स्मृति शेषः जातीय भेदभाव के खिलाफ लड़ाई के नायक थे एडवोकेट केशरीलाल

बहुजन समाज के नायकों की फेहरिस्त लम्बी रही है। उन नायकों से प्रेरणा लेकर बाद की पीढ़ी ने भी सम्मान के लिए संघर्ष का रास्ता चुना। केशरीलाल जी, उसी श्रृंखला के नायक का नाम है। बीते 19 सितंबर 2024 को 85 साल की उम्र में उनका परिनिर्वाण हो गया।

केशरी लाल जी का जन्म 1 जनवरी 1939 को राजस्थान केे धौलपुर जिले के पिपरोन गांव में दलित (चमार) परिवार में हुआ था। गांव में जातिवाद चरम सीमा पर था। दलित परिवार का कोई भी व्यक्ति स्कूल जाने की हिम्मत नहीं करता था। किसी ने स्कूल जाने की हिम्मत भी की तो उसका अंजाम पूरे दलित समुदाय को भुगतना होता था। ऐसे समय में केशरीलाल जी ने स्कूल जाने का साहस किया।

सरकारी स्कूल गांव से करीबन 6 किलोमीटर दूर था, जहां वे पैदल ही जाया करते थे। स्कूल में पढ़ने वाले उच्च जाति के छात्र अक्सर उनकी पिटाई भी कर देते थे, पिटाई करने का कोई कारण नहीं होता था। बस वे चमार थे और उच्च जाति के लोगों के साथ उन्होंने पढ़ने की हिम्मत जुटाई थी। स्कूल में उच्च जाति के छात्र मटके से पानी लेकर अलग से उनको पानी पिलाते थे।

पढ़ाई के साथ साथ खेती-बाड़ी का काम संभालना। भैंसों के लिए चारा लाना और खेतों पर पढ़ाई करना ही केशरी लाल जी की दिनचर्या थी। जब वे 10 वीं में थे, तब ही 6 दिसम्बर 1956 को संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का निधन हुआ था, उस दिन उन्होंने स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टरों और उच्च जाति के विद्यार्थियों को यह कहते हुए सुना कि आज हमारा दुश्मन मारा गया। उच्च जाति के विद्यार्थियों ने इस बात की मिठाइयां बांटी थीं।

उस समय केशरी लाल जी ने प्रण लिया कि मुझे खूब पढ़ाई करनी है और बाबा साहब के रास्ते पर चलना है। समाज के लिए काम करना है। अपने जीवन को समाज के अधिकार सम्मान और न्याय दिलाने के लिए लगाना है। 10वीं पास करते ही केशरी लाल जी की नौकरी लग गई थी। उनके 10वीं पास करने पर गांव में हल्ला मच गया था।

एक चमार ने 10वीं पास कर ली थी। 10वीं पास करना उस समय बहुत बड़ी बात थी। नौकरी में रहते हुए ही केशरीलाल जी ने अपनी 11वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। दिल्ली आकर देशबंधु कॉलेज से बीए और एएलबी की शिक्षा पूरी की। तब से लोग उन्हें वकील साहब के नाम से जानने पहचानने लगे

1960 में केशरी लाल जी जब दिल्ली आए तो सबसे पहले दिल्ली के अंबेडकर भवन पहुंचे थे। यहीं से वे समाज, सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ते चले गए। उस समय केवल आरपीआई और समता सैनिक दल था। तो वे उनके साथ जुड़े। बाकी संगठन और राजनैतिक पार्टी तो बाद में आए। वे गांव से अकेले ही आए थे पर लोग उनके साथ जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया।

दिल्ली आकर एडवोकेट केशरी लाल जी ने बौद्धिज्म को समझा और बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। अपने आफिस में स्वयं को बौद्धिस्ट डिक्लेयर कर दिया। बुद्धिस्ट बनने को लेकर गजट ऑफ इंडिया नामक न्यूज पेपर में इश्तिहार दिया। अपने नाम के साथ बौद्ध लगाना शुरू कर दिया। हालांकि इससे उनका प्रमोशन रोक दिया गया। बौद्ध बनने के बाद एडवोकेट केशरी लाल बौद्ध जी ने अपने सभी बच्चों की पढाई सामान्य वर्ग के अनुसार स्कूल की पूरी फीस देकर करवाई।

प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार आने के बाद उनको नौकरी में प्रमोशन मिला। जब प्रमोशन मिला और वे गजटेड ऑफिसर बने तो एक साल ही इस पोस्ट का फायदा उठा सके। इसके बाद 31 दिसंबर 1996 को रिटायर हो गए। रिटायर होने के बाद नोटरी के लिए अप्लाई किया और वे नोटरी ऑफिसर बन गए। नोटरी रहते हुए अपने आखिरी समय तक जरूरतमंदों की सहायता करते रहे। समाज की सेवा करते-करते 86 की उम्र में 19 सितंबर 2024 को दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

86 उम्र के लंबे सफर में उन्होंने जातिवाद, गरीबी, आर्थिक परेशानियों को बहुत पास से देखा, लेकिन हार नहीं मानी। जब वे सरकारी नौकरी में थे तो पत्नी, छह बच्चे और अपने चारों भाइयों के परिवार का पालन-पोषण किया। उनकी नौकरी जब लगी थी, तब वे क्लर्क थे। करीबन 100 रुपए महीने से उनकी नौकरी लगी थी। इस छोटी सी नौकरी से उनके घर परिवार व उनके भाइयों के परिवार का खर्चा पूरे नहीं हो पाता था, तो उनकी पत्नी लौंगश्री जी ने भी जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ली। उन्होंने दूसरों के खेतों में जाकर मजदूरी करना शुरू किया।

जब एडवोवेट केशरीलाल बौद्ध जी अपनी पत्नी लौंगश्री जी को दिल्ली लेकर आए तब दिल्ली में भी लौंगश्री जी ने बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठाई। दिल्ली में दूसरों के घरों में जाकर उपले बनाए, मजदूरी की। जब केशरी लाल नोटरी अफसर बने तब से लौंगश्री और उनके बच्चों की जिन्दगी में सुधार आया।

केशरीलाल बौद्ध जी गांव की उस लकीर को मिटाकर दुनिया से विदा हुए, जहां दलितों की बारात नहीं चढ़ सकती थी। उच्च जाति वाले के दरवाजों के सामने से दलित दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ सकता था। जय भीम का नाम कोई नहीं ले सकता था। यही नहीं उच्च जाति के यहां से दलित की अर्थी तक नहीं जा सकती थी। ऐसे गांव में केशरी लाल बौद्ध जी सभी जातियों को एकजुट कर जातिवादी नफरत की दीवार मिटाकर उनमें प्यार मोहब्बत के फूल खिलाकर गए। दलितों और उच्च जातियों के बीच भाईचारा बनाकर गए।

इसलिए एडवोकेट केशरी लाल बौद्ध जी को गांव के लोगों ने गुलाब के फूल, जय भीम, वकील साहब अमर रहे के नारों के साथ अंतिम विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा में दलित और क्या उच्च जाति सभी समाज के लोग शामिल थे।

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