“मैं गुजरात आया हूँ”

न्यू इंडिया की भयावह तस्वीर देखने आया हूँ,
उत्तर भारतीयों के लिए बन रहा दूसरा कश्मीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

सुना है मराठियों के बाद, गुजरातियों ने भी स्वतंत्र भारत के एक स्वतंत्र राज्य पर अपना दावा ठोंक दिया है,
मैं तुम्हारी वही कथित जागीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

हमेशा से सुनता आया था कि बहुत मीठे होते हैं गुजराती,
लेकिन मैं उनकी यह नई कड़वी तासीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

जो लक्ष्मण रेखा तुमने हम यू०पी०-बिहारियों के लिए गुजरात की बाहरी सीमा पर खींच रखी है,
लाओ दिखाओ मुझे भी, मैं वो लकीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

एक ज़माने में अंहिसा का पुजारी एक फ़कीर पैदा हुआ था यहाँ,
अब वो अहिंसा रूपी गाँधी तो बचा नहीं गुजरात में, मैं तो बस अब उनकी अश्क बहाती तस्वीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

देश की सीमा पर लड़ने वाले, खेतों में हल चलाने वाले और मजबूरी में यहाँ रहकर अपना पेट पालने वाले हम लोगों को तुम जो मार भगा रहे हो,
लाओ दिखाओं मुझे गुजरातियों, तुम्हारी बपौती में ये गुजरात कहाँ लिखा है ? मैं वो तहरीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 कि जो तुम धज्जियाँ उड़ा रहे हो, अखंड भारत को खंड-खंड जो तुम बना रहे हो,
कानून को अपने हाथों का खिलौना बनाए तुम गुजरातियों की भारतीय संविधान से हो रही हिंसक तकरीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

हमारे मेहनतकश मजदूरों और मजबूरों के जिस्मों को छलनी कर रही हैं जो तुम्हारी तलवारें,
कितनी धार है उसमें, ज़रा दिखाओ मुझे भी, मैं वो पूँजीवादी शमशीर देखने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

तुम्हारे शोषण और अत्याचार के दमन चक्र की बेड़ियों में जो जकड़े रहें हैं हमारे लोग,
इंतेहा हो गई है अब तुम्हारे ज़ुल्म की, इसलिए मैं वो जंज़ीर तोड़ने आया हूँ,
मैं गुजरात आया हूँ…

प्रतीक सत्यार्थ

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