जेएनयू छात्र संघ चुनाव के नतीजों पर सबकी निगाहें टिकी हुई है. शनिवार देर शाम तक नतीजों के आने की संभावना जताई जा रही है. इस बार के चुनाव में बाबासाहेब अम्बेडकर को फॉलो करने का दावा करने वाले लेफ्ट संगठनों का रुख बदला-बदला सा है. पिछले चुनावों में जहां जेएनयू में ‘जय भीम-लाल सलाम’ का नारा गूंजा करता था, इस बार के छात्र संघ चुनाव से यह नारा गायब है. अगर अम्बेडकर-फुले विचारधारा पर आधारित संगठन बपसा को छोड़ दें तो जय भीम का नारा तमाम मंचों से गायब है.
इसी पर जेएनयू के छात्र अनिल कुमार का कहना है कि रोहित वेमुला के आत्महत्या से उपजे आक्रोश को कैश कराने के लिए और बाद में 9 फ़रवरी 2016 को फांसी की सजा के विरोध के नाम पर आतंकवादियो को महिमामंडित करने से उपजे हालात से बचने के लिए माओवादियों और सामंती मार्क्सवादियो ने “जय भीम: लाल सलाम” का नारा JNU में बुलंद किया था. लेकिन हकीकत में यह कितना चल पाया? अनिल कहते हैं, “मैं वामपंथ के गढ़ JNU में 7 सितंबर को यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (JNUSU) के Presidential Debate और 9 सितंबर को सुबह तक मतदान के समय मौजूद रहा, लेकिन एक बार भी “जय भीम: लाल सलाम” का नारा किसी ने नहीं लगाया. अनिल सवाल उठाते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? पूरा JNU और पूरा देश जानना चाहता है. बकौल अनिल, “मैं गंभीरता से सोच रहा हूं कि आखिर इस नारे को तब क्यों लगाया गया था और अब क्यों नहीं लगाया गया’?

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