए आयोजित की जाती है. इस बार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) 180 पद, भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए 30 पद, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के लिए 150 पद, सेंट्रल सर्विस ग्रुप ए के लिए 384 पद, ग्रुप बी सर्विस के लिए 68 पदों के लिए UPSC ने वैकेंसी निकाली थी.

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लोकसभा चुनाव 2019, बहुजन एजेंडा:सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति का एक नया शंखनाद!

2 अप्रैल,2018 भारतीय आंदोलनों के इतिहास के बेहद खास दिनों में चिन्हिंत हो चुका है. उस दिन एससी/एसटी एट्रोसिटी एक्ट को कमजोर किये के खिलाफ,बिना किसी नामी-गिरामी नेता और संगठन के आह्वान के ही लाखों लोग सडकों पर उतरे और अभूतपूर्व भारत बंद का इतिहास रच दिए.बहुजन समाज के अभूतपूर्व दबाव में आकर तब केंद्र सरकार उस एक्ट में आवश्यक संशोधन करने का आश्वासन देने के लिए बाध्य हुई थी. उस भारत बंद से यह सत्य स्थापित हुआ था कि यदि वंचित बहुजन समाज के लोग संगठित होकर सडकों पर उतरें तो वे अपनी बड़ी से बड़ी मांगे पूरी करवा सकते हैं: सरकारों को झुकने के लिए बाध्य कर सकते हैं. 2018 के उस भारत बंद से प्रेरणा लेकर एक बार फिर बहुजन समाज के छात्र-गुरुजन, लेखक-एक्टिविस्ट 5 मार्च,2019 को 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ सड़कों पर उतरे और तानाशाही मोदी सरकर को झुका कर अपनी मांगे पूरी करवाने में सफल हो गए.बहरहाल जो ऐतिहासिक 2 अप्रैल 5 मार्च,2019 के भारत बंद का प्रेरणा का स्रोत बना, उस बंद को ऐतिहासिक रूप प्रदान करने के सिलसिले में 16 युवाओं को अपना प्राण बलिदान करना पड़ा था. बाद में भारत बंद के उन शहीदों शहादत को स्मरण करने व बहुजन-मुक्ति की दिशा में एक नया संकल्प लेने के इरादे से 5 मार्च के भारत बंद में अग्रणी भूमिका अदा करने वाले बुद्धिजीवियों ने ’संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले 2 अप्रैल,2019 को ‘रामलीला मैदान चलो’ का आह्वान किया.

उनके आह्वान पर 2 अप्रैल,2018 के शहीदों की शहादत को स्मरण करने के लिए देश के विभिन्न अंचलों से चलकर लोग भारी संख्या में लोग ऐतिहासिक रामलीला मैदान में उपस्थित हुए और कड़ी धूप में सुबह ग्यारह से शाम 6 बजे तक शहादत दिवस की कार्यवाई देखते रहे. उस दिन संविधान बचाओं संघर्ष समिति की ओर से शहीद परिवारों को शाल भेंट कर सम्मानित करने के साथ सरकार के समक्ष मांग राखी गयी कि शहीद परिवारों को एक-एक करोड़ की मुवावजा तथा तथा प्रत्येक के परिवार से एक सदस्य को विवेक तिवारी की विधवा की भांति नौकरी मिले. मांग यह भी रखी गयी कि शहर के चौक-चौराहों पर शहीदों की प्रतिमा लगे तथा 2 अप्रैल के भारत बंद में शामिल लोगों के मुकदमे वापस लिए जाएँ.

2 अप्रैल,2019 को ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 2 अप्रैल,2018 के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि देने के साथ ‘संविधान बचाओं संघर्ष समिति’ ने अप्रैल 2018 के भारत बंद से प्रेरणा लेते हुए एक और ऐसा काम किया जिसे सरल शब्दों में सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति का एक नया शंखनाद कहा जा सकता है.उस दिन संविधान बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े बौद्धिकों ने लोकसभा चुनाव-2019 के लिए 15 सूत्रीय ‘बहुजन मैनिफेस्टो’ जारी करने का ऐतिहासिक काम अंजाम दिया. इसके जरिये उन्होंने देश के राजनीतिक दलों के सामने एक नक्शा पेश कर यह बताया की देश के राजनीतिक दलों को किन मुद्दों पर चुनाव केन्द्रित करना चाहिए.इसके असर को जानने के लिए बहुजन मैनिफेस्टो पर नजर दौड़ा लेना होगा.

बहुजन मैनिफेस्टो में सबसे पहले जातिवार जनगणना पर कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के नाम पर एक आधा-अधूरा सर्वे कराया था। ऐसी घोषणा की गई कि वह काम 2015 में पूरा हो गया, लेकिन आज तक उसकी रिपोर्ट नहीं आई. सरकार एक श्वेतपत्र जारी करके बताएगी कि 4,893 करोड़ रुपए खर्च करके कराई गई उस जातिगत सर्वे का क्या हुआ. अगर ईमानदार और प्रामाणिक आंकड़ा मौजूद हुआ तो उसकी रिपोर्ट जारी की जाए. 2021 की जनगणना में जाति का कॉलम शामिल किया जाए और हर जातियों से संबंधित आंकड़े जारी किए जाएं. जाति की गिनती अलग से नहीं, बल्कि जनगणना में ही कराई जाए. इसका दूसरा बिंदु है आबादी के अनुपात में आरक्षण. जनगणना के आंकड़ों के आधार पर संविधान द्वारा चिह्नित सामाजिक समूहों यानी एससी-एसटी और ओबीसी को आबादी के अनुपात में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए. चूंकि सवर्ण गरीबों के आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की अदालत द्वारा लगाई गई सीमा तोड़ी जा चुकी है, इसलिए वंचित समूहों को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने में अब कोई बाधा नहीं है.ओबीसी आरक्षण 52 फीसदी किया जाएगा. यह घोषणापत्र तीसरे नंबर पर कहता है,’आरक्षण लागू करने के लिए कानून बने’. आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान होने के बावजूद एससी-एसटी-ओबीसी का कोटा नहीं भरा जाता. इसके लिए तमाम तरह के भ्रष्टाचार किए जा रहे हैं, लेकिन आरक्षण का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दंडित करने का कोई कानून नहीं है. इसलिए एक ऐसा कानून बनाया जाए, जिससे आरक्षण का नियम तोड़कर नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में भर्तियां करने वाले अधिकारियों को कैद और अर्थदंड दिया जाए और एक बार दंडित किए जाने के बाद उक्त अफसर को नियुक्ति की प्रक्रिया से हमेशा के लिए दूर रखा जाए. चौथे नंबर पर इसमें आरक्षण अनुपालन के लिए लोकपाल बनाये जाने की मांग उठाई गई है.

कोटा का बैकलॉग पूरा होने तक अनरिजर्व कटेगरी की नियुक्तियों पर रोक लगे, यह बात इसमें पुरजोर तरीके से उठाई गयी है .एससी-एसटी-ओबीसी के लाखों पद इतने साल बाद भी खाली पड़े हैं,जबकि अनरिजर्व कटेगरी के पद भर जाते हैं. इस वजह से नौकरशाही और शिक्षा संस्थानों में जबर्दस्त सामाजिक असंतुलन हो गया है. इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले तमाम बैकलॉग पूरे किए जाएं और ऐसा होने तक अनरिजर्व कटेगरी में अब और नियुक्तियां न की जाएं. जब कोटा फुल हो जाए, तो जिस कटेगरी के पद की वेकेंसी हो, उसे उसी कटेगरी से भरा जाए. रोस्टर लागू करने का यही एकमात्र तरीका है. निजी क्षेत्र में आरक्षण बहुजनों की पुरानी मांग रही है, जिसे इसमें पुरजोर तरीके से उठाते हुए कहा गया है कि भारत में 1992 के बाद से अबाध निजीकरण जारी है. कई सरकारी संस्थान निजी हाथों में दिए जा चुके हैं. उन कंपनियों में अब आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. एडहॉक और आउटसोर्सिंग की वजह से भी आरक्षण का प्रावधान कमजोर हुआ है. ऐसे में निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने के अलावा सामाजिक न्याय के अनुपालन का कोई रास्ता नहीं है. इसके पहले चरण में उन तमाम निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू किया जाए, जो कंपनियां सरकार से किसी तरह का लोन, सस्ती जमीन, टैक्स छूट आदि लेती हैं. मंडल आयोग की रिपोर्ट में इसका प्रावधान भी है. आउटसोर्सिंग में भी आरक्षण लागू हो,यह बात भी जोरदार तरीके से उठाई गयी है. लेकिन इसका सबसे क्रान्तिकारी पक्ष शायद सप्लाई और ठेकों में आरक्षण है. इस विषय में इसमें कहा गया है. 100 करोड़ तक के ठेके और सप्लाई में आरक्षण लागू किया जाए. केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय और पीएसयू में 100 करोड़ रुपए तक के तमाम ठेकों और सप्लाई के करारों में आरक्षण लागू किया जाए, ताकि एससी-एसटी-ओबीसी के उद्यमियों और व्यवसायियों को राष्ट्र निर्माण में हिस्सा लेने का मौका मिल सके. इसी तरह बैंक ऋण में सामाजिक विविधता सुनिश्चित की जाने की मांग भी बहुत अहम् है.

इसके अतिरिक्त उच्च न्यायपालिका में आरक्षण लागू किया जाए और राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग का गठन किया जाए तथा साथ ही 13 पॉइंट रोस्टर खत्म करने के लिए कानून बनाया जाए, यह बात भी जोरदार तरीके से कही गयी है. ओबीसी आरक्षण से क्रीमी लेयर हटाया जाय यह मांग भी 15 सूत्रीय एजंडे में शामिल की गयी है. किसानों से कर्ज वसूली में एनपीए की वसूली के लिए समान तरीका अपनाया जाय, यह बात भी कही गयी है. लेकिन इसका बेहद क्रन्तिकारी एजेंडा है : राजनीतिक नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने की मांग. इसके पक्ष में कहा गया है,’ सरकारी नौकरियों के अलावा देश में बड़ी संख्या में राजनीतिक नियुक्तियां होती हैं, ऐसी नियुक्तियां पीएसयू और बैंकों के बोर्ड से लेकर मंत्रालयों और कंपनियों की सलाहकार समितियों, अकादमियों से लेकर राजदूत और राज्यपाल के रूप में की जाती है. इन नियुक्तियों में आरक्षण लागू किया जाए’. सरकारी भूमि का भूमिहीन एससी-एसटी और ओबीसी में बंटवारा करने तथा शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च मौजूदा स्तर से दोगुना किया जाए, यह बात भी बेहद प्रभावित करने वाली है. यह सब बातें इस बात की सूचक हैं कि 2 अप्रैल,2019 को बहुजन एजेंडे के जरिये सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति का एक नया शंखनाद हो चुका है, जिसके लिए संविधान बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े प्रो.रतनलाल, महेंद्र नारायण सिंह यादव, वामन मेश्राम, दिलीप मंडल, अनिल जयहिंद,अनिल चमडिया और इनकी टीम को साधुवाद दिया जा सकता है.

