उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक बड़ा हादसा होने से बच गया, लेकिन इस पूरे मामले में जिले के एसएसपी प्रभाकर चौधरी नप गए। दरअसल इन दिनों सावन का महीना चल रहा है। सड़कों पर कांवड़ियों का तांता लगा है। बीते कल 30 जुलाई को ऐसे ही कांवड़िए बरेली में मस्जिद के पास पहुंचे। कांवड़िए जिद पर अड़े थे कि मस्जिद के बाहर से ही DJ बजता हुआ जाएगा। मुस्लिम समाज को इस पर आपत्ति थी। मामला पुलिस के पास पहुंचा। बरेली में एसएसपी प्रभाकर चौधरी थे। उन्होंने कांवड़ियों को खूब समझाया। कांवड़ियें फिर भी नहीं माने। ऐसे में जिले में धार्मिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा था। दंगा होने की भी आशंका थी।
एसएसपी प्रभाकर चौधरी के मुताबिक, ‘कांवड़िए गैर परम्परागत जुलूस निकालना चाहते थे। ये नहीं माने और DJ को जबरदस्ती नए रूट पर ले जाने लगे। 4 घंटे तक ये हंगामा करते रहे। ऐसी भी आशंका है कि कुछ लोग शराब पीये हुए थे और कुछ के पास अवैध हथियार भी थे।
यानी मामला बिगड़ सकता था। ऐसे में पुलिस कप्तान ने अपनी पुलिस को लाठी चार्ज का आदेश दिया और उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दंगे जैसी स्थिति बनने से बच गई।
ऐसे में होना क्या चाहिए था? निश्चित तौर पर सरकार को एसएसपी प्रभाकर चौधरी की पीठ थपथपानी चाहिए थी। पुलिस के इस फैसले के साथ खड़ा होना चाहिए था। लेकिन ठहरिये। ये उत्तर प्रदेश है और यहां योगी जी की सरकार हैं। वही योगी जी जिनमें हिन्दुव समर्थक तबका मोदी जी का अक्स ढूंढ़ रहा है। इसलिए यहां कुछ और हुआ। दंगे जैसी स्थिति संभालने के बाद एसएसपी प्रभाकर घर भी नहीं पहुंचे होंगे कि उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
नया ट्रांसफर पी.ए.सी लखनऊ में 32वीं वाहिनी में हुआ है। बताया जा रहा है कि अपनी नौकरी के 13 सालों में यह उनका 21वां ट्रांसफर है। वजह यह है कि प्रभाकर नेताओं के दबाव में नहीं आते हैं। क़ानून व्यवस्था के लिए जो सही लगता है वही फैसला लेते हैं।
लेकिन यहां बात सही गलत की नहीं थी। मामला धर्म का था। उस धर्म का जो फिलहाल भारत की राजनीति में इंसान और उसकी जान से भी अहम हो गया है। मामला सरकार की नाक का था। क्योंकि यूपी की सरकार ने कांवरियों को फूल बरसाने के आदेश दिये थे, फूल बरसाए भी गए थे। और जिन पर फूल बरसाए गए थे, उन पर एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने डंडे बरसा दिये थे। अघोषित तौर पर हिन्दू राष्ट्र बनाने की पुरजोर वकालत कर रही सरकार को यह कैसे बर्दास्त होता। आप दर्शक हैं, आप जनता जनार्दन हैं, खुद सोचिए… कौन सही है, कौन गलत।
सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं। पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ स्वतंत्र लेखन करते हैं। दिल्ली में विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं।