बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट में भुखमरी और कुपोषण से होने वाली मौतों से लोगों को बचाने के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सामुदायिक रसोई पर एक मॉडल प्लान तैयार करने को कहा । सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी यह भी थी कि पार्टियां चुनाव में कई चीजें मुफ्त बांटने की घोषणा करती हैं पर चुनाव खत्म होने के बाद मजबूरों की भूख शांत करने पर ध्यान नहीं देते हैं। इससे पहले भी पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि भुखमरी से बचाने का कर्तव्य सरकार का है और सामुदायिक रसोई बनाने के लिए कहा था।
इसके बाद केंद्र सरकार ने तुरंत अपनी तरफ से सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट से यह बात सामने निकल कर आई कि भुखमरी से कोई मौत ही नहीं हुई पूरे देश में क्योंकि किसी भी राज्य ने भूख से हुई मौत की जानकारी केन्द्र को तो दी ही नहीं। यह बिल्कुल कोविड की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की रिपोर्ट की तरह थी। आपको बता दू कि “ग्लोबल हंगर इंडेक्स” की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत की रैंकिंग 116 देशों की सूची में 101 थी। केन्द्र सरकार ने इस रिपोर्ट को भी अवैज्ञानिक करार दिया।
केन्द्र द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पुराने आंकड़ों पर थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को फटकार भी लगाई । केन्द्र सरकार के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भुखमरी से लोगों को बचाने के लिए सरकार द्वारा ढेरों योजनाएं पहले से ही चलाई जा रही है । उनका कथन सही भी है । सरकार द्वारा पोषण योजना , प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, मिशन इंद्रधनुष आदि जैसे दर्जनों योजनाएं चलाई जा रही हैं ।
परंतु सवाल यह उठता है कि आखिरकार जरूरतमंदों तक मदद पहुंच क्यों नहीं पाती हैं । सरकार चाहे कितने भी दावे कर दे लेकिन इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि भुखमरी से किसी की मौत ही नहीं हुई है । सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बार बार टिप्पणी करने के बाद भी केन्द्र व राज्य सरकारें अपनी चालाकी दिखाना छोड़ नहीं रही हैं । ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि
” भ्रष्ट सरकार से हो रही है जनता भुखमरी की शिकार
है वो इतने लाचार ,नहीं मिल पा रहा दो वक्त का आहार “
लेखक- प्रियांशु राज, बिक्रमगंज, रोहतास ( बिहार)

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