वैसे तो यह ऐतिहासिक दलित एजेंडा 2 अप्रैल,2019 को राष्ट्र के समक्ष पेश किया गया है, किन्तु इससे जुड़े बुद्धिजीवी कुछ सप्ताह पूर्व से ही विभिन्न पार्टियों से संवाद बना रहे थे. फलस्वरूप पिछले दो-तीन दिनों में गैर-भाजपा दलों के जो घोषणापत्र जारी हुए है, उनमें इसका असर देखा जा रहा है. संविधान बचाओं समिति द्वारा जारी दलित अजेंडे का मुख्य जोर नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग-व्यापार,राजनीतिक नियुक्तियों में आरक्षण लागू करवाने पर है और गैर-भाजपा दलों के घोषणापत्रों इसे जगह मिल रही है. अब बहाजन समाज की जिम्मेवारी बनती है कि वह बहुजनवादी दलों के घोषणापत्रों में दलित एजेंडे को शामिल करवाने के लिए आवश्यक दबाव बनाये और जो दल इसे अपने मैनीफेस्तो में जगह नहीं देते, उन्हें चुनाव में सबक सिखाये.

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छात्र ने राहुल गांधी से 72 हजार पर पूछा सवाल, राहुल ने दिया यह जवाब

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए कांग्रेस पार्टी और इसके अध्यक्ष राहुल गांधी पूरा जोर लगा रहे हैं. इसके लिए राहुल देश भर में घूमकर तमाम वर्ग और उम्र के लोगों के बीच जा रहे हैं. इसी कड़ी में राहुल गांधी ने शुक्रवार 5 अप्रैल को महाराष्ट्र के पुणे में छात्रों से सीधा संवाद किया. इस दौरान कई छात्रों ने राहुल गांधी से खुलकर सवाल किए, तो राहुल गांधी ने भी उन्हें निराश नहीं किया और जवाब दिया. एक छात्र ने जब राहुल गांधी से न्याय योजना के लिए फंड कहां से आएगा, पूछा तो राहुल गांधी ने उसका भी जवाब दिया.

छात्र ने राहुल गांधी से सवाल किया था कि आपने 20 फीसदी गरीबों को 72 हजार रुपये सालाना देने का वादा किया है. इसके लिए पैसा कहां से लाएंगे. राहुल ने कहा कि हम नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या, अनिल अंबानी से पैसा लाएंगे. किसी मिडिल क्लास के लिए टैक्स नहीं बढ़ाएंगे. राहुल बोले कि हमने पूरा हिसाब लगा लिया है, पैसा कहां से आना है और कैसे बांटा जाना है. पहले पायलट प्रोजेक्ट होगा और उसके बाद पूरे देश में लागू किया जाएगा. राहुल गांधी ने रोजगार को लेकर भी बातचीत की. उन्होंने कहा कि चीन जहां रोजगार पैदा कर रहा है तो हमारे देश में हर 24 घंटे में 27 हजार नौकरियां खोई जा रही हैं. छात्रों से संवाद करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा.

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नीतीश को लेकर लालू के बयान से बिहार की राजनीति में हलचल

नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपनी किताब में तमाम बातें साझा की है. इसमें लालू यादव ने जो बातें लिखी है, उससे बिहार की सियासत में बवाल हो गया है. अपनी किताब में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू यादव ने दावा किया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने के महीने बाद ही दोबारा से महागठबंधन में शामिल होना चाहते थे. लेकिन उन्होंने नीतीश को वापस लेने से इंकार कर दिया.

लालू ने दावा किया है कि इसके लिए नीतीश के करीबी और जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने पांच बार उनसे मुलाकात की थी. हालांकि पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने लालू के इस दावे को खारिज कर दिया है और इन सारी बातों को बकवास कहा हैं.

राजद अध्यक्ष के दावे को बेबुनियाद बताते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि लालू अपने आप को चर्चा में बनाए रखने के लिए एक नाकामयाब कोशिश कर रहे है. लालू के अच्छे दिन अब पीछे रह गए हैं.हालांकि प्रशांत किशोर ने कहा, ‘हां मैंने जदयू ज्वाइन करने से पहले लालू यादव से मुलाकात की थी लेकिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी. अगर मुझसे ये पूछा जाए कि लालूजी से क्या-क्या बातें हुई और अगर मैंने बता दिया तो लालू जी को काफी शर्मिंदगी महसूस होगी.

बता दें कि लालू यादव ने अपनी किताब गोपालगंज टू रायसीना: माइ पॉलिटिकल जर्नी‘ में दावा किया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोबारा से गठबंधन का हिस्सा बनना चाहते थे. लेकिन लालू ने नीतीश को वापस महागठबंधन में लेने से साफ इनकार कर दिया क्योंकि नीतीश लालू का भरोसा खो चुके थे.

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मायावती-अखिलेश से डरे योगी ने निषादों को सौंपी गोरखपुर सीट

आभार- NDTVइंडिया

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश में एक बड़ा सियासी उलटफेर हुआ है. गोरखपुर में सपा के टिकट पर और बसपा के समर्थन से योगी आदित्यनाथ के गढ़ में उन्हें मात देने वाले वर्तमान सांसद प्रवीण निषाद भाजपा में शामिल हो गए हैं. खबर है कि वो भाजपा के टिकट पर गोरखपुर से चुनाव लड़ेंगे. अभी पिछले ही दिनों निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने अखिलेश यादव के समक्ष सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होने की घोषणा की थी, लेकिन उसके दो दिन बाद ही वह भाजपा के पीछे घूमने लगे और गठबंधन से नाता तोड़ दिया.

इसके बाद संजय निषाद ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की जिसके बाद आज चार अप्रैल को संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद भाजपा में शामिल हो गए. राजनीतिक स्वार्थ का सौदा किस तरह किया गया वह जानने के लिए इस बात को समझिए. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे और गोरखपुर से सांसद प्रवीण निषाद ने जहां भाजपा की सदस्यता ले ली है तो वहीं उनके पिता अपनी निषाद पार्टी के साथ एनडीए गठबंधन में शामिल हैं. भाजपा के यूपी प्रभारी जे.पी. नड्डा ने प्रवीण निषाद को गोरखपुर से चुनाव लड़ाने का संकेत भी दिया है. निषाद पार्टी के इस कदम से सपा-बसपा गठबंधन को झटका लगा है, जिसके टिकट और समर्थन से ही प्रवीण निषाद उपचुनाव में गोरखपुर लोकसभा सीट से योगी आदित्यनाथ के करीबी और भाजपा प्रत्याशी उपेन्द्र शुक्ला के खिलाफ 26 हजार वोटों से जीते थे.

गोरखपुर संसदीय सीट को लेकर योगी आदित्यनाथ को गठबंधन बनने के बाद ही डर सता रहा था. इस सीट से योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा जुड़ी थी, और भाजपा और योगी किसी भी कीमत पर गोरखपुर सीट को हारना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने ऐसा रास्ता चुना की गोरखपुर में सांसद भाजपा पार्टी का ही बने. इस सीट पर निषाद पार्टी इसलिए अहम है क्योंकि गोरखपुर में निषाद करीब 3.5 लाख है जो किसी भी पार्टी की हार जीत का फैसला करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. संभव है कि योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रवीण निषाद को पार्टी में शामिल कर अपनी इज्जत बचाने में कामयाब हो जाएं लेकिन इसके लिए भाजपा और योगी आदित्यनाथ ने जो रास्ता चुनाव है, उसने साबित कर दिया है कि भाजपा सपा-बसपा गठबंधन को लेकर कितना डरी हुई है.

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जिग्नेश मेवाणी पर सवाल क्यों उठा रहे हैं गुजरात के लोग

उनाकांड के पीड़ित दलित परिवार धरने पर बैठे हैं। उन्हें इंसाफ नहीं मिला है। वह सरकार से विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनाकांड के कई आरोपी भी जेल से छूट गए हैं। लेकिन जिग्नेश भाई बिहार में “मां की कसम” खाकर कन्हैया कुमार के लिए वोट मांग रहे हैं। उनसे पूछिए कि ऐसे हालात में क्या उनको उना नहीं होना चाहिए। अच्छा छोड़िए जिग्नेश भाई उना कांड की पीड़ित परिवार से आपका छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। लेकिन उस नौजवान के लिए तो आंदोलन कीजिये जो 3 साल से जेल में बंद है।

अमरेली का नौजवान दलित कार्यकर्ता कांति भाई बाला 3 साल से जेल में बंद है। उना कांड के विरोध में कांतिबाला ने आंदोलन चलाया था। जिस पर सरकार ने हजारों लोगों पर केस दर्ज करवाया था। कांतिबाला तो अपने विधायक जिग्नेश मेवानी का इंतजार है कि वह कभी उसकी रिहाई के लिए आवाज़ उठाएंगे। उसकी रिहाई के लिए कोई आंदोलन चलाएंगे। चलिए आंदोलन ना सही विधानसभा में सरकार से प्रश्न ही पूछ लेंगे। लेकिन जिग्नेश भाई को तो जगतनेता बनने का भूत सवार है। इंडिया के कोने-कोने में जाकर भाषणबाजी कर रहे हैं।

एक बात और बता रहा हूं जिग्नेश जिस बनासकांठा जिले की बडगाम सीट से विधायक हैं, वह बनासकांठा छुआछूत और अस्पृश्यता का शिकार है। लेकिन जिग्नेश भाई क्या कोई आंदोलन चला रहे हैं? क्या उनकी आवाज़ उठा रहे हैं। अभी दबंगों ने एक दलित परिवार की जमीन पर कब्जा कर लिया है, लेकिन जिग्नेश मेवानी को बेगूसराय में कन्हैया से दोस्ती निभानी हैं, बाकी जिस समाज से निकलकर आए हैं, उस समाज को ही भूल गए।

जिग्नेश ने कहा था, “हमने सरकार को आवंटित ज़मीन के अधिकार दलितों और ओबीसी को लौटाने के लिए 6 दिसंबर तक की मोहलत दी है. इसके बाद हम जबरन कब्जा ले लेंगे।” क्या जिग्नेश ने कभी किसी दलित-पिछड़े को कब्जा दिलवाया? क्या कोई आंदोलन किया?

