नई दिल्ली। भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC), जिसे पत्रकारिता ट्रेनिंग का देश का सबसे बड़ा संस्थान कहा जाता है, ने अपने सिलेबस से मेरी किताब “मीडिया का अंडरवर्ल्ड” को 2016 में हटा दिया था.
यह किताब काफी समय से वहां और और कई संस्थानों की रीडिंग्स में शामिल हैं. 2015 तक यह किताब IIMC के सिलेबस का हिस्सा रही है. इसे देश के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक राजकमल-राधाकृष्ण ने छापा है. पेड न्यूज पर भारत की यह अकेली किताब है.
इस किताब को केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने मीडिया क्षेत्र में देश के सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार दिया है. खुद मंत्री आए थे पुरस्कार देने. इसके लिए मुझे 75,000 रुपए भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने दिए हैं. मीडिया लेखन के क्षेत्र में यह सबसे बड़ा पुरस्कार है.
क्या आईआईएमसी के ऐसा करने से मेरा कोई निजी नुकसान हुआ?
नहीं, आईआईएमसी की इस हरकत के कारण लाखों लोगों को पहली बार मेरी किताब के बारे में जानकारी मिली. इसकी अमेजन और फ्लिपकार्ट पर बिक्री बढ़ गई. मेरी दूसरी किताबों को भी इसका फायदा मिला. मेरे लिए इसका मतलब रॉयल्टी के जरिए होने वाली आमदनी भी है.
अब दिल्ली यूनिवर्सिटी कांचा इलैया की किताबों को सिलेबस से हटाना चाहती हैं.
ये बेवकूफी के सिवा कुछ नहीं है. कांचा इलैया तो श्रमिक और श्रमण संस्कृति के विचारक हैं और ब्राह्मणी संस्कृति को चुनौती देते हैं. उनके विचार रोकने से और फैलेंगे.
दिलीप मंडल
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is sabke baad bhi log kahte hain ki chhuachhoot mit gayi, bharat tarakki kar raha hai.
saaf hai, bharat mein kaale “shudron” ki koi aukaat nahi hai.