सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में सरकारी हेर-फेर का खेल जारी है. देश की जनता के पैसे से संचालित इन स्कूलों में दलितों एवं गरीबों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है. लेकिन इन स्कूलों ने जरुरतमंदों को कागजों में ऐसा उलझा रखा है कि इन्हें इन स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिले में मिलने वाला लाभ नहीं मिल पाता है. हकीकत यह है कि एससी/एसटी समाज के हर बच्चे को किसी भी पब्लिक स्कूल चाहे वो दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS) हो, मार्डन स्कूल हो या फिर क्रिश्चियन स्कूल; उसमें एससी/एसटी छात्र 25 फीसदी आरक्षण का दावा कर सकते हैं. राष्ट्रीय शोषित परिषद के अध्यक्ष जय भगवान जाटव शिक्षा में दलित समाज को हक दिलाने के लिए काम कर रहे हैं. अगर आप अपने बच्चों का दाखिला केंद्रीय विद्यालय सहित सरकार द्वारा संचालित अन्य स्कूलों में करवाने की सोच रहे हैं तो इन बातों पर जरूर ध्यान दें.
केंद्रीय विद्यालय में दाखिले के लिए जारी आवेदन फार्म में आरक्षण चाहने वाले आवेदकों के लिए दो ऑप्शन होते हैं.
(1) EWS – Economic Weaker Section
(2) Disadvantage Group
केंद्रीय विद्यालयों में जब भी दाखिला होता है तो इसमें कमजोर वर्गों के लोगों के लिए सीटें आरक्षित होने का ढिंढ़ोरा पीटा जाता है, लेकिन हकीकत कुछ और है. सरकार से लेकर स्कूल तक दाखिले के समय EWS के तहत आरक्षण देने का खूब प्रचार करती है. अखबारी विज्ञापनों में भी इसे ही प्रचारित किया जाता है. इस कैटेगरी में समाज के हर वर्ग के लोग आवेदन कर सकते हैं, जिनकी आमदनी सलाना एक लाख तक हो. लेकिन यहां दिक्कत यह होती है कि 1 लाख सलाना से ज्यादा कमाने वाले लोग इस श्रेणी में आवेदन नहीं कर सकते हैं. स्कूल वाले आपसे इसी श्रेणी में आवेदन देने का दबाव डालते हैं जबकि एससी/एसटी के आवेदक दूसरी (Disadvantage Group) श्रेणी में आवेदन देकर आरक्षण का ज्यादा लाभ उठा सकते है.
दलित समाज के लोगों को इस आवेदन पत्र को भरते समय दूसरे ऑप्शन (Disadvantage Group) पर निशान लगाना चाहिए. इस ग्रुप में वार्षिक आय की कोई सीमा नहीं है. इस ग्रुप में आपको सिर्फ अपना जाति प्रमाण पत्र देना होता है, जिसके बाद आप इस ग्रुप के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ लेने के हकदार हो जाते हैं. The Right of Children to free and Compulsory Education Act, 2009 बिल 2008 में आया जबकि 2009 में यह पास हुआ. इसके सेक्शन 1 (2) में दूसरे प्वाइंट में साफ लिखा है कि अगर Disadvantage Group में आवेदन करने वालों से कोई स्कूल इंकम सर्टिफिकेट मांगता है तो सरासर गलत है और शिकायत मिलने पर उस स्कूल पर कार्रवाई हो सकती है. इस कैटेगरी में आवेदन करने वालों को सिर्फ जाति प्रमाण पत्र (Caste Certificate) देना पड़ता है.
भारत में केंद्रीय विद्यालयों में 1125 Senior Secondary School हैं. इनमें पहले दाखिले के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 22.50 फीसदी आरक्षण था. लेकिन सन् 2009 में EWS System आने के बाद केंद्रीय विद्यालय ने इसे देना बंद कर दिया, जबकि ऐसा कोई सरकारी नियम नहीं था. केंद्रीय विद्यालय ने आवेदकों से कहा कि लाभ केवल EWS के तहत ही मिलेगा. केंद्रीय विद्यालय ने तीन साल (2009-2011) तक रिजर्वेशन नहीं दिया. इसके बाद राष्ट्रीय शोषित परिषद के अध्यक्ष जय भगवान जाटव ने सूचना के अधिकार के तहत मिनिस्ट्री ऑफ एचआरडी और केंद्रीय विद्यालय से पूछा कि आरक्षण किस आधार पर बंद किया गया. उन्होंने उस आदेश की कॉपी भी मांगी, जिसके तहत आरक्षण बंद किया गया. पहले तो दोनों ने आनाकानी की लेकिन आखिरकार उन्होंने माना कि गलती हुई है और ऐसा कोई आदेश जारी नहीं हुआ है. लेकिन उन्होंने ट्रांसफर वालों को इस कोटे में दिखा दिया. जय भगवान जाटव फिलहाल इसके लिए लड़ रहे हैं, उनका कहना है कि ट्रांसफर हुए लोगों को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.