गुजरात के एक दलित कार्यकर्ता ने मुझे कहा कि भैया जिग्नेश बिहार गया है, उसे वहीं रख लो। आधार कार्ड और राशन कार्ड बनवाकर एक घर भी दिलवा देना। गुजरात को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है। दलित कार्यकर्ता ने बताया कि जिग्नेश ने दलितों के आंदोलन की क्रैडिबिलिटी को खत्म कर दिया है। दलित कार्यकर्ता बताते हैं कि जिग्नेश ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए दलित आंदोलन का ऐसा नुकसान किया है कि लोग सभी आंदोलनकारियों को ठग समझने लगे हैं। जिग्नेश की राजनीति आंदोलनों को कुचलने लगी है।

  • निसार सिद्दीकी  (लेखक पत्रकार हैं)

राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर ‘लाल’ क्यों हैं वाम दल

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नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी के अलावा केरल की वायनाड सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. राहुल आज यहां अपनी बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ पहुंचे, जहां उन्हें नामांकन दाखिल करना है. विपक्ष इसको लेकर राहुल गांधी पर निशाना साध रहा है, लेकिन राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के पीछे असली कारण कुछ और है.

दरअसल राहुल गांदी वायनाड ऐसे नहीं आए हैं. बल्कि वो यहां से केरल के अलावा तमिलनाडु और कर्नाटक को साधने की कोशिश में हैं. वायनाड से गांधी परिवार के रिश्ते को देखते हुए इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता. यहां से कांग्रेस का सिर्फ राजनीतिक रिश्ता नहीं है बल्कि गांधी परिवार की कई यादें भी जुड़ी हैं. तो राहुल गांधी का यहां से भावनात्मक रिश्ता है. राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर दादी इंदिरा गांधी तक का यहां से गहरा लगाव रहा है. इसी के नाते राहुल ने वायनाड को चुना. 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्या के बाद उनकी अस्थियों को केरल के कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के. करुणाकरन ने वायनाड के पापनाशिनी नदी में विसर्जित किया गया था.

 राजीव गांधी की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के साथ राहुल गांधी खुद वायनाड गए थे. उन्होंने के. करुणाकरन के साथ वायनाड की पापनाशिनी नदी में उसे विसर्जित किया था. उसी दौरान हुए 1991 के लोकसभा चुनाव में केरल की कुल 20 सीटों में से कांग्रेस को 13, मुस्लिम लीग को 2, सीपीएम को 3 और अन्य को एक सीट मिली थी. इसी तरह से 1991 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी वामपंथी गठबंधन को तगड़ा झटका लगा था.

यही वजह है कि वामपंथी दल राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने का तगड़ा विरोध कर रहे हैं. जाहिर है कि राहुल गांधी के यहां से चुनाव लड़ने से वो तमाम बातें और मुद्दे सामने आएंगे. राहुल के वहां होने से प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी का भी वहां दौरा होगा. ऐसे में यह सीट कांग्रेस पार्टी के तमाम अन्य दिग्गज नेताओं के भी केंद्र में रहेगा. वाम दलों को इसी से परेशानी है. उन्हें पता है कि अगर यहां कांग्रेस पार्टी को फायदा होगा तो नुकसान सिर्फ वाम दलों का होगा. जबकि राहुल गांधी की निगाह केरल, तामिलनाडु और कर्नाटक इन तीनों प्रदेशों के लोकसभा सीटों को साधने की है.

मध्यप्रदेश में बसपा ने ठोका ताल, 9 सीटों पर उम्मीदवार घोषित

भोपाल। मध्यप्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव करने वाली बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश के 9 लोकसभा सीटों के लिए अपनी पहली सूची जारी कर दी है. जिन सीटों की घोषणा की गई है उसमें मुरैना से डॉ. रामलखन कुशवाहा, गुना से लोकेंद्र सिंह धाकड़, सतना से अच्छेलाल कुशवाहा, रीवा से विकास पटेल, सीधी से रामलाल पनिका को टिकट दिया गया है. इसके अलावे छिंदवाड़ा से ज्ञानेश्वर गजभिये, बालाघाट से रामकुमार नगपुरे (लोधी), जबलपुर से राम राज राम और खंडवा से नंदकिशोर धांडे बतौर बसपा प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.

 पार्टी ने प्रदेश की दो सीटें समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी है, जबकि एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के हिस्से आई है. बसपा के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामजी गौतम के मुताबिक बसपा प्रदेश की 3 सीटों को छोड़कर सभी सीटों से चुनाव लड़ेगी. उन्होंने बताया कि बाकी की बची 17 सीटों पर बसपा जल्दी ही अपने उम्मीदवार के नामों की घोषणा करेगी. गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली बसपा ने खजुराहो और टीकमगढ़ की सीट समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी है, जबकि मंडला की सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लिए छोड़ी गई है.

रवीश का ब्लॉग- कांग्रेस के घोषणा पत्र में न्याय योजना सबसे खास

2019 के चुनावों के लिए कांग्रेस का घोषणा पत्र आ गया है. इधर-उधर के बयानों से बेहतर है कि अब घोषणा पत्रों में लिखी गई बातों को पकड़ा जाए. उन्हें याद रखा जाए. उसी तरह से जैसे 2014 के चुनावों में बीजेपी के घोषणा पत्र की कई बातों को पूरे पांच साल याद रखा गया. कांग्रेस के घोषणा पत्र के कवर पर लिखा है हम निभाएंगे. पहले पन्ने पर राहुल गांधी का बयान लिखा है कि मेरा किया हुआ वादा मैंने कभी नहीं तोड़ा. प्रस्तावना में राहुल गांधी ने लिखा है कि पांच साल में जो सबसे ख़तरनाक चीज़ें हुईं हैं वह यह कि आम जनता के बीच प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के शब्दों ने अपना विश्वास खो दिया है. उन्होंने हमें केवल खोखले वादे, असफल कार्यक्रम, झूठे आंकड़े, भय और नफरत का वातारण दिया है. राहुल ने शुरुआत सवालों से की है कि 2019 का भारत कैसा होगा? वे लिखते हैं कि क्या भारत एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश होगा? क्या भारत के लोग भय से मुक्त होंगे? अपनी इच्छा अनुसार जीवन जीने, काम करने, खाने-पीने, स्वेच्छा से जीवनसाथी चुनने के लिए स्वतंत्र रहेंगे? क्या गरीबी से मुक्ति पाने के लिए अपनी आकांक्षाओं और महत्वकांक्षाओं, को परिपूर्ण करने के प्रयास के लिए स्वतंत्र होंगे? या क्या भारत उस विभाजनकारी, विध्वंसकारी विचारधारा से संचालित होगा जो लोगों के अधिकारों को, संस्थाओं को, विविधतापूर्ण सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्ववादी स्वस्थ मतभिन्नता के विचार को, जो कि भारत जैसे बहु-सांस्कृतिक समाज और देश की आत्मा है, रौंदकर छिन्न-भिन्न कर देगा?

दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में घोषणा पत्र को लांच किया गया. इसमें कांग्रेस ने अपने पुराने काम जैसे आईआईटी से लेकर एम्स बनाने को गिनाया है. हरितक्रांति, श्वेतक्रांति का ज़िक्र है. 2004 से 2014 के बीच 14 करोड़ लोगों को ग़रीबी के कुचक्र से निकाला गया. 1965 के युद्ध में विजय प्राप्त की, 1971 के युद्ध में विजय प्राप्त की. पाकिस्तान को पराजित कर बांग्लादेश को मुक्त करवाया. इन बातों का ज़िक्र बता रहा है कि कांग्रेस सत्तर साल में क्या हुआ, मोदी के आरोपों का जवाब देने का प्रयास कर रही है. सत्तर साल में क्या हुआ का जवाब देने की कोशिश की गई है. कई जगहों पर दोहराया गया है कि हमने पहले भी किया है, हम इसे फिर से करेंगे.

राहुल गांधी का 5 करोड़ ग़रीब परिवारों को हर महीने 6000 देने का वादा कर रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी का 10 करोड़ किसानों को एक साल में 6000 देने की योजना लागू कर चुके हैं, दोनों से यह तो ज़ाहिर होता है कि निचले पायदान तक विकास ने जीवन को नहीं बदला है. किसानों की हालत खराब नहीं होती तो मोदी सरकार को 75,000 करोड़ सीधे किसानों को देने की योजना क्यों बनानी पड़ती.

अरुण जेटली ने अभिजीत बनर्जी का ज़िक्र किया वे एमआईटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. उनका कहना है कि टैक्स बढ़ाना होगा, वेल्थ टैक्स बढ़ाने होंगे और जीसएटी भी. आप जानते हैं कि भारत में जितनी संपत्ति है उसका 73 प्रतिशत सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास है. निचले पायदान के पचास फीसदी आबादी के पास जितनी संपत्ति है, जिसके बराबर भारत के सिर्फ 9 लोगों के पास संपत्ति है. क्या अमीरों पर टैक्स बढ़ाना चाहिए, यह एक सवाल है जिस पर बहस अमीर लोगों के बीच तो होगी नहीं, ग़रीब लोगों के बीच करने से क्या फायदा. हमारे सहयोगी ऑनिंदो चक्रवर्ती ने सिम्पल समाचार में बताया है कि यह योजना संभव है. कुछ हिस्सा अभी दिखा रहे हैं.

5 करोड़ गरीब परिवारों को हर महीने 6000 रुपये देने की बात पर कई राय है. अब आते हैं रोज़गार पर. रोज़गार के बारे में राहुल गांधी ने लिखा है उसे ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए. पेज नंबर 12 पर लिखा है कि 1 अप्रैल 2019 के अनुसार केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, न्यायपालिका और संसद के सभी 4 लाख रिक्त पदों को 30 मार्च 2020 तक भरा जाएगा. बाकी राज्यों को धन देते समय कहा जाएगा कि वे 20 लाख रिक्त पदों को भरें.

