कोरोना के दौर में डॉक्टरों की अग्निपरीक्षा

देश भर में साढ़े तीन लाख डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय चिकित्सक संघ यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कोविड के मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टरों के खस्ता हाल का मुद्दा उठाया गया है। संस्था ने पत्र के साथ प्रधानमंत्री को एक सूची भेजी है। इसमें सात अगस्त 2020 तक कोविड का शिकार हो चुके 196 डॉक्टरों के नाम तथा अन्य विवरण हैं। एसोसिएशन ने पत्र में ध्यान दिलाया है, “कोविड से संक्रमित हुए डॉक्टरों और उनके परिजनों को बेड उपलब्ध न होने से उन्हें अस्पतालों में एडमिट नहीं किया जा रहा है, और अधिकांश डॉक्टरों को दवाएं तक नहीं मिल पा रही हैं।”

पत्र में मांग की गई है कि प्रधानमंत्री जी तत्काल यह सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्यकर्मियों और उनके परिजनों को संक्रमित होने के बाद समय से और मानक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हों। एसोसिएशन ने लिखा है, “प्रधानमंत्री जी, यह जरूरी है कि हम आपको ध्यान दिलाएं कि इन हालात का स्वास्थ्यकर्मियों के समुदाय पर बहुत ही हतोत्साहित करने वाला असर पड़ रहा है।” एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन शर्मा ने कहा है, “हम चाहते हैं कि महामारी में काम कर रहे डॉक्टरों की सुरक्षा और कल्याण पर ध्यान दिया जाए।”

एसोसिएशन के मानद महासचिव आरवी अशोकन ने पत्र के माध्यम से कहा है, “डॉक्टरों को बीमार पड़ने पर अस्पताल में एडमिट किया जाना और बेड तथा दवाएं उपलब्ध कराया जाना हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह महामारी डॉक्टरों की जान लेने के मामले में एक खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। ये डॉक्टर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सबसे अगली क़तार के योद्धा हैं, एक डॉक्टर की जान पर खतरे का मतलब उस पर निर्भर हजारों मरीजों को असुरक्षा में डाल देना है।”

हमारा आत्ममुग्ध शीर्ष नेतृत्व व्यवस्था में किसी भी तरह की कमी की कोई बात स्वीकार करने को भी तैयार नहीं है, लेकिन हालात यह हैं कि कोरोना पॉजिटिव होने वाले लगभग सभी राजनेताओं और वीआईपी लोगों ने अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों में ही कराया है, और शायद इसीलिए उनके बीच मृत्युदर भी न के बराबर है, जबकि देश में अब तक लगभग 44 हजार गैर वीआईपी लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

अभी हाल में ही गृहमंत्री अमित शाह ने भी संक्रमित होने के बाद राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) या सफदरजंग जैसे सरकारी अस्पतालों के बजाय हरियाणा के गुरुग्राम स्थित पांच सितारा निजी अस्पताल मेदांता का चुनाव किया और यहां तक कि मेदांता में भी उनकी देखरेख के लिए साथ ही साथ एम्स के डॉक्टरों की भी ड्यूटी लग रही है। सवाल है कि ऐसा क्या हो गया कि खुद गृहमंत्री जी का अपनी ही व्यवस्था से विश्वास उठ गया?

एक अगस्त को तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का कोविड टेस्ट प्राइवेट कावेरी अस्पताल में हुआ और पॉजिटिव आने पर वे प्राइवेट अपोलो अस्पताल में भर्ती हुए। इसी तरह से तमिलनाडु के ऊर्जा मंत्री पी थंगमानी, उच्चशिक्षा मंत्री केपी अनबालागन और सहकारिता मंत्री सेलुर के राजू ने भी कोविड होने के बाद सुख-सुविधाओं वाले प्राइवेट उस्पताल में ही भर्ती होना पसंद किया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना कोविड का इलाज भोपाल के चिरायु प्राइवेट अस्पताल में और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने बंगलुरु के मणिपाल प्राइवेट अस्पताल में कराया। मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री राम खेलावन पटेल और सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदोरिया ने भी अपने नेताजी का अनुसरण करते हुए अपना इलाज चिरायु अस्पताल में ही कराया। भाजपा के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का इलाज भी गुड़गांव के मैक्स अस्पताल में हुआ।

सवाल है कि आखिर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कब सुधरेगी। सवाल यह भी है कि देश के भीतर आम और खास के लिए अलग-अलग स्वास्थ सुविधाएं कब तक चलती रहेगी। सवाल यह भी है कि कोविड को हराने में जुटे डाक्टरों की सुविधाओं का इंतजाम कब हो सकेगा। और बड़ा सवाल यह भी है कि इस दौरान बीमार हो रहे डॉक्टरों के लिए सरकार विशेष इंतजाम कब करेगी।

  • By- डॉ. सिद्धार्थ

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