अमेरिकी संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में लोगों की स्वतंत्रता पहले से कुछ कम हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत एक ‘स्वतंत्र’ देश से ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश में बदल गया है। दरअसल इस रिपोर्ट में ‘पॉलिटिकल फ्रीडम’ और ‘मानवाधिकार’ को लेकर कई देशों में रिसर्च की गई थी। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि साल 2014 में भारत में सत्तापरिवर्तन के बाद नागरिकों की स्वतंत्रता में गिरावट आई है। इस रिपोर्ट में राजद्रोह के केस का इस्तेमाल, मुस्लिमों पर हमले और लॉकडाउन के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों का जिक्र है। ‘डेमोक्रेसी अंडर सीज’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में भारत को 100 में से 67 नंबर दिए गए हैं। जबकि पिछले साल भारत को 100 में से 71 नंबर मिले थे।
फ्रीडम हाउस ने अपनी सलाना रिपोर्ट में कहा है कि, ‘हालांकि भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार भेदभाव की नीतियां अपनी रही हैं। इस दौरान हिंसा बढ़ी है और मुस्लिम आबादी इसका शिकार हुई है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सरकार में मानवाधिकार संगठनों में दबाव बढ़ा है, लेखकों और पत्रकारों को डराया जा रहा है। कट्टरपंथ से प्रभावित होकर हमले किए जा रहे हैं, जिनमें लिंचिंग भी शामिल हैं और इसका निशाना मुस्लिम बने हैं।
रिपोर्ट में आगे लिखा है कि- “2014 के बाद से भारत में मानवाधिकार संगठनों पर दबाव काफी बढ़ गया है। राजद्रोह कानून और मुसलमानों पर हमलों का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हालत में गिरावट देखी गयी है। गैर सरकारी संगठनों और सरकार के आलोचकों को परेशान किया जा रहा है। रिपोर्ट में मुस्लिम समाज के साथ दलितों और आदिवासी समाज का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मुस्लिम, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर पहुंच गए हैं।”
ऐसा नहीं है कि रिपोर्ट में सिर्फ भारत की सीधी आलोचना है, बल्कि इस आलोचना का आधार भी बताया गया है। रिपोर्ट में भारत के अंक को कम करने के पीछे का कारण सरकार और उसके सहयोगी पार्टियों की ओर से आलोचकों पर शिकंजा कसना बताया गया है।
नागरिक स्वतंत्रता की रेटिंग में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को 60 में से 33 नंबर दिए गए हैं, पिछले साल भारत को 60 में से 37 नबंर मिले थे। जबकि भारत में राजनीतिक अधिकारों पर दोनों सालों का स्कोर 40 में से 34 है। इस रिपोर्ट में पिछले साल कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए भारत सरकार की ओर से लगाए गए लॉकडाउन की भी चर्चा की गई है और इसको खतरनाक बताया गया है। इसमें लिखा है कि सरकार की ओर से पिछले साल लागू किया गया लॉकडाउन खतरनाक था। इस दौरान लाखों प्रवासी मजदूरों को पलायन का सामना करना पड़ा। हम अपने दर्शकों को बता दें कि ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता पर एक वार्षिक वैश्विक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक 25 बिंदुओं को लेकर 195 देशों और 15 प्रदेशों पर शोध किया गया है।
इस रिपोर्ट के सामने आते ही इस पर तमाम राजनीतिक दलों ने भी प्रतिक्रिया दी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस रिपोर्ट को लेकर चिंता जताई है, साथ ही कहा है कि ऐसी स्थिति में केंद्र व सभी राज्यों की सरकारों को भी इसे अति-गंभीरता से लेते हुए विश्व स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को कोई आहत होने से बचाने के लिए सही दिशा में कार्य करना बहुत जरूरी है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।