एक साल में केंद सरकार 4 लाख वैकेंसी भरेगी. उसके अगले साल क्या होगा. बाकी के 18 लाख पदों की जवाबदेही राज्य सरकारों पर है. राज्य सरकारों की भर्ती प्रणाली इतनी बोगस है कि एक साल में 20 लाख पदों को भरना उनके बस की बात नहीं. फिर केंद्र से धन मिलने की शर्त में यह बात होगी तो राज्य सरकारें क्या स्वीकार करेंगी. आज एक यूपी से बेरोज़गार ने मैसेज किया. यूपी अधीनस्थ लोक सेवा आयोग ने कई परीक्षाएं करा लीं हैं मगर नतीजे नहीं आ रहे हैं. लैब ऑपरेटर और ट्यूबवेल ऑपरेटर के रिजल्ट नहीं आ रहे हैं. सरकारी नौकरियां दूसरी समस्या भी झेल रही हैं. केस और कैंसिल की समस्या. महंगे फॉर्म की समस्या. कांग्रेस को यह भी कहना चाहिए था कि इन परीक्षाओं को लेकर उसकी क्या सोच है. फिर भी इन डिटेल को याद रखिए. भाषण और डिटेल में फर्क होता है. बेरोज़गारी के आंकड़े से आज भी वित्त मंत्री ने सवाल उठाए. इससे अच्छा होता कि जेटली जी संख्या बता देते कि पांच साल में कितनी नौकरी दी गई. कम से कम सरकारी नौकरियों की ही संख्या बता देते.

जेटली जी की इस कहानी से तो भारत में कोई बेरोज़गार ही नहीं है. एक बात को समझिए. ज़रूरी नहीं कि जीडीपी बढ़ जाए तो रोज़गार बढ़े ही. कई बार जॉबलेस ग्रोथ की स्थिति भी होती है. जीडीपी बढ़ती है मगर रोजगार नहीं बढ़ता है. रोज़गार पर किए जाने वाले वादों और सवालों को ध्यान से देखिए. दो करोड़ रोज़गार देने का वादा मोदी ने किया था, उस पर कोई सफाई नहीं मगर तब 2014 में मोदी पूछा करते थे कि कांग्रेस ने एक करोड़ रोज़गार देने का वादा किया है पूछो मिला क्या. अब आते हैं शिक्षा पर कांग्रेस ने क्या कहा है. इस वक्त शिक्षा पर जीडीपी का 3.3 प्रतिशत खर्च होता है. कांग्रेस ने वादा किया है कि वह शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करेगी.

बीजेपी नेता वरुण गांधी ने एक बार कहा था कि सर्व शिक्षा अभियान पर 3 लाख करोड़ से अधिक खर्च हुआ मगर उसका करीब 90 फीसदी भवन निर्माण पर हुआ. अच्छी शिक्षा और शिक्षकों के रोज़गार पर नहीं. सेंट्रल यूनिवर्सिटी बन जाती है मगर वहां शिक्षक नहीं होता. एक चुनाव से दूसरे चुनावों के बीच उनके भवन जर्जर होने लगते हैं. फिर भी यह बड़ा ऐलान है कि शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च हो. आपने प्राइम टाइम की यूनिवर्सिटी सीरीज़ में देखा होगा कि कस्बों और ज़िलों के कॉलेज जर्जर हो चुके हैं. इसकी कीमत आप दो तरह से चुकाते हैं. घटिया शिक्षा मिलने के कारण जीवन भर के लिए पीछे रह जाते हैं. फिर शहर जाते हैं पढ़ने के लिए तो वहां के भी घटिया कॉलेज में एडमिशन लेते हैं. इस पर आपका लाखों रुपया मिट्टी हो जाता है. कस्बों का नौजवान जीवन भर के लिए निम्न मध्यम वर्ग की श्रेणी में ही हाथ पांव मारता रहता है. फिर दिल्ली में बैठे नीति नियंता लेक्चर देते हैं कि भारत के नौजवानों की क्वालिटी नौकरी की ज़रूरत के लायक नहीं है. कांग्रेस ने भी अपने दस सालों में उच्च शिक्षा को नज़रअंदाज़ किया जिसकी पतन को बीजेपी की पांच साल की सरकार ने और तेज़ कर दिया. बेहतर है कि कांग्रेस को यह बात समझ आई है. इस संकट में आप क्षेत्रीय दलों को भी शामिल करें.

आज ही बिहार यूनिवर्सिटी का एक छात्र मिलने आया था. कह रहा था कि 3 साल के बीए के 5 साल हो गए मगर अभी तक 3 साल की डिग्री पूरी नहीं हुई है. इसका कारण भी पिछले दस बीस साल की नीतियां रही हैं. अब आते हैं खेती पर, हम सिर्फ कर्ज़माफी करके ही अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ेंगे, बल्कि उचित मूल्य, कृषि में कम लागत, बैंकों से ऋण सुविधा के द्वारा हम किसानों को कर्ज़ मुक्ति की तरफ ले जाने का वादा करते हैं. ऋण चुकाने में असमर्थ किसानों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करने की अनुमति नहीं देंगे. अलग से किसान बजट पेश करेंगे. भाजपा सरकार की असफल फसल बीमा को पूरी तरह बदल देंगे, जिसने किसानों की कीमत पर बीमा कंपनियों की जेब भरी है. बीमा कंपनियों को निर्देशित करेंगे कि वे न लाभ न हानि के सिद्धांत को अपनाते हुए फसल बीमा दें और उसी आधार पर किस्त लें. कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी, जिससे कि कृषि उपज के निर्यात और अंतर्राज्यीय व्यापार पर लगे सभी प्रतिबंध समाप्त हो जाएं. किसान बाज़ार की स्थापना होगी जहां किसान बिना प्रतिबंधन के अपने उत्पाद बेच सकेंगे. प्रत्येक ब्लॉक में गोदाम और कोल्ड स्टोरेज बनेगा. इसके अलावा मनरेगा में 100 दिन की जगह 150 दिन का रोज़गार मिलेगा.

कांग्रेस ने वादा किया है कि सभी वस्तुओं और सेवाओं पर एक समान जीएसटी होगी. न्यापालिका में सुधार को लेकर कांग्रेस ने कई वादे किए हैं. न्यायपालिका में अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी, अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व काफी कम है. इसे ठीक करने का वादा किया गया है. इसके अलावा कहा गया है कि संविधान की व्याख्या करने तथा राष्ट्रीय तथा कानूनी महत्व के अन्य मामलों की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक न्यायालाय बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए. उच्च न्यायालयों और आदेशों की अपील सुनने के लिए, 6 अलग-अलग स्थानों में उच्च न्यायलयों और उच्चतम न्यायालय के बीच कोर्ट ऑफ अपील की स्थापना के लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा. कोर्ट ऑफ अपील में 3 न्यायधीशों की बेंच अपील का निपटारा करेगी. कांग्रेस कानून बनाकर एक स्वतंत्र न्यायिक शिकायत आयोग की स्थापना करेगी जो न्यायधीशों के खिलाफ कदाचार की शिकायतें देकर उपयुक्त कार्यवाही के लिए संसद को परामर्श देंगे.

सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक न्यायलय बनाने की बहस पुरानी है. नई बात नहीं है मगर अब नया यह है कि कांग्रेस ने ऐसा करने का वादा किया है. दुनिया के कई मुल्कों में जो सुप्रीम कोर्ट होता है वह संवैधानिक न्यायलय होता है यानी वहां उन्हीं मामलों की सुनवाई होती है, जिनमें संवैधानिक व्याख्या की ज़रूरत होती है. सुप्रीम कोर्ट का मेन काम ही है संविधान की विवेचना करना. दूसरा कोर्ट ऑफ अपील का प्रस्ताव बेहतर है. छह जगहों पर कोर्ट ऑफ अपील बनेगी तो ज़रूरी नहीं कि लखनऊ हाईकोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली ही आना हो, हो सकता उस ज़ोन के कोर्ट ऑफ अपील में ही सुनवाई हो जाए. अभी हर अपील के लिए दिल्ली आना पड़ता है. इससे बहुत से लोग सुप्रीम कोर्ट तक नहीं आ पाते हैं. इस पर बहस होनी चाहिए कि क्या कोर्ट ऑफ अपील वक्त की ज़रूरत है या नहीं. तीसरी बात कि इस वक्त जजों पर आरोप लगते हैं तो महाभियोग से नीचे कुछ नहीं है. वो एक जटिल प्रक्रिया है. क्या इससे नीचे की कार्यवाही का प्रावधान नहीं होना चाहिए. क्या कांग्रेस इसका वादा कर रही है. यह सब तब होगा जब चुनाव मेनिफेस्टो पर होगा. वो तो हिन्दू-मुस्लिम पर हो रहा है.

टिप्पणियां

प्रधानमंत्री ने भले प्रेस कांफ्रेस नहीं की है, मगर उन्होंने एंकरों को कई इंटरव्यू दिया है. उनमें सवालों के स्तर को लेकर समीक्षकों के बीच सवाल उठते रहते हैं. अब अगर उनका प्रेस कांफ्रेंस हो भी जाएगा तो इसकी क्या गारंटी की खूब सवाल पूछे जाएंगे. चुनाव के समय ऐसे ख्यालों की फकीरी ठीक नहीं लगती है. कांग्रेस के घोषणा पत्र में प्रेस पर भी काफी कुछ कहा गया है. देशद्रोह के कानून को समाप्त कर दिया जाएगा. भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए को कांग्रेस समाप्त करने जा रही है. कांग्रेस का मानना है कि इसका दुरुपयोग हुआ है. यही नहीं, मीडिया के लिए भी काफी कुछ है. सार्वजनिक हित के मामलों को उजागर करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा की बात है. मीडिया में स्वामित्व का मामला काफी जटिल है. एक कंपनी जो माइनिंग में है वो चैनल लांच करती है और फिर चैनल के दम पर माइनिंग में विस्तार कर लेती है. इसके कारण मीडिया सरकार के अधीन होने लगता है. क्या कांग्रेस वाकई मीडिया में क्रॉस स्वामित्व को लेकर गंभीर है? वादा किया है कि कांग्रेस मीडिया में एकाधिकार रोकने के लिए कानून पारित करेगी, ताकि विभिन्न क्षेत्रों के क्रॉस स्वामित्व तथा अन्य व्यावसायिक संगठनों द्वारा मीडिया पर नियंत्र न किया जा सके. कांग्रेस भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग को संदिग्ध एकाधिकार के मामलों की जांच के लिए कहेगी.

कांग्रेस कैसे करेगी यह काम, इस वक्त बहुत से ऐसे चैनल हैं जिनका मूल बिजनेस कुछ और है. बहुत से चैनल हैं जिन्होंने बाद में दूसरा बिजनेस खोल लिया है. क्या कांग्रेस अपने इस वादे को पूरा करने के लिए कॉरपोरेट से लोहा लेगी. मीडिया संस्थानों से टकरा पाएगी? इसलिए कहा कि मेनिफेस्टो को पढ़ना भले बोरिंग हो टीवी के लिए मगर पढ़ना चाहिए. कांग्रेस ने वादा किया है कि वह सिनेमेटोग्राफ 1927 में बदलाव करेगी. सेंसरशिप को अश्लीलता और राष्ट्रीय सुरक्षा तक सीमित करेगी. फिल्मों को प्रमाणित करने के लिए पारदर्शी तरीका अपनाया जाएगा. सारा मेनिफेस्टो तो नहीं पढ़ा जा सकता है. धीरे-धीरे इसकी चर्चा होगी या अगर चुनाव हिन्दू मुस्लिम पर ही हो गया तो फिर इसे चुनाव के बाद पढ़ा जाएगा.

  • टीवी पत्रकार रवीश कुमार के ब्लॉग से साभार

BSP के नाम पर पैसे की धोखाधड़ी पर भड़कीं मायावती

 सोशल मीडिया पर इन दिनों बीएसपी को आर्थिक सहयोग देने के इच्छुक NRI अम्बेडकरवादियों के लिए एक मैसेज घूम रहा है. इस मैसेज में बैंक का खाता नंबर भी दिया गया है. बहुजन समाज पार्टी ने इस मैसेज को गलत बताया है. पार्टी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि आर्थिक सहयोग देने के इच्छुक एन.आर.आई साथियों के लिए जारी किया गया बैंक खाता नंबर शीर्षक से सोशल मीडिया पर प्रसारित खबर पूरी तरह से गलत व फ्राड है.

बहुजन समाज पार्टी ने इस मामले को लेकर एक बयान जारी किया है, जिसमें पार्टी का कहना है- “बहुजन समाज पार्टी को जानकारी मिली है कि सोशल मीडिया पर एक विज्ञप्ति प्रसारित करके यह प्रचारित किया जा रहा है कि बी.एस.पी. द्वारा ‘‘विदेशों में रहने वाले मिशनरी साथियों के लिये खाता नम्बर जारी किया गया है‘‘ ताकि इच्छुक एन.आर.आई. बी.एस.पी. को आर्थिक सहयोग कर सकें। यह खबर शत-प्रतिशत गलत व मिथ्या प्रचार है तथा इससे बी.एस.पी. अथवा बी.एस.पी. के किसी भी सदस्य आदि का कोई लेना-देना नहीं है। बी.एस.पी. इस प्रकार के षड़यन्त्रकारी दुष्प्रचार की तीव्र निन्दा व भर्त्सना करती है तथा चुनाव आयोग से माँग करती है कि वह ना केवल इस पर तत्काल सख्त कानूनी कार्रवाही करें बल्कि आगे भी ऐसी गलत/भ्रामक/मिथ्या प्रचार पर कड़ी नजर रखें।”

पार्टी ने अपने बयान में आगे देश की आम जनता से इस प्रकार के दुष्प्रचार में नहीं पड़ने और भ्रमित नहीं होने की अपील की है. हालांकि दलित दस्तक ने कथित तौर पर सोशल मीडिया पर घूम रहे फ्राड मैसेज के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन वह मैसेज हमारे पास उपलब्ध नहीं हो पाया.

स्लोवाकिया में पहली बार महिला राष्ट्रपति

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स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति जुजोना कैपुतोवा (फोटो क्रेडिटः एजेंसी)

स्लोवाकिया को नया राष्ट्रपति मिल गया है. इसमें नई खबर यह है कि इस देश में पहली बार ऐसा हुआ है जब जनता ने किसी महिला को अपना राष्ट्रपति चुना है. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का नाम जुजाना कैपुतोवा है. इस तरह जुजाना कैपुतोवा यहां की पहली महिला राष्ट्र प्रमुख बन गई हैं. 46 वर्षीय कैपुतोवा तलाकशुदा और दो बच्चों की मां हैं. कैपुतोवा को एक वकील के तौर पर देश भर में शोहरत मिली थी, जब उन्होंने अवैध कचरा भराव क्षेत्र के खिलाफ एक मामले की अगुवाई की. यह संघर्ष 14 साल तक चला था. उन्होंने हाई प्रोफाइल राजनयिक मारोस सेफकोविक को दूसरे चरण की वोट की गिनती में हरा दिया. कैपुतोवा की ख्याति भ्रष्टाचार-रोधी मुहिम चलाने वाली उम्मीदवर के रूप में है. कैपुतोवा को यूरोपियन कमीशन के उपाध्यक्ष सेफकोविट के 42 फीसदी पर 58 फीसदी वोटों से जीत हासिल हुई. वह उदारवादी प्रोग्रेसिव स्लोवाकिया पार्टी की सदस्य हैं. इस पार्टी की संसद में कोई सीट नहीं है. कैपुतोवा का जीतना इसलिए भी अहम है क्योंकि स्लोवाकिया ऐसा देश है जहां समलैंगिक विवाह व गोद लेना अब तक कानूनी नहीं है. माना जा रहा है कि वह उदारवादी विचारों को बढ़ावा देंगी.

बसपा ने छह उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा की

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी ने आज छह लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों के नामों की आधिकारिक घोषणा कर दी है. पार्टी महासचिव मेवालाल गौतम द्वारा जारी सूची के मुताबिक शाहजहांपुर (सुरक्षित) से अमर चन्द्र जौहर, मिसरिख (सुरक्षित) सीट से नीलू सत्यार्थी, फर्रूखाबाद से मनोज अग्रवाल, अकबरपुर से निशा सचान और जालौन से पंकज सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है. हमीरपुर से पार्टी ने दिलीप कुमार सिंह को टिकट दिया है.

हालांकि तमाम नेता पहले से ही चुनाव प्रचार में लगे हुए थे, लेकिन पार्टी के आधिकारिक ऐलान के बाद यह साफ हो गया है कि बसपा और गठबंधन की तरफ से वे उम्मीदवार हैं. 17वीं लोकसभा के लिए चुनावी रण 11 अप्रैल से शुरू हो रहा है. इस दिन पहले चरण का मतदान होगा. पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में चुनाव हो रहे हैं.

रमणिका गुप्ता का जाना एक हादसा है

लंबे समय से बीमार रही रमणिका गुप्ता का निधन हो गया. उनकी बीमारी की हालत में मैं उनसे कई बार मिलने गया और यह महसूस होता था कि वह और जीना चाह रही हैं. थोड़ा बहुत भी ठीक होती तो भि‍ड़ जाती अपने कामों में, समय पर मैगजीन युद्ध रत आम आदमी आना है. कौन सा काम कैसा  हो रहा है? एक तरह से उन्हें अपने जाने का भी एहसास हो चुका था. क्योंकि उमर उनकी काफी हो रही थी. वह अपने तमाम राइटिंग्स और स्पीच को इकट्ठा कर रही थी. इसके प्रकाशित करने की तैयारी में थी. शायद वह अब तक प्रकाशित भी हो गई होगी.

बहुत सारे काम वे जल्‍दबाजी में करना चाह रही थी. हर जगह वह आप अपनी उपस्थिति देना चाहती थी. बता दूं कि रमणिका गुप्ता ने अपने कैरियर की शुरुआत हजारीबाग बिहार. अब झारखंड में है, से शुरू की थी. परिवार से विद्रोह करते हुए उन्होंने कोयला मजदूरों के लिए आंदोलन जारी रखा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी से वह विधायक चुनी गई. उनके जज्बे और साहस की हमेशा तारीफ में होती थी. इसके साथ साथ उन्होंने अपना साहित्यिक काम भी जारी रखा. वह हजारीबाग से ही युद्ध रात आम आदमी पत्रिका निकालती थी. शुरू में यह त्रैमासिक थी.

उन्हें अपने नाम का बेहद मोह था जैसा कि सभी को होता है. लेकिन वह उसे प्रजेंट करने में कभी भी संकोच नहीं करती थी. उन्होंने अपने जीते जी रमणिका फाउंडेशन बनाया और खुद उसकी संस्थापक सदस्य बनी. रमणिका फाउंडेशन के मार्फत वे कई विधाओं में पुरस्कार भी दिया करती थी. पत्रिका का प्रकाशन भी रमणिका फाउंडेशन के माध्यम से ही होता था.

उन्होंने आदिवासी मुद्दों पर जमकर लिखा और इस पर लिखने वालों को आगे भी बढ़ाए. इसी प्रकार वे दलित मुद्दों पर भी काफी लिखा करती थी और दलित लेखकों को प्रमोट करने का श्रेय उन्हें जाता है. उनकी कविताएं और कहानियां चर्चित रही हैं खासकर उन की एक कहानी बहू जुठाई बेहद चर्चित रही है. यदि मौका मिले तो आप इस कहानी को जरूर पढ़ें.

वे स्त्री मुद्दों को उठाने वाली देश की अग्रणी महिलाओं में शुमार की जाती थी. उनकी तमाम रचनाओं में महिला वादी सोच स्पष्ट दिखाई पड़ती थी. उनकी आत्मकथा हादसे बेहद चर्चित रही. उन्होंने अपने अंतरंग संबंधों और तमाम अनुभवों को इस आत्मकथा में साझा किया था. जिसके कारण वह विवादों में भी घिरी थी.

मेरा जब भी दिल्ली जाना होता मैं रमणिका जी के पास जरूर आता और प्रभावित था कि वे एक बुजुर्ग महिला होने के बावजूद बेहद सक्रिय थी. रात को केवल 4 या 5 घंटे सोती, बाकी समय लिखने पढ़ने में जाता. उनकी पत्रिका का विशेषांक मल मूत्र ढोता भारत के लिए मैं कई बार दिल्ली गया और इस काम में मैंने मदद की. इसके बाद मैंने पिछड़ा वर्ग विशेषांक संपादन का जिम्मा लिया और क़रीब 4 साल की मेहनत के बाद यह अंक मार्केट में आया. इस बीच मुझे कई बार रायपुर से दिल्ली का दौरा करना पड़ा. तमाम लोगों से इंटरव्यू एवं आलेख मंगाए गए. रचनाओं की छटनी और प्रूफ चेकिंग. एक बहुत बड़ा काम था. यह अंक दो भागों में प्रकाशित हुआ.

