जय भीम का नारा पहली बार कोरेगांव के युद्ध में 1 जनवरी 1818 में बोला गया था. यह युद्ध पेशवा और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुआ था. जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार ने बताया कि युद्ध के दौरान महार सिपाही (तत्कालिक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भाग) भीमा नदी पार करने के लिए जय भीम का नारा लगाकर अपने आप को प्रोत्साहित करते थे. महार सेना ने पेशवा को हरा दिया था. बाबासाहेब हर वर्ष पुणे स्थित इस जगह जाया करते थे और महारों के द्वारा प्रदर्शित अनुकरणीय वीरता को पुष्पांजलि अर्पित करते थे.
प्रो. विवेक ने आगे बताया कि 1936 में इंडिपेंडेट लेबर पार्टी (आईएलपी) की स्थापना के बाद, जब बाबासाहेब मुंबई चॉल में अपना जन्मदिन मना रहे थे तो उनके एक समर्थक ने शुभकामना देने के लिए जय भीम बोला. उसके बाद यह बढ़ता गया. आंदोलन के तौर पर, जय भीम की प्रसिद्धि बाबासाहेब की मृत्यु बाद से हुआ. जय भीम 1960 के बाद हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रचलित होना शुरू हो गया. एक कवि बिहारीलाल ने जय भीम का प्रयोग पहली बार दिल्ली में किया.
के जमनादास द्वारा लिखित (अम्बेडकर से संबंधित एक वेबसाइट पर प्रकाशित) लेख में बताया गया पीटी रामटेके द्वारा लिखित शोध पत्र “जय भीम चे जनक” में बताया गया कि हरदास ने कैसे जय भीम का नारा बुलंद किया. यह शोध पत्र वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ था. यह शोध पत्र हरदास की कल्पना और जय भीम के विचार को विकसित करता है.
हरदास को जय राम-पति बोलना अच्छा नहीं लगता था. एक मौलवी ने उन्हें सालम आलेकुम का मतलब बताया. हरदास को यह भी अच्छा नहीं लगा फिर उन्हें विचार आया कि जय भीम क्यों न बोला जाए? तबसे वो जय भीम बोलने लगे और निर्णय किया की जय भीम की प्रतिक्रिया बाल भीम से होनी चाहिए. इस नारे का प्रयोग वह विजय भीम संघ के कार्यकर्ताओं के साथ किया. उसके बाद “बाल भीम” को छोड़ दिया और उन्होंने निर्णय किया अभिवादन के लिए जय भीम ही बोला जाएगा.
हरदास की मृत्यु 1939 में 35 वर्ष की आयु में हो गई थी लेकिन उससे पहले उन्होंने जय भीम का नारा बुलंद कर दिया. उपरोक्त सभी तर्कों से सिद्ध होता है कि जय भीम, जय हिंद से पहले आया.

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