भारतीय जनता पार्टी भले ही इस पर चुटकी ले रही है कि पीएम प्रत्याशी बनने की घोषणा के अगले ही दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना हाथ खींच लिया है, लेकिन असल में ऐसा कर राहुल गांधी ने एक दूरदर्शी नेता का काम किया है. दरअसल कांग्रेस पार्टी ने अध्यक्ष राहुल गांधी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने का फैसला किया. पार्टी ने यह भी कहा कि वह विपक्षी पार्टियों के बीच पीएम उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी. लेकिन वहीं मंगलवार 24 जुलाई को खुद राहुल गांधी ने संकेत दिए कि अगले लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में भाजपा और आरएसएस की सरकार बनने से रोकने के लिए कांग्रेस हर मुमकिन और जरूरी कदम उठाएगी.
हालांकि राहुल गांधी ने पीएम बनने की संभावना से इंकार नहीं किया और अगर कांग्रेस पार्टी मजबूत बनकर उभरती है तो जाहिर है कि प्रधानमंत्री पद पर सबसे बड़ा दावा राहुल गांधी का ही होगा. लेकिन राहुल गांधी ने यह भी साफ किया कि जरूरत पड़ने पर कांग्रेस किसी भी ऐसी सरकार को समर्थन देगी जो भाजपा और आरएसएस की सरकार या उसके द्वारा समर्थित किसी सरकार को बनने से रोक सके. राहुल गांधी का यह फैसला एक सोचा समझा फैसला है, जिसके अपने राजनीतिक मायने हैं.
हाल ही में दिल्ली में सौ से ज्यादा महिला पत्रकारों के साथ एक अनौपचारिक मुलाकात में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसी महिला को पीएम के रूप में स्वीकार करने की संभावना पर हामी भरी. राहुल ने कहा कि भाजपा-आरएसएस की सरकार या उसके द्वारा समर्थित किसी भी सरकार को बनने से रोकने के लिए वह हर मुमकिन कदम उठाएंगे और जो भी जरूरी होगा वह करेंगे. ऐसे में
अभी कोई यह दावे से नहीं कह सकता कि 2019 चुनाव के बाद क्या स्थिति बनेगी. कांग्रेस और राहुल गांधी का एकमात्र लक्ष्य भाजपा को रोकना है. कई और विपक्षी दल भी यह दावा करते हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी हर संभावना पर सोच रही है. चुनाव बाद जो स्थिति बनेगी उसमें कौन कहां खड़ा होगा, अभी से इसका कयास लगाना संभव नहीं है. लेकिन कांग्रेस से इतर जो सबसे बड़ा नाम सामने आ रहा है वह बसपा प्रमुख मायावती और तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी का नाम है. हालांकि बंगाल से होने के कारण ममता बनर्जी का दावा कमजोर हो सकता है. और अन्य सहयोगी दलों की मदद से मायावती का दावा मजबूत हो सकता है. वर्तमान हालात में मायावती के साथ देवेगौड़ा की जेडीएस, अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल और सपा के अखिलेश यादव खड़े हैं. एक दलित और महिला के तथ्य को साथ देखा जाए तो बसपा प्रमुख मायावती को इसका फायदा मिल सकता है.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।