 एक बार की घटना मुझे याद आ रही है रमणिका जी को जब पता चलता कि कोई दिल्‍ली के बाहर से लेखक या लेखिका आई हैं. तो उन्हें फोन कर बुला लेती और गपशप मारते हैं. कुछ लिखना पढ़ना होता. इसी दरमियान कंवल भारती जी को उन्होंने फोन पर बुलवाया और उन्होंने कहा कि भारती जी अब आप आ जाइए शाम का खाना खाएंगे कुछ रम शम पिएंगे. कंवल भारती जी ऑटो में तुरंत डिफेंस कॉलोनी स्थित रमणिका जी के निवास पर आ गए. एक-दो दिन पहले से मैं भी वहां पर था. जैसे ही कंवल भारती आए तो उन्होंने स्वागत सत्कार किया और बातचीत करने लगे. कंवल भारती जी ने कहा कि आपने मंगवा लिए (इशारा रम की तरफ था) तो रमणिका जी तुरंत कहने लगी कि नहीं हम तो आजकल लेना बंद कर दिए हैं और यहां पर पिलाना भी बंद हैं. तो कंवल भारती जी तमक गए बोले कि आप ने मुझे बुलाया है, यही बोल कर, इसलिए मैं आया हूं. सहमति के लिए रमणिका जी ने मुझसे हामी भराने की कोशिश की, तो मैंने कहा कि आपने तो कहा था कि आइए कुछ रम सम पिएंगे. रमणिका जी ने कहा कि ऐसा तो मैंने नहीं कहा था. उसके तुरंत बाद कंवल भारती जी नाराज हो कर चले गए. वह कई बार अपने कहे बातों को बदल दिया करती थी और कभी भी अचानक बहुत पैसे वाली हो जाती. तो कभी वे बिल्कुल गरीबों से व्यवहार करती. वह अक्सर कहां करती थी कि मेरे बेटे की कंपनी( जो अमेरिका में है) का टर्नओवर बिहार सरकार के टर्नओवर से ज्यादा है. उनका यह फाउंडेशन उन्हीं की मदद से चल रहा है. उनके यहां जो कर्मचारी काम करते थे उनमें से एक दिनेश को छोड़कर कोई भी कर्मचारी साल 6 महीना से ज्यादा नहीं टिक पाता था. वे रगड़ कर काम लेती थी और किसी भी कर्मचारी को फांके मानने का मौका नहीं देती थी. इसलिए संपादक से लेकर टायपिस्ट टिक नही पाते.

कोई कर्मचारी यदि उनके टेलीफोन से अपने रिश्तेदारों से फोन भी करता तो वह उनकी सैलरी से फोन के बिल के पैसे काट लिया करती. प्रोफेशनल तो इतनी थी कि आप अंदाजा नहीं लगा सकते. यदि आप जानेंगे कि वे एक दलित आदिवासी और महिला वादी महिला थी. लेकिन इमोशनल तो बिल्कुल भी नहीं थी. कई बार उनके महिला वादी होने पर भी संदेह होता.

ऐसा ही एक वाक्‍या मुझे याद आ रहा है.  एक नेपाली जोड़ा उनके यहां निवास करता था. उसकी पत्नी घर पर झाड़ू पोछा खाना वगैरह बनाने का काम करती थी और पति कहीं किसी कंपनी में चौकीदार था. इसी दरमियान बता दूं मैं की झारखंड हजारीबाग निवासी रमणिका जी के पुराने मित्र का बेटा आईएएस परीक्षा की तैयारी करने के लिए रमणिका का फाउंडेशन में साल भर से ठहरा हुआ था. नाम तो मुझे याद नहीं आ रहा है. लेकिन वह भूमिहार परिवार का था ऐसी जानकारी रमणिका जी ने दी थी. वह लड़का पढ़ाई कम और हीरोगिरी ज्यादा करता था. अक्सर रमणिका फाउंडेशन में आने वाली महिलाओं के पीछे पीछे घूमता रहता और नेपाल से आए उस नेपाली चौकीदार की पत्नी के भी पीछे-पीछे वह घूमा करता था. बाद में पता चला कि इस लड़के ने उस नेपाली महिला के साथ धमकी देकर जबरदस्ती संबंध बनाया और वह महिला प्रेग्नेंट हो गई.  यह जानकारी  उस नेपाली महिला के पति को नहीं हो पाई. क्योंकि वह आधी रात चौकीदारी की ड्यूटी से फाउंडेशन में आकर रुकता था यहां के एक छोटे से कमरे में नेपाली जोड़े को निवास हेतु जगह दिया गया था.  रमणिका फाउंडेशन में हंगामा मच गया. जैसा की होना चाहिए था. इस मामले में रमणिका जी के द्वारा पुलिस में रिपोर्ट लिखा जाना चाहिए था. लेकिन हुआ इसके उलट, वह महिला लगातार रोती रही और पुलिस में जाने की कोशिश करती रही. लेकिन रमणिका जी ने उन्हें डांट कर रोका और उस मामले मैं लीपापोती कर के उसे रफा-दफा कर दिया गया. एक प्रकार से रमणिका जी ने उस भूमिहार बलात्कारी लड़के को बचाने की पूरी कोशिश की जिसमें वह पूरी तरह सफल हो गई. उनके इस व्यवहार से उनके महिला वादी होने पर संदेह होता रहा है मुझे. मैं नहीं समझ पाया कि वह अपने लिखने, कहने और विचारधारा के उलट कैसे व्‍यवहार कर सकती हैं.

जैसा कि मैंने पहले बताया है कि वह फ्रंट में रहने के लिए कुछ भी किया करती. एक बार उन्होंने मुझे फोन किया संजीव जी आमिर खान से संपर्क करो. उन्होंने जो सत्य में जयते पर सफाई कामगारों के लिए एपिसोड बनाया है. उसमें मुझे भी ले ले मैंने भी तो मल मूत्र ढोता भारत पत्रिका विशेषांक निकाला था. इस तरह वे अपने असिस्टेंट उसे फोन करवाती. जिस पर में उन्हें कोई संकोच नहीं था. वह किसी भी संपादक को यदि लेख भेजती, तो उन्हें फोन जरूर करवाती है. जैसे उन्होंने यदि 10 संपादकों को लेख भेजा है. तो अपने असिस्टेंट से उन्हें फोन करने के लिए कहती है और वे स्वयं बात करती. वे जिस प्रकार लाल सलाम बोलने में संकोच नहीं करती थी ठीक उसी प्रकार वह जय भीम बोलने में भी संकोच नहीं करती थी. डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा किए गए प्रयासों को वह खुले दिल से स्वीकार करती थी और उन्हें मंचों पर साझा भी करती. सक्रियता उनकी सबसे बड़ी खूबी रही है वह बेहद प्रोफेशनल और सक्रिय महिला थी. मौत के कुछ दिनों पहले भी वह मंचों पर देखी गई और जज्बे के साथ अपने बातों को भी रखती थी. उनका जाना निश्चित रूप से साहित्य और विचारधारा की दुनिया में एक बड़ी खाई है जिसकी क्षतिपूर्ति आसान नहीं है.

  • संजीव खुदशाह
  • (यह लेखक के अपने विचार हैं.)

गोरखपुर सीट पर आया बड़ा ट्विस्ट, निषाद पार्टी का गठबंधन को झटका

गठबंधन की घोषणा के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ संजय निषाद (फाइल फोटो, फोटो क्रेडिटः HT)

लखनऊ। यूपी के सीएम और पूर्वांचल में भाजपा के बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ को एक बार फिर से गोरखपुर में हार का डर सताने लगा है. पिछले उपचुनाव में मिली हार के बाद योगी की काफी फजीहत हुई थी. कहा गया कि भाजपा का पूर्वांचल में सबसे मजबूत किला दरकने लगा है. यही वजह है कि 2019 आम चुनाव में गोरखपुर सीट को लेकर योगी कोई चूक करने को तैयार नहीं है. बड़ी खबर यह है कि सपा-बसपा-रालोद महागठबंध में शामिल होने के दो दिन बाद ही निषाद पार्टी ने खुद को गठबंधन से अलग कर लिया है. अलग होने के बाद निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है. निषाद पार्टी के इस कदम से जहां सपा-बसपा हैरान हैं तो वहीं इससे गोरखपुर सीट पर नया समीकरण बनता दिख रहा है.

दरअसल निषाद पार्टी के गठबंधन में शामिल होने के बाद योगी को एक बार फिर गोरखपुर में हार का डर सताने लगा था. इसकी वजह यह है कि इस लोकसभा सीट पर निषाद वोट काफी अहम है. इसी वोट के जरिए योगी के यूपी के सीएम बनने के बाद खाली हुई इस सीट पर सपा अध्य़क्ष अखिलेश यादव ने संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा था, जिसके बाद बसपा के समर्थन से प्रवीण निषाद ने जीत हासिल की थी. सपा-बसपा एक बार फिर इस सीट पर योगी को मात देने की तैयारी में जुटे थे. लेकिन ऐन वक्त पर संजय निषाद के इस कदम से भाजपा बढ़त लेती हुई दिखने लगी है. भाजपा पहले ही निषाद समाज के एक अन्य कद्दावर नेता रहे दिवंगत जमुना प्रसाद निषाद के परिवार को पार्टी में शामिल कर चुकी है.

23 साल बाद एक बार फिर भाजपा ने जमुना प्रसाद निषाद की पत्नी और पूर्व विधायक राजमति निषाद और उनके बेटे अमरेन्द्र निषाद को पार्टी में शामिल कर लिया है. इस परिवार के कद का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि सन् 1999 के लोकसभा चुनाव में जमुना प्रसाद निषाद ने भाजपा के योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी थी और वह मात्र तकरीबन 7 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. हालांकि उनकी मृत्यु के बाद यह परिवार समाजवादी पार्टी के साथ चला गया था. लेकिन मार्च के दूसरे हफ्ते में इसने एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया था.

भाजपा यह मानकर चल रही है कि निषाद समाज के दोनों प्रमुख नेताओं को अपने पाले में लाकर वह गोरखपुर में अब निषाद समाज को भाजपा के पक्ष में एकजुट कर सकती है. अब देखना यह होगा कि भाजपा की इस रणनीति की काट मायावती और अखिलेश यादव कैसे निकालते हैं. गठबंधन के तरह गोरखपुर की सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई है.

पापा की पोलिटिक्स पर सोनाक्षी सिन्हा का बड़ा बयान

पिता शत्रुध्न सिन्हा के साथ सोनाक्षी सिन्हा (फाइल फोटो)

नई दिल्ली। फिल्म अभिनेता और राजनीतिज्ञ शत्रुध्न सिन्हा कांग्रेस ज्वाइन करने की तैयारी में है. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से उनकी मुलाकात हो चुकी है और सब कुछ तय हो चुका है. सिन्हा के 4 अप्रैल को कांग्रेस ज्वाइन करने की खबर है. ऐसे में उनकी बेटी और फिल्म अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा ने बड़ा बयान दिया है. सोनाक्षी ने कहा है कि “उनके पिता को यह काम पहले ही कर लेना चाहिए था.”

अपने पिता के फैसले को उनका निजी फैसला बताते हुए सोनाक्षी ने कहा कि “मुझे लगता है कि मुझे लगता है कि उन्होंने फैसला लेने में देरी कर दी. सोनाक्षी ने उम्मीद जताई की कांग्रेस के साथ वो और अच्छा काम करेंगे और अलग-थलग नहीं पड़ेंगे. सोनाक्षी ने कहा कि मेरे पिता अटलजी और आडवाणी जी के समय से ही पार्टी के सदस्य थे, इन नाते पार्टी में उनका बहुत सम्मान था, लेकिन मुझे लगता है कि हाल के दिनों में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे.”

सिन्हा कांग्रेस के टिकट पर पटना साहिब के अपने वर्तमान सीट से ही प्रत्याशी होंगे. वर्तमान में वह वहीं से सांसद हैं. भाजपा ने इस बार उनका टिकट काटते हुए रविशंकर प्रसाद को टिकट दिया है, हालांकि भाजपा के भीतर भी इसका काफी विरोध हो रहा है और प्रदेश के भाजपा कार्यकर्ताओं का एक गुट एक अन्य भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य आर. के. सिन्हा को पटना से चुनाव लड़ाने की मांग कर रहा था. फिलहाल पटना साहिब के सीट का मुकाबला दिलचस्प हो गया है.

बिहार में महागठबंधन की सीटों का ऐलान

पटना। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नीत महागठबंधन ने सीटों की संख्या के बाद घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा कर लिया है. आरजेडी ने अपने 18 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है. साथ ही कांग्रेस ने भी अभी तक सात सीटों के लिए उम्मीवारों का ऐलान कर दिया है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ही वीआईपी और हम के उम्मीवारों की भी घोषणा कर दी गई. आरएलएसपी ने अभी अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की है.

पटना में ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीटों और प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी सहित अन्य घटक दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए. पीसी से कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहना झा और रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा नदारद रहे. ज्ञात हो कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस पहले गुरुवार को होनी थी, जिसे ऐन मोके पर टाल दिया गया था.

आरजेडी के खाते में आने वाली सीटें- भागलपुर, बांका, मधेपुरा, दरभंगा, वैशाली, गोपालगंज, सीवान, महाराजगंज, सारण, हाजीपुर, बेगूसराय, पाटलिपुत्र, बक्सर, जहानाबाद, नवादा, झंझारपुर, अररिया, सीतमढ़ी और शिवहर

कांग्रेस के खाते में आने वाली सीटें- किशनगंज, पूणिया, कटिहार, समस्तीपुर, मुंगेर, पटनासाहिब, सासाराम, वाल्मीकि नगर और सुपौल

आरएलएसपी के खाते में आने वाली सीटें- पश्चिमि चंपारण, पूर्वी चंपारण, उजियारपुर, काराकाट और जमुई

HAM के खाते में आने वाली सीटें- नालंदा, औरंगाबाद और गया

वीआईपी के खाते में मधुबनी, मुजफ्फरपुर और खगड़िया सीट आई हैं.

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि कई दिनों से उम्मीदवारों के नाम का इंतजार था. साथ ही उन्होंने कहा कि महागठबंधन अटटू है, यह जनता के दिलों का गठबंधन है. हम लोकतंत्र को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. हमने दो चरणों के लिए उम्मीवारों की घोषणा पहले की कर चुके हैं.

महागठबंधन में जारी गतिरोध के बीच गुरुवार को काफी देर तक बिहार कांग्रेस के नेताओं की राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ घंटों तक बैठक चली थी. बैठक के बाद खबर आयी की आरजेडी के साथ सभी समस्याओं का हल निकाल लिया गया है. दरभंगा की सीट आरजेडी के खाते में गई है. ज्ञात हो कि महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों की संख्या की घोषणा पहले हो चुकी थी.

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डॉ. लोहिया बीना सत्ता में गए भी एकछत्र राजा थे

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डॉ. राममनोहर लोहिया की मृत्यु के बाद देश में शोक का जो सैलाब आया, उससे यह साबित हो गया कि महात्मा गांधी के बाद यदि सही माने में देश के करोड़ो गरीब, भूखे-नंगे इंसानों का कोई रहनुमा था तो वह थे डॉ. राममनोहर लोहिया. डॉ. लोहिया ने अपने को आम जनता में इस तरह से मिला दिया था कि अनजान आदमी के लिए, जो डॉ. लोहिया को पहचानता न हो, यह समझ सकना प्रायः असंभव था कि उनके बीच खड़ा व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का महान नेता डॉ. लोहिया है अथवा कोई साधारण कार्यकर्ता. एक बार लोहिया जी कहीं जा रहे थे. मोटर गाडी पर उनके साथ और भी कई कार्यकर्ता थे. रास्ते में कोई हलवाई जलेबी छान रहा था. लोहिया जी ने गाड़ी रुकवा दी. उतर पड़े. कुछ गर्म-गर्म जलेबियाँ तौलाई गईं. चलने के समय जब दूकानदार को पैसे दिए जाने लगे तो खासी परेशानी पैदा हो गई. हुआ यह कि जब लोहिया जी जलेबी खाने में मशगुल थे तभी किसी तरह दूकानदार को पता चल गया कि डॉ. लोहिया हैं. फिर क्या था? दूकानदार पैसे लेने को तैयार ही नहीं हो और, लोहिया जी बिना पैसे दिये वहां से टलने को तैयार नहीं. दुकानदार का कहना था कि उसका सौभाग्य था कि डॉक्टर लोहिया ने उसकी दूकान पर जलेबी खाई, इसलिए वह पैसे नहीं ले सकता. लोहिया जी का कहना था कि यह हो नहीं सकता कि वे जलेबी खायें और पैसे न दें. बहस में समय बीत रहा था. अगली सभा में पहुँचने में देर हो रही थी. सभी लोग परेशान. अंत में लोहिया जी ने ही रास्ता निकाला. कहा- “अच्छा! एक काम करो. तुम इन जलेबियों के तो भरपाई पैसे ले लो, और अपनी ओर से एक जलेबी दे दो, जो खाकर मैं तुम्हारी बात रख दूँ.” दूकानदार भी इस शर्त पर समझौते के लिए तैयार हो गया. ऐसे थे डॉ. लोहिया, आम लोगों में मिल जाने वाले.

1965 में 10 अगस्त को गिरफ्तार होकर लोहिया जी हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में पहुंचे थे. चूँकि डॉ. लोहिया की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सर्वोच्च न्यायालय में विचारार्थ स्वीकृत हो चुकी थी और उसकी सुनवाई 23 अगस्त को होने वाली थी, इसलिए 20 अगस्त को लोहिया जी को हजारीबाग से दिल्ली ले जाया गया. जब वे वार्ड से विदा होने लगे राजनीतिक कैदियों से मिलने से पहले, उन्होंने परिचारकों से मिलना अधिक पसंद किया. सबसे पहले वे उस सेल में गये, जिसमें वार्ड का सफैया-योगीहरी रहता था. लोहिया जी को देखकर जैसे ही योगी अपने सेल से बाहर आया, लोहिया जी ने उसे पकड़ कर अपनी छाती से लगा लिया और कहने लगे – “जा रहा हूँ, पता नहीं फिर हम लोगों की भेंट होगी कि नहीं.” योगी लोहिया जी के आलिंगन में खड़ा अविरल रो रहा था और लोहिया जी उसकी पीठ थपथपा रहे थे. लगता था जैसे परिवार के दो सदस्य आपस में बिछुड़ रहे हों. उसके बाद लोहिया जी ने सभी परिचरों-पनिहा, रसोइया, पहरा, मेठ-सबको गले लगाया और बाद में राजनीतिक कैदियों की बारी आई, जिसमें किसी की पीठ थपथपाई, किसी को प्यार से चपत लगाई तो किसी से सिर्फ नमस्कार ही किया.

लोहिया जी अपने व्यवहार से किसी को भी मोह लेते थे. और, वह भी इस प्रकार से कि वह आदमी हमेशा के लिए उनका श्रद्धालु हो जाए. इसका बहुत बड़ा प्रमाण मिला था अक्टूबर 1967 में, लोहिया जी की बिमारी के समय. रीवां की वह पान वाली तथा दिल्ली का वह टैक्सी ड्राईवर. डॉ. लोहिया पान नहीं खाते थे. फिर भी आदमी तो मौज वाले थे न ! मौज में आ गया और कभी रीवां में एक बूढी पान वाली से पान खा लिया. लेकिन वह पान भी ऐसा जैसे विदुर के घर कृष्ण ने साग खा लिया. वह पान वाली हो गई डॉक्टर लोहिया की भक्त. जब लोहिया जी की बिमारी की खबर उसने सुनी तो एकमात्र अपनी रोटी का सहारा-दूकान बंद करके चल पड़ी दिल्ली की ओर. दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल के हाते में, आँगन में, वह बूढी पान वाली बैठी रहती थी और बराबर हाथ जोड़कर डॉ. लोहिया की जिन्दगी के लिए भगवान से प्रार्थना करती रहती थी. जब कोई कह देता कि लोहिया जी को अभी कुछ आराम हैं तो ख़ुशी से उसका चेहरा चमक उठता और यदि कोई बिमारी बढ़ जाने की खबर कह देता तो उसका चेहरा उतर जाता था. इसी प्रकार वह टैक्सी ड्राईवर भी सिर्फ उतनी ही देर तक अपनी टैक्सी चलाता, जितनी देर में मालिक को देने भर कमा लेता. और, बाकी समय अस्पताल में बैठा रहता. इस तरह डॉक्टर लोहिया ने अपने को आम जनता में बिल्कुल एकाकार कर लिया था. यही कारण है कि डॉ. लोहिया बीना सत्ता में गए भी एकछत्र राजा थे-जनता के हृदय के राजा.

नीरज कुमार

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इतिहास की महाभारत हो या आज की महाभारत, जनता न जगी तो जनता का विनाश सम्भव है.

महाभारत युद्ध शुरू होने की महक फिजाओ में गूंज रही है. शहरों से लेकर गांव और गांव के मोहल्लों में चर्चाओं का दौर जारी है. जहाँ भी दो लोग इकठ्ठा हो रहे है बस एक ही चर्चा युद्ध, युद्ध और सिर्फ युद्ध पुरे वातावरण में एक डर का माहौल व्याप्त है. युद्ध होगा तो कौन जीतेगा, कौन हारेगा. किसको कितना नुकसान होगा, किसको कितना फायदा होगा. किसके खेमे में कौन धुरंदर है. गद्दी किसको मिलेगी. सारा गणित लगाया जा रहा है इसके अलावा भी बहुत सी चर्चाये चल रही है.

कोई दुर्योधन को ठीक बता रहा है तो कोई युधिष्ठिर को, गद्दी का असली वारिस कौन, दुर्योधन का अपमान से लेकर द्रोपती चीरहरण, जुआ, लाखशाह ग्रह, वनवास सब मुद्दों पर चर्चाये है. लोग बंटे हुए है खेमो में. चर्चाये दबी जुबान चल रही है क्योंकि लोकतंत्र थोड़े ही है जो आप खुल कर आवाज बुलंद करो.

कुछ लोग इनसे अलग भी चर्चाये कर रहे है. वो दोनों खेमों की आलोचना करते हुए बोल रहे है कि ये जो युद्ध होने वाला है ये सिर्फ सत्ता पर कब्जे के लिए होने वाला है. इसमें सबसे ज्यादा नुकशान पशुपालक, किसान, दस्तकार मतलब आम जनता का ही होगा. इनकी सत्ता की लालसा में जो मारे जायेगे वो आम लोग होंगे. ये लड़ाई कोई धर्म की लड़ाई नही है. ये लड़ाई गद्दी की लड़ाई हैं. दोनों खेमे ही लुटेरे है. इसलिए लड़ाई ही लड़नी है तो अपने लिए लड़े.

ऐसे लोगो की बाते अनसुनी की जा रही है. ऐसे लोगो को धर्मद्रोही, देश द्रोही की संज्ञा दी जा रही है. ऐसे लोगो को जेल में डाला जा रहा है या मरवाया जा रहा है. दोनों खेमो द्वारा गांव, कस्बो के मुखियाओं को अपनी तरफ करने के लिए मीटिंगे की जा रही है. राजशाही है तो जिधर मुखिया उधर वहां की जनता ये तो लाजमी है, फोन मत रखना अभी पिक्चर बाकि है.

युद्ध के खर्चे के लिए किसानों का लगान बढ़ा दिया गया है. हथियार फैक्ट्रियों में जबरदस्ती नौजवानों की भर्तियां की जा रही है. युद्ध का उन्माद जोरों पर है. धर्म के धुरंधर, धार्मिक प्रवर्तक अपने-अपने खेमे के पक्ष में माहौल तैयार कर चुके है. प्रचार भोंपू जिनका काम तो था जनता को सच्चाई बताना लेकिन उन्होंने भी सत्ता की मलाई खाने के चक्कर में जनता से गद्दारी करते हुए जनता की आँखों पर काली पट्टी बांधने का काम किया.

अब वो दिन भी आ ही गया जिस दिन युद्ध होगा. आचार संहिता लग गयी. नियम कानून सुना दिए गए. दोनों खेमों की सेनाएं आमने-सामने आ डटीं है. सेनाओं में सैनिक जो कुछ दिन पहले किसान या मजदूर था लाल आँखे किये पुरे उत्साह में दुश्मन खेमें को हराने के लिए लालायित खड़े है. सेना में भी दोनों तरफ रिश्तेदार आमने-सामने है. किसी का जीजा इस तरफ है तो साला उस तरफ है, किसी का ससुर उस तरफ है तो दामाद इस तरफ है. लेकिन युद्ध का उन्माद जिसको धर्म की लड़ाई की संज्ञा दी गयी थी उसने सब रिश्ते नातो को ताक पर रख कर एक दूसरे की जान लेने के लिए लोगो को अँधा बनाकर आमने-सामने ला खड़ा किया है. युद्ध शुरू हो चूका है दोनों तरफ से लाशें गिर रही है. मरने वाले दोनों तरफ से आपसी रिश्तेदार है. चारो तरफ मातम पसरा हुआ है. महिलाएं विधवा हो रही है. किसी का बेटा मर रहा है तो किसी का बाप मर रहा है. चारो तरफ चिताएं जल रही है. लाशों को ढोने के लिए कंधे कम पड़ गए है. आँखों से आँशु सूख गए है. गांव मोहल्लों में सिर्फ महिलाएं और बुजर्ग बचे हुए है, मातम मनाने के लिए वो एक दूसरे के मर्गत में भी जा रहे है. मर्गत में बैठने, सात्वना देने इसके साथ ही उलाहना देने भी, कोई बोल रहा है कि मेरे बेटे को तो उसके जीजा ने, उसके फूफा ने या उसके साले ने मारा है. इस सब में सबसे पीड़ित है, वो है महिलाएं जिनके मरने वाले भी और मारने वाले भी दोनों ही परिवार से ही है.

किसी के पति को उसके भाई ने ही मारा है तो किसी के भाई, भतीजे को पति ने मारा है. जो अपँग हुआ है वो इलाज के लिए कराह रहा है. युद्ध ने लोगो का सब कुछ छिन लिया है. लोगो की आँखों से युद्ध की काली पट्टी धीरे-धीरे खिसक रही है. उनको अब वो देश द्रोही, धर्म द्रोही याद आ रहे है. लेकिन अब पछताये क्या होत है, जब चिड़िया चुग गयी खेत…

तीर कमान से निकल चुका था जो विनाश करके ही वापिस लौटेगा. विनाश हो चूका था. जिधर देखो उधर विधवा, उधर लाशें, उधर अपँग जीतने वालो को गद्दी मिल गयी. गद्दी पर बैठते ही शासक ने जनता पर नए-नए कर थोप दिए. नये-नये जनता विरोधी फरमान जारी कर दिए गए. महाभारत से लेकर आज तक कितने ही युद्ध हुए है. उन्होंने सिर्फ विनाश ही किया. लेकिन एक भी युद्ध जनता के लिए नही लड़ा गया. युद्ध अपनी लूट को जारी रखने या लूट तंत्र पर कब्जे के लिए लड़ा गया. जनता को प्रत्येक युद्ध ने विनाश के कगार पर ही पहुंचाया है.

कासिम, गजनी, गोरी, बाबर, अकबर, सिंकदर, पृथ्वीराज, सुग्रीव, विभीषण, सांगा, महाराणा प्रताप, मान सिंह, या अंग्रेज सबने युद्ध गद्दी के लिए किये. कोई धार्मिक चोला पहन कर आया तो कोई व्यापारी बन कर आया. लेकिन ध्ये सिर्फ एक, सत्ता पर कब्जा.

समय बदला इस समय को बदलने में देश द्रोहियो, धर्म द्रोहियो का अहम रोल रहा, जनता भी कुछ जागरूक हुई की इन युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान हमारा और फायदा लुटेरे शासक का होता है. अब नए समय में नया कानून बना. कानून कहता की सत्ता पर कब्जे के लिए तलवार की जरूरत नही होगी, सत्ता लूट के लिए नही बनी, सत्ता लुटेरो को लगाम लगाने के लिए होगी. सत्ता बहुमत मेहनतकश आवाम की रक्षा के लिए होगी. सत्ता हाशिये पर खड़े लाइन के आखिरी इंसान के लिए भी होगी. सत्ता सबकी होगी. सत्ता का चुनाव जनता करेगी. अब राजा आसमान से उतरकर नही आएगा, राजा जनता के अंदर से ही होगा.

जनता खुश हुई. वो खुशियां मना रही थी. वो फूल बरसा रही थी. अबकी बार फूलो की बारिस आसमान से नही जमीन से ही हो रही थी क्योंकि ये जनता की जीत थी, आसमानी लोगो की नही अब न युद्ध होगा और न कोई अपनों को खोयेगा. अपनी है धरती अब अपना वतन है, अपनी है सत्ता अपना है चमन

लेकिन आसमान से आने वालों और उनके समर्थक धार्मिक पर्वतको में बैचनी, विचलन चल रही थी. अब उनको भी खाना खाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी. उनको भी आम जनता की तरह आम जिंदगी व्यतीत करनी पड़ेगी. उनको भी पालकी की जगह जमीन पर चलना पड़ेगा. हल-फावड़ा चलाना पड़ेगा, मजदूरी करनी पड़ेगी. घोर कलयुग आ गया ऐसे शब्द इन आसमानी लोगो के मुंह से सुने जा रहे रहे. आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था. लेकिन इसी अँधेरे में जाति, धर्म, अंधराष्ट्रवाद ने एक नई आशा जगाई, अँधेरे में एक नई रोशनी की किरण दिखी. बस लुटेरे को अपना चोला बदल कर आम आदमी वाला चोला पहनना था बाकि काम जाति, धर्म, अंधराष्ट्रवाद ने करना था.

नई व्यवस्था पहले वाली से हजार गुणा बेहतर है लेकिन इसमें भी लुटेरा शासक अपनी जगह अप्रत्यक्ष तौर पर बनाये हुए है. उसने अब भी गद्दी के लिए समय-समय पर युद्ध करवाये, जातिय, धार्मिक दंगे करवाये. युद्ध का विरोध करने वाले अब भी देश द्रोही, धर्म द्रोही की संज्ञा से नवाजे गये. अब भी जेल से लेकर मौत तक उनका दमन जारी है.

एक बार फिर 2019 में सत्ता के लिए युद्ध का शंखनाद हो चूका है. धर्म-जात के प्रवर्तक जनता की आँखों पर पट्टी बांधने के लिए मैदान में पहुंच चुके है. प्रचार भोंपू भी लुटेरी सत्ता के प्रति अपना फर्ज ईमानदारी से निभा रहे है. जनता की पट्टी का काला रंग और काला करने के लिए सैनिको का बलिदान दिया जा रहा है. दोनों ही खेमे इस युद्ध को भी धर्म की रक्षा, राष्ट्र की रक्षा की जीत का नाम देकर मैदान में आ डटे है. मन्दिरो में आरती- घन्टाल बजाये जा रहे है, मस्जिदों, गुरद्वारों में मत्थे टेके जा रहे है.

“बुढ़ापे के कारण महाभारत में दादा भीष्म की और वर्तमान में अडवाणी की अवस्था नगण्य हो चुकी है. अब वो चला हुआ कारतूस के समान हो चूके है. जिस दादा भीष्म ने इस साम्राज्य को मजबूत खड़ा किया. आज वो तीरों की सन्यां पर लेटा हुआ अपने साम्राज्य के आखिरी दिन देख रहा है. अपनी ताकत का लोहा पुरे भारतवर्ष में मनवाया. उसकी आज हालात देखने लायक है. बुढ़ापा बैरी होता है सुना था, आज देखा भी जा रहा है. कोई आँशु भी पोछने नही आएगा ऐसा तो सपने में भी नही सोचा था. चलो छोड़ो इनको क्योकि जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा.” हम जनता पर आते है –

जनता भी खेमों में बंट कर मंदिर-मस्जिद, कश्मीर, भारत-पाकिस्तान पर उलझी हुई है. वो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरी मुलभुत समस्याओं को भूल गयी है. उसको न शिक्षा चाहिए, न रोजगार और न इलाज चाहिए. उनको न पूरी मजदूरी चाहिए न पूरा फसल का दाम चाहिए और न ही रोटी-कपड़ा-मकान चाहिए. उनको युद्ध, युद्ध और सिर्फ युद्ध चाहिए…

युद्ध जब विनाश कर चूका होगा तब ये देश द्रोही, धर्म द्रोही की संज्ञा से नवाजे हुए मुसाफिर याद आएंगे.

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