विश्वविद्यालय का काम है छात्रों को सवाल पूछने के लिए प्रेरित करना और उनके सवालों के जवाब ढूंढना. लेकिन हैदराबाद विश्वविद्यालय सवालों के जवाब दमन से देना जानता है. एक छात्रा अस्वस्थ महसूस करने पर अपने निकटतम मित्र से मिलने हॉस्टल के उसके कमरे पर आई. तभी प्रशासन ने ‘छापा मारा.’ छापे के बाद लड़के को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. “आपके कमरे में एक महिला पाई गई. जवाब दीजिए कि हॉस्टल नियमों के इस उल्लंघन के कारण आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों न की जाए.”
लड़के ने अपने जवाब में इस भाषा पर सख़्त आपत्ति जाहिर की. महिला पाई गई का क्या मतलब? वह कोई आपत्तिजनक सामान है, कोई प्रतिबंधित पदार्थ है, कोई अवैध हथियार है? विश्वविद्यालय अपनी छात्रा के सम्बंध में ऐसी भाषा कैसे लिख सकता है? स्त्री के प्रति ऐसी भाषा अशालीन होने के अलावा अमानवीय भी है.
छात्र ने हॉस्टल नियमों के बेतुकेपन के बारे में भी गम्भीर सवाल उठाए. उसी कैम्पस में विदेशी छात्रों के हॉस्टल में लड़कियां बेरोकटोक आ जा सकती हैं तो केवल भारतीय छात्राओं को अपने मित्रों से मिलने पर रोक क्यों है? क्या विश्वविद्यालय को भारतीय छात्र छात्राओं के चरित्र पर सन्देह है? क्या भारतीय संस्कृति की दृढ़ता पर उसे भरोसा नहीं है, जबकि विदेशी संस्कृति पर है?
ये गम्भीर सवाल हैं. विश्वविद्यालय को जवाब देना चाहिए था. लेकिन उसने उठाकर जवाब मांग रहे दस छात्रों को सस्पेंड कर दिया. अब पूरा कैम्पस मिल कर जवाब मांग रहा है. सवालों से निपटने का यह तरीका नहीं है. जवाब दीजिए. बहस कीजिए. सवाल पूछने वालों को निरुत्तर कीजिए. यह कारण बताओ नोटिस, सस्पेंसन, पुलिस कार्रवाई यह कोई तरीका नहीं है. आज छात्र पूछ रहे हैं. कल सारा देश पूछेगा.
आशुतोष कुमार की फेसबुक वॉल से साभार

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