ऑस्कर अवार्ड में क्या मूलनिवासियों की अनदेखी हुई?

13 मार्च की तारीख भारत के लिए बेइंतहा सम्मान लेकर आई। इस दिन हर ओर ऑस्कर अवार्ड की चर्चा हो रही है। भारत की झोली में पहली बार दो ऑस्कर अवार्ड एक साथ आए हैं। भारतीय फिल्म RRR के गीत ‘नाटू-नाटू’ ने जहां बेस्ट ओरिजिनल सांग की श्रेणी में ऑस्कर जीता है। तो दूसरी ओर तमिल भाषा की डॉक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ ने ‘डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट’ केटेगरी में भारत के लिए पहला ऑस्कर जीत लिया है।

 डायरेक्टर एसएस राजमौली की फिल्म RRR का गाना इस कैटेगरी में नॉमिनेशन पाने वाली पहली भारतीय फिल्म है। नाटू-नाटू का मतलब होता है नाचना। यह गाना अभिनेता राम चरण और जूनियर एनटीआर पर फिल्माया गया है।

जबकि डाक्यूमेंट्री को कार्तिकी गोंजाल्विस द्वारा निर्देशित किया गया था और इसे OTT प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स ने रिलिज किया था। यह डॉक्यूमेंट्री हाथियों और उनकी देखभाल करने वालों के बीच के बेहद शानदार रिश्ते को लेकर है।

इस तरह भारत के हिस्से में दो ऑस्कर अवार्ड आ गए हैं। 13 मार्च की सुबह जब इन अवार्ड की घोषणा हुई, दुनिया भर में भारत का डंका बज गया। लेकिन कुछ ऐसा था, जिसकी चर्चा होनी चाहिए थी और हुई नहीं। कुछ ऐसा था, जो रह गया।

दरअसल जो दोनों अवार्ड मिले, उससे भारत के मूलनिवासी समाज की कहानी जुड़ी थी। RRR जहां आदिवासी नायक कोमराम भीम को केंद्र में रखकर बनाकर बनाई गई थी, तो वहीं डाक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ में हाथी के जो साथी हैं, वो भी आदिवासी समाज के हैं।

ऑस्कर अवार्ड लेते वक्त गोंजाल्विस ने अकादमी पुरस्कार, निर्माता गुनीत मोंगा, उनके परिवार को धन्यवाद दिया और पुरस्कार को अपनी ‘‘मातृभूमि भारत” को समर्पित किया। उन्होंने कहा, ‘‘अकादमी का हमारी फिल्म को सराहने, मूल निवासियों और जानवरों पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया… ‘नेटफ्लिक्स’ का हम पर विश्वास करने… मेरी निर्माता गुनीत के साथ अपनी आदिवासी समझ को साझा करने के लिए बोमन और बेली का शुक्रिया…।”

लेकिन कहीं न कहीं यहां उन नामों को कम तवज्जो दी गई, जिनकी वजह से ये फिल्में बन पाईं। जो असल तौर पर इस फिल्म के हीरो कहे जा सकते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस मुद्दे को उठाया है। उनका कहना है-

जब स्टेज पर चढ़कर ऑस्कर लेने के बारी आई तो फ़िल्म के दोनों, मदुमलै जंगल के, आदिवासी किरदार, जिनका वास्तविक जीवन ही ये डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म है, सीन से ग़ायब हो गए।

ये उस मंदिर या मूर्ति की तरह है, जिन्हें बनाता कोई है, छेनी और हथौड़ा किसी और का चलता है, पसीना किसी और का गिरता है और प्राण प्रतिष्ठा का प्रपंच करके कोई और उसका स्वामी बन जाता है। बनाने वाले की अक्सर गर्भ गृह में एंट्री बैन हो जाती है।

इतिहास से लेकर वर्तमान तक के सारे निर्माण, सारे नृत्य, डांस, कलाकारी जिनकी है, उनका इतिहास में नाम लेवा नहीं होता। देवदासियों का सादिर अट्टम सौ साल से कम समय में भरत नाट्यम बन गया और इसमें पैसा और नाम आते है देवदासियों को धकेलकर बाहर कर दिया गया। कितना निष्ठुर है ये सब।

दरअसल डाक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ के असली हीरो बोमन और बेली, अमु और रघु हैं। साथ ही कट्टुनायकन समाज के वो ट्राइबल, जिन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से और हाथियों को साध कर इस फिल्म की शूटिंग में मदद की।

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