
चुनावी राजनीति दिनों-दिन इस कदर नीचे गिरती गई कि मतदाताओं को टीवी, फ्रीज, साड़ी, साइकिल, लैपटॉप, गेहूं-चावल, नकदी आदि फ्रीबिज ऑफर किए जाने लगे।… और सत्ता में आने पर सरकारों का फोकस इसी फ्रीबिज के बंदरबांट पर रहने लगा। इसका खामियाजा आज देश भुगत रहा है। देश में स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था का ढांचा मजबूत ही नहीं हो पाया। सड़क, रेल, बिजली, पानी, रोजगार जैसे मुद्दे गौण होते गए। आज जब देश कोरोना महामारी से गुजर रहा है, तो पता चल रहा है कि हमारी सरकारी स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह चरमराई हुई है। निजी स्वास्थ्य व्यवस्था किसी नैतिकता से संचालित नहीं है। सरकार का पूरा तंत्र संकट के समय कोविड मरीजों को आसानी से ऑक्सीजन तक उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। ऑक्सीजन की कमी से सैंकड़ों लोगों की जान चली गई है।
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देश में कोविड से नित हो रही मौतों से त्राहिमाम मचा हुआ है, लगातार बढ़ रहे संक्रमण से हर तरफ निराशा है, लोग डरे हुए हैं, बेबस हैं। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्टों को दखल देना पड़ा है। कोविड के नियंत्रण में विफलता व अस्पतालों की बदहाली से आहत सुप्रीम कोर्ट ने पहले केंद्र सरकार से नेशनल प्लान मांगा, सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी, तो शीर्ष कोर्ट ने कोविड-19 मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी को ‘राष्ट्रीय संकट’बताते हुए कहा कि वह ऐसी स्थितियों में मूक दर्शक बना नहीं रह सकता। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय मुद्दों में हस्तक्षेप की जरूरत है, क्योंकि कुछ मामले राज्यों के बीच समन्वय से संबंधित हो सकते हैं। हम पूरक भूमिका निभा रहे हैं। कोविड मामले में सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान लेना बताता है कि देश की सरकारें ठीक से अपना काम नहीं कर रही हैं।
विदेशी मीडिया में कोविड नियंत्रण में भारत की लापरवाहियां सुर्खियों में हैं। हमारी सरकार को इसकी चिंता होनी चाहिए। कोविड महामारी के समय कुंभ का आयोजन, बड़ी-बड़ी चुनावी रैली, भीड़-भाड़ पर नियंत्रण नहीं, आवाजाही नियंत्रित नहीं आदि के चलते देश एक बार फिर संकट में घिर गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने तो कोरोना की दूसरी तहर के लिए चुनाव आयोग को कसूरवार ठहरा दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार व केंद्र की राजग सरकार को निशाने पर लिया है, सरकारों को ऑक्सीजन आपूर्ति दुरुस्त करने को कहा है। हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन निर्माता कंपनियों को आईना दिखाया है कि संकट के समय गिद्ध जैसा बर्ताव ना करें। इससे पहले भी हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति में बाधा डालने वालों को लटकाने की सख्त टिप्पणी की थी। दरअसल, कोरोना के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति की जरूरत है, केवल बैठकों, निर्देशों व अपीलों से ठोस रिजल्ट नहीं आएगा। प्राथमिकता के स्तर पर देश की स्वास्थ्य सेवा में भी आमूल-चूल परिवर्तन लाना पड़ेगा।