सर्वप्रथम देश व विदेश में रह रहे बहुजनों को मान्यवर कांशीराम की 87वीं जयंती पर मंगल कामनाएं। अगर आज मान्यवर जीवित होते तो वह 87 वर्ष के होते। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनके आंदोलन एवं राजनीतिक गणित आज भी हमारे बीच जिंदा हैं। ऐसा ही एक मंत्र उन्होंने 25 वर्ष पहले दिया था जिसे आज अपनी आदरांजली के रूप में यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
दिनांक 17 मार्च 1996 को गाजियाबाद जिले के दादरी कस्बे में मिहिर भोज कॉलेज में बहुजन समाज पार्टी के तत्वाधान में पिछड़ा व धार्मिक अल्पसंख्यक समाज सम्मेलन में उमड़े जन सैलाब के बीच मान्यवर कांशीराम ने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए और उनके साथ ही साथ अपनी सरल भाषा में साफ-साफ उत्तर भी दिए। आज बरबस 25 वर्ष बाद भी प्रश्न पुणे शहर में उठने लगे तो लगा वह प्रश्न आज भी उतने ही सार्थक हैं, जितना 25 वर्ष पहले हुआ करते थे। यहां वही प्रश्न इस लेख के माध्यम से याद कर रहा हूं ताकि हम अपने आंदोलन में उत्साह भर सकें और उसको दिशा प्रदान कर सकें।
मान्यवर का पहला प्रश्न था की हमने बहुजन कैसे और क्यों बनाया? क्या 100 में से 85 वोट वाले को हुक्मरान बनने से कोई रोक सकता है? आखिर बहुजन समाज को सत्ता क्यों लेनी चाहिए? क्या बहुजन समाज इंसाफ देने वाला समाज बन सकता है? मनुवादी पार्टियां हुकमाराम कैसे बन जाती हैं? क्या 70 सीटें मिलने पर भी बहुजन समाज पार्टी की सरकार बन सकती है? बहुजन समाज को हुकमाराम बन्ना क्यों जरूरी है? यहां इन उत्तरों में जहां कल्पना थी वही मान्यवर की जन-आंदोलन की घोर तपस्या का गुड अनुभव भी बोल रहा था। हमने बहुजन समाज कैसे और क्यों बनाया का जैसे उत्तर देते हुए मान्यवर कांशीराम ने बताया कि पिछड़ा वर्ग जिन्हें हम ओबीसी भी कहते हैं जनसंख्या के अनुपात में वह सबसे ज्यादा है। परंतु यह समाज 3743 जातियों में विभाजित है जिसकी वजह से यह समाज बहुजन होने के बजाय एलर्जन बन गया है।
इसी तरह सबसे ज्यादा सताया गया, अपमानित किया गया, और पीछे धकेला गया समाज अनुसूचित जाति का है जिसकी संख्या उत्तर प्रदेश में ही 26% के बराबर है। वह भी अपने छोटे-छोटे समूहों में बंटा हुआ है। अगर हम उत्तर प्रदेश में ही देखें तो हमारे मुसलमान भाई जिनका वोट उत्तर प्रदेश में ही 100 में से 17 से 18 फ़ीसदी बैठता है। यह सभी लोग जब तक अलग-अलग रहते हैं तो इनके ऊपर जुल्म एवं अत्याचार होता रहता है, इनको नाना प्रकार से सताया जाता है। अतः इन समाजों पर अन्याय एवं अत्याचार को रोकने के लिए, इन्हें सुरक्षित रखने के लिए, इस तोड़े हुए समाज के लोगों को तिनका तिनका कर, एक-एक करके इकट्ठा करके एक समाज बनाया गया है। और इसीलिए इस समाज का नाम बहुजन रखा गया है। इस की जनसंख्या 100 में से 85 है।
आज से 25 वर्ष पहले मान्यवर कांशीराम ने बहुजन समाज को अपनी सरल भाषा में समझाया कि 100 में से 85 वोट रखने वाले समाज को हुक्मरान बनने से कोई भी नहीं रोक सकता। उन्होंने इस गणित को समझाया कि बहुजन समाज जिसके 100 में से 85 वोट हैं और इन्हीं वोटों के आधार पर इस देश की सरकारें बनती हैं और गिरती हैं। और इन्हीं वोटों के आधार पर अन्य समाज के बाहुल्य वाली पार्टियां हुक्मरान बनती हैं। मान्यवर ने विशाल जनसैलाब को संबोधित करते हुए आगे कहा कि इसी उपरोक्त कक्ष की बहुजनों के 100 में से 85 वोट उनके हैं और 100 में से 51 वोट वालों की सरकारे बन जाती हैं। मैं उनको अनेक तरह से इस बात को समझाने का प्रयास कर रहा हूं। इनको यह एहसास कराने के लिए बहुत सारे फार्मूले और तौर-तरीके अपनाएं हैं अगर यह बात बहुजन समाज को समझ में आ जाए तो बहुजन समाज को हुक्मरान बनने से कोई नहीं रोक सकता। मान्यवर ने अपना नारा दोहराते हुए पिछड़े वर्ग की भागीदारी का आवाहन किया। उन्होंने कहा, इसीलिए मैं कहता हूं कि- “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी”।
इसी कड़ी में मान्यवर ने आखिर बहुजन समाज को इंसाफ देने वाला समाज क्यों बनना चाहिए? इस प्रश्न का भी उत्तर दिया। मान्यवर ने बताया आज हम जनतंत्र (democracy) मैं रहते हैं और डेमॉक्रेसी में किसका वोट ज्यादा होता है उसके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। जिसका वोट ज्यादा होता है उसकी बात को नकारा नहीं जाना चाहिए, जिसका वोट ज्यादा होता है उसकी शासन प्रशासन में भागीदारी क्यों नहीं होनी चाहिए? परंतु इस देश में यह सब हो रहा है।
लेकिन बहुजन समाज को अपने आप को संगठित करके, लामबंद करके, बहुजन समाज के लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए और उनके मान सम्मान के लिए, अपने वोट का सही इस्तेमाल करके अपनी सरकार बनानी चाहिए। अगर वे अपनी सरकार बना लेते हैं तो वह बहुजन समाज के हितों की ही रक्षा नहीं करेंगे बल्कि दूसरे समाजों को भी इंसाफ दिलाने लायक बन सकते हैं।
इतना ही नहीं मान्यवर ने 25 वर्ष पहले यह भी समझाया था कि अगर बहुजन समाज को अपने वोटों की संख्या और ताकत का एहसास हो जाए तो कम वोटों वाली पार्टियां कभी भी सरकार नहीं बना पाएंगे और यहां तक हम भाजपा को 1988 वाली स्थिति में पहुंचा सकते हैं। इसके लिए पिछड़े समाज/ बहुजन समाज में गुमराह हुए लोगों को यह समझ में आना चाहिए कि इस समाज में केवल 15 से 17% वोट वाला है और इतने कम वोटों से उसकी पार्टी की सत्ता कभी नहीं बन सकती। वह कभी भी पावर में नहीं आ सकती। मान्यवर ने समझाया था कि जो पार्टियां हमारे मुसलमान भाइयों को भा जा पा का डर दिखा रही हैं जरा उनसे पूछिए कि भाजपा को 2 सीट वाली पार्टी से 88 सीट वाली पार्टी किसने बनाया।
इन्हीं दलों ने तो भाजपा से चुनाव के पहले गठबंधन किया। यहां यह तथ्य बताना जरूरी होगा कि मार्च 2021 के अंदर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भाजपा से चुनावी संघर्ष में आमने सामने दिख रही है। दोनों एक दूसरे को कोस रहे हैं और एक दूसरे को सबसे बड़ा दुश्मन भी बता रहे हैं। परंतु भाजपा को पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले का गठबंधन करके तृणमूल कांग्रेस ने विधानसभा और लोकसभा दोनों ही चुनाव लड़े। और यहां तक कि केंद्र सरकार में भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार में भी ममता बनर्जी मिनिस्टर तक बनी जिससे भाजपा लगातार पश्चिम बंगाल में मजबूत होती रही। लगभग यही हाल बिहार में हुआ है, जहां नीतीश कुमार ने लगातार चुनाव से पहले गठबंधन कर भारतीय जनता पार्टी को मजबूत किया, जिसका खामियाजा आज वह खुद भुगत रहे हैं। यहां पर यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में बसपा ने भी भाजपा से गठबंधन किया था। लेकिन यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि भाजपा से बसपा ने कभी भी चुनाव के पूर्व गठबंधन नहीं किया। बसपा ने हमेशा अपने दल एवं अपनी विचारधारा पर इलेक्शन लड़ा और उसके बाद उसने भाजपा से गठबंधन किया। और उसमें भी जब तक उसकी विचारधारा लागू होती रही तब तक तो वह सरकार में रही वरना उसके पश्चात उसने सरकार से त्यागपत्र देकर अपनी आत्मनिर्भर छवि को पुनः कायम कर लिया।
इसलिए आज से 25 वर्ष पहले मान्यवर ने अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय देते हुए बहुजनों को आगाह किया था कि भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, माफिया गर्दी, मनुवादी मीडिया का अगर अंत करना है तो इस देश का संविधान पढ़ना बहुत जरूरी है। मान्यवर ने सत्ता लेने के लिए यह तथ्य भी बताया कि बहुजनों को घबराना नहीं चाहिए। उन्हें अपनी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की संसद में 543 सीटें हैं इनमें से मात्र 70 सीट भी जिता कर अगर संसद में भेज दे तो दिल्ली में बहुजनों की सरकार बन सकती है। उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में 425 सीटें हुआ करती थी और वहां पर हमने मात्र 69 सीट जीतकर सरकार बनाई तो क्या हम 70 सीट जीत करके केंद्र में अपनी सरकार नहीं बना सकते?
आज 25 वर्ष बाद भी मान्यवर कांशीराम का वह चुनावी गणित एवं आंदोलन की गहरी समझ उतनी ही सार्थक लगती है, उतनी ही व्यवहारिक दिखती है जितनी कि उस समय लगती थी। अगर बहुजन समाज मान्यवर कि कहीं इन बातों का पुनः अवलोकन कर अपने आप को बहुजन विचारधारा एवं संगठन के झंडे तले संगठित करें तो शायद मान्यवर का केंद्र में सरकार बनाने का अधूरा सपना पूरा हो सकता है। इससे ज्यादा योग्य आदरांजली मान्यवर कांशीराम के लिए और क्या हो सकती है। मान्यवर कांशीराम को उनकी जयंती पर पुनः नमन।
प्रो. (डॉ.) विवेक कुमार प्रख्यात समाजशास्त्री हैं। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंस (CSSS) विभाग के चेयरमैन हैं। विश्वविख्यात कोलंबिया युनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं। ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर मेंबर